पूरा फ्रांस दंगों की आग में जल रहा है। मंगलवार (27 जून, 2023) को पुलिस की गोली लगने से नहेल नाम के एक 17 वर्षीय मुस्लिम युवक की मौत हो गई, जिसके बाद ये हिंसा शुरू हुई। नहेल मूल रूप से अल्जीरिया का रहने वाला था। पुलिस का कहना है कि वो कार से लोगों को कुचल सकता था, इसीलिए गोली चलाई गई। उक्त पुलिस अधिकारी को हिरासत में लेकर जाँच शुरू कर दी गई है। लेकिन, इधर दंगाइयों ने कई बसों और कारों समेत मार्सेय के सबसे बड़े पुस्तकालय को फूँक दिया।
17 वर्ष की उम्र में फ्रांस में ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं मिलता है और नहेल पर गलत तरीके से गाड़ी चलाने का भी आरोप है। वो बस लेन में मर्सिडीज ड्राइव कर रहा था। पुलिस बार-बार कहती रही कि वो कार को रोक कर पार्क करे, लेकिन वो कार को भगाने लगा। नहेल अफ़्रीकी मूल का था, ऐसे में फ्रांस में बसे प्रवासियों ने दंगे शुरू कर दिए। नियम तोड़ने वाले फ्रांस के उस लड़के की बात नहीं हो रही, लेकिन पुलिस की आलोचना हो रही है।
पूरे फ्रांस में सैकड़ों सरकारी इमारतों को नुकसान पहुँचाया गया है। 40,000 पुलिसकर्मियों को कानून-व्यवस्था काबू में करने के लिए लगाया गया है। 600 से भी अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। 2000 दंगाइयों को गिरफ्तार किया गया है। वहाँ के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों एक कंसर्ट में अपनी पत्नी के साथ डांस करते हुए देखे गए। सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं कि यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ को वहाँ भेज दिया जाए, वो 24 घंटे के भीतर दंगों को नियंत्रित कर सकते हैं।
बतौर राष्ट्रपति अपने दूसरे कार्यकाल में उन्हें बड़ा विरोध झेलना पड़ रहा है क्योंकि पेंशन योजना में बदलाव के कारण उनके खिलाफ देश भर में प्रदर्शन हुए थे। 2005 में फ्रांस ऐसी ही स्थिति को झेल चुका है, जब पुलिस से छिपते हुए दो किशोरों की मौत के बाद 21 दिनों तन दंगे होते रहे थे और पुलिस को ‘स्टेट ऑफ इमरजेंसी’ घोषित करनी पड़ी थी। फ्रांस में कई बड़े कार्यक्रमों को बैन कर दिया गया है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने लोगों को अपने बच्चों पर नजर रखने को कहा है, उन्हें घर में रखने को कहा है।
उन्होंने TikTok और स्नैपचैट को संवेदनशील कंटेंट्स हटाने के लिए भी कहा है। दुनिया भर के मानवाधिकार संगठन फ्रांस में मुस्लिमों के साथ भेदभाव के आरोप लगा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र तक ने फ्रांस की पुलिस को कार्रवाई में भेदभाव न करने के आरोप लगा दिए। फ्रांस में हमने ये भी देखा था कि कैसे पैगंबर मुहम्मद का कार्टून छापने के कारण जनवरी 2015 में शार्ली-हेब्दो मैगजीन के 12 कर्मचारियों को मार डाला गया था। इस कार्टून की बात करने पर एक मुस्लिम छात्र ने शिक्षक सैमुएल पैटी का गला रेत दिया था।
विद्यालयों-पुस्तकालयों को फूँकने वाली वो कौन सी मानसिकता है?
आखिर वो कौन सी मानसिकता है, जो विद्या के मंदिरों को भी फूँक देती है। विद्यालयों और पुस्तकालयों को जलाने वाले ये लोग कौन होते हैं? इसे जानने के लिए हमें 830 वर्ष पहले सन् 1193 में चलना पड़ेगा, जब इस्लामी आक्रांता बख्तियार खिलजी ने पूरे नालंदा विश्वविद्यालय को तबाह कर दिया था। साथ ही उसके 9 मंजिला पुस्तकालय को आग के हवाले कर दिया था। कहते हैं, वहाँ दुर्लभ प्राचीन पांडुलिपियों समेत लाखों पुस्तकें थीं जो धू-धू कर ऐसी जली कि महीनों तक जलती रही।
जब नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी, उसके अगले हजार वर्षों तक यूरोप में कोई यूनिवर्सिटी नहीं थी। संस्कृत व्याकरण से लेकर दर्शनशास्त्र और राजनीतिक शास्त्र की शिक्षा का गढ़ था नालंदा, जहाँ की कई इमारतें राजा-महाराजाओं और अमीर व्यापारियों ने अपने दान से बनवाई थी। दूर-दूर से छात्र यहाँ शिक्षा अर्जन के लिए आते थे। खुदाई में नालंदा को जलाए जाने के सबूत मिले, पता चला कि यहाँ कभी विशाल लाइब्रेरी हुआ करती थी। बौद्ध इतिहास का अध्ययन करने वालों ने भी इसे माना है।
दिल्ली सल्तनत के इतिहासकार मिन्हाज-ए-सिराज ने अपनी फ़ारसी पुस्तक ‘तबकात-ए-नासिरी’ में लिखा है कि वहाँ पर कई ब्राह्मण थे, जिनके सिर मूँड़े हुए थे और फिर उनकी हत्या कर दी गई। उसने कई अन्य हिन्दुओं के नरसंहार की बात भी लिखी है। इस्लामी आक्रांताओं को कई पुस्तकें वहाँ मिली, इसका जिक्र भी इस किताब में है। नालंदा और इसके आसपास कई बौद्ध विहार थे, उन सबको भी बख्तियार खिलजी ने नष्ट किया था।
सवाल ये है कि आखिर ये कौन सी मानसिकता है जो विद्या का सम्मान नहीं करती? सनातन धर्म में तो कहा गया है कि ‘अविद्यस्य कुतः धनम्’, अर्थात जिसके बाद विद्या नहीं है उसके पास धन कैसे आ सकता है। यानी, शिक्षा को सबसे ऊपर रखा गया है। तभी हमारे यहाँ राजा-महाराजाओं से भी ज्यादा ऋषि-मुनि लोकप्रिय हुए। विश्वामित्र-वशिष्ठ की धरती पर साधु-संतों को सबसे ज्यादा सम्मान मिला क्योंकि वो विद्वान थे, इन्होंने सिखाया कि कैसे शिक्षा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जाती है और ये क्रम अनवरत ही चलता रहता है।
क्या यूरोप ने घुसपैठियों के लिए जो दरवाजे खोले हैं, उसके बाद इस तरह की समस्याएँ बढ़ गई हैं? 2021 में 23 लाख घुसपैठियों ने यूरोपियन यूनियन के देशों को अपना ठिकाना बनाया, वहीं 2022 में भी ये आँकड़ा इतना ही रहा। जर्मनी, फ्रांस और स्पेन वो तीन देश हैं, जो सबसे ज्यादा घुसपैठियों के ठिकाने बने। अब स्थिति ये है कि इतने कम समय में यूरोप की जनसंख्या का 6% हिस्सा प्रवासियों का हो गया है। उनकी जनसंख्या ढाई करोड़ के पार चली गई है।
830 years after 9 million books in Nalanda were burnt by Islamists, the largest public library in the city of Marseille in France has been set on fire.
— Anand Ranganathan (@ARanganathan72) June 30, 2023
Knowledge is everything. The villain understands this more than the victim. pic.twitter.com/omGJ32n2mc
समुद्री रास्तों से ये प्रवासी यहाँ आते हैं। यूरोपियन समुदाय हमेशा से खुले समाज के रूप में जाना जाता रहा है और वहाँ की प्राकृतिक सुंदरता के अलावा औद्योगिक सफलता के कारण ये महाद्वीप खासा समृद्ध है। इंग्लैंड ने तो एक समय दुनिया के अधिकतर हिस्से पर राज किया। अब स्थिति ये है कि किसी वीडियो में देखने को मिलता है कि बीच का आनंद लेती महिलाओं के सामने ही समुद्र से सीधे घुसपैठियों की खेल पहुँचती है तो कभी घुसपैठियों द्वारा महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की खबरें आती हैं।
इटली में 2013 में एक रिपोर्ट में सामने आया था कि वहाँ हो रहे अधिकतर अपराधों में विदेशी घुसपैठिए ही शामिल थे। इसी तरह जर्मनी में 2017 में 27 घुसपैठियों ने हत्या या हत्या का प्रयास किया। स्थिति ये है कि फ़्रांस ने जब मोरक्को को FIFA वर्ल्ड कप 2022 के सेमीफाइनल में हरा दिया तो फ्रांस में दंगे शुरू हो गए। कारण साफ़ है, 99% सुन्नी मुस्लिमों वाला देश है मोरक्को और मुस्लिम जहाँ भी रहें, उनकी वफादारी अपने ‘उम्माह’ के प्रति रहती है, मातृभूमि नहीं इस्लाम के प्रति रहती है।