प्रिय सुशासन बाबू,
सिद्धांत। शुचिता। मर्यादा। आत्म नियंत्रण… ये कुछेक शब्द याद आ रहे हैं जो कभी नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के पर्यायवाची थे। हमें याद है कि कभी राबड़ी देवी ने सार्वजनिक तौर पर ललन सिंह से आपका ‘रिश्ता’ बता दिया था, फिर भी ये शब्द आपके भूषण बने रहे। आपके बड़े भाई कहते रहे कि आपके ‘पेट में दाँत है’ पर राजनीतिक फायदे के लिए आपने शब्दों की मर्यादा कम नहीं होने दी।
इसी भरोसे में हम बिहारियों ने आपको सुशासन बाबू बनाया। मोदी लहर पर सवार बिहार ने उसके खिलाफ खड़े होने पर भी आपको नजरों से नहीं उतारा। तब भी आपके लिए खड़ा हो गया, जब आप उसी भाई की गोद में जाकर बैठ गए, जिसके जंगलराज से त्रस्त बिहार ने आपको गोद में बिठाया था। स्नेह की वर्षा की थी।
हमने यह सब कुछ आपको यह जानते हुए भी दिया कि आपने विकास की कोई गंगा नहीं बहाई है। शिक्षा और स्वास्थ्य को तंदुरुस्त नहीं किया है। उद्योग और रोजी-रोजगार के अवसर पैदा नहीं किए हैं। पलायन को थामा नहीं है।
हम बिहारियों ने फिर भी आपको सुशासन बाबू कहा। जानते हैं क्यों? क्योंकि हम जैसे बड़े होते बच्चों ने सड़कें नहीं देखी थी। आपने सड़कें बनवा दी। हम ढिबरी युग में कैद थे, आपने बिजली दे दी। हमें घर से निकलते डर लगता था, आपने कुकुरमुत्ते की तरह उगे गुंडों को जेल में बंद कर दिया। हम घर से बोरा लेकर पढ़ने जाते थे, पेड़ के नीचे हमारी कक्षा लगती थी, आपने बेंच-डेस्क और पक्की कक्षा दे दी।
यह आपका सौभाग्य था कि आपको बिहार उस वक्त और इतना बेहाल मिला कि यह सब करके भी आप सुशासन बाबू हो गए। आईटी क्रांति के दौर में इन कार्यों के दम पर तो दोबारा सत्ता नहीं मिलती, आपको बिहार डेढ़ दशक से भी अधिक समय से मिला हुआ है। यह आपकी राजनीतिक सूझबूझ या पलटी मारने की कला की सफलता कम, हम बिहारियों के उदार चरित्र की कहानी ज्यादा है। पर आप तो गजब आत्ममुग्ध हुए पड़े हैं।
इस आत्ममुग्धता में आपको उनकी चीत्कार तक नहीं सुनाई पड़ रही जो चंदा करके अपने परिजनों का दाह संस्कार कर रहे हैं। आपने सही कहा जो पिएगा वो मरेगा। पर यह भी सच है कि जो नहीं पिएगा वो भी मरेगा। आप भी कोई अश्वत्थामा तो हैं नहीं।
वैसे भी बिहार शराबबंदी का विरोधी नहीं है। बिहार उस व्यवस्था का विरोधी है, जिसमें थाने के पास जहरीली शराब बिकती है और उसे पीकर लोग मर जाते हैं। बिहार उस व्यवस्था का विरोधी है, जिसमें गली-गली शराब मिलती है। ये सच सदन में किसी मुख्यमंत्री के तू तड़ाक पर उतर जाने से नहीं खत्म हो जाते।
बिहार में शराब कहाँ से आती है? कौन बेचते हैं? किन्हें कमीशन मिलता है? कमीशन के रेट कैसे बढ़ाए जाते हैं? शराब के नाम पर कैसे लोगों को पुलिस फँसाती है? इनके जवाब आपको बिहार की किसी भी गली में मिल जाएँगे। इसलिए यह तो नहीं माना जा सकता कि आपको इसकी खबर न होगी। तो क्या वह दावा सही है जो बिहार के हर चौक-चौराहे पर होते हैं। यह दावा है कि आपकी पार्टी दारू और बालू की कमाई से चल रही है। आपने खास पुलिस अधिकारी को इससे उगाही का काम दे रखा है। वैसे भी आप दारू के इतने ही विरोधी होते तो अपने पहले कार्यकाल में हर चौक-चौराहे पर ठेके खोलकर बिहार के गाँव-गाँव में शराबी पैदा न किए होते। ये आपका ही कार्यकाल है जिसने बिहार की पूरी एक पीढ़ी को नशेड़ी बनाया है।
हम जानते हैं कि अंतरात्मा, लोकलाज, आदर्श इन सबकी आपने समय के साथ तिलांजलि दे दी है। इसलिए आप चाहें तो हम बिहारियों को किश्तों में मारने की कृपा करने की जगह एक ही बार में रेत दीजिए। सीधे कह दीजिए कि जो बिहार में रहेगा वो मरेगा। बिहार के बेटों को जंगलराज की तर्ज पर तेजाब से नहला दीजिए। लेकिन प्लीज हमारे बिहार को बख्श दीजिए।
भले आपके बड़े भाई की वजह से हम जड़ों से कटकर जिंदा रहने को मजबूर हैं। लेकिन बिहार हम सबके भीतर आज भी जिंदा है। ब्रह्म बाबा की कसम आप जब-जब इस बिहार को आरी से काटते हैं, हम दूर होकर भी दर्द से तड़पते हैं।
आपका
वो बिहारी जो कभी सुशासन पर निहाल था