“अब तो इस तालाब का पानी बदल दो, ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं” जावेद अख़्तर ने नरेन्द्र मोदी सरकार पर निशाना साधने के लिए इन पंक्तियों का इस्तेमाल किया। महान कवि दुष्यंत कुमार की यह कविता इंदिरा गाँधी के दौर में लिखी गई थी, उनके तानाशाही रवैये पर इससे चोट की गई थी। उसी दौर में, जब जावेद अख़्तर और सलीम ख़ान मिल कर अमिताभ बच्चन के लिए दीवार और शोले जैसी फ़िल्में लिख रहे थे। उस दौर में हो सकता है कि जावेद अख्तर जैसे ‘चाटुकारों’ की चाँदी रही हो, लेकिन जयप्रकाश नारायण की विचारधारा पर चलने वाले कवि, जैसे दुष्यंत और दिनकर इंदिरा के प्रखर विरोधी के रूप में सामने आए थे। वो अलग बात है कि कॉन्ग्रेस को अपदस्थ करने के लिए दुष्यंत द्वारा लिखी गई कविता का प्रयोग आज जावेद अख़्तर उसी कॉन्ग्रेस को (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से) सत्ता दिलाने के लिए कर रहे हैं। विडम्बना इसे देख कर हज़ार मौतें मरेंगी।
Ab to iss Taalaab ka paani badal do / yeh kanwal ke Phool kumhlanay Lagaay hain. ( Dushyant KUMAR)
— Javed Akhtar (@Javedakhtarjadu) May 9, 2019
जावेद अख़्तर द्वारा पिछली कुछ फ़िल्मों में लिखे गए गानों कोई सुनने वाला ही नहीं मिला। अब आपसे कोई पूछे कि ‘रॉक ऑन 2’, ‘पलटन’ और ‘नमस्ते इंग्लैंड’ का कोई गाना बताइए, तो आप क्या जवाब देंगे? कुछ नहीं, क्योंकि ये गाने आप तक पहुँचे ही नहीं, फ्लॉप हो गए। कहानियाँ लिखना तो जावेद लम्बे अरसे पहले छोड़ चुके हैं। सलीम ख़ान के साथ उनकी जोड़ी आज से 3 दशक पहले ही टूट चुकी है। कुल मिलकर जनता ने उन्हें बदल दिया है। अर्थात, उनकी प्रासंगिता ख़त्म हो गई है, उनकी जगह दूसरों ने ले ली है, अब उनमें वो बात नहीं रही। जिन कुम्हलाए हुए कँवल के फूलों का वह उदाहरण दे रहे हैं, उसकी जगह वो ही फिट बैठते हैं क्योंकि इंडस्ट्री में अब उनके गाने नहीं चलते।
ऐसा उन्होंने स्वाति चतुर्वेदी की एक ट्वीट के रिप्लाई में लिखा है। स्वाति चतुर्वेदी ने अपने ट्वीट में दावा किया कि भाजपा का एक पूर्व मंत्री इसलिए नाराज़ है क्योंकि पार्टी ने एक ‘आतंकवादी’ को टिकट दिया है। वो अनाम मंत्री इसीलिए भी नाराज़ हैं क्योंकि पीएम मोदी ने राजीव गाँधी को भ्रष्टाचारी कह दिया है। स्वाति चतुर्वेदी, जो ट्रोल है, बकलोल है, ने उस मंत्री की पहचान नहीं बताई और जताना चाहा कि उनके गुप्त सूत्रों की पहुँच काफ़ी दूर-दूर तक है। स्वाति के बारे में यहाँ चर्चा नहीं की जाएगी क्योंकि उनकी बातों को अब लोगों ने गंभीरता से लेना छोड़ दिया है लेकिन उम्रदराज जावेद अख़्तर की बातों का जवाब देना आवश्यक है।
जावेद अख़्तर ने अगर दुष्यंत कुमार की यह कविता पढ़ी होगी, जिससे उन्होंने ये पंक्तियाँ ली हैं, तो शायद वह ज़रूर ख़ुद को उससे जुड़ा हुआ महसूस कर रहे होंगे। जावेद अख़्तर ने जो पंक्तियाँ ट्वीट की हैं, उसके पहले की पंक्तियाँ कुछ यूँ हैं:
कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं,
गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं
गाने लिखते-लिखते जावेद अख़्तर अब चिल्लाने लगे हैं। वह एक ट्विटर ट्रोल हो चुके हैं। वो चिल्लाते हैं, कभी बुर्क़े और घूँघट को समान रूप से दिखाने के लिए तो कभी ओसामा बिन लादेन और साध्वी प्रज्ञा की तुलना करने के लिए। चिल्लाना उनका पेशा हो चुका है, वो भी सोशल मीडिया पर। अब जावेद अख़्तर ने जो पंक्तियाँ भाजपा सरकार के लिए उद्धृत की हैं, उसकी अगली पंक्तियों को देखें, क्योंकि जावेद अख़्तर पर वह भी काफ़ी फिट बैठती हैं:
वो सलीबों के क़रीब आए तो
हम को क़ाएदे क़ानून समझाने लगे है
गानें फ्लॉप होने के कारण अब जावेद अख़्तर नियम-क़ानून बताने पर उतर आए हैं, वरना कॉन्ग्रेस के दौर में शायद ही उन्होंने इस कदर लोगों से लड़ाइयाँ की हों। पंक्तियाँ तो दुष्यंत कुमार की एकदम सटीक हैं, एक महान कवि द्वारा रचित हैं, लेकिन इसे कॉन्ग्रेस सरकार के लिए लिखा गया था। अतः, जावेद अख़्तर ने उसे दोहरा कर अच्छा ही किया है। अगर वो ये पंक्तियाँ आज ट्विटर पर नहीं लिखते तो शायद हम भी आपको दुष्यंत कुमार और उनकी इस कविता के बारे में नहीं बता पाते। धन्यवाद जावेद अख़्तर का, जिनके कारण हमने दुष्यंत कुमार को फिर से विजिट किया। जावेद अख़्तर को दुष्यंत की ही इन पंक्तियों के साथ ‘बुर्का सलाम’:
एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है
आज शायर यह तमाशा देखकर हैरान है