22 जनवरी 2024 को हुए राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को भारतीय इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और अद्वितीय घटना के रूप में देखा जाएगा। आगामी समारोह भारतीय जनमानस के वर्षों पुराने उद्घोष-“राम लला हम आएँगे, मंदिर वहीं बनाएँगे” को साकार करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जिन्होंने एक युवा स्वयंसेवक के रूप में अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का सपना देखा था; एक लोकप्रिय विश्वनेता के रूप में उसे साकार कर दिए। उनका यह कार्य अविचलित आस्था और परम् समर्पण का अनुपम उदाहरण है। यह उनके अडिग संकल्प के साथ-साथ असंख्य भारतीयों की दृढ़ प्रतिज्ञा, अनवरत संघर्ष और असीम समर्पण का भी प्रमाण है।
राम मंदिर के पुनर्निर्माण के संघर्ष का इतिहास सुदीर्घ है। अंततः 2019 में इसका न्यायपूर्ण पटाक्षेप हुआ। भारत के उच्चतम न्यायालय ने इस बहुचर्चित और अत्यंत विवादित बना दिए गए विषय पर एक सुचिंतित और संतुलित निर्णय देते हुए तथाकथित विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय ने आस्था और न्याय की उसकी गहरी समझ को प्रतिबिंबित किया।
यह मुद्दा लंबे समय से भारतीय समाज में वैमनस्य और विभाजन का कारक बना दिया गया था। सदियों से भारतवासियों के लिए आस्था और भावना का विषय रहे मर्यादा पुरुषोत्तम राम और उनकी जन्मभूमि अयोध्या में स्थित उनके मंदिर को अकारण ही पांथिक ध्रुवीकरण और राजनीति का विषय बना दिया गया था। अंततः करोड़ों सनातन धर्मावलंबियों की आस्था, त्याग और बलिदान की विजय हुई। राम मंदिर निर्माण की सर्व-सम्मति भारतीय समाज के एकीकरण, पारस्परिक समझ और सौहार्द की पूर्वपीठिका है। यह जटिल समस्या के समाधान से निर्मित समरस साहचर्य के समतल मार्ग का प्रशस्तिकरण है।
What we saw in Ayodhya yesterday, 22nd January, will be etched in our memories for years to come. pic.twitter.com/8SXnFGnyWg
— Narendra Modi (@narendramodi) January 23, 2024
निश्चय ही, 22 जनवरी 2024 को उद्घाटित हुआ राम मंदिर पाँच सौ वर्ष की संघर्ष यात्रा की परमसिद्धि और परमप्राप्य है। यह मंदिर सिर्फ हिंदुओं की उपासना/आराधना का केंद्र नहीं, अपितु अखिल भारत की सामूहिक आकांक्षाओं और आध्यात्मिक चेतना का साकार रूप है। यह भारत की नवोन्मेषी आत्मा का विराट स्वरूप है। इसका पुनर्निर्माण विरासत और विकास के अद्भुत संगम को दर्शाता है। यह राष्ट्र की आध्यात्मिक उन्नति और भौतिक प्रगति का प्रतीक-स्थल और प्रेरणा-स्तम्भ है। भारत की स्पृहणीय सनातन संस्कृति का संरक्षण-केंद्र यह परम प्राचीन स्मारक सामाजिक संगठन और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की उत्प्रेरणा है। यह मंदिर सनातन संस्कृति के अविच्छिन्न सिद्धांतों और मानव मूल्यों की अभिव्यक्ति है।
यह विश्व की प्राचीनतम और सर्वाधिक प्रगत मानवीय संस्कृति; सनातन संस्कृति का सामूहिक और सार्वजनिक उद्घोष है। यह मंदिर भारतीयता और भारत बोध का प्रतिनिधित्व करता है। गौरवशाली और वैभवपूर्ण अतीत का प्रतिनिधित्व करने वाला यह राम मंदिर विदेशी आक्रांताओं और विदेशी पराधीनता से मुक्ति का स्वास्तिक-चिह्न है।
‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः…’ की उदात्त भावना को समाहित और संपोषित करने वाला यह मंदिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए सांस्कृतिक पर्यटन के अद्वितीय केंद्र के रूप में विकसित होगा। बहु-विध दुःख-तापों से हाँफते-काँपते विश्व-समुदाय के लिए राम और रामराज्य एक अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत करते हैं।
पृथ्वी को ‘निसिचर हीन’ करना लोकनायक राम की केंद्रीय प्रतिज्ञा है। इस ध्येय-प्राप्ति के लिए उन्होंने दीन-दुखी, निर्बल और निर्धन का साथ लिया/दिया, उन्हें संगठित किया। उनके सोए/खोए हुए आत्मगौरव और आत्मविश्वास को जागृत किया।
वे मौलिक शक्ति-संधान करके आततायी और उत्पीड़कों का संहार करते हैं। वे शोषित-उत्पीड़ित और उपेक्षित-वंचित समाज के सखा, सहयोगी और सुखदाता हैं। लोकमर्यादा, लोककल्याण और लोकतांत्रिक मूल्यों के परम आगार राम का जीवन और चरित्र कोटि-कोटि भारतवासियों को नैतिक सम्बल देता रहा है। उनकी नैतिक आभा भारतीयों के जीवन को निरन्तर प्रकाशित करती रही है। राम जैसी चारित्रिक उज्ज्वलता विश्व इतिहास में दुर्लभ है। इसी प्रकार रामराज्य समता, समरसता, बंधुता के साथ-साथ सतत और संतुलित विकास का अनुकरणीय उदाहरण है।
“दैहिक, दैविक, भौतिक तापा, रामराज काहुहि नहिं व्यापा…” और “नहिं दरिद्र, कोई दुखी न दीना, नहिं कोई अबुध न लक्षणहीना…” रामराज्य की केंद्रीय विशेषता है। ‘राम राज्य’ एक यूटोपिया नहीं, बल्कि ऐतिहासिक अनुभव है। यह आदर्श राज्य का एक ऐसा अनोखा उदाहरण है जो आधुनिक कल्याणकारी और लोकतांत्रिक राज्य के लिए प्रेरणा और प्रतिस्पर्धा का विषय है।
संतकवि तुलसीदास द्वारा विरचित ‘रामचरितमानस’ महाकाव्य में रामराज्य का विशद वर्णन/चित्रण है। तुलसी द्वारा खींचे गए इस मानचित्र में उपस्थित समाज पीड़ामुक्त और प्रेमयुक्त है। दीन-हीन को संरक्षण और सहायता प्राप्त होती है। नैतिकता और परदुःखकातरता पर आधारित इस राज्य में ‘काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार’ के लिए सार्वजनिक जीवन में कोई स्थान नहीं है। सामाजिक जीवन सुख, शांति और समृद्धि से ओतप्रोत और आप्लावित है।
रामराज्य की इन विशेषताओं के कारण ही महात्मा गाँधी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे महापुरुष उसे स्वातंत्र्योत्तर भारत के शासन-तंत्र के अनुकरणीय आदर्श के रूप में पहचानते और प्रस्तावित करते हैं। संभवतः इसी से प्रेरित और प्रभावित होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सनातन सांस्कृतिक मूल्यों और आधुनिक लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनूठे संगम पर आधारित शासन की स्थापना की है।
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आविष्कृत शासन-सूत्र को “नव-कल्याणवाद” का नाम दिया जा सकता है। यह रामराज्य का समसामयिक संस्करण है। आध्यात्मिक अभिप्रेरणा से संचालित समावेशी विकास केंद्रित सुशासन इसकी आत्मा है। जन-जन की भागीदारी और सर्वजनहिताय पर आधारित उनके शासन का ध्येय-मंत्र ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास’ है।
भारत में विदेह जनक, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, उनके प्रिय अनुज भरत और छत्रपति शिवाजी जैसे निर्लिप्त और निस्पृह तपस्वी राजाओं की सुदीर्घ परम्परा रही है। ऐसे राजाओं को ‘राजर्षि’ की महनीय उपाधि से विभूषित किया जाता है। निष्काम कर्मयोगी मोदी भी भारत की उसी गौरवशाली परंपरा के ध्वजवाहक हैं।
उनकी प्रमुख पहलों में से एक, प्रधानमंत्री जन धन योजना है, जो एक महत्वपूर्ण वित्तीय समावेशन कार्यक्रम है। यह निर्धन-वर्ग के आर्थिक समावेशन और सशक्तिकरण की भावना का प्रकटीकरण है। इस योजना के तहत अभियान चलाकर बैंक सेवाओं से वंचित बहुत बड़ी आबादी की बैंकिंग तक पहुँच सुनिश्चित की गई है। इसी प्रकार आयुष्मान भारत योजना आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को स्वास्थ्य सुविधा सुनिश्चित करती है। ‘राम राज्य’ के सिद्धांत के अनुरूप इसका ध्येय सभी के लिए उत्तम स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता है। स्वच्छ भारत अभियान, जिसका मुख्य उद्देश्य बहुआयामी स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण है।
इनके अतिरिक्त, वंचित वर्गों के लिए घर उपलब्ध कराने वाली प्रधानमंत्री आवास योजना, ग्रामीण विद्युतीकरण पर केंद्रित सौभाग्य योजना, कृषकों के सहयोग और संरक्षण पर आधारित पीएम किसान योजना, घर-घर मीठा और स्वच्छ पेयजल पहुँचाने वाली हर घर जल योजना आदि उल्लेखनीय हैं। इन सभी योजनाओं के लाभार्थी समाज के चिर-उपेक्षित और चिर-वंचित वर्ग हैं। इनमें दलित, वनवासी, पिछड़े, अल्पसंख्यक, महिलाएँ, किसान और ग्रामीण आदि सर्वप्रमुख हैं।
उज्ज्वला योजना, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान और नारी शक्ति वंदन अधिनियम आदि महिला सशक्तिकरण की दिशा में उठाए गए युगान्तकारी कदम हैं। ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्किल इंडिया’, और ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसी पहलें आत्मनिर्भरता और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करती हैं। कौशल विकास और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आत्मनिर्भरता की कुंजी है। डिजिटल भारत अभियान सुगमता, पारदर्शिता और भ्रष्टाचार के उन्मूलन पर केंद्रित है। ये सभी योजनाएँ राम राज्य की भावना का ही सगुण साकार रूप हैं।
पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में पनपी मुफ्त रेवड़ियाँ बाँटने की राजनीतिक संस्कृति नागरिकों को पराश्रित और परजीवी बना रही हैं। उसके बरक्स मोदी सरकार द्वारा संचालित इन तमाम योजनाओं ने आम भारतीय के जीवन में सुख, सुविधा और सहूलियत पैदा की है। ये आखिरी पायदान पर खड़े नागरिकों की चिंता/कल्याणकामना से प्रेरित हैं। ये उनकी आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण की कारक हैं।
समग्रतः ये प्रयास एक ऐसे समाज के निर्माण के संकल्प को दर्शाते हैं, जहाँ न्याय, कल्याण और समृद्धि सिर्फ सिद्धांत नहीं, बल्कि यथार्थ हैं और उनकी पहुँच और प्राप्ति सबके लिए समान रूप से है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ये नव-कल्याणकारी नीतियाँ समकालीन भारत में ‘रामराज्य’ के स्वप्न को साकार करने का प्रयत्न हैं। ये नीतियाँ समाज में प्रत्येक स्तर पर समता, समरसता, एकता, एकात्मता, सतत विकास और आर्थिक समावेशन को संभव कर रही हैं। राम मंदिर का पुनर्निर्माण एक धार्मिक अनुष्ठान मात्र नहीं, अपितु यह आयोजन सांस्कृतिक स्वाधीनता और सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण के नए युग का सूत्रपात और शंखनाद है।
यह भारत का अमृत काल है। देशभर में विकसित भारत संकल्प यात्राएँ निकालकर 2047 तक भारत को विश्वशक्ति और विश्वगुरु बनाने के ध्येय के साथ संगठित और समर्पित होने के लिए देशवासियों का आह्वान किया जा रहा है। जन-जन के आह्वान के साथ खड़ा किया गया यह आंदोलन रामराज्य के स्वप्न को साकार करने की सार्थक पहल है।