भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा 100 दिनों के दौरे पर निकल रहे हैं, ताकि पार्टी को और मजबूत किया जा सके। अमित शाह बिहार में भले ही नहीं दिखे, लेकिन वो तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जरूर जा रहे हैं, जहाँ अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं। खुद पीएम मोदी ने बिहार में ताकत लगाई। वहीं एक अन्य राष्ट्रीय पार्टी कॉन्ग्रेस का सर्वोच्च परिवार क्या कर रहा है? राहुल गाँधी और सोनिया गोवा में, तो प्रियंका गाँधी शिमला में छुट्टियाँ मना रही हैं। बाद में चुनाव हारने पर ये EVM हैक होने का रोना रोने लगते हैं।
कपिल सिब्बल गाँधी परिवार पर सवाल उठा रहे हैं। गुलाम नबी आज़ाद संगठन में चुनाव की बात कर रहे हैं। कुलदीप बिश्नोई, गुलाम नबी आजाद पर हरियाणा में पार्टी का बेड़ा गर्क करने का आरोप लगा रहे हैं। अधीर रंजन चौधरी कपिल सिब्बल को नसीहत दे रहे हैं। पवन खेड़ा और अशोक गहलोत जैसे नेता गाँधी परिवार की तरफ से वफादारी का प्रदर्शन कर रहे हैं। और कॉन्ग्रेस का ‘प्रथम परिवार’ छुट्टियाँ मना रहा है।
हाँ, कभी वैक्सीन को लेकर तो कभी अर्थव्यवस्था को लेकर राहुल गाँधी के ट्वीट्स ज़रूर आते हैं। वो सवाल ज़रूर पूछते हैं, लेकिन सिर्फ ट्विटर पर। कॉन्ग्रेस को लगता है कि भाजपा सोशल मीडिया के सहारे ही चुनाव जीतती है (उनकी भी गलती नहीं, क्योंकि अधिकतर वफादार विश्लेषकों ने यही अनुमान लगाते हुए न जाने कितने लेख लिख डाले), इसीलिए उसका सारा जोर सोशल मीडिया पर ही अटका हुआ है।
कॉन्ग्रेस ये भूल गई है कि ये 2014 वाली भाजपा नहीं है, जो अपनी बात जनता तक पहुँचाने के लिए सोशल मीडिया पर ज्यादा निर्भर है। ये वो भाजपा है, जिसके अध्यक्ष भी बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ संवाद करते हैं और जिसके हर छोटे-बड़े नेताओं को सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों को जनता तक पहुँचाने का जिम्मा दिया गया है। काम की गूँज जनता तक पहुँच रही है, क्योंकि काम हुआ है। हर योजना के बारे में जनता को जानकारी देने पर भाजपा नेताओं-कार्यकर्ताओं का जोर है।
जेपी नड्डा: दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष, जो 100 दिन कार्यकर्ताओं के बीच रहेंगे
जेपी नड्डा पंजाब, तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भाजपा को मजबूत करने का इरादा लेकर 100 दिनों के लिए निकले हैं और इस दौरान वो न सिर्फ नेताओं और बुद्धिजीवियों, बल्कि बूथ स्तर कार्यकर्ताओं के साथ भी बैठकें करेंगे। इन चारों राज्यों में 2021 में ही विधानसभा चुनाव होने हैं। अमित शाह ने भाजपा अध्यक्ष रहते पार्टी की कमजोरी-मजबूती को समझने के लिए जिस प्रक्रिया को शुरू किया था, नड्डा उसे आगे बढ़ा रहे हैं।
बिहार विजय के बाद जिस तरह से नरेंद्र मोदी ने पार्टी कार्यालय पर ‘नड्डा जी आगे बढ़ो, हम आपके साथ हैं’ का नारा लगवाया, उससे भाजपा और कॉन्ग्रेस का स्पष्ट अंतर पता चलता है। एक में नए नेता को आगे बढ़ाते हुए उसका उत्साहवर्धन किया जाता है, जबकि दूसरे में एक परिवार दशकों से राज कर रहा है। नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह, अमित शाह और अब जेपी नड्डा – भाजपा में संगठन का दायित्व अलग-अलग लोगों के पास रहा है, जबकि कॉन्ग्रेस एक ही जगह अटकी हुई है।
जेपी नड्डा का आधिकारिक प्रवास दिसंबर के पहले सप्ताह से शुरू होगा, और उससे पहले वो अपनी कर्मभूमि हिमाचल प्रदेश पहुँचे। वो उत्तर पूर्वी राज्यों में भी जाएँगे और एक-एक दिन का प्रवास करेंगे। एक और बात ध्यान देने लायक है कि कोरोना काल में भाजपा के अधिकतर कार्यकर्ताओं को सेवा कार्य में लगाया गया था। पीएम से लेकर अध्यक्ष तक, सभी बार-बार आग्रह कर रहे थे कि वो लोगों की मदद करें।
अब जब कोरोना वैक्सीन को लेकर चीजें फाइनल स्टेज में हैं, भाजपा ने भी चुनावी गतिविधियाँ तेज कर दी हैं। दिल्ली में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी को हार मिली। उसके बाद कोरोना की लहर आ गई। महामारी के बीच ही बिहार में चुनाव हुए और पार्टी को आगे बढ़ने के लिए बड़ा आत्मविश्वास मिला। वो बिहार राजग में बड़ा भाई बन गई। अब जब ये चीजें ख़त्म हो गए हैं, संगठन को और ज्यादा सशक्त करने पर काम किया जा रहा है।
खबरों में यहाँ तक कहा जा रहा है कि भाजपा अध्यक्ष न सिर्फ अपनी पार्टी के नेताओं, बल्कि हर राज्य में NDA के दूसरे दलों के नेताओं से भी मुलाकात करेंगे, ताकि गठबंधन में बेहतर सामंजस्य बने और अब जब शिवसेना और अकाली दल भाजपा छोड़ कर गई है, कोई ये आरोप न दोहरा सके कि पार्टी अपने सहयोगी दलों के बारे में नहीं सोचती। जदयू से डेढ़ गुना ज्यादा सीटें आने के बावजूद बिहार में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बना कर भाजपा ने ये दिखा दिया है।
राहुल-सोनिया गोवा में, प्रियंका गाँधी शिमला में
सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी एक ‘प्राइवेट विजिट’ पर शुक्रवार (नवंबर 20, 2020) को गोवा पहुँचे। कहा जा रहा है कि वो दिल्ली की जहरीली हवा से बचने के लिए और पुनः स्वास्थ्य लाभ के लिए गोवा गए हैं। बताया गया है कि सोनिया गाँधी को डॉक्टरों ने यही सलाह दी है। साउथ गोवा में वो एक रिसोर्ट में रह रहे हैं। इससे पहले वो 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान भी गोवा में ‘प्राइवेट विजिट‘ पर आए थे। जी हाँ, चुनाव के दौरान छुट्टियाँ।
यहाँ हम इस पर टिप्पणी नहीं कर रहे कि किसी को स्वास्थ्य लाभ के लिए कहाँ जाना चाहिए कहाँ नहीं, या फिर डॉक्टरों की सलाह माननी चाहिए या नहीं। सवाल ये है कि जब आपसे पार्टी की गतिविधियों में सक्रियता नहीं हो सकती तो आप कॉन्ग्रेस की अध्यक्ष क्यों बनी हुई हैं? राहुल गाँधी पार्टी के सर्वोपरि क्यों बने हुए हैं? आप कोई प्राइवेट कम्पनी नहीं हैं। जनता ने आपको विपक्ष की भूमिका सौंपी है। जिम्मेदारी सिर्फ सत्ता पक्ष की नहीं होती।
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं। वहाँ पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद फिर ओवैसी को गाली दी जाएगी। अगर ममता बनर्जी जीतीं तो कॉन्ग्रेस ख़ुशी में कूदेगी और इसे भाजपा की हार मानेगी, भले ही उसका खुद का संगठन ख़त्म ही क्यों न हो जाए। कुछ नेता गाँधी परिवार पर सवाल करेंगे। वफादार उन्हें जवाब देंगे। इधर भाजपा अपना संगठन मजबूत करने में लगी रहेगी। अंत में होगा यही कि सारे विपक्षी मिल कर EVM का रोना रोएँगे।
When Sonia and Rahul Gandhi are holidaying in Goa and Priyanka Vadra is in Himachal, HM Amit Shah is in TN, soon after he visited WB, to expand party’s political footprint…
— Amit Malviya (@amitmalviya) November 21, 2020
Party President J P Nadda would soon be on a 100 day tour.
Then they wonder why does BJP keep winning!
प्रियंका गाँधी कहाँ हैं? उन्हें उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी गई है। लेकिन, सबसे रोचक बात ये है कि पिछले एक साल से वो यूपी कॉन्ग्रेस के मुख्यालय में गईं ही नहीं। अगस्त में भी उनके अपने दोस्तों के साथ शिमला में कुछ दिन रही थीं। राहुल गाँधी भी हाल ही में कुछ दिन वहाँ जाकर रहे। 8000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस कॉटेज के आसपास घने-सुनहरे जंगल हैं। प्रियंका गाँधी 80 लोकसभा सीटों वाली यूपी को छोड़ कर वहीं रह रही हैं।
नड्डा बनाम राहुल-सोनिया: अंत में होना है EVM का ही रोना
अब वो दिन दूर नहीं, जब अन्य विपक्षी राजनीतिक दल कॉन्ग्रेस पर भाजपा की बी टीम होने का आरोप लगाएँगे और आज ओवैसी की AIMIM को वोटकटुआ बताने वाली कॉन्ग्रेस तब वहाँ भी अपना अस्तित्व बचने के लिए जूझती रहेगी, जहाँ आज उसकी सरकार है। पंजाब में कैप्टेन अमरिंदर सिंह की उम्र अधिक हो गई है और वहाँ की जीत उनकी ही थी क्योंकि बीच चुनाव में पार्टी को उनको अपना चेहरा बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
कभी राफेल लेकर आते हैं। कभी CAA विरोधी आंदोलन में देशद्रोहियों का साथ देते हैं। कभी देश विरोधी गुपकार गैंग के साथ हाथ मिलाते हैं। कभी अर्थव्यवस्था को लेकर उलटी-सीधी बातें करते हैं। कभी चीन का प्रोपेगंडा फैलाते हैं। और चुनाव के बाद EVM का राग अलापते हैं। इन्होंने समझ लिया है कि भाजपा केवल सोशल मीडिया से ही चुनाव जीतती है और इसीलिए दिन भर वहीं बकैती करते रहते हैं।
अगर सोशल मीडिया की ही बात करें तो, प्रधानमंत्री के चेहरे के सामने कोई कहीं नहीं टिकता है। अगस्त-अक्टूबर में ट्विटर, गूगल और यूट्यब तक पर भी नरेंद्र मोदी सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता बने रहे। विकिपीडिया को भी मिला दें तो इन सभी प्लेटफॉर्म्स पर पीएम मोदी के ही ट्रेंड्स लीड में रहे। 2171 ट्रेंड के बाद सिर्फ आंध्र के सीएम जगमोहन रेड्डी 2137 ट्रेंड्स के साथ दूसरे स्थान पर रहे। कॉन्ग्रेस केवल बकैती में व्यस्त है। सही मुद्दे उठा ही नहीं रही।