एनसीबी (NCB) ने आर्यन खान को ड्रग मामले में गिरफ्तार किया तो परंपरागत और सोशल मीडिया पर युद्ध सा छिड़ गया। आर्यन खान के समर्थन और एनसीबी के विरोध में कई लोग उठ खड़े हुए। तर्क, कुतर्क और बालसुलभ बातों से मीडिया स्पेस भर गया। गिरफ्तारी के पीछे के कारणों को लेकर लगाए गए कुछ कयास और जारी किए गए कुछ बयानों को पढ़कर लगा जैसे उनका उद्देश्य ही एनसीबी की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाना और आम लोगों में भ्रम पैदा करना था। हाल के वर्षों में केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों के खिलाफ माहौल बना कर भ्रम पैदा करना लिबरल इकोसिस्टम के टूलकिट का ऐसा हिस्सा है जिसे बार-बार आजमाया जाता रहा है।
यह बताया गया कि केंद्र सरकार या भारतीय जनता पार्टी दरअसल आर्यन खान को नहीं बल्कि उनके बहाने शाहरुख खान के खिलाफ कार्रवाई कर रही है। ऐसे बयान के पीछे के कारण तो इसे जारी करने वाले बयानबाजों को ही पता होंगे पर सबकुछ धड़ल्ले से कहा गया। जैसे शाहरुख खान की वर्तमान केंद्र सरकार से कोई दुश्मनी है और सरकार इसी कारण से शाहरुख़ खान को परेशान कर रही है। यह तब जब शाहरुख़ खान की केंद्र सरकार से ही नहीं, भाजपा के साथ भी कभी किसी तरह का सार्वजनिक विवाद नहीं रहा। फिर भी कुछ टीवी न्यूज़ चैनल, उनके संपादक और संवाददाताओं ने अपनी चिर परिचित नीति के तहत एनसीबी की कार्रवाई का खुलकर विरोध और आर्यन खान का समर्थन किया।
आगे चलकर कहा गया कि शाहरुख खान को इसलिए टारगेट किया जा रहा है क्योंकि वे मुसलमान हैं। इस तरह के तर्क हमेशा से अजीब लगते रहे हैं पर समय-समय पर यह दोहरा कर इसे सच बनाने का प्रयास जारी है। कुछ तो अपने कुतर्क मार्ग पर चलकर वहाँ पहुँच गए जहाँ से यह कहते सुने गए कि; चूँकि शाहरुख़ खान सदी के सबसे लोकप्रिय भारतीय हैं इसलिए उनके बेटे के साथ ऐसा व्यवहार न तो कानून सम्मत है और न ही संविधान सम्मत।
भारत का कानून या सरकार शाहरुख़ खान की लोकप्रियता के आधार पर आचरण करें, यह कहना वैसा ही है जैसे यह कहा जाए कि अमिताभ बच्चन के कर्ज बैंकों द्वारा केवल इसलिए माफ़ कर देने चाहिए थे क्योंकि उन्हें सदी का महानायक माना जाता रहा है।
ऐसा लगता है जैसे मीडिया में आर्यन और शाहरुख़ खान के समर्थन में दिए गए बयान और कुतर्क वगैरह का असर होता दिखाई न दिया तो राजनीतिक हस्तक्षेप का सहारा लिया गया। अब महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक ने इसे ड्रग मामले में की गई सामान्य कानूनी कार्रवाई से आगे ले जाकर खुद और एनसीबी अधिकारी समीर वानखेड़े के बीच का मामला बना दिया है। नतीजा यह हुआ है कि महाराष्ट्र की राजनीति अब राज्य के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख के दिनों से भी नीचे चली गई है। नवाब मलिक को वानखेड़े से चाहे जो समस्या हो पर आर्यन खान मामले में उनका व्यक्तिगत हस्तक्षेप किसी भी तरह से संवैधानिक नहीं है।
वानखेड़े के विरुद्ध वे रोज कोई न कोई ऐसा बयान जारी करते हैं जो लगते तो व्यक्तिगत हमले हैं पर उनका उद्देश्य एनसीबी के साथ-साथ केंद्र सरकार के अन्य विभागों की कार्यप्रणाली पर प्रश्न उठाना जान पड़ता है। ऐसा महाराष्ट्र की वर्तमान सरकार के मंत्री और सत्ताधारी दलों के अन्य नेता पहले भी कर चुके हैं। आज नवाब मलिक जो कर रहे हैं वो केंद्र सरकार के विरुद्ध खड़े होने के अनिल देशमुख के अजेंडे का ही विस्तार है। पूर्व गृहमंत्री देशमुख अपने दिनों में लगभग रोज केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कोई न कोई जाँच का आदेश देते ही रहते थे। यह बात और है कि बाद में उनका और उनके पुलिस अफसरों का क्या बना वह सबके सामने है।
पिछले कुछ वर्षों से केंद्रीय जाँच एजेंसियों के विरुद्ध कुछ राज्य सरकारों ने जिस तरह की राजनीति की है वह कई स्तरों पर संघीय ढाँचे को क्षति पहुँचाने वाली रही है। चंद्रबाबू नायडू और ममता बनर्जी का अपने राज्य में सीबीआई को न घुसने देने की घोषणा इसी राजनीति का हिस्सा थी। अपने मंत्रियों की गिरफ्तारी पर ममता बनर्जी द्वारा सीबीआई का घेराव इसी वर्ष किया गया। नवाब मलिक आज जो कर रहे हैं वह इसी राजनीति का नवीनतम संस्करण है। उन्हें वानखेड़े से जो भी समस्या है, उसका खुलासा जब होगा तब होगा पर फिलहाल उनके आचरण ने एनसीबी की एक विशुद्ध कानूनी कार्रवाई को राजनीतिक लड़ाई बना दिया है। यह बात वर्तमान विपक्ष द्वारा केंद्र सरकार के विरुद्ध शुरू की गई राजनीतिक प्रवृत्ति को पुख्ता ही नहीं करेगी बल्कि अन्य राज्य सरकारों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करेगी।
मलिक एक मंत्री की हैसियत से यह सब कर रहे हैं पर आश्चर्य यह है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अपने मंत्री के ऐसे आचरण पर प्रतिक्रिया नहीं देते। मुख्यमंत्री ठाकरे की यही चुप्पी अनिल देशमुख की अति सक्रियता के समय भी थी। ठाकरे तो चुप हैं ही पर शरद पवार की चुप्पी और महत्वपूर्ण है। वर्तमान भारतीय राजनीति के सबसे वरिष्ठ नेता पिछले लगभग दो वर्षों से चुप होकर अपने दल के नेताओं को निकृष्ट राजनीतिक आचरण करते हुए लगातार देख रहे हैं पर हस्तक्षेप नहीं करते। उनका ऐसा राजनीतिक आचरण महाराष्ट्र की वर्तमान राजनीति पर उनकी लगातार ढीली होती पकड़ का नतीजा है या फिर केंद्र सरकार से अलग-अलग स्तर पर टकराव का, यह देखना दिलचस्प रहेगा।