पंजाब में विधानसभा चुनाव 2022 में ‘एक मौका आप को’ का नारा ले गई गई आम आदमी पार्टी ने यहाँ सरकार बनाने के लिए स्पष्ट बहुमत हासिल किया है। इस बार विभिन्न पार्टियों के कई बड़े नामों को वहाँ से मुँह की खानी पड़ी है। इन नामों में कैप्टन अमरिंदर सिंह, प्रकाश सिंह बादल, चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू जैसे बड़े नाम शामिल रहे है। कुल 117 विधानसभा सीटों में भाजपा को 2 सीटें हासिल हुई हैं। ऐसे में यह समझना जरूरी हो जाता है कि पंजाब में आगे भाजपा का भविष्य क्या है ?
भारतीय जनता पार्टी पंजाब में पहले भी कभी मजबूत स्थिति में नहीं रही है। पार्टी ने हमेशा शिरोमणि अकाली दल के साथ चुनाव लड़ा और बहुत कम समय तक सत्ता में रही। अब शिरोमणि अकाली दल से उसका गठबंधन खत्म हो चुका है। 2022 के विधानसभा चुनावों में SAD के साथ कॉन्ग्रेस के कई बड़े चेहरे चर्चा से बाहर हो गए। ऐसे में भाजपा के पास एक अच्छा मौक़ा है पंजाब में अपना आधार तैयार करने का।
विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा को 6.6% वोट शेयर मिला। जबकि विजेता आम आदमी पार्टी ने 42% वोट शेयर हासिल किए। वहीं साल 2019 के लोकसभा चुनाव में NDA को 37.08% वोट शेयर मिले थे जबकि तब AAP पार्टी का वोट शेयर 7.38% ही था। लोकसभा चुनाव को भाजपा ने शिरोमणि अकाली दल के साथ मिल कर लड़ा था। इन चुनावों में लोगों ने उन्हें वोट दिया था जिन्हें वो संसद भेजना चाहते थे। इन चुनावों में क्षेत्रीय पार्टियों को वोट नहीं दिए गए थे। ऐसे में अगर भाजपा 5 साल बाद 2027 में पंजाब में अपनी सीटों और वोट शेयर को बढ़ाना चाहती है तो उसे काफी मशक्क्त करनी पड़ेगी।
ऐसे में भाजपा के पास अधिक समय नहीं है। उन्हें अभी से इसकी तैयारियों में जुट जाना होगा। उन्हें स्थानीय मुद्दों से जुड़ कर पंजाब के लोगों से नजदीकियाँ बढ़ानी होंगी। भाजपा वालों को केंद्र की योजनाओं का लाभ पंजाब के निवासियों तक पहुँचाना होगा। उन्हें लोगों को ये सभी समझाना होगा कि केंद्र सरकार ही उनके खाते में पैसे भेज रही है न कि राज्य सरकार। पंजाब में अगला विधानसभा चुनाव AAP बनाम भाजपा होगा। ऐसे में इसके लिए भाजपा को तैयार रहना होगा।
कैसे सफल हुई आप पार्टी
पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत के तमाम कारण हैं। इसमें उनका जमीनी कार्य, सटीक प्लानिंग और किसान आंदोलन में किया गया सहयोग मुख्य हैं। खालिस्तानी चरमपंथियों को समर्थन की अफवाह भी कहीं न कहीं आम आदमी पार्टी के पक्ष में ही रही। पंजाब की परम्परागत पार्टियों के कई नकारात्मक कार्य भी आप पार्टी की जीत की एक बड़ी वजह बने। कॉन्ग्रेस पार्टी और शिरोमणि अकाली दल की आंतरिक कलह भी आम आदमी के पक्ष में गई। कैप्टन अमरिंदर का कॉन्ग्रेस से अलग होना, सिद्धू का व्यवहार और भाजपा के खिलाफ नकारात्मक माहौल जैसे भी कई अन्य कारण आम आदमी पार्टी की जीत में अहम रोल अदा किए।
अब पंजाब का परम्परागत राजनैतिक परिदृश्य खत्म हो चुका है। अगले 5 सालों में इसको कौन सी पार्टी किस रूप में प्रयोग में लाती है ये उनके ऊपर है। आम आदमी पार्टी के दृष्टिकोण से देखा जाए तो 92 विधायकों के साथ पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने के बाद वहाँ का विपक्ष बेहद कमजोर है। मात्र 27 विपक्षी विधायक आप पार्टी के लिए कोई बड़ी मुसीबत नहीं खड़ी कर पाएँगे। लेकिन आप पार्टी की सरकार के लिए केवल यही चुनौतियाँ नहीं हैं। ऐसे तमाम मुद्दे हैं जो उनकी सरकार को सोने नहीं देंगे।
सीमवर्ती प्रदेश में कानून व्यवस्था
अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर मौजूद पंजाब की 547 किलोमीटर सीमा पाकिस्तान से लगती है। पिछले कुछ समय के अंतराल में ही सुरक्षा बलों ने कई बार सीमा पार से हथियार ज़ब्त किए हैं। साथ ही सीमाओं से नशीले पदार्थों की भी तस्करी होती है। लुधियाना की अदालत में टिफिन बम ब्लास्ट भी हुआ था। अलगावादी सोच रखने वाले खालिस्तानी विचारधारा के लोग सीधे पाकिस्तान से जुड़े होते हैं। ऐसी कई अन्य चुनौतियों को ले कर एक ऐसी पार्टी सीमावर्ती प्रदेश में शासन करने जा रही है जिसे कानून व्यवस्था सँभालने का कोई अनुभव नहीं है।
दिल्ली में आए दिन आम आदमी पार्टी केंद्र की भाजपा सरकार पर कानून व्यवस्था को ले कर सवाल खड़े करती है। क्योकि दिल्ली पुलिस केंद्र के गृह मंत्रालय अंतर्गत आती है। लेकिन पंजाब में हालात अलग हैं। यहाँ सभी प्रकार के मामलों के लिए खुद आम आदमी पार्टी ही जिम्मेदार होगी। ऐसे में सीमा पार से अवैध हथियारों की सप्लाई रोकना, नशे के अवैध कारोबार पर लगाम लगाना और चरमपंथी खालिस्तानियों पर अंकुश लगाने में कहीं न कहीं सरकार को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी।
बेअदबी के मामले
जब पार्टी सरकार में नहीं होती तो बयान जारी करना बहुत आसान होता है। ऐसे में सरकार पर आरोप लगाना भी कोई कठिन काम नहीं होता। अकेले साल 2021 में बेअदबी से जुडी 4 अलग-अलग घटनाएँ हुई हैं। इसमें 3 पंजाब के अंदर (गुरदासपुर, अमृतसर, कपूरथला) और एक दिल्ली सीमा सिंघु बॉर्डर पर। आने वाली 16 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे भगवंत मान ने इन घटनाओं को सरकार की नाकामी बताया था। अब खुद वही पंजाब में सरकार बनाने जा रहे हैं। वो बीत चुकीं बेअदबी की घटनाओं को नजरअंदाज़ नहीं कर सकते। ऐसे में राज्य सरकार को इस मुद्दे पर बेहद चौकन्ना रहना पड़ेगा जिसमें एक भीड़ खुद ही इंसाफ करने पर उतर जाती है। आम आदमी पार्टी ने ऐसी घटनाओं के दोषियों पर कार्रवाई करने की घोषणा पाने पंजाब मॉडल के 10 बिंदुओं में कही है। लेकिन वो इसे जमीनी तौर पर करने में कितना सफल हो पाएँगे ये तो समय ही बताएगा।
जनता से किए गए बड़े – बड़े वादे
अपने चुनावी वादों में आम आदमी पार्टी ने बिजली की दरों को घटाने, 18 साल से अधिक उम्र की प्रत्येक महिला को 1000 रुपए हर महीने देने जैसे वादे किए हैं। इन वादों को पूरा करने के लिए जितना पैसा चाहिए उतना पंजाब के पास नहीं है। अभी वर्तमान में ही पंजाब पर लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। चुनाव आयोग के अनुसार पंजाब में फ़िलहाल 1.1 करोड़ महिलाएँ वोटर के तौर पर दर्ज हैं। ऐसे में एक गणना के अनुसार भगवंत मान सरकार को लगभग 1100 करोड़ रुपए हर माह ख़र्च करने होंगे। यही पैसा सालाना 13200 करोड़ रुपए हो जाता है। ऐसे में पहले से कर्ज के बोझ तले दबे प्रदेश में ये वादे आसानी से पूरे होने वाले नहीं हैं।