Sunday, December 22, 2024
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ये फर्जी यूट्यूबर आपको बीमार… बहुत बीमार कर रहे, हवा-हवाई दावों से रोज गिराते हैं मोदी सरकार: खुद कर रहे करोड़ों की कमाई, आपका समय हो रहा बर्बाद

जहाँ एक ओर साफ है कि NDA सत्ता में वापसी कर रहा है, वहीं यूट्यूब पर लगातर कॉन्ग्रेस समेत विपक्ष का प्रोपेगेंडा दिन भर कुछ पूर्व पत्रकार और यूट्यूबर चला रहे हैं। इनका पूरा धंधा भाजपा और पीएम मोदी के विरोध पर टिका है।

देश म लोकसभा चुनाव 2024 समाप्त हो चुके हैं। 1 जून, 2024 को मतदान का आखिरी चरण समाप्त हो गया, देश ने क्या फैसला दिया है, यह 4 जून को सामने आ जाएगा। इससे पहले तमाम एग्जिट पोल ने भविष्यवाणी की है कि भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाला NDA एक बार फिर देश की सत्ता में वापसी कर रहा है। चुनावी आँकड़ों के अनुमान लगाने वाले अधिकांश राजनीतिक पंडित भी यही कह रहे हैं। लेकिन एक जमात फिर भी इस पूरे रवैये के खिलाफ एक अलग माहौल बना रही है। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने इसी को लेकर एक्स (पहले ट्विटर) पर अपनी व्यक्त की है।

उन्होंने लिखा, “अगली बार चुनाव और राजनीति की बात हो तो अपना कीमती वक्त खाली बैठे फर्जी पत्रकार, बड़बोले नेताओं और सोशल मीडिया के स्वयंभू विशेषज्ञों की फिजूल की बातों और विश्लेषण पर बर्बाद मत करिए।” पीके का इशारा उन कथित चुनावी विशेषज्ञों की तरफ था जो बिना जमीनी सच्चाई जाने जनमत को स्वीकार करने से इनकार कर रहे हैं।

दरअसल, प्रशांत किशोर ने बीते दिनों अपने साक्षात्कारों में बताया था कि भाजपा की अगुवाई वाला NDA फिर से देश में सरकार बना रहा है। उन्होंने यह भी बताया था कि भाजपा को 2019 के मुकाबले अधिक सीटें मिलने वाली हैं। पीके ने बताया था कि कॉन्ग्रेस की अगुवाई वाला INDI गठबंधन यह चुनाव भी बीती के लड़ा है।

पीके ने कहा था कि INDI गठबंधन जनता को विकल्प देने में नाकामयाब रहा है। उनके इन दावों पर कॉन्ग्रेस समेत पूरे इकोसिस्टम ने उनको काफी ट्रोल किया था। सोशल मीडिया पर उनके दावों को लेकर बड़ा अभियान चलाया गया था। उनको भाजपा का करीबी बता दिया गया था।

हालाँकि, अब एग्जिट पोल सामने आ गए हैं। अधिकांश एग्जिट पोल में NDA को 350 से अधिक सीट मिलती दिखाई दे रही हैं। कुछ एक एग्जिट पोल NDA को 400 सीट भी दे रहे हैं। ऐसे में NDA को पूर्ण बहुमत मिलने की प्रशांत किशोर की बात पर मुहर लग रही है। हालाँकि, प्रशांत किशोर की बात के और भी निहितार्थ हैं।

यूट्यूबरों की कमाई ही भ्रम से

जहाँ एक ओर साफ है कि NDA सत्ता में वापसी कर रहा है, वहीं यूट्यूब पर लगातर कॉन्ग्रेस समेत विपक्ष का प्रोपेगेंडा दिन भर कुछ पूर्व पत्रकार और यूट्यूबर चला रहे हैं। इनका पूरा धंधा भाजपा और पीएम मोदी के विरोध पर टिका है।

करोड़ों सब्सक्राइबर वाले इन चैनल पर भ्रामक खबरों के अलावा हास्यास्पद विश्लेषण भी होते हैं। इनका पूरा जोर यह साबित करने में रहता है कि यदि किसी चुनाव में विपक्ष जीता है तो यह जनता का आदेश और उनकी चुनावी कुशलता है, जबकि भाजपा का जीतना लोकतंत्र पर खतरा और चुनावी गड़बड़ी है।

यह चैनल दिन भर ‘फंस गई भाजपा’, ‘हो गया बड़ा खेल’, ‘कॉन्ग्रेस ने पलट दिया गेम’ और ‘खरगे/राहुल ने कह दी ऐसी बात’ टाइप के थम्बनेल अपने वीडियो पर लगाते हैं। पूरा का पूरा ध्यान इस बात पर रहता है कि कैसे यह बात सिद्ध की जाए कि भाजपा सत्ता से दूर रहने वाली है और लोग कॉन्ग्रेस को सत्ता में ला रहे हैं। यह सच्चाई के बिलकुल विपरीत है लेकिन इन यूट्यूबरों की कमाई का मुख्य स्रोत यही है।

असल में यह एक विशेष प्रकार के ग्राहक की डिमांड पूरी कर रहे हैं। पत्रकारिता के नाम पर यह कंटेंट परोसने की दुकानें हैं। इसे एक प्रकार का ‘राजनीतिक पोर्न’ कहा जाना चाहिए। जिस प्रकार पोर्न में आदमी अपनी पसंद तय करता है और बाजार उसकी माँग पूरी करता है। उसी तरह से यह दुकानें एक सीमित संख्या के ग्राहकों को उनकी पसंद का कंटेट परोस रही हैं।

इसमें इनका बड़ा फायदा है, लगातार सत्ता का तार्किक-अतार्किक विरोध करने से देश में आप निष्पक्ष पत्रकार कहे जा सकते हैं। विपक्षी पार्टियों का एक बड़ा समर्थक वर्ग आपको इस आशा से देखता है कि शायद इनकी ही बात सही हो जाए और कॉन्ग्रेस या अन्य कोई पार्टी सत्ता में आ सके। इसके अलावा, इसका सबसे बड़ा फायदा वित्तीय मोर्चे पर है।

राजनीतिक रिपोर्टिंग के यूट्यूब चैनल चलाने वाले अधिकांश लोग पूर्व पत्रकार हैं। यह कभी अच्छे संस्थानों में काम किया करते थे लेकिन जब वहाँ उनका प्रोपेगेंडा नहीं चला तो उन्हें यूट्यूब की शरण लेनी पड़ी। ऐसे में यूट्यूब चैनल चला कर और फर्जी खबरें, मनचाहे विश्लेषण दे कर यह यूट्यूबर अपनी जेबें गरम कर रहे हैं।

नुकसान आम आदमी का

जहाँ एक ओर यह यूट्यूबर एक पक्ष में माहौल बना कर खूब पैसा छाप रहे हैं, उनके वीडियो को देख कर प्रसन्न होने वाले अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। इनके वीडियो को देखने वाले लोग अपना समय गँवाते हैं, और उन्हें अधकचरा राजनीतिक ज्ञान और प्रोपेगेंडा मिलता है। प्रोपेगेंडा फैलाने वाले पत्रकार जहाँ इस कमाई से विदेश घूमते हैं, उनके समर्थक उनकी बनाई वीडियो से मात्र कुंठा ही मिलती है। इस अधकचरे ज्ञान का उपयोग जब वह समाज में करते हैं तो उन्हें तथ्यों का सामना करना पड़ता है।

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अर्पित त्रिपाठी
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