रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया पर इस समय तृतीय विश्व युद्ध का ख़तरा मंडरा रहा है। देखा जाए तो ये ख़तरा सीधी तौर पर यूरोपियन यूनियन और अन्य पश्चिमी देशों पर है लेकिन इसका असर सारी दुनिया पर देखने को मिलेगा। इसके पीछे एक बड़ी वजह हॉलीवुडिया फ़िल्मों में खुद को सर्वशक्तिमान और दुनिया का रक्षक बताने वाला अमेरिका भी है।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 2 महाशक्तियों, सोवियत संघ; अभी का रूस और अमेरिका का उदय होता है। ये वो दौर था जब नए-नए हथियार और तकनीकों का आविष्कार हो रहा था। तभी से दोनों देश खुद को और मज़बूत करने की होड़ में आज एक दूसरे के चिर प्रतिद्वंदी बने बैठे हैं। लेकिन रूस के मुक़ाबले अमेरिका की नीतियाँ हमेशा से ज़्यादा आक्रमणकारी रही हैं। यूनाइटेड नेशंस, विश्व बैंक, इंटरनेशनल मॉनिटरी फ़ण्ड, नाटो जैसी संस्थाओं के गठन के समय से ही अमेरिका का प्रभुत्व और काम करने का तरीक़ा इस बात को इंगित भी करता है।
इन संस्थाओं का इस्तेमाल कर किस देश की कब और कितनी सहायता करनी है, और किसका कब, कैसे और कितना फ़ायदा उठाना है, ये अमेरिका को अच्छे से आता है। इतिहास के पन्ने पलट के देख लीजिए अमेरिका ने समय-समय पर कई छोटे व गरीब देशों जैसे की वियतनाम, सीरिया, इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, लीबिया वग़ैरह में सैन्य अभियानों व अभ्यासों, शांति व्यवस्था बनाने और आतंकवाद ख़त्म करने के नाम पर या तो उन्हें तबाह कर दिया या फिर उन्हें अधमरा छोड़ दिया। रूस और चाइना को छोड़ दें तो विश्व के बाक़ी देशों में अमेरिका के सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं है या कह सकते हैं कि अमेरिका के सामने इन दो देशों को छोड़ किसी और की बिसात नहीं है।
हालिया समय में अमेरिका के पास 80 से ज़्यादा देशों में लगभग 800 सैन्य अड्डे हैं जहाँ अमरीकी सेना की टुकड़ियाँ तैनात हैं जिनमें से कुछ अड्डे पूरी तरह से गुप्त रखे गए हैं। आज की इस स्थिति में अमेरिका की भूमिका को ऐसे समझिए, 30 में से 5 नाटो सदस्य देशों जर्मनी, तुर्की, इटली, नीदरलैंड और बेल्जियम में अमेरिका ने अपने 200 से ज़्यादा न्यूक्लियर वॉरहेड्ज़ तैनात कर रखे हैं, जो बड़ी आसानी से कभी भी रूस को अपना निशाना बना सकते हैं।
यही वजह है कि अमेरिका पिछले कई सालों से यूक्रेन को नाटो की सदस्यता लेने के लिए भड़काता आ रहा है ताकि अमेरिका को यूरोप में अपनी सैन्य उपस्थिति को मज़बूत करने के लिए ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा और मिल सके। इससे अमेरिका को न सिर्फ़ जियोपोलिटिकल फ़ायदा होगा बल्कि दुनिया की नज़रों में उसका क़द और बढ़ेगा क्योंकि तब अमेरिका रूस की सीमा पर सीना ताने खड़ा उसी को आँख दिखा रहा होगा।
यूक्रेन के नाटो में शामिल होने पर अमेरिका यूक्रेनी ज़मीन को रूस के ख़िलाफ़ आक्रमणकारी तरीक़े से इस्तेमाल कर सकता है और यही बात है जिसने पुतिन को सालों से परेशान कर रखा था इसलिए पुतिन को रशियन हितों और रूस के भविष्य की रक्षा के लिए यूक्रेन पर हमला करने के लिए मजबूर होना पड़ा। यूक्रेन पर हमले के साथ ही पुतिन ने पूरे विश्व में यह भी साफ़ कर दिया था कि अगर किसी भी देश ने इस युद्ध में यूक्रेन का साथ दिया तो उसे अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा और इसी बात के डर से अभी तक किसी भी देश ने यूक्रेन को सैन्य सहायता नहीं भेजी है।
यहाँ तक कि युद्ध के आठवें दिन भी यूक्रेन की मदद के नाम पर बाइडन ने हाउस ऑफ़ कॉन्ग्रेस में तालियों की गड़गड़ाहट के बीच एक बड़ी ही काइयाँ स्पीच दी और कह दिया की अमेरीकी सेना इस युद्ध में यूक्रेन का साथ नहीं देगी। कुछ मिलियन डालर्स, आधुनिक हथियारों की सप्लाई और मानवीय आधार पर मिलने वाली मदद को छोड़ दें और वास्तविकता की बात करें तो विश्व का रखवाला बनने वाले अमेरिका ने निर्दोष यूक्रेन को मरने के लिए अकेले छोड़ दिया है।
सीधी तौर पर कहें तो यूक्रेन दूसरे देशों के प्रति अमेरिका के आक्रामक रवैये का शिकार बना है। नाटो देश भले ही यूक्रेन को हथियार और सैन्य उपकरण उपलब्ध करवा रहे हों, विश्व भर में राष्ट्रपति जेलेंस्की की भले ही कितनी भी तारीफ़ की जा रही हो लेकिन ये बात समझनी बहुत ज़रूरी है कि यूक्रेन में रोज़ हो रहे जान-माल के नुक़सान का कारण सिर्फ़ पुतिन नहीं है। कहने का मतलब है पुतिन इस युद्ध के इकलौते खलनायक नहीं हैं और निश्चित रूप से ना ही सबसे बड़े खलनायक हैं।
रूस पर दुनिया भर के प्रतिबंध भले लग रहे हों लेकिन इन प्रतिबंधों से रूस को इतना नुक़सान नहीं होगा जितना फ़ायदा अमेरिका और उसकी अर्थव्यवस्था को होगा क्योंकि दोनों देश परमाणु क्षेत्र, अप्रसार-विश्व भर में दूसरे देशों द्वारा परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के साथ-साथ परमाणु परीक्षण पर अंकुश लगाना, इंटेलिजेन्स, आतंकवाद विरोधी हित साझा करते हैं। अंततः इन प्रतिबंधों से रशिया के अन्य देशों से संबंध टूटने पर अमेरिका की आर्थिक रफ़्तार को कई गुना बढ़ावा मिलेगा।
यह युद्ध रूस बनाम यूक्रेन कभी था ही नहीं, यह हमेशा से अमेरिका बनाम रूस था और है, लेकिन दुःख इस बात का है की यूक्रेन के निर्दोष लोगों को बलि का बकरा बनाया जा चुका है।