Sunday, April 28, 2024
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प्रवासी: तापसी पन्नू का वैचारिक प्रपंच

महामारी जैसी विषम स्थिति में तापसी क्यों तथ्यों को तोड़-मोड़कर केंद्रीय प्रशासन एवं पुलिस संस्था को नकारात्मक रूप से प्रस्तुत कर रही हैं। ग़ैर बीजेपी शासित राज्यों द्वारा इस संकट की स्थिति में भी सहयोग ना करने पर तापसी मौन क्यों हैं?

वर्तमान समय में छद्म छदम युद्ध लड़े जाते हैं। इसी का हिस्सा है, वैचारिक लड़ाई। इसमें राष्ट्र विरोधियों द्वारा समाज में वैचरिक विष से भ्रम का जाल बुना जाता है। इसके लिए मानस को प्रभावित करने वाले सिनेमा, नवीन संचार, समाचार, साहित्य आदि को उपकरण बनाया जाता है।

आपने अभिनेत्री तापसी पन्नू की ‘प्रवासी‘ नामक चलचित्र युक्त कविता अवश्य ही देखी होगी। सामान्य मनुष्य की भॉंति हमारे श्रमिक भाई बहनों की ऐसी परिस्थिति देख, आपका हृदय भी विचलित हुआ होगा। आपने तापसी के इस प्रयास की सराहना भी की होगी। सबसे महत्वपूर्ण, आपने भी प्रशासन को जी भरकर कोसा होगा और इसे प्रसारित करने में भी सहयोग किया होगा।

किन्तु, क्या आपने इसमें छिपे प्रपंच को समझने का प्रयास किया?

सर्वप्रथम प्रवासी का अर्थ समझिए। जो अपना स्थान बदल कर रहते है, यहाँ सन्दर्भ में प्रवासी श्रमिकों (मुख्यतः देहाड़ी श्रमिक) से है जो अपने राज्य से दूसरे राज्य जीविका के लिए आते हैं। यहाँ तापसी उनके देश का निवासी होने पर ही प्रश्न कर रही हैं। ये कहाँ का मूर्खतापूर्ण तर्क है, तापसी को छोड़कर, उनके भारतीय होने में किसको भी लेश मात्र संदेह नहीं है। महामारी में किसी भी परिस्थितिवश अगर भारतीयों को स्थान परिवर्तन करना पड़े तो क्या आप उनके भारतीय होने पर ही प्रश्न करेंगे। पहले जातीय, भाषाई, प्रांतीय होता था, अब जीविका को आधार बनाकर पर समाज में फूट डाल भेद उत्पन्न करना है। हमारे श्रमिक वर्ग के भाई-बहनों को देश से कटा हुआ प्रदर्शित करना है। हिन्दू नरसंहार के बाद 30 वर्षों से विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं के साथ जघन्य अपराध एवं घोर अन्याय हुआ है। तब यह प्रश्न तापसी को क्यों परेशान नहीं करता कि क्या कश्मीरी हिन्दू इस देश के वासी नहीं हैं?

अगर हम नहीं हैं इंसान, तो मार दो हमे, दे दो फरमान… ऐसे शब्दों का चयन सरकार को फ़ासिस्टवादी बताना। अपने बच्चे को ट्राली बैग पर खींचते हुए पैदल चल रही है माँ का दृश्य, अत्यंत मार्मिक एवं हृदय विदारक है। किन्तु प्रश्न यह है कि मात्र इस दृश्य विशेष को ही क्यों चुना गया? पूरा सन्दर्भ क्यों नहीं बताया गया?

जब आप इस दृश्य की पूरी चलचित्र को देखेंगे तो आपको ज्ञात होगा कि वह माँ और बच्चा एक छोटे (4-5) श्रमिक समूह या परिवार का हिस्सा थे। स्थानीय लोगों ने उन्हें रोक कर समझाया भी कि ‘पास के बस स्टेशन से प्रशासन ने यात्रा की व्यवस्था की है, उसका उपयोग करें’। किन्तु वे उपेक्षा करके चले जाते हैं।

फिर भी तापसी क्यों वास्तविक्ता एवं तथ्यों से ध्यान भटका कर, भावनात्मक रूप से झूठ को प्रसारित करना चाहती हैं। दूसरी ओर वह प्रोपेगेंडावादी पत्रकारों द्वारा, कोरोना की विषम परिस्थिति में भी, श्रमिकों से ‘photo pose‘ मॉंगने एवं ‘fake photo narrative create’ करने पर चुप्पी साध लेती हैं।

हम सभी ने देखा है कि कैसे पुलिस ने महामारी की इस विषम परिस्थिति में मानवीय मूल्यों के साथ अपने कर्तव्यों का पालन किया है। जब हम सभी अपने-अपने घरों में सुरक्षित बैठे थे, तब यही पुलिस अपने परिवार से दूर होकर कार्य कर रही थी। अपने ही घर के द्वार पर अपने बच्चे परिवार से दूर रहना सरल नहीं होता, महामारी के समय सड़क किनारे बैठ कर भोजन करना सरल नहीं होता, कोरोना की शंका को जानते हुए भी भीड़ का प्रबंधन करना सरल नहीं होता।

किन्तु कुछ नागरिक महामारी में देश बंदी के नियम तोड़ने में व्यस्त थे, ऐसे नागरिकों पर आप ही बताइए पुलिस को क्या कार्यवाही नहीं करनी चाहिए? एक विशेष समुदाय के नागरिकों ने महामारी में चिकित्सकों एवं प्रशासन पर थूका, पत्थर से प्रहार किया, ऐसे नागरिकों पर आप ही बताइए तापसी, पुलिस को क्या कार्यवाही नहीं करनी चाहिए?

राजस्थान की ग़ैर बीजेपी शासित राज्य की पुलिस ने भी श्रमिकों पर निर्ममता से लाठी बरसाई थी। तापसी ने अपनी कविता में उसके दृश्य क्यों सम्मिलित नहीं किए। महामारी जैसी विषम स्थिति में तापसी क्यों तथ्यों को तोड़-मोड़कर केंद्रीय प्रशासन एवं पुलिस संस्था को नकारात्मक रूप से प्रस्तुत कर रही हैं। ग़ैर बीजेपी शासित राज्यों द्वारा इस संकट की स्थिति में भी सहयोग ना करने पर तापसी मौन क्यों हैं?

कथित तौर पर 1200 किलोमीटर साइकिल चलने वाली ज्योति की कथा एवं घटनाक्रम समझते हैं। ज्योति और उसके पिता उनके मकान मालिक का किराया न दे पाने के कारण, गॉंव वापस जाने को विवश हुए। ज्योति के परिवार की सहमति नहीं थी, किन्तु ज्योति की हठ के आगे उन्हें झुकना पड़ा। महामारी से देश बंदी में, ज्योति के पिता को 1000 रुपया केंद्र सरकार एवं 1000 रुपया बिहार सरकार से भी मिला। जब ज्योति ने साइकिल भी सीखी थी, वो भी नितीश सरकार की किसी योजना के अंतर्गत मिली थी। उनकी यात्रा में अनेकों बार स्थानीय लोगो ने एवं ट्रक चालकों से ज्योति और उसके पिता को सहायता प्राप्त हुई थी। अतंतः ज्योति के इस विषम परिस्थिति में उभरी योग्यता के बल पर उसे Cycle Fedration of India की ओर से नेशनल cycling acedamy में प्रशिक्षु चुने जाने का एक अवसर प्राप्त हुआ, स्वयं इवांका ट्रम्प ने ज्योति को सराहना करते हुए, भारत के लोगो के धीरज और प्रेम को सुन्दर बताया। तापसी द्वारा इस पूरे घटनाक्रम में सरकार पर दोषारोपण करना कहॉं तक उचित है?

अनेकों उदहारण में एक यह सुनिए। एक श्रमिक भाई ने पूरे परिवार के साथ मध्य प्रदेश से राजस्थान तक निःशुल्क यात्रा की और मोदी सरकार को धन्यवाद दिया। तापसी घटनाक्रम को नकारात्मक ही क्यों दर्शाना चाहती हैं? सरकार के प्रयासों से लाभान्वित श्रमिक भाई बहनों के पक्ष को इन्होंने क्यों नहीं दिखाया?

विचारणीय यह है कि किन कारणों से श्रमिकों को गृहनगर लौटने के लिए विवश होना पड़ा? किसने विवश किया श्रमिकों को पलायन करने के लिए? किसने फ़र्ज़ी अनाउंसमेंट करवाए? दिल्ली में किसने रात्रि में माइक पर कहा आनंद विहार बस अड्डे पर घरों तक जाने के लिए बसें खड़ी हैं? देश बंदी का राष्ट्रीय आदेश होने का बाद भी, बस अड्डे तक पहुँचाने के लिए क्यों DTC की बसें लगाई गईं? जनता को राज्य सीमा पर कोरोना के खतरे से मरने के लिए क्यों भेजा गया? मुंबई के बांद्रा में किस षड्यंत्र के अंतर्गत भीड़ को एकत्र किया गया? क्यों ग़ैर बीजेपी शासित राज्यों ने प्रारम्भ में ही कोरोना से लड़ने में केंद्र सरकार के प्रयासों से सहयोग नहीं किया?

तापसी श्रमिक पालयन के मूल कारण पर मौन क्यों हैं? महामारी नियंत्रण में केंद्र सरकार के प्रयासों को विफल क्यों करना चाहती हैं, देश में अराजकता क्यों बढ़ाना चाहती हैं? वास्तविकता को क्यों छुपाया जा रहा है, तथ्यों को तोड़ मोड़कर या आधा-अधूरा क्यों प्रस्तुत किया जा रहा है? जो भीड़ मीडिया में दिखाई जा रही थी, क्या किसी ने षड्यंत्र के अंतर्गत उन्हें भड़काया था , पलायन को विवश किया था? प्रथम दृष्टया प्रश्न अनेक हैं, जिनके उत्तर प्रपंच प्रसारित करने वाले गुटों को देने होंगे।

फरवरी में कोरोना के केंद्र चीन ने कोरोना से लड़ने के लिए चोंगकिंग में ‘Disinfectant tunnels’ लगवाए थे। ये टनल ‘Infra Red’ तकनीक से युक्त मानव पर वायरसनाशक का छिड़काव करने के लिए थे। जिसे सभी सामान्य सामूहिक स्थानों पर लगाया गया था।

दूसरे देशों ने भी इसका अनुगमन किया। भारत में भी सकारात्मक दृष्टि से प्रयोग किया गया, किन्तु बाद में मंत्रालय ने परामर्श के बाद इसे हटावा दिया। आपको समझना होगा की कोरोना महामारी अपने आप में कितनी विकट परिस्थिति है, पूरा विश्व इस प्रकार की स्थिति का प्रथम बार सामना कर रहा है। किसी को भी ठीक से नहीं पता की कैसे इससे निपटा जाए। समय की आवश्यकता के अनुरूप शनै-शनै हम सभी अपने आप को ढाल रहे हैं। ऐसे में अगर प्रसाशन ने जनता की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, कुछ निर्णय ले लिए तो इसमें क्या आपत्ति है? क्या आप वायरस नाशक ‘Hand Sanitizer’ अपने हाथों पर प्रयोग नहीं करते। सबसे महत्वपूर्ण इस प्रकार छिड़काव से किसी को जीवन संकट का सामना नहीं करना पड़ा है। तो इसे क्यों ऐसे प्रदर्शित किया जा रहा है जैसे कितना बड़ा अपराध हो। अगर ये अपराध है तो इस तर्क से कोरोना वैक्सीन का मानव पर प्रयोग भी अपराध ही माना जाएगा।

क्यों तापसी ने मात्र, उत्तर प्रदेश में हुए छिड़काव वाली घटना को ही चित्रण के लिए ही चुना, किन्तु ग़ैर बीजेपी शासित केरल प्रशासन द्वारा लोगों पर की गई छिड़काव की घटना का जिक्र नहीं किया।

ग़ैर बीजेपी शासित मुंबई में जीवाणुनाशक के स्थान पर पानी का प्रयोग किया गया, ये मुम्बईकर के जीवन से खिलवाड़ क्यों नहीं लगता तापसी को। क्या तापसी बीजेपी एवं ग़ैर बीजेपी राज्यों में भेद करती हैं।

जीवाणुनाशक पर मूर्खता पूर्ण भ्रमित चित्रण दर्शाता है कि तापसी की वैज्ञानिक समझ का स्तर कितना निम्न है। साथ ही साथ यह तापसी की मंशा पर भी संदेह उत्पन्न करता है।

प्रश्न यह भी है कि क्यों तापसी श्रमिकों के विषय को स्टैच्यू ऑफ यूनिटी से तुलना कर सरदार पटेल की प्रतिमा को अनुपयोगी सिद्ध करना चाहती हैं। क्या सरदार पटेल की प्रतिमा को मात्र इसीलिए प्रपंच में खींचा जा रहा है, क्योंकि सरदार पटेल को सम्मान देने का श्रेय बीजेपी को मिल जाएगा।

21 मार्च 2020 से 13 अप्रैल 2020 के बीच डीबीटी के जरिए 32 करोड़, PMGKAY योजना के तहत 5.29 करोड़ और PMUY योजना के तहत 1.39 करोड़ लोगों को लाभ पहुॅंचाया गया। राज्यों ने 22.08 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न मुफ्त वितरण के लिए लिया। 1 करोड़ बीजेपी कार्यकर्ताओं ने प्रत्येक कार्यकर्ता द्वारा 5 निर्धन परिवारों के भोजन की व्यवस्था करने का अभियान भी चलाया। बावजूद इसके ‘भूख किसी की मिटा न पाए’ प्रपंच नहीं तो और क्या है। इतना ही नहीं सरकार को बदनाम करने के लिए फेक न्यूज तक फैलाए गए।

ऐसे में सवाल उठता है कि तापसी तथ्यों को एक विशेष वैचारिक रूप में ही क्यों प्रस्तुत कर रही हैं?

समाज को ऐसे प्रपंच प्रसारित करने वाले नामी लोगों का बहिष्कार करना चाहिए। हम सभी को अभिनेता (Actor) एवं नायक (Hero ) के अन्तर को समझना होगा। अभिनेता अभिनय करता है। वह एक छद्म स्वरुप धारण करता है। उसका व्यवहार वास्तविकता से परे होता है। नायक निजी जीवन एवं सार्वजानिक जीवन में एक उत्तम उदारहरण प्रस्तुत करते हुए समाज के लिए कार्य करता है। चुनाव आपका है, आपको छद्म वेश धारी अभिनेता अपनी प्रेरणा स्त्रोत के रूप में चाहिए या वास्तविक समाज के नायक जो धरातल पर कार्यरत हैं।

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