यह सच है कि राजनीति में कोई स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होते। यह भी सच है कि राजनीति में सचमुच की नैतिकता का स्थान नहीं होता, और ज्यादा नैतिकता की चरस बोने वाले या तो केजरीवाल जी जैसे निकलते हैं, या उन्हें बर्नी सैंडर्स (अमेरिका वाले बूढ़े अंकल, जो टीवी पे उपदेश देते थे) की तरह अपनी खुद की पार्टी वाले लंगड़ी मारकर हाशिये पर धकेल देते हैं।
पर इतनी तमाम स्याह सच्चाईयाँ जानने के बावजूद अगर कोई भाजपा-आरएसएस वाला केरल के कन्नूर में माकपा के खिलाफ़ या बंगाल में तृणमूल के खिलाफ़ आवाज़ उठाने में अपनी जान जोखिम में डालता है तो वह यह जानता है (कम से कम अब तक) कि खुदा-न-खास्ता कहीं वो हलाक हो गया तो कम से कम उसकी पार्टी कल को माकपा या तृणमूल को तो सिर पर नहीं बैठा लेगी। एक दुखद तंज कसना चाहूँगा कि आप कॉन्ग्रेसी इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हो सकते।
क्या हुआ, राहुल गाँधी जी, तेरा वादा?
याद करिए इसी फ़रवरी को, जब यूथ कॉन्ग्रेस के दो कार्यकर्ता शरत लाल (21) और कृपेश (24) सरेराह काट दिए गए थे। मार्क्सवादियों का नाम आया था, कई गिरफ्तार भी हुए थे। माकपा वालों ने कसम भी खाई थी कि दोषी अगर हमारे लोग निकले तो भी कोई कसर नहीं छोड़ेंगे न्याय में। लेकिन फिर जेल में ही सजी जॉर्ज और ए पीताम्बरन (गिरफ्तार, माकपा स्थानीय समिति का पूर्व सदस्य) को वीआइपी सुविधाएँ मिलने लगीं!
आपके अध्यक्ष राहुल गाँधी ने उस समय ‘भीष्म प्रतिज्ञा’ ली थी कि जब तक अपने लोगों को न्याय न दिला लें, तब तक चैन से नहीं बैठेंगे।
The brutal murder of two members of our Youth Congress family in Kasargod, Kerala is shocking. The Congress Party stands in solidarity with the families of these two young men & I send them my deepest condolences. We will not rest till the murderers are brought to justice.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) February 18, 2019
आपके राज्य कॉन्ग्रेस कमेटी प्रमुख मुलापल्ली रामचंद्रन ने कहा कि राज्य पुलिस के जाँच अधिकारी का रिकॉर्ड संदिग्ध है। आपके केरल विधानसभा में नेता विपक्ष की कुर्सी पर बैठे नेता ने माकपा को खून की प्यासी बताया।
It’s barbaric! It”s unpardonable . The thirst for blood never quench for the CPM. Two tender lives have been snatched away by the #CPM goons again in the town of Kasargod. #Kerala#CPMTerror pic.twitter.com/fvVmIcuMEP
— Ramesh Chennithala (@chennithala) February 17, 2019
ऐसे में आपके अध्यक्ष और लोकसभा उम्मीदवार, और प्रधानमंत्री पद के अभिलाषी, श्री राहुल गाँधी जब आप के लोगों, आप के वैचारिक भाइयों, सहोदरों को काट डालने वालों के खिलाफ नहीं बोले तो कैसा लगा? कैसा लगा जब राहुल गाँधी न केवल अपनी विचारधारा, आप सामान्य कॉन्ग्रेसियों की विचारधारा, की रक्षा में जान गंवाने वाले लोगों के कातिलों के खिलाफ न केवल नहीं बोले, बल्कि कम-से-कम शर्म से नज़रें चुराने या सवाल टालने की बजाय आपकी नज़रों में नज़रें डाल कर उनके कातिलों के खिलाफ बोलने से साफ़ इंकार कर दिया? न्याय की गुहार तक नहीं की?
केतनी बार ठगा जाएगा रे, कॉन्ग्रेस कार्यकार्त-वा? कब खौलेगा रे तेरा खून?
न यह पहली बार आपके लोगों का पहली बार मार्क्सवादियों के हाथों क़त्ल है, प्रिय कॉन्ग्रेस के जमीनी कार्यकर्ता, न ही पहली बार आपके नेतृव ने आपके खूनी बलिदान को ठेंगा दिखाया है।
एक-दो उदाहरण मैं दे देता हूँ- बाकि मुझे ‘फैक्ट-चेक’ करने जब आप इन्टरनेट खंगालेंगे, कुछ किताबें पढ़ेंगे, पुरानी, अखबारी आर्काइव्स उथल-पुथल करेंगे तो और निकल आएंगे।
1989 में राहुल गाँधी के पिता और आपके पूर्व अध्यक्ष, हम सबके पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने कहा था, ‘बंगाल में जिन्दगी ही असुरक्षित हो गई है।’ उनके बंगाल आगमन की ख़ुशी में आपके कार्यकर्ता ख़ुशी मना रहे थे कि सत्तारूढ़ साम्यवादियों ने हमला कर दिया आपके नेता राजेन्द्र यादव के घर पर- वह तो बच निकले पर उनके दो भाई जिन्दा भुन गए। हाँ, भुन गए- क्योंकि जब तक खारिश पैदा करते शब्दों का रेगमाल नहीं घिसेगा आपकी आत्मा पर, तब तक इस पत्र का हेतु पूर्ण नहीं होगा। हमलावरों का नेता स्थानीय कम्युनिस्ट शक्तिपद दत्ता को बताया गया।
आपके तत्कालीन विधायक साधन पांडे ने दावा किया कि 1977 में सत्ता पर काबिज़ होने के बाद से माकपा आपके 1,000 कार्यकर्ताओं की बलि ले चुकी है। आपके तत्कालीन यूथ कॉन्ग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष प्रद्युत गुहा ने तो राजीव गाँधी से यह भी कहा कि अगर आपके कार्यकर्ता किसी तरह माकपा वालों से जान बचा भी लें तो पुलिस के हाथों मार दिए जाते हैं।
अगर 1977-89 में ही 1,000 लोग मारे गए आपके, तो 2011 में माकपा की सत्ता से विदाई होते-होते यह संख्या कितनी गई होगी?
सैनबाड़ी हत्याकाण्ड तो आप कॉन्ग्रेसियों के जेहन में ताज़ा होगा, आशा है। कॉन्ग्रेस का समर्थन करने के ‘आरोप’ में मार्क्सवादियों ने न केवल एक परिवार के जवान बेटों को क़त्ल कर दिया, बल्कि उनकी माँ को उसके ‘खून’ का खून पिलाया- भात में सान के।
इसके बाद भी आपकी तत्कालीन अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने 2004 में कम्युनिस्टों से हाथ मिला लिया? आप लोगों के बारे में एक बार भी नहीं सोचा?
और, आपके नेतृत्व ने आपका खून केवल मार्क्सवादियों को नहीं बेचा है। ममता बनर्जी से, याद करिए, वे कितनी देर तक गठबंधन करने के लिए जोर मारते रहे थे। और जब याद आ जाए तो यह देखिए। तृणमूल के कत्ले-आम से आपकी राज्य कॉन्ग्रेस इकाई इतनी त्रस्त थी कि भाजपा के तृणमूल के खिलाफ मोर्चे का भी समर्थन करने लगी थी।
फिर ऐसा क्या हुआ कि आपके सुप्रीमो को अपने लोगों का कत्ल भूलकर ममता बनर्जी की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा बैठे?
सबरीमाला पर आप जमीनी कॉन्ग्रेसी शशि थरूर के साथ हैं या माकपा के?
चलिए, दो मिनट के लिए खून-खराबा भूल जाते हैं। राहुल गाँधी ने कहा कि भाजपा दक्षिण भारत की संस्कृति पर हमलावर है और वह उसके खिलाफ खड़े हैं। सबरीमाला केरल का बड़ा मुद्दा है न? वहाँ पुलिस की मदद से माकपा उन औरतों को अन्दर ले जा रही है जिनका न अय्यप्पा स्वामी में विश्वास है न मंदिर की परम्पराओं में आस्था।
आपके नेता शशि थरूर ने आगे बढ़कर मंदिर की परम्पराओं की रक्षा के समर्थन का स्टैण्ड लिया- अपनी राजनीतिक गर्दन दाँव पर लगा दी, सुप्रीम कोर्ट तक के विरोध की हिमाकत की। आज आप केरल कॉन्ग्रेस के कार्यकर्ता शशि थरूर के साथ खड़े होकर माकपा द्वारा मंदिर की परम्पराओं के अपमान का विरोध करेंगे, या राहुल गाँधी के साथ खड़े होकर माकपा का मौन समर्थन?
भाजपा को वोट मत दीजिए, अपने नेता से सवाल पूछिए
इस पत्र का मकसद आपको भाजपा के पक्ष में तोड़ना नहीं, आपके ज़मीर को झिंझोड़ना है। अगर आपको लगता है कि आपके अध्यक्ष सही कह रहे हैं और आपको भाजपा को वोट नहीं देना चाहिए तो बेशक मत दीजिए। पर अपने नेता से सवाल ज़रूर पूछिए। भाजपा ने भी पूछा था- जब आडवाणी जिन्ना को बँटवारे में क्लीन चिट दे आए तो पूछा, जब मोदी नवाज़ शरीफ़ के यहाँ शादी की दावत जीमने पहुँच गए थे तो भी पूछा था।
राहुल गाँधी से यह सवाल जरूर पूछिए कि क्या भाजपा इतनी बड़ी हऊआ है कि आपके हजारों लोगों के कातिलों से दोस्ती की कीमत पर भी उसे ‘रोकना’ (या राहुल गाँधी का संसद पहुँचना??) सस्ता सौदा है?