मुस्लिम समाज के कई नेताओं को अपने भाषणों में और इन्फ्लुएंसर्स को सोशल मीडिया में ये कहते हुए देखा गया है कि ‘वन्दे मातरम्’ कहना उनके मजहब के खिलाफ है। उनका तर्क ये होता है कि इस्लाम में अल्लाह के सिवा किसी के भी सामने झुकने की अनुमति नहीं है। एक तरफ ये कहते हैं कि माँ के क़दमों में जन्नत होती है, वहीं दूसरी तरफ मातृभूमि को नमन करना इनके मजहब में हराम है। वहीं अब मुल्ले-मौलवियों को ‘भारत माता की जय’ से भी दिक्कत हो रही है।
जानने वाली बात ये भी है कि इन्हें कोई ‘भारत माता की जय’ कहने के लिए मजबूर नहीं कर रहा, बल्कि स्कूलों में इन्होंने मुस्लिम बच्चों को ये नारा लगाते हुए देख लिया इसीलिए ये भड़के हुए हैं। ‘ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन’ के मौलाना साजिद रशीदी ने एक वीडियो जारी कर के कहा है कि जब वो बुधवार (14 अगस्त, 2024) को सुबह के साढ़े 8-9 बजे के करीब दिल्ली के तुर्कमान गेट से निकले तो उन्होंने एक विद्यालय के छात्रों का जुलूस देखा। अगले दिन आने वाले स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में ये जुलूस निकाला जा रहा था।
मौलाना साजिद रशीदी का कहना है कि इस जुलूस में शिक्षकों द्वारा मुस्लिम बच्चों से ‘भारत माता की जय’ के नए लगवाए जा रहे हैं। मौलाना ने इन्हें ‘संघी’ जेहन वाले शिक्षक बताते हुए कहा कि ये मुस्लिम बच्चों के मन में उनकी आस्था के खिलाफ अपनी आस्था घुसाने का प्रयास कर रहे हैं। मौलाना ने इन शिक्षकों के खिलाफ सरकार से कार्रवाई की माँग करते हुए मुस्लिम माँ-बाप से भी अपील की कि वो अपने बच्चों को ऐसे मौकों पर समझा कर भेजें कि अगर इस्लाम के खिलाफ उनसे कुछ करवाने की कोशिश की जाए तो वो इसकी मुखालफत करें।
इसे कहते हैं भड़काना, भारत माता की जय ऐसों को संघी सोच दिखाई देती है, ☹️
— aditi tyagi (@aditi_tyagi) August 14, 2024
भारत माता की जय pic.twitter.com/5whdV4UG5s
मौलाना साजिश रशीदी के लिए ऐसी बयानबाजी कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी वो अपनी इस्लामी कट्टरपंथी मानसिकता का परिचय दे चुके हैं। उन्होंने राम मंदिर का विरोध करते हुए भी धमकाया था कि इसे तोड़ कर भविष्य की मुस्लिम पीढ़ियाँ मस्जिद बना देंगी। इसी तरह उन्होंने वक्फ बिल में संशोधन का विरोध करते हुए कहा था कि मुस्लिम अगर किसानों की तरह सड़कों पर नहीं आएँगे तब तक मोदी सरकार बाज आने वाली नहीं है। यूपी में मदरसों के सर्वे का भी विरोध करते हुए उन्होंने कहा था कि सर्वे के लिए आने वाले कर्मचारियों का स्वागत चप्पल से किया जाएगा।
अब साजिश रशीदी को बच्चों के ‘भारत माता की जय’ कहने से दिक्कत है। जब बच्चे स्कूल यूनिफॉर्म में होते हैं और वहाँ पढ़ने जाते हैं, तब सब बरबाद होते हैं। बचपन में बच्चे किसी भी उत्सव को लेकर खासे उत्साहित रहते हैं। स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस सिर्फ एक त्योहार नहीं है बल्कि बच्चों में देशभक्ति की भावना को प्रबल करने और हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देने का भी एक माध्यम हैं। अब कल को ये भी कहा जा सकता है कि श्रद्धांजलि देना भी अपराध है, स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करना भी अपराध है।
बच्चों के मन में देशभक्ति की भावना जितनी प्रबल होगी, वो उतना ही अपनी मिट्टी से और समाज से प्यार करें। वो स्वतंत्रता का मोल समझेंगे। लेकिन, एक खास कौम अपने मजहब को देश से ऊपर रखने की कोशिश में इसका विरोध करती है। पहले बुर्का-हिजाब के लिए कॉलेज की मुस्लिम छात्राओं को भड़काया गया, अब स्कूली बच्चों को भड़काया जा रहा है। उनके अभिभावकों को भड़काया जा रहा है। बच्चों को शिक्षकों का सम्मान करना सिखाया जाना चाहिए, लेकिन ये बच्चों को शिक्षकों से मजहब के लिए झगड़ा करना सिखा रहे हैं।
‘भारत माता की जय’ कोई भाजपा का दिया हुआ नारा नहीं है, बल्कि इस देश को स्वतंत्र कराने के लिए बलिदान देने वाले सेनानी भी ये नारा लगाते थे। इस नारे से उन्हें जोश और ऊर्जा प्राप्त होती थी। खुद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू कहते थे कि इस देश की मिट्टी, जंगल और पहाड़ से लेकर करोड़ों लोग जो हैं वो सब भारत माता हैं। जब हमारे सेना के जवान सीमा पर दुश्मन से लड़ते हैं तब भी वो ‘भारत माता की जय’ कहते हैं, उनके कारण ही ये देश सुरक्षित है और अंदर बैठ कर साजिद रशीदी जैसे लोग इस तरह की बकैती करते रहते हैं।
‘भारत माता की जय’ का अर्थ हुआ इस देश को हम माँ के रूप में मानते हैं और इसकी विजय की कामना करते हैं। इसमें कौन सा शब्द गलत है? क्या इसका भाव गलत है? भारत में बच्चे अपने देश के लिए नारे नहीं लगाएँगे तो क्या पाकिस्तान, तुर्की या सऊदी अरब के लिए नारेबाजी करेंगे? ये नारा तो किसी वेद-पुराण में भी नहीं लिखा है, फिर दिक्कत क्यों? अगर लिखा भी होता तो ये भारत की संस्कृति से निकले ग्रन्थ हैं, भारत के हैं, भारत में रहने वाले हर एक व्यक्ति को यहाँ की संस्कृति, साहित्य और धर्म का सम्मान करना चाहिए।
सन् 1873 में किरण चंद्र बंदोपाध्याय के एक नाटक ‘भारत माता’ से ये शब्द लोकप्रिय हुआ था। कलकत्ता में 1860 के करीब से हिन्दू मेला लगना शुरू हुआ था, जिसमें राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रचार-प्रसार किया जाता था। इस नाटक में दिखाया गया था कि भारत माता की संपदा व संसाधन छीन लिए गए हैं, उनके उद्योग-धंधे और खादी के उद्योग बर्बाद कर दिए गए हैं और उनके बच्चे सूखा व भुखमरी से जूझ रहे हैं। इस नाटक के जरिए संदेश दिया गया कि इस देश को माँ मान कर इसकी स्वतंत्रता के लिए हमें प्रयास करना चाहिए।
इतने पवित्र मूल से निकले इतने पवित्र सन्देश को आखिर गाली कैसे दी जा सकती है, इससे किसी को आपत्ति कैसे हो सकती है? किसी विदेशी मजहब को इस देश में रह कर मातृभूमि से ऊपर रखने की यही सोच है जो कट्टरपंथी और आतंकवाद के रूप में तब्दील होती जा रही है। बालमन के उत्साह को खत्म कर के मजहबी घृणा भर देने से देश का नुकसान है, लेकिन इन्हें क्या। तुर्की में खलीफा की स्थापना के लिए सुदूर भारत में खून बहाने वालों को आखिर इस देश की क्या फ़िक्र!