प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को दोबारा ऐतिहासिक जीत दर्ज किए 1 साल हो गए और इसके साथ ही जिस तरह से भारतीय राजनीति में बदलाव का जो दौर 2014 में पहली मोदी सरकार के साथ शुरू हुआ था, उस पर जनता ने दोबारा प्रचंड बहुमत से 2019 में मुहर लगा दी। 2019 में भाजपा की सीटों की संख्या में 2014 के मुकाबले वृद्धि हुई और वोट शेयर में भी बड़ा उछाल आया। जिस राजनीतिक दल को कभी अछूत माना जाता था, उसके साथ दर्जनों पार्टियाँ जुड़ीं।
इसके साथ ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के रूप में एक ऐसा रणनीतिकार मिला, जिसने वाजपेयी के दौर में हुई ग़लती को समझते और परखते हुए क़दम बढ़ाए। सत्ता का दोबारा शुभारम्भ हुआ और शाह ने केंद्रीय गृह मंत्री के रूप में शपथ ली। उसके बाद जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने से लेकर सीएए लाने तक जो भी हुआ, उसे पूरे देश ने देखा। सरदार पटेल के बाद शाह शायद सबसे ज्यादा कड़े फ़ैसले लेने वाले गृहमंत्री के रूप में गिने जाने लगे।
2019 में राफेल से लेकर 3 राज्यों की हार तक: क्या थी स्थिति?
सबसे पहले समझते हैं कि आखिर चुनाव से ठीक 2-3 महीने पहले तक की स्थिति क्या थी। कॉन्ग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गाँधी राफेल का राग अलाप रहे थे। प्रियंका गाँधी यूपी की जिम्मेदारी मिलने के बाद पहली बार किसी चुनावी संग्राम में बतौर पार्टी नेता हिस्सा ले रही थीं। वो अलग बात है कि मतगणना के बाद अमेठी का वो किला भी उजड़ गया, जहाँ से राजीव गाँधी ने लगातार 4 बार और उनके पुत्र राहुल ने लगातार 3 बार जीत दर्ज की थी।
2019 में राहुल गाँधी अपने हर भाषण में मोदी सरकार को घेरने के लिए राफेल सौदे का मुद्दा उछाल रहे थे। सोचिए, अगर नवंबर 2019 की जगह चुनावों से पहले ही इस मामले में सरकार को सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिली होती तो नतीजे और भी जोरदार हो सकते थे या नहीं। कॉन्ग्रेस के भीतर राहुल के हारने का डर पहले से था, इसीलिए उन्हें केरल में मुस्लिमों के प्रभाव वाले वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ाया गया। दिग्विजय सिंह वर्षों बाद चुनावी मैदान में भोपाल से उतरे।
वहीं से भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा को उतारा, जो इस चुनाव में काफ़ी चर्चा का विषय बनीं। कॉन्ग्रेस के काल में उन पर हुए अत्याचार की कहानियाँ लोगों ने सुनीं और ‘हिन्दू आतंकवाद’ वाला काण्ड लोगों के जेहन में ताज़ा हो गया। यूपीए काल के दौरान गृहमंत्री रहे पी चिदंबरम ने ‘भगवा आतंकवाद’ की नकली थ्योरी गढ़ी थी। ये चुनाव मोदी सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों के साथ-साथ कई अन्य मुद्दों पर भी लड़ा गया।
सबका साथ + सबका विकास + सबका विश्वास = विजयी भारत
— Narendra Modi (@narendramodi) May 23, 2019
Together we grow.
Together we prosper.
Together we will build a strong and inclusive India.
India wins yet again! #VijayiBharat
2018 के अंत में हुए चुनावों में भाजपा को हार मिली थी। मध्य प्रदेश में पार्टी सरकार नहीं बना पाई। राजस्थान में उसे कॉन्ग्रेस ने पटखनी दे दी। छत्तीसगढ़ में तो एकतरफा हार मिली। विपक्ष के बीच नई ऊर्जा का संचार हुआ था और वो इसे मोदी के ख़िलाफ़ जनमत मान बैठे। आंध्र प्रदेश के तत्कालीन सीएम चंद्रबाबू नायडू को अपना किला बचाना था लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में किंगमेकर बन कर उभरने के चक्कर में वो लगातार ममता और केजरीवाल से मिल रहे थे। दिल्ली में धरने दे रहे थे।
वो अलग बात है कि नायडू चुनाव बाद न घर के रहे और न घाट के। जगन मोहन रेड्डी से पटखनी मिलने के बाद आंध्र की राजनीति में भी लोगों ने अब उन्हें गंभीरता से लेना छोड़ दिया है। ममता बनर्जी ने कोलकाता में शक्ति प्रदर्शन कर के विपक्षी नेताओं का जुटान कराया था। बंगाल में भाजपा मेहनत कर रही थी क्योंकि उसे पता था कि हिंदी पट्टी में हुए सीटों के नुकसान की भरपाई बंगाल, नार्थ-ईस्ट और दक्षिण से की जा सकती है।
लेकिन, जहाँ तीनों राज्यों में हुए चुनावों ने विपक्ष को ये भरोसा दिलाया कि मोदी-शाह की जोड़ी अपराजेय नहीं है, वहीं भाजपा की संगठनात्मक रणनीति और कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय की तुलना कॉन्ग्रेस कभी नहीं कर पाई। माहौल बनाने के प्रयास में फेसबुक-ट्विटर पर प्रचार अभियान चला रहे विपक्षी नेता ये भूल गए कि सोशल मीडिया में भाजपा मजबूत है ही लेकिन ये बूथ स्तर का कैडर है, जो उसमें हमेशा जान फूँके रहता है।
‘इंडिया शाइनिंग’ वाला डर अभी भी ज़िंदा था, फिर भी लौटी मोदी सरकार
एक डर तो था। भाजपा समर्थकों के बीच 2004 के ‘इंडिया शाइनिंग’ प्रचार अभियान के फेल होने की यादें ताज़ा थीं। जिस चमक-दमक के साथ मोदी सरकार अपनी योजनाओं और कार्यों के लिए गोलबंदी कर रही थी, उससे लोगों के मन में 2004 की यादें ताज़ा हो गईं। कहते हैं, ‘इंडिया शाइनिंग’ के पीछे वाजपेयी के सर्वमान्य चेहरे के साथ-साथ प्रमोद महाजन जैसे नेताओं की रणनीति भी थी, जिससे ये अभियान सबसे अलग प्रतीत होता है।
बावजूद इसके कॉन्ग्रेस ने यूपीए के नेतृत्वकर्ता के रूप में सत्ता में वापसी की थी। कहते हैं कि ‘इंडिया शाइनिंग’ में शहरी लोगों को लुभाने के लिए जान लगा दी गई थी जबकि मोदी सरकार का पूरा जोर कृषकों और ग़रीबों पर था। भाजपा नेता सुधांशु मित्तल कहते हैं कि 2009 का चुनाव प्रचार अभियान आज किसी को याद नहीं, यही बताता है कि परिणाम सुखद न आने के बावजूद ‘इंडिया शाइनिंग’ सफल रहा था।
मित्तल ने प्रमोद महाजन के अंतर्गत काम किया था। वो कहते हैं कि प्रमोद महाजन इससे अंतरराष्ट्रीय निवेश का ध्यान खींचना चाहते थे। वो भाजपा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा दिलाना चाहते थे, जिसमें वो कामयाब रहे। दरअसल, भाजपा ने यही गलती दोहराने की गलती नहीं की। पार्टी ने किसानों और महिलाओं को फोकस में रखा और हर एक रैली में मोदी सरकार के उज्ज्वला, सौभाग्य और आयुष्मान भारत जैसे योजनाओं का जिक्र किया गया।
Anyone remember “India Shining”? https://t.co/9Ovqio4aed
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) May 16, 2020
अमित शाह ने जहाँ उत्तर प्रदेश में फिर से पूरा जोर लगाया, वहीं उत्तर-पूर्वी राज्यों में हुए विकास कार्यों की धमक वहाँ भी सुनाई दी। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति को घेरा गया। एक तरह से देखा जाए तो भाजपा को पिछले चुनाव के मुकाबले 21 सीटों का फायदा हुआ और पश्चिम बंगाल में अकेले 16 सीटों की उछाल आई। यही कारण है कि ममता बनर्जी आज भी भाजपा व मोदी सरकार से तिलमिलाई रहती हैं।
सुरक्षा, हिंदुत्व और विकास: जनता के मन की बात
कुल मिला कर 10 ऐसे राज्य रहे, जहाँ 2019 में सारी की सारी सीटें भाजपा ने झटकीं। अब बात करते हैं कि एक आम आदमी के मन में मोदी सरकार को लेकर क्या बातें चल रही थीं, जब वो 2019 में ईवीएम का बटन दबाने गया था? उसी वर्ष जनवरी में आतंकी हमले में 40 सीआरपीएफ जवानों का बलिदान हुआ था। उसके बाद जिस तरह से मोदी सरकार ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए बालाकोट में एयर स्ट्राइक किया, उससे जनता के मन में मोदी सरकार के प्रति विश्वास का भाव बैठा।
विपक्षी दलों ने इस बार सबूत नहीं माँगे क्योंकि वो पिछली बार ऐसा कर के जनाक्रोश भुगत चुके थे। और भाजपा सरकार ने उरी हमले के बाद भी सर्जिकल स्ट्राइक किया था, इसीलिए लोगों को उन नेताओं की सच्चाई भी पता चल गई, जो इसे चुनावी दाँव बोल कर अपनी नासमझी का परिचय दे रहे थे। कहीं न कहीं पिछले 5 साल में देश के बड़े शहरों में एक भी आतंकी हमले की साजिश सफल न होने की बात ने भी लोगों के भीतर सुरक्षा की भावना पैदा की।
उज्ज्वला योजना से करोड़ों महिलाओं को गैस चूल्हे दिए गए, जो मिट्टी के चूल्हे में धुएँ के बीच खाना बनाने को मजबूर थी। देश के सभी गाँवों में बिजली पहुँची, ये ऐसा काम था जो कई दशकों से पेंडिंग था। जिस तरह से पीएम मोदी ने कई देशों में सभाएँ कर के भारतीय प्रवासी समुदाय के भीतर एकता की भावना पैदा की, उससे उनमें से कई यहाँ वोट डालने आए और सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार किया।
वहीं दूसरी तरफ एक पूरा का पूरा गिरोह बैठा हुआ था। स्वरा भास्कर नई-नई साड़ियाँ सिला कर प्रचार कर रही थीं। कन्हैया कुमार को लेकर बड़ा हाइप बनाया गया था। रवीश जैसों ने बेगूसराय जाकर ग्राउंड रिपोर्टिंग की थी। प्रकाश राज तो ख़ुद बेंगलुरु से मैदान में थे। राजदीप और बरखा जैसे पत्रकार स्टूडियो से माहौल बनाने में लगे हुए थे। कुणाल कामरा ट्विटर पर और ध्रुव राठी यूट्यूब पर सक्रिय थे। इस गैंग को लोगों ने फिर से 5 साल रोने को मजबूर कर दिया।
कुल मिला कर देखें तो 2019 में जनता ने ये बता दिया कि वो मोदी के साथ है। देश की सुरक्षा से लेकर महिलाओं की उन्नति के मसले तक, जनता को सरकार के कामकाज इतने पसंद आए कि राहुल गाँधी कॉन्ग्रेस की मुफ्त में रुपए देने की योजना को भी नकार दिया गया। कर्जमाफी के ब्लंडर को जनता देख चुकी थी। ऐसे में कॉन्ग्रेस ये भूल कर बैठी कि शायद वो राजस्थान और मध्य प्रदेश वाला फॉर्मूला देश में भी अपना ले।