देश का अभिन्न अंग जम्मू कश्मीर लगातार तीन दशकों से अधिक समय से जिहादी आतंकवाद का सामना कर रहा है। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के मुद्दे को ‘जिहाद’ की जगह एक राजनीतिक मुदा बताया जाता रहा है। चाहे वह 1990 के दशक में कश्मीरी हिंदुओं का नरसंहार हो, जिसके कारण बड़े पैमाने पर बलात्कार, हत्याएँ और घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ, या फिर तब चारों तरफ से गूँजते ‘रलिव, गलिव, चलिव’ के नारे, और अब रियासी में हिन्दू तीर्थयात्रियों पर आतंकी हमला, जिसमें दस हिंदुओं की जान चली गई, इस राज्य में पसरी इस्लामी आतंकवाद की जड़ों को साफ़ दर्शाते हैं। “रलिव गलिव चलिव” के नारे का मतलब होता है या तो इस्लाम अपना के हमारे साथ मिल जाओ, या मरो या फिर भाग जाओ।
इन आतंकी ने अपनी रणनीति और कामकाज का तरीका भले ही बदल लिया हो, लेकिन उनकी विचारधारा काफिर या कुफर (काफिर) को खत्म करने और हिंदुओं की लाशों पर कश्मीर में ‘निजाम-ए-मुस्तफा’ (पैगंबर मुहम्मद की व्यवस्था) लागू करने के उनके विश्वास पर आधारित है। बीते दिनों में जम्मू क्षेत्र में आतंकी घटनाओं की बढ़ोतरी ने साफ़ कर दिया कर है कि यह आतंकी विशेष रूप से शांतिपूर्ण हिंदू आबादी में डर पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। असल में यह हमले भारत सरकार से लड़ाई लड़ने के लिए नहीं बल्कि हिन्दुओं के प्रति घृणा के कारण हो रहे हैं।
इस लेख में बीते कुछ वर्षों में इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा हिन्दुओं नरसंहार की ऐसी ही भयावह घटनाओं का विवरण है। ऑपइंडिया आपके लिए इस्लामी कट्टरपंथियों के हाथों हिंदुओं के निर्दयतापूर्वक नरसंहार की ऐसी ही 27 से अधिक भयावह घटनाओं को एक साथ बता रहा है।
कश्मीर में हिन्दुओं के खिलाफ छेड़ा गया युद्ध
जम्मू कश्मीर में गैर मुस्लिमों की हत्या का सिलसिला 2024 में लगातार जारी है। फरवरी 2024 में ही आतंकियों ने श्रीनगर शहर के शल्ला कदल मोहल्ले में पंजाब के अमृतसर से अपने परिवार के कमाने आए दो बढ़ई 31 वर्षीय अमृतपाल सिंह और 27 वर्षीय रोहित मसीह पर गोलियाँ चलाई। अमृतपाल सिंह की इस आतंकी हमले में तुरंत मौत हो गई, जबकि रोहित मसीह को पेट में गोली लगी और उन्हें महाराजा श्री हरि सिंह अस्पताल ले जाया गया और फिर उसे शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में भेजा गया यहाँ उसकी मौत हो गई।
पुलिस के अनुसार, आतंकियों ने इन दोनों को बहुत करीब से गोली मारी और गंभीर रूप से घायल कर दिया। इस मामले में जम्मू कश्मीर के IGP विजय कुमार ने कहा, “शहर के हब्बा कदल इलाके में 7 फरवरी को पंजाब के दो मजदूरों पर गोलियाँ चलाने वाले आतंकवादी आदिल मंजूर लंगू को गिरफ्तार कर लिया गया है।”
इसके बाद अप्रैल, 2024 में बिहार के मूल निवासी शंकर शाह के बेटे राजू शाह की जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। हालाँकि, वह बाल-बाल बच गए। रेहड़ी-पटरी लगा कर जीवनयापन करने वाले वाले राजू शाह पर हमला दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग शहर के बिजबेहरा इलाका में हुआ। जबलीपोरा में वह अपने परिवार के साथ रहते थे। आतंकियों के हमले के बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उनकी मौत हो गई। स्थानीय लोगों ने बताया कि उन्हें दो गोलियाँ लगी थीं, एक गर्दन में और दूसरी पेट में।
The injured person, who was shot at by #terrorists, succumbed to his injuries at the hospital. Search #operation underway in the area. Further details to follow.@JmuKmrPolice https://t.co/uWSJI2cgeO
— Kashmir Zone Police (@KashmirPolice) April 17, 2024
इन हमलों के करीब दो महीने बाद ही, 9 जून को शाम करीब 6.15 बजे, आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर के रियासी में देश के अलग-अलग हिस्सों से आए तीर्थयात्रियों को ले जा रही एक बस पर घात लगाकर हमला किया, इस हमले में महिलाओं और एक छोटे बच्चे 10 लोगों की मौत हो गई और 33 अन्य घायल हो गए। इस बस में करीब 50 लोग सवार थे। यह घटना पोनी इलाके के तेरयाथ गाँव में हुई, जहाँ हमलावरों ने कटरा की ओर जा रही श्रद्धालुओं से भरी 53 सीटों वाली बस पर गोलियाँ चलाईं। वाहन सड़क से उतरकर गहरी खाई में गिर गया। आतंकियों ने इस बस पर कम से कम 50 राउंड फायरिंग की। बताया गया कि इस हमले में 2 आतंकी शामिल थे।
इस्लामी आतंकियों के हमले से बचने वाले एक हिन्दू तीर्थयात्री ने बताया, “जब हम शिव खोड़ी मंदिर से दर्शन करके लौट रहे थे, उसके करीब आधे घंटे बाद, बस पर गोलीबारी हुई और सभी खिड़कियाँ टूट गईं। बस में सवार सभी लोग उतरने की बात कहने लगे, इसलिए हम नहीं जान पाए कि क्या हुआ। कुछ सेकंड बाद ही हमारी बस खाई में गिर गई। इसके बाद भी आतंकवादी कुछ देर तक गोलीबारी करते रहे।” दूसरे पीड़ित ने बताया, “हम शिव खोड़ी मंदिर से दर्शन करके लौट रहे थे, तभी एक आतंकवादी सड़क के बीच में आया और बस पर गोलीबारी शुरू कर दी। उसने पहले ड्राइवर पर गोलियाँ चलाईं और जब बस खाई में गिर गई, उसके बाद भी आतंकवादी कुछ देर तक लगातार हमला करते रहे।”
2023 में हिन्दुओं पर हुए आतंकी हमले
साल 2023 का पहला दिन ही खून-खराबे से भरा रहा। 1 जनवरी को ही जम्मू के राजौरी के पास डांगरी गाँव में दो हथियारों से लैस आतंकियों ने घरों में घुसकर हिंदू परिवारों पर गोलीबारी की, इस हमले में दीपक कुमार (23), सतीश कुमार (45), प्रीतम लाल (56) और शिव पाल (32) मारे गए और कुछ अन्य घायल हो गए। इस हमले के बारह घंटे के भीतर आतंकियों द्वारा लगाया गया IED फटा, जिसके कारण 4 वर्षीय विहान शर्मा और 16 वर्षीय समीक्षा शर्मा की मौत हो गई, जबकि 20 साल के प्रिंस शर्मा की इलाज के बाद मौत हुई।
Big Breaking News: Heavily armed terrorists attacked Hindu families near Ram Temple in Rajouri, Jammu Kashmir, in which 4 people dead & 7 other injured
— Ashwini Shrivastava (@AshwiniSahaya) January 2, 2023
The deceased are identified as Dipak Kr, Satish Kr, Prem Lal
Injured with gunshot wounds have been shifted to the hospital
+ pic.twitter.com/Ckj0Q1GgOR
बताया गया कि दो आतंकवादी शाम करीब सात बजे हिन्दू घरों में घुसे और आधार कार्ड से उनके हिन्दू होने को पक्का किया। इसके बाद उन पर गोलियाँ बरसा दी। आतंकी नकाब पहने हुए थे और पहले उन्होंने अपर डांगरी के एक घर में कई लोगों को गोली मारी। इसके बाद उन्होंने कुछ दूरी पर स्थित दो अन्य घरों पर हमला किया और वहाँ से भागने से पहले कई लोगों को घायल कर दिया।
जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में 25 फरवरी 2023 को आतंकियों ने एक 40 वर्षीय कश्मीरी पंडित की हत्या कर दी, जब वह बाजार में जा रहा था। पुलिस ने बताया कि सुबह करीब 11 बजे दक्षिण कश्मीर के अचन इलाके में अपने घर से करीब 100 मीटर की दूरी पर ATM गार्ड संजय शर्मा को सीने में गोली मार दी गई। राहगीरों ने उन्हें अस्पताल पहुँचाया, लेकिन उनकी मौत हो गई। उनके सहकर्मियों के अनुसार, हिन्दुओं पर लगातार होते हमले के कारण उन्होंने ड्यूटी पर आना बंद कर दिया था।
#AwantiporaEncounterUpdate: Killed #terrorist identified as Aqib Mustaq Bhat of #Pulwama (A category). He initially worked for HM #terror outfit, nowadays he had been working with TRF. #Killer of late Sanjay Sharma #neutralised: ADGP Kashmir@JmuKmrPolice https://t.co/1EdTeobWYP
— Kashmir Zone Police (@KashmirPolice) February 28, 2023
28 फरवरी को कश्मीर पुलिस ने बताया कि पुलवामा के आकिब मुश्ताक भट, जो हत्या के लिए जिम्मेदार था, को अवंतीपोरा में मार गिराया गया। कश्मीर के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (ADGP) के अनुसार, वह पहले पाकिस्तान स्थित हिजबुल मुजाहिदीन का आतंकी था और फिर उसने द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) के लिए काम करना शुरू कर दिया, जो एक दूसरी भारत विरोधी पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की शाखा है।
उधमपुर के रहने वाले 27 वर्षीय दीपू कुमार की 29 मई की शाम को जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने उन्हें उस समय गोली मारी जब वे दूध खरीदने के लिए बाजार गए थे। उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहाँ उनकी मौत हो गई। वे अनंतनाग में जंगलात मंडी के पास एक मनोरंजन पार्क में एक निजी सर्कस में काम कर रहे थे।
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने दीपू कुमार के परिवार के सदस्यों को ₹5 लाख रुपए का मुआवजा दिया। दीपू उधमपुर जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर मजालता के थियाल गाँव से थे। दीपू कुमार के परिवार में उनकी पत्नी, अंधे पिता और उनके भाई हैं, जिन्हें पिछले चार सालों से आँख सम्बन्धी समस्या है। वे अपने पति और दो बच्चों के साथ गाँव में एक मिट्टी के घर में रह रहे थे। उनके भाई ने इस हत्या के बाद सवाल किया, “वह परिवार का एकमात्र कमाने वाला था। पिछले चार सालों से मेरी आँखे खराब हैं। मेरे पिता की आँखे खराब हैं, वे काम नहीं कर सकते। हम पूरी तरह से बर्बाद हो गए हैं। हमें न्याय चाहिए। हमारा क्या कसूर था?”
30 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकवादी हमले में उत्तर प्रदेश के एक प्रवासी मज़दूर की गोली लगने से मौत हो गई। 38 वर्षीय मुकेश सिंह नाम के इस व्यक्ति को राजपोरा इलाके में दोपहर करीब 12:45 बजे गोली मारी गई। वह एक ईंट भट्टे पर काम करता था और ज़रूरत का सामान खरीदने के लिए पड़ोस की एक दुकान पर गया था, तभी आतंकियों ने उस पर गोली चला दी। उसके सिर और धड़ को निशाना बनाकर तीन गोलियाँ चलाई गईं।
तुमची गांव में कई ईंट भट्टे हैं, जो बड़गाम और पुलवामा जिलों की सीमा से सटे हैं और यहाँ प्रवासी मजदूरों को काम पर रखा जाता है। मुकेश सिंह उन्नाव जिले के भटपुरा गाँव से थे जो लखनऊ से 40 किलोमीटर दूर है।
हिन्दुओं पर 2022 में हुए हमले
12 मई को मध्य कश्मीर के बडगाम जिले में आतंकियों ने एक कश्मीरी पंडित राहुल भट की उनके दफ्तर के भीतर हत्या कर दी। 35 वर्षीय राहुल भट को चडूरा कस्बे में तहसील कार्यालय के अंदर गोली मार दी गई। उन्हें 2010-11 में प्रवासियों के लिए विशेष रोजगार पैकेज के तहत राजस्व विभाग में क्लर्क की नौकरी मिली थी। वह परिवार में पत्नी मीनाक्षी भट और 7 वर्षीय बेटी कृतिका को छोड़ गए हैं। वह बडगाम के शेखपोरा माइग्रेंट कॉलोनी में उनके साथ रह रहे थे। उनके पार्थिव शरीर को जम्मू के दुर्गा नगर इलाके में उनके घर लाया गया।
इस घटना के बाद कश्मीरी हिंदू समुदाय ने विरोध प्रदर्शन किया। राहुल भट की पत्नी ने कहा, “वह कहते थे कि हर कोई उसके साथ अच्छा व्यवहार करते हैं और कोई भी उसे नुकसान नहीं पहुँचा सकता। फिर भी उनको किसी ने नहीं बचाया। उन्होंने किसी से उनकी पहचान के बारे में पूछा होगा, अन्यथा आतंकियों को कैसे पता चलता।” उन्होंने कहा कि हमलावरों ने उनके दफ्तर से उसके ठिकाने के बारे में जानकारी जुटाई होगी।
उन्होंने बताया कि उनके पति चडूरा में काम करते हुए ‘असुरक्षित’ महसूस करते थे और उन्होंने स्थानीय प्रशासन से उन्हें जिला मुख्यालय में ट्रांसफर किए जाने का अनुरोध किया था। उनकी पत्नी ने कहा, “लेकिन बार-बार अनुरोध करने के बावजूद, उनका तबादला नहीं किया गया।” उनके पिता ने बताया कि “पहले, उन्होंने पूछा कि राहुल भट कौन है और फिर उन्होंने उन्हें गोली मार दी। हम जाँच चाहते हैं। वहाँ से 100 फीट की दूरी पर एक पुलिस स्टेशन था। कार्यालय में पुलिस वाले रहे होंगे, लेकिन कोई भी वहाँ नहीं था। उन्हें सीसीटीवी फुटेज की जांच करनी चाहिए।”
इस हत्या के बीस घंटे के बाद, सुरक्षाबलों ने तीन आतंकियों को मार गिराया। इनमें से दो की पहचान गुलज़ार अहमद और लतीफ़ राठेर उर्फ अब्दुल्लाहिन बांदीपोरा के रूप में हुई। राठेर टीवी कलाकार अमरीन भट की हत्या में भी शामिल था। तीनों द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) से जुड़े थे, जिसके बारे में सुरक्षा एजेंसियों का अनुमान है कि उसे पाकिस्तान की ISI ने बनाया है। इससे कश्मीर में आतंक को एक स्थानीय चेहरा दिया जा सके, जिससे पाकिस्तान कश्मीर में आतंक बढ़ाने के आरोप से बच सके।
13 अप्रैल को एक और हमले में कुलगाम निवासी सतीश कुमार सिंह राजपूत की गोली मारकर हत्या कर दी। उन्हें काकरान गाँव में उनके घर पर गोलियों से छलनी कर दिया गया। यह घटना कुलगाम जिले के पोम्बे कांप्रिम इलाके में शाम करीब साढ़े सात बजे हुई। सतीश कुमार सिंह एक ड्राइवर थे। वे मूल रूप से जम्मू के रहने वाले थे और राजपूत समुदाय से थे, जो करीब 70 साल पहले यहाँ आकर बस गए थे।
सतीश कुमार सिंह परिवार के अकेले कमाने वाले थे। उनके परिवार में उनकी बुजुर्ग माँ, पत्नी और तीन बेटियाँ, साक्षी, सेनोनी और मीनाक्षी शामिल थीं, जिनकी उम्र 7 से 12 वर्ष के बीच है। साक्षी दिव्यांग है। कुलगाम और शोपियां में कुछ और राजपूत परिवार रहते हैं जो मुख्य रूप से सेब के व्यवसाय में शामिल हैं।
इससे पहले लश्कर-ए-इस्लाम ने हिंदुओं को चेतावनी भी जारी की थी जिसमें कहा गया था कि वह कश्मीर छोड़कर भाग जाएँ वरना उन्हें मार दिया जाएगा। सतीश सिंह की हत्या उन एक दर्जन से भी कम राजपूत परिवारों के लिए एक झटका थी, जिन्होंने सबसे बुरे समय में भी दक्षिण कश्मीर के काकरान गाँव में रहना चुना। इससे नौ दिन पहले, शोपियां में आतंकियों ने एक कश्मीरी पंडित पर गोली चलाई, जिससे वह घायल हो गया। उससे पहले पुलवामा में प्रवासी मज़दूरों को निशाना बनाकर किए गए पाँच हमलों में सात लोग घायल हुए, इनमें से तीन पंजाब, तीन बिहार और एक उत्तर प्रदेश से थे।
13 मई को जम्मू-कश्मीर के रियासी में वैष्णो देवी मंदिर जा रही तीर्थयात्रियों की एक बस में कटरा के पास आग लग गई, इसके कारण चार लोगों की मौत हो गई और 24 से अधिक लोग घायल हो गए। कटरा से लगभग 1.5 किलोमीटर दूर खरमल के पास इस बस में आग लगी। आग लगाने की जिम्मेदारी आतंकवादी समूह “जेएंडके फ्रीडम फाइटर्स” ने ली।
बताया गया कि यह हमला स्टिकी बम से किया गया था। NIA समेत सुरक्षा एजेंसियों की टीमों ने इस घटना स्थल का दौरा किया और बस की जाँच की। प्रारंभिक जाँच से पता चला कि आग इंजन वाले हिस्से में लगी थी और जल्दी ही पूरी बस में फैल गई। घायलों को इलाज के लिए कटरा ले जाया गया लेकिन दो लोगों की तुरंत मौत हो गई।
Four pilgrims charred to death and 24 persons received burn injuries when a #Jammu bound bus from #Katra caught fire near #Nommai, 3 Kms from Katra today. 14 injureds shifted to GMC Jammu.
— Akashvani News Jammu (@radionews_jammu) May 13, 2022
REPORT : @devjmu pic.twitter.com/ormMo26DmP
15 मई 2022 को एक अज्ञात आतंकवादी ने ग्राहक बन कर बारामूला के दीवान बाग शराब की दुकान में ग्रेनेड फेंका, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और तीन घायल हो गए। मृतक की पहचान राजौरी निवासी 35 वर्षीय रंजीत सिंह के रूप में हुई, जो राजौरी के बखर गाँव निवासी किशन लाल का पुत्र था और गैरीसन टाउन की शराब की दुकान पर काम करता था। घायल कर्मचारियों में गोवर्धन सिंह पुत्र बिजेंद्र सिंह, रवि कुमार पुत्र करतार चंद दोनों निवासी बिलावर, कठुआ और गोविंद सिंह पुत्र गुरदेव सिंह थे जो राजौरी के ही रहने वाले थे।
पुलिस ने इस मामले में बताया, “आतंकियों ने बारामूला में एक नई खुली शराब की दुकान के अंदर ग्रेनेड फेंके। 4 कर्मचारी छर्रे लगने से घायल हो गए। सभी घायलों को तुरंत नजदीकी अस्पतालों में ले जाया गया। उनमें से एक ने दम तोड़ दिया। रात करीब 8.10 बजे बाइक पर सवार द2 (आतंकवादी) दीवान बाग बारामूला में नई खुली शराब की दुकान के पास रुके। बुर्का पहने पीछे बैठा एक व्यक्ति शराब की दुकान की खिड़की के पास गया, खिड़की से दुकान के अंदर एक ग्रेनेड फेंका और उसके बाद मौके से बाइक पर भाग गया।” TRF ने विस्फोट की जिम्मेदारी ली है।
31 मई को कश्मीर के कुलगाम जिले में आतंकियों ने जम्मू के सांबा की मूल निवासी 36 वर्षीय हिंदू स्कूल शिक्षिका रजनी बाला को गोली मार दी। पुलिस के अनुसार, वह कुलगाम के गोपालपोरा इलाके में आतंकियों की गोलियों से घायल हो गई, जहाँ वह शिक्षिका के रूप में काम करती थी। उसे अस्पताल ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
गोपालपोरा स्कूल की एक शिक्षिका ने इस घटना के बारे में बताया, “वह अपने स्कूल की ओर जा रहीं थी। जैसे ही वह दरवाजे पर पहुँची, एक बन्दूकधारी ने एक सँकरी गली से गोली चला दी। उनके सिर पर गोली लगी और वह गेट पर गिर गई। हम उन्हें तुरंत अस्पताल ले गए लेकिन उसे वहाँ मृत घोषित कर दिया गया।” चावलगाम गाँव में उनके परिवार का किराए का घर गोपालपोरा के सरकारी हाई स्कूल से करीब 7 किलोमीटर दूर है, जहाँ वह पढ़ाती थीं।
उनके पति राज कुमार भी स्कूल शिक्षक हैं और मिरहामा के सरकारी मिडिल स्कूल में तैनात हैं। यह स्कूल रजनी बाला के स्कूल से 4 किलोमीटर से भी कम दूरी पर है। उनकी 13 वर्षीय बेटी सना भी उनके साथ रहती हैं। उन दोनों को 2009 में अनुसूचित जाति (SC) श्रेणी के तहत सरकारी शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था और कुलगाम में तैनात किया गया था। इस घटना के बाद सुरक्षाबलों ने 14 जून को कुलगाम में दो आतंकियों को मार दिया था। ये आतंकवादी शिक्षिका रजनी बाला की हत्या में शामिल थे। आतंकवादी घने बागों में छिपे हुए थे। सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ के शुरुआती घंटों में उनमें से एक को घेर लिया था।
2 जून को आतंकियों ने कश्मीर घाटी में अलग-अलग हमलों में दो हिंदुओं को मार दिया। एक व्यक्ति की पहचान राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के नोहर तहसील के भगवान गाँव के बैंक मैनेजर 27 वर्षीय विजय कुमार के रूप में हुई। वह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के ग्रामीण बैंक में तैनात थे। उनकी सुबह दक्षिण कश्मीर के कुलगाम में हत्या मारकर हत्या कर दी गई, जबकि बिहार के 18 वर्षीय मजदूर दिलखुश कुमार की शाम को बडगाम जिले में गोली मारकर हत्या कर दी गई। पंजाब के गुरदासपुर के गोरिया के रहने वाला एक अन्य मजदूर गोलीबारी में घायल हो गया।
पीड़ित विजय कुमार की इस बैंक में पाँच दिन पहले ही पोस्टिंग हुई थी। इसे पहले उन्हें अनंतनाग के कोकरनाग इलाके में मैनेजर के पद पर तैनात किया गया था। उनकी शादी तीन महीने पहले ही हुई थी और वह अपनी पत्नी के साथ काजीगुंड में रह रहे थे। आतंकियों ने उस पर नजदीक से गोलियाँ चलाईं। यह पूरी घटना CCTV कैमरे में रिकॉर्ड हो गई। बाद में सुरक्षा बलों ने हत्या में शामिल शोपियां के जान मोहम्मद लोन समेत लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों को मार गिराया था।
इसके बाद बडगाम के मगरेपोरा इलाके में दो हिंदू मजदूरों पर आतंकी हमला हुआ। कश्मीर जोन पुलिस ने इस मामले में बताया, “बडगाम के चडूरा इलाके में ईंट भट्टे पर काम कर रहे दो प्रवासी मजदूरों पर आतंकियों ने फायरिंग की। दोनों को तुरंत इलाज के लिए नजदीकी अस्पताल ले जाया गया, हालाँकि, उनमें से एक की मौत हो गई।” इनमें से एक के हाथ में गोली लगी थी जबकि दूसरे के गले में गोली लगी थी। दिलखुश कुमार अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था और मार्च में ही कमाने के लिए कश्मीर गया था।
16 अगस्त को शोपियां जिले के छोटेपोरा इलाके में सेब के बगीचे में आतंकी हमले में सुनील कुमार नामक कश्मीरी पंडित की मौत हो गई, जबकि उनके भाई पिंटू कुमार घायल हो गए। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इस मामले पर कहा, “शोपियां में नागरिकों पर हुए आतंकी हमले को मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता। मेरी संवेदनाएँ सुनील कुमार के परिवार के साथ हैं। मैं घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की प्रार्थना करता हूँ। इस हमले की सभी को कड़ी निंदा करनी चाहिए। इस बर्बर कृत्य के लिए जिम्मेदार आतंकियों को बख्शा नहीं जाएगा।”
जम्मू-कश्मीर के शोपियां जिले में 15 अक्टूबर को कश्मीरी पंडित पूरण कृष्ण भट की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। दक्षिण कश्मीर जिले के चौधरी गुंड इलाके में उनके घर के पास उन पर हमला किया गया। उन्हें शोपियां अस्पताल ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। पुलिस उप महानिरीक्षक सुजीत कुमार ने इस मामले में बताया कि KFFF ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। शुरुआती जाँच में पता चला है कि एक आतंकी ने उन पर गोली चलाई।”
उनके साले ने कहा, “वह अपने पीछे दो छोटे बच्चे छोड़ गए हैं। वह घर के इकलौते कमाने वाले थे। उनकी हत्या निशाना बना कर की गई है। वे अपने सामने आने वाले किसी भी व्यक्ति को नहीं मारते, बल्कि उन लोगों को मारते हैं जिन्हें वे पसंद नहीं करते। वे कश्मीर में कश्मीरी पंडितों को यहाँ नहीं चाहते।” बताया गया कि 2020 में कोविड-19 के बाद, उन्होंने अपनी पत्नी और अपने दो बच्चों को जम्मू भेज दिया था। वे सभी पहले शोपियां में रहते थे।
इस घटना के बाद 19 दिसंबर को सुरक्षा बलों ने शोपियां जिले में लश्कर-ए-तैयबा संगठन से जुड़े तीन आतंकियों को मार गिराया। उनमें से दो की पहचान लतीफ लोन और उमर नजीर के रूप में हुई और पता चला कि वह पूरण कृष्ण भट और एक नेपाली हिंदू मजदूर तिल बहादुर थापा की हत्या में शामिल थे। पुलिस, सेना और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) द्वारा संयुक्त रूप से किए गए इस ऑपरेशन में घटनास्थल से एक राइफल और दो पिस्तौल बरामद की गई।
16 अक्टूबर को शोपियां जिले के हरमैन गांव में आराम कर रहे उत्तर प्रदेश के कन्नौज के दो मजदूर राम सागर (50) और मनीष कुमार (40) की आतंकियों ने ग्रेनेड फेंक कर हत्या कर दी। एक रिश्तेदार ने बताया कि यह लोग सितंबर में सेब के बागों में कटाई के समय काम करने के लिए शोपियां गए थे। कश्मीर के ADGP विजय कुमार ने कहा, “उत्तर प्रदेश के मजदूर यहाँ किराए पर रहकर काम कर रहे थे। उनकी झोपड़ी के तिरपाल को हटाकर ग्रेनेड अंदर फेंका गया। ग्रेनेड फेंकने वाला व्यक्ति एक हाइब्रिड आतंकवादी है और हमने उसे रात में ही गिरफ्तार कर लिया। उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया है। उसके सहयोगी को भी गिरफ्तार कर लिया गया है।
लश्कर-ए-तैयबा के ‘हाइब्रिड आतंकवादी’ इमरान बशीर गनई को घटना के कुछ घंटों बाद ही गिरफ्तार कर लिया गया था। ‘हाइब्रिड आतंकवादी’ शब्द का इस्तेमाल पुलिस द्वारा ऐसे व्यक्ति के लिए किया जाता है जो आतंकी के रूप में नहीं जाना गया है, लेकिन आतंकवादी हमले करता है और बिना किसी निशान के समाज में वापस चला जाता है।
कश्मीर जोन पुलिस ने इस मामले में बताया, ”गिरफ्तार हाइब्रिड आतंकवादी के खुलासे और पुलिस और सुरक्षा बलों द्वारा लगातार की गई छापेमारी के आधार पर, शोपियां के नौगाम में आतंकियों और सुरक्षा बलों के बीच एक और मुठभेड़ हुई है, इसमें हाइब्रिड आतंकवादी इमरान बशीर गनई दूसरे आतंकवादी की गोलीबारी में मारा गया।”
2021 में हिन्दुओं पर हुए हमले
5 अक्टूबर को 2 अलग-अलग आतंकी हमलों में दो हिंदुओं की जान चली गई। एक समाजसेवी और श्रीनगर की लोकप्रिय ‘बिंदरू मेडिकेट’ फार्मेसी के मालिक 68 वर्षीय कश्मीरी पंडित माखन लाल बिंदरू की इकबाल पार्क के पास आतंकियों ने गोली मार कर हत्या कर दी। माखन लाल बिंदरू को हमलावरों ने उनकी फार्मेसी में ही करीब से गोली मार दी। उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहाँ उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
इसके अलावा बिहार के भागलपुर जिले के रहने वाले वीरेंद्र पासवान की भी हत्या कर दी गई। आतंकियों ने माखन लाल बिंदरू की हत्या के भीतर यह हमला किया। वीरेंद्र पासवान एक रेहड़ी-पटरी वाले थे और भेलपुरी बेचने का काम करते थे। उन्हें भी करीब से गोली मारी गई और उनकी मौके पर ही मौत हो गई। माखन लाल बिंदरू उन चंद लोगों में से एक थे जो 1990 में आतकवाद के बाद भी पलायन कर बाहर नहीं गए थे।
वे अपनी पत्नी के साथ कश्मीर में रहे और अपना मेडिकल चलाते रहे, यह शहर में अच्छी दवाओं के लिए एक भरोसेमंद नाम बन गया। पुलिस ने बताया कि वह आतंकी हमलों के दिनों में भी अपनी दुकान खुली रखते थे, जब पूरा बाजार बंद रहता था। इसके अलावा, उन्होंने अपना मेडिकल कभी बंद नहीं किया, तब भी जब अलगाववादियों ने हड़ताल बुलाई।
जम्मू-कश्मीर के DGP ने दिलबाग सिंह ने माखन लाल बिंदरू के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सदस्य होने की झूठी अफवाहों का जिक्र करते हुए साफ़ किया, “TRF कराची से चलाया जाता है। हम जल्द ही सीमा पार से इस सांठगांठ का पर्दाफाश करेंगे। पीड़ित किसी भी समूह से जुड़े नहीं थे। यह TRF द्वारा किया गया दुर्भावनापूर्ण प्रचार है कि बिंदरू RSS से जुड़े थे।”
उनकी बेटी डॉ श्रद्धा बिंदरू ने इसके बाद आतंकियों को चुनौती दी, ”मैं एक एसोसिएट प्रोफेसर हूँ, मेरा भाई एक प्रसिद्ध डॉक्टर है और मेरी माँ हमारी दुकान चलाती है। हमारे पिता ने शून्य से शुरुआत की थी, लेकिन उन्होंने हमें यह बनाया। आतंकी केवल शरीर को मार सकते हैं, आत्मा को नहीं। पत्थरबाजी और गोलियां चलाना ही उन्हें आता है। तुम लोगों ने एक शरीर को मार दिया है, लेकिन तुम मेरे पिता की विरासत और उनकी आत्मा को नहीं मार सकते। अगर तुम्हें लगता है कि तुममें हिम्मत है, तो आओ और हमारे सामने बैठो और बहस करो। मैं यहीं हूँ, मेरे कश्मीरी पंडित हिंदू पिता की कश्मीरी पंडित हिंदू बेटी। आओ और मेरा सामना करो।”
7 अक्टूबर को सुबह 11.15 बजे आतंकियों ने गवर्नमेंट बॉयज हायर सेकेंडरी स्कूल की प्रिंसिपल सतिंदर कौर और स्कूल के शिक्षक दीपक चंद की हत्या कर दी। श्रीनगर के संगम इलाके में स्थित इस स्कूल में आतंकियों ने धावा बोला और दोनों को गोली मार दी। उस समय वहाँ कोई छात्र नहीं था क्योंकि कक्षाएँ अभी भी ऑनलाइन चल रही थीं। प्रिंसिपल के कार्यालय में लगभग चार-पाँच शिक्षक बैठे थे, तभी दो आतंकी यहाँ घुसेसभी को लाइन में खड़ा कर दिया। फिर उन्हें अपने पहचान पत्र और मोबाइल फोन दिखाने के लिए कहा गया और मार दिया।
मुस्लिम शिक्षकों को इस दौरान जाने दिया गया जबकि दो गैर-मुस्लिमों को घसीटकर बाहर लाया गया जिसके बाद हमलावरों ने उन पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं और मौके से भाग गए। दोनों को सौरा के शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ले जाया गया लेकिन वहां पहुंचने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। दीपक चंद (38) कश्मीरी पंडित समुदाय के सदस्य थे जो जम्मू से वापस घाटी में चले गए थे जबकि सतिंदर कौर (46) श्रीनगर के अलोची बाग बंड की सिख महिला थीं।
जम्मू-कश्मीर के DGP दिलबाग सिंह ने इस मामले में बताया कि नागरिकों को निशाना बनाने की ये हालिया घटनाएँ यहाँ भय और सांप्रदायिक तनाव का माहौल बनाने के लिए की गईं। उन्होंने इसे स्थानीय मुस्लिमों को बदनाम करने की साजिश बताया। उन्होंने कहा कि यह पाकिस्तान की एजेंसियों के निर्देश पर किया जा रहा है। इस हमले की जिम्मेदारी रेजिस्टेंस फ्रंट ने ली।
बिहार के बाँका इलाके के निवासी अरबिंद कुमार साह (30) की 16 अक्टूबर की शाम को श्रीनगर के ईदगाह स्थित एक पार्क के बाहर आतंकियों ने हत्या कर दी। वह अपने परिवार के अकेले कमाने वाले थे। वह एक रेहड़ी-पटरी वाले थेऔर बिहार में अपने परिवार को चलाने के लिए यहाँ रेहड़ी लगाते थे। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि साह की रेहड़ी के पास एक आतंकी पिस्तौल लेकर खड़ा था और उसने साह को बिल्कुल नजदीक से सिर में गोली मार दी, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई।
साह खून से लथपथ हालत में पड़े मिले। उन्हें महाराजा श्री हरी सिंह अस्पताल ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। उनकी पहचान उनके आधार कार्ड से हुई। उनके पिता ने बताया कि 3 महीने पहले वह रोजगार की तलाश में जम्मू-कश्मीर चले गए थे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अरविंद कुमार साह के परिजनों को मुख्यमंत्री राहत कोष से ₹2 लाख रुपए मुआवजा देने का ऐलान किया था।
2019 में हिन्दुओं पर हुए हमले
14 अक्टूबर को दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा जिले में आतंकियों ने छत्तीसगढ़ के एक प्रवासी मजदूर की हत्या कर दी। छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के बंसुला गांव के निवासी सेठी कुमार सागर पुलवामा के ओखू गाँव में ईंट भट्टे पर काम करते थे। काकपोरा रेलवे स्टेशन के पास निहामा इलाके में आतंकियों ने उन पर गोली चलाई। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि आतंकियों की संख्या 2 थी। उन्हें स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
दो दिन बाद, 16 अक्टूबर को शाम करीब 7:30 बजे, शोपियां इलाके में तीन से चार आतंकियों ने हमला किया। इस हमले में पंजाब के व्यापारी चरणजीत सिंह पोपली और उनके सहयोगी संजीव चराया को निशाना बनाया गया। दोनों को पुलवामा के जिला अस्पताल ले जाया गया, इलाज के दौरान चरणजीत की मौत हो गई।
संजीव चराया को गंभीर हालत में श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल श्रीनगर में स्थानांतरित कर दिया गया। शोपियां के डिप्टी कमिश्नर यासीन चौधरी ने इस घटना पर बताया, “चरणजीत एक बड़े सेब व्यापारी थे और काम के सिलसिले में कश्मीर में थे। उन पर और उनके व्यापारिक सहयोगी पर ट्रेंज गांव में हमला किया गया, जहाँ वे एक स्थानीय फल उत्पादक के साथ रह रहे थे।”
चरणजीत सिंह पोपली के परिवार में पत्नी और 8 साल का बेटा है। वह संजय चराया की मदद करने के लिए शोपियां गए थे। उनके बड़े भाई रमेश कुमार जो एक दर्जी हैं, ने बताया, “चरणजीत हर साल सेब सीजन के दौरान व्यापारियों के साथ हेल्पर के तौर पर करीब 40 दिनों के लिए कश्मीर जाते थे। वह सेब के बागों से सेब तोड़कर पैक करवाते थे और फिर उसे अबोहर भेज देते थे। सेब सीजन के बाद वह अबोहर के खेतों में फिर से सेब तोड़ने, पैक करने और लोड करने का काम करते थे।”
रियासी जिले के पेंथल ब्लॉक के ककरियाल के पास सेरा कोटला गाँव के निवासी ट्रक चालक नारायण दत्त की 28 अक्टूबर को अनंतनाग में आतंकियों ने हत्या कर दी थी। 45 वर्षीय दत्त शाम को दक्षिण कश्मीर जिले के बिजबेहरा के कनिलवान इलाके में आतंकियों ने गोलियों से भून दिया था। वह कश्मीर में राशन सप्लाई करने गए थे। उनकी मौके पर ही मौत हो गई थी। हालाँकि, पुलिस के पहुँचने के कारण दो अन्य ट्रक ड्राइवरों की जान बच गई।
उनकी 15 वर्षीय बेटी तान्या शर्मा ने रोते हुए बताया, “श्रीनगर जाने से पहले मेरे पिता ने हमसे कहा था कि वह दिवाली पर घर लौटेंगे लेकिन आज सुबह हमें उनकी लाश मिली क्योंकि आतंकियों ने बिना किसी गलती के उन्हें मार डाला।” कुछ साल पहले उनकी पत्नी का निधन हो गया था, और इसके बाद वह अपने 4 बच्चों का एकमात्र सहारा थे। उनका सबसे बड़ा बेटा अतुल शर्मा 17 साल का था, उनका सबसे छोटा बेटा बंश शर्मा 7 साल का था जबकि उनकी दूसरी बेटी सान्या शर्मा सिर्फ़ 13 साल की थी।
नारायण दत्त पर हमला करने वाले आतंकियों को पुलिस के साथ मुठभेड़ के बाद मार गिराया गया। पुलिस की एक टीम ने आतंकियों का पीछा किया और उनमें से 1 को बाद में हुई झड़प में मार दिया। मारा गया आतंकी उन आतंकियों के साथ था जिसने अनंतनाग के बिजबिहारा इलाके में दो वाहनों को रोका था, जिनमें से एक हरियाणा और दूसरा जम्मू का था।
4 नवंबर की दोपहर श्रीनगर शहर के लालचौक इलाके में ग्रेनेड हमले में एक व्यक्ति की मौत हो गई और 42 से ज़्यादा लोग घायल हो गए, इसमें नौ महिलाएँ भी थी। मृतक की पहचान उत्तर प्रदेश के सहारनपुर निवासी रिंकू सिंह (40) के रूप में हुई। जम्मू-कश्मीर पुलिस के उप महानिरीक्षक (मध्य कश्मीर रेंज) वी के बिरदी ने बताया, “वह यहाँ में गुब्बारे और खिलौने बेच रहा था।” ग्रेनेड को चहल-पहल वाले गोनीखान बाज़ार में फेंका गया, जो शहर के बीचों-बीच है और यहाँ अक्सर सड़क किनारे सामान बेचने वाले और ग्राहक आते-जाते रहते हैं।
इस हमले में तीन सुरक्षाकर्मी भी घायल हुए हैं। उन्हें श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल भेजा गया। विस्फोट के कारण मची भगदड़ के कारण ग्रेनेड फेंकने वाले आतंकी भागने में सफल रहे। श्रीनगर सेक्टर के CRPF के IG रविदीप सिंह साही के अनुसार ग्रेनेड ‘स्ट्रीट वेंडर्स एरिया’ में फेंका गया था और उस समय वहाँ बहुत सारे लोग मौजूद थे।
घटना के दौरान मौजूद एक दुकानदार ने बताया, “एक जोरदार धमाका हुआ और लोग यहाँ से भागने लगे। घायलों को तुरंत अस्पताल ले जाया गया।” प्रशासन ने बताया, “पुलिस ने दो दिन पहले सोपोर में एक आतंकी को गिरफ्तार किया था, उसे भी बाजारों और पेट्रोल पंपों पर ग्रेनेड फेंकने का काम दिया गया था।”
इसके 2003 का नंदीमर्ग नरसंहार
लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने 23 मार्च, 2003 को रात 10.30 बजे जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले के नंदीमर्ग गाँव में 11 पुरुषों, 11 महिलाओं और 2 बच्चों सहित 24 कश्मीरी पंडितों को पहचान कर उन्हें लाइन में खड़ा किया और उनकी हत्या कर दी।
1990 के कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और उनके पलायन के दौरान अन्य हिंदुओं के घाटी छोड़ने के बाद, नंदीमार्ग गाँव में केवल 52 कश्मीरी पंडित रहते थे, यह सभी 4 परिवारों का हिस्सा थे। हमलावर, जिनमें पास के एक गाँव के कुछ युवा लोग और आतंकवादी शामिल थे, ने नरसंहार से एक दिन पहले 21 और 22 मार्च को नंदीमर्ग की रेकी की थी कि ताकि कश्मीरी पंडितों को मारने का स्थान निर्धारित किया जा सके।
कश्मीरी पंडितों को एक खुले मैदान में लाया गया। उन्हें घुटनों के बल बैठने के लिए मजबूर किया गया और फिर उनके सिर में गोली मार दी गई। हमलावरों ने इस दौरान छोटे बच्चों को भी नहीं बख्शा। आतंकियों का सरगना उनका ‘कमांडर’ जिया मुस्तफा ने किया था। उसे 2003 में गिरफ्तार किया गया था और जेल में रखा गया था। अक्टूबर 2021 में पुंछ के जंगल में आतंकी ठिकानों की पहचान करने के लिए सुरक्षा बलों द्वारा जिया को जेल से बाहर निकाला गया और उसके बाद आतंकियों के साथ मुठभेड़ के दौरान गोलीबारी में वह मारा गया।
इस हत्याकांड में शामिल माने लश्कर-ए-तैयबा के तीन अन्य आतंकियों को मुंबई पुलिस ने 29 मार्च 2003 को मार गिराया था और इस हत्याकांड में शामिल लश्कर-ए-तैयबा के एक अन्य आतंकी को अप्रैल 2003 में गिरफ़्तार किया गया था। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने भी इस मामले में पाँच पुलिसकर्मियों समेत सात लोगों को आरोपी बनाया था। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने 2022 में नंदीमर्ग हत्याकांड की फ़ाइल फिर खोलने का आदेश दिया।
हिन्दुओं पर 1998 में हुए हमले
20 जून 1998 को, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर के डोडा इलाके में शादियों में शामिल होने आए 25 लोगों की हत्या कर दी थी। यह घटना तब हुई जब 2 शादी समारोह के मेहमान घर जाने के लिए बस का इंतज़ार कर रहे थे। तभी पाँच शूटर एक चोरी की गाड़ी में आए और बंदूक की नोक पर पीड़ितों से पैसे और गहने माँगे। इसके बाद उन्होंने पुरुषों को अलग कर दिया और उन पर गोलियाँ बरसानी चालू कर दी। मारे गए लोगों में दोनो दूल्हे भी शामिल थे।
दूर-दराज के ग्रामीण इलाके में हुई यह त्रासदी छह महीने में तीसरी घटना थी जब आतंकियों ने हिंदुओं को निशाना बनाकर उनकी हत्या की। इस हत्याकांड का सरगना लश्कर-ए-तैयबा का आबिद हुसैन सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया था और जैश-ए-मोहम्मद का अतुल्लाह जो एक अन्य आतंकी था, उसे 2004 में सुरक्षा बलों ने गिरफ्तार कर लिया था।
जनवरी में श्रीनगर के उत्तर में एक गांव में 23 हिंदू नागरिकों की गोली मारकर हत्या कर दी गई। यह घटना कश्मीर घाटी के उस क्षेत्र में हुई जहाँ पाकिस्तान द्वारा पीला पोसे आतंकवाद के चालू होने से पहले 100,000 से अधिक हिंदू बसते थे। इनमें से कई लोग जम्मू जैसे इलाकों में चले गए थे।
ऐसी ही एक दूसरी घटना अप्रैल में उधमपुर जिले के एक सुनसान पहाड़ी इलाके में हुई, जहाँ 13 महिलाओं और बच्चों सहित 29 हिंदू मार दिए गए।। इस घटना में बचने वालों ने खुलासा किया कि आतंकियों ने हिन्दुओं पर इसलिए हमला किया क्योंकि उन्होंने इस्लाम अपनाने और गोमांस खाने से मना कर दिया था।
अमरनाथ यात्रा पर भी होते रहे हैं हमला
10 जुलाई, 2017 को आतंकियों ने अमरनाथ से लौट रहे तीर्थयात्रियों की एक बस पर हमला कर दिया। इसमें 7 लोग मारे गए और 15 अन्य घायल हो गए। यह घटना कश्मीर के अनंतनाग जिले में हुई। 21 जुलाई, 2006 को आतंकियों ने कश्मीर के गांदरबल जिले के बीहामा इलाके में तीर्थयात्रियों को ले जा रही एक बस पर हमला किया, इसमें अमरनाथ यात्रा के बेस कैम्प से वापस आ रहे 5 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई। आतंकियों ने 6 अगस्त, 2002 को पहलगाम में अमरनाथ यात्रा के नुनवान बेस कैम्प शिविर पर गोलीबारी की थी। इस हमले में 6 हिन्दू तीर्थयात्रियों और तीन अन्य लोगों सहित नौ लोग मारे गए थे।
इससे पहले 20 जुलाई, 2001 को आतंकियों ने अमरनाथ गुफा के पास एक कैम्प पर ग्रेनेड फेंके, जिसमें 13 तीर्थयात्री मारे गए और 15 अन्य घायल हो गए। हमले में 2 पुलिस अधिकारी भी मारे गए। 2 अगस्त , 2000 को आतंकियों ने पहलगाम बेस कैंप पर हमला किया, जिसमें 21 तीर्थयात्रियों सहित 32 लोग मारे गए और 60 अन्य घायल हो गए।
28 जुलाई, 1998 को आतंकियों ने शेषनाग कैंपग्राउंड में अमरनाथ गुफा की ओर जा रहे तीर्थयात्रियों पर हमला किया, जिसमें 20 लोग मारे गए। 15 अगस्त, 1993 को अमरनाथ गुफा की ओर जाते समय 8 तीर्थयात्री आतंकी हमले में मारे गए।
निष्कर्ष
जम्मू-कश्मीर में आतंकी दशकों से लोगों की जिंदगियाँ तबाह कर रहे हैं। 1 और 2 अगस्त, 2000 को आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग इलाकों में कुछ ही घंटों में कम से कम 105 लोगों की हत्या कर दी। थी। इस दौरान उन्होंने खास तौर पर हिंदू पुरुषों को निशाना बनाया और उनकी जान ले ली। प्रवासी मजदूरों से लेकर गाँव की रक्षा समिति के सदस्यों तक किसी को भी नहीं बख्शा गया। आतंकियों ने मृतकों और घायलों के हथियार भी छीन लिए।
यह बात सही है कि आतंकियों ने मुसलमानों और हिंदुओं दोनों को निशाना बनाया है, हालाँकि, अंतर यह है कि मुसलमानों को केवल तभी निशाना बनाया जाता है जब उन्हें सरकार का समर्थक माना जाता है और वह इस्लामी मुल्क की राह में रोड़ा बनते हैं। हिंदुओं को यह छूट नहीं है और जिहादियों के हाथों मौत से बचने का उनके लिए एकमात्र तरीका या तो इस्लाम धर्म अपनाना या घाटी छोड़ना है।
अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद से स्थिति में बदलाव आया है लेकिन यह आतंकी अब भी लगातार हिन्दुओं को निशाना बना रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि ISIS (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया) के अस्तित्व में आने से बहुत पहले ही कश्मीर में इस्लामिक राज्य स्थापित करने की कोशिश करने वाले आतंकियों को मुख्यधारा के मीडिया द्वारा ‘मिलिटेंट’ कहा जाता है। इसी तरह, हिंदुओं या कश्मीरी पंडितों को पीड़ित दिखाते समय उन्हें ‘अल्पसंख्यक’ कहा जाता है और उनकी असल पहचान छुपाई जाती है।
कश्मीर पंडितों का नरसंहार हमें अपनी नींद से जगाने को प्रेरित करने के लिए पर्याप्त होना चाहिए था। हमें इस मामले को लेकर निष्पक्ष ना दिखते हुए असल समस्या का सामना करना चाहिए था। यदि हमने पहले ऐसा किया होता तो शायद जिहाद के राक्षस को पूरी तरह से नष्ट किया जा सकता था।