प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में साल 2019 में लगातार दूसरी बार एनडीए ने प्रचंड बहुमत हासिल करते हुए केंद्र में सरकार बनाई और सबसे पहला बड़ा काम किया था जम्मू-कश्मीर पर लागू होने वाले आर्टिकल 370 को रद्द करने का। जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में करके केंद्र शासित प्रदेश बनाने का। मोदी सरकार ऐसा कारनामा कर दिखाया, जिसे अब कोई सरकार नहीं हटा पाई। ये अलग बात है कि कॉन्ग्रेस आर्टिकल 370 को हटाने का पुरजोर विरोध करती रही। खैर, अब कॉन्ग्रेस ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू एवँ कश्मीर के विधानसभा चुनाव के लिए फिर से अपने ऐसे पुराने सहयोगी के साथ ‘हाथ’ मिलाया है, जो जम्मू-कश्मीर को लेकर अलगाववादी शक्तियों की मदद करती है। अलगाववाद को बढ़ावा देती है। भारत के दुश्मन पाकिस्तान से दोस्ती की वकालत करती है और कश्मीरियों को भारतीयों से अलग बताती है।
जी हाँ, कॉन्ग्रेस के ‘बिना राजतिलक’ वाले युवराज राहुल गाँधी ने श्रीनगर का दौरा किया। वहाँ उन्होंने जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की बात कही और कश्मीर से अपना ‘खून का रिश्ता’ बताया। उसके बाद राहुल गाँधी अपने ‘मुखौटे’ के साथ जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक़ अब्दुल्ला से मिले और फिर दोनों तरफ ये घोषणा की गई कि कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कॉन्ग्रेस पार्टी साथ चुनाव लड़ेंगी। इसमें माकपा भी सहयोगी रहेगी।
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— JKNC (@JKNC_) August 22, 2024
खैर, ये रिश्ता पहले भी रहा है। इस रिश्ते पर सवाल पहले नहीं उठते थे। खासकर 2019 से पहले तो बिल्कुल भी नहीं। चूँकि कॉन्ग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस की सोच कमोवेश एक जैसी ही रही है। बात चाहे पड़ोसी पाकिस्तान से रिश्तों को लेकर हो या आतंकवाद से निपटने को लेकर, लेकिन इस बार सारी हदें पार कर दी गई हैं।
हम ये बात यूँ ही नहीं कह रहे हैं, बल्कि ये बाते कह रही है कॉन्ग्रेस की रिश्तेदार नेशनल कॉन्फ्रेंस ही। दरअसल, नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने बीते सोमवार (19 अगस्त 2024) को पार्टी का घोषणा पत्र जारी किया है। उन्होंने घोषणापत्र को एनसी का विजन डॉक्यूमेंट और शासन का रोडमैप बताया। घोषणापत्र में 12 व्यापक वादे किए गए हैं, जिनमें 2000 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा द्वारा पारित स्वायत्तता प्रस्ताव के पूर्ण कार्यान्वयन के लिए प्रयास करना शामिल है।
नेशनल कॉन्फ्रेंस का घोषणा पत्र देखकर लगता ही नहीं कि ये किसी भारतीय राजनीतिक पार्टी का घोषणा पत्र है। ये बात सुनी-सुनाई सी लग रही होंगी, लेकिन इन्हें हल्के में मत लीजिए। हल्के में लेने की जगह जरा नेशनल कॉन्फ्रेंस के घोषणा पत्र की हाईलाइट्स पढ़ लीजिए…
नेशनल कॉन्फ्रेंस के घोषणा पत्र की 12 गारंटियों में—
- हम (अनुच्छेद) 370-35ए को बहाल करने और 5 अगस्त, 2019 से पहले की स्थिति में राज्य का दर्जा बहाल करने का प्रयास करते हैं।
- हम जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर सरकार के कामकाज के नियम, 2019 को फिर से तैयार करने का प्रयास करेंगे।
- जम्मू और कश्मीर के लोगों के भूमि और रोजगार के अधिकारों की रक्षा करेंगे, यानी पहले की तरह बाहरी (भारतीयों) लोगों पर बैन।
- भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत को प्रोत्साहित करेंगे, जोकि मोदी सरकार नहीं कर रही है।
- राजनीतिक कैदियों को एमनेस्टी देना, पीएसए व यूएपीए हटाना (जिन पर आतंकवादी कृत्यों के आरोप हैं) यानी माफी देकर जेल से रिहा करेंगे।
- कर्मचारियों की “अन्यायपूर्ण” (आतंकवाद के समर्थन की वजह) बर्खास्तगी की बहाली की जाएगी और राजमार्गों पर लोगों के उत्पीड़न (सेना की कड़ाई, पूछताछ) को समाप्त करेंगे।
Our Promises! pic.twitter.com/SLHE6HVr0O
— JKNC (@JKNC_) August 19, 2024
अब अगर इन बातों पर गौर करें तो आर्टिकल 370 को फिर से लागू करना? ये कैसे करेंगे, किसी को नहीं पता है। वो फिर से कश्मीरियों और पाकिस्तानी नागरिकों तक ही कश्मीर की जमीन को सीमित करने का प्रयास करेंगे, मानों पूरा भारत कश्मीर में बस ही गया हो। और जो रोजगार, कामधंधे, निवेश आया है, वो फिर से शून्य हो जाएगा।
ये पाकिस्तान के साथ बातचीत को बढ़ावा देंगे? क्यों भाई? उस पार से आने वाले आतंकवाद पर प्रहार हुआ है इसलिए? क्योंकि इससे आप (कुछ लोगों) का भला होता था? याद करें अभी कुछ दिन पहले ही जम्मू-कश्मीर बार एसोसिएशन का 20 साल तक अध्यक्ष रहा मियाँ अब्दुल कयूम भट्ट जून महीने में ही गिरफ्तार हुआ है। गिरफ्तार भी क्यों हुआ? क्योंकि उसने आतंकवादियों की मदद से एक विरोधी वकील को ‘रास्ते से’ हटवाया था। वो कश्मीरी आतंकवादियों का केस भी लड़ता रहा है। अब नेशनल कॉन्फ्रेंस उसे ‘राजनीतिक कैदी’ बताकर रिहा करेगी।
जरा सरकारी कर्मचारियों की अन्यायपूर्ण बर्खास्तगी वाली लाइन समझ लीजिए। ऐसे लोगों को नेशनल कॉन्फ्रेंस फिर से बहाल करेगी, जो आतंकवाद से जुड़े मामलों की वजह से बर्खास्त कर दिए गए हैं। ये वो लोग हैं, जिनके पति-पत्नी, भाई, पिता घोषित आतंकवादी हैं। सरकार से मिलने वाली सैलरी वो आतंकवादियों को देते हैं। या फिर आतंकवादियों की मदद करने, उन्हें सूचना पहुँचाने और देश के खिलाफ काम करने के मामले में जिनकी सेवाएँ समाप्त की गई हैं, नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार बनने पर उन्हें माफी दे दी जाएगी। खैर, ये तो तब होगा, जब जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलेगा और उसके इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद देगी कॉन्ग्रेस।
वैसे, एक वादा तो और भी किया है उमर अब्दुल्ला ने, कि साल 2000 में जो रिजोल्यूशन जम्मू-कश्मीर विधानसभा में नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार रहते पास किया गया था, जिसमें जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता की माँग थी, उसे तत्कालीन एनडीए सरकार यानी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने पूरी तरह से खारिज कर दिया था। उसे फिर से पास करके केंद्र सरकार के पास भेजने की। अब ये संविधान के 16वें संसोधन की मजबूरी कहें या कुछ और, कि नेशनल कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर को अलग देश बनाने की बात नहीं कर रही, वर्ना वो ये भी कर देती। बाकी उनकी इस माँग में और पड़ोसी पाकिस्तान की माँग में कोई खास अंतर रह नहीं गया है।
जी हाँ, अगर अब तक आपके मन में ये सवाल आ रहा हो कि कॉन्ग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का रिश्ता क्या कहलाता है? तो ये जवाब है। जवाब है कॉन्ग्रेस का ऐसी ताकतों के साथ हाथ मिलाना, जो देश को विभाजन की तरफ ढकेलने की कोशिश करते हैं। वैसे, कॉन्ग्रेस खुद आर्टिकल 370 के हटाने का भी विरोध करती रही है। वैसे, राहुल गाँधी के ‘खून वाले रिश्ते’ के बयान के बाद गाँधी खानदान का अब्दुल्ला खानदान से रिश्ता आप भी जानते ही होंगे, अगर नहीं जानतें तो यहाँ पढ़ लीजिए।
बहरहाल, अब जब पूरा देश कॉन्ग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के ना’पाक’ रिश्ते को जान ही चुका है, तो यहाँ ये भी जानना जरूरी है कि जिस अखिलेश यादव को इंडी गठबंधन खास कर सपा कार्यकर्ता देश का अगला ‘रक्षा मंत्री’ बनाने पर तुले हैं, उनके पिता मुलायम सिंह यादव रक्षा मंत्री रह भी चुके हैं, उनका राहुल गाँधी, उमर अब्दुल्ला से कितना याराना है। फिर इस गठबंधन के बाकी साथी चाहें वो शरद पवार हों, या ममता बनर्जी, इनके पाकिस्तान और ‘मजहब विशेष’ प्रेम से भी सभी वाकिफ हैं। साथ ही वामपंथी पार्टियों के 1962 से लेकर हमेशा किए जाने वाेल देश से छल से भी। ऐसे में इस गठबंधन को जम्मू-कश्मीर के असली देश वासी ही जवाब देंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव तीन चरणों में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को होंगे। नतीजे 4 अक्टूबर को घोषित किए जाएँगे। पहले चरण के लिए नामांकन 27 अगस्त, दूसरे चरण के लिए 5 सितंबर और तीसरे चरण के लिए 12 सितंबर से दाखिल किए जाएँगे। इस चुनाव में कश्मीरी प्रवासियों के लिए दिल्ली, जम्मू और उधमपुर में स्पेशल पोलिंग बूथ बनाए गए हैं।
जम्मू-कश्मीर में कुल 90 निर्वाचन क्षेत्र हैं जिनमें से 74 जनरल, 9 अनुसूचित जाति और 7 अनुसूचित जनजाति के लिए हैं। केंद्रशासित प्रदेश में मतदाताओं की संख्या कुल 87.09 लाख हैं जिसमें 44.46 लाख पुरुष और 42.62 लाख महिला मतदाता हैं। जम्मू-कश्मीर में युवा मतदाताओं की संख्या 20 लाख है। पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 30 सितंबर तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश दिया था।
1- जम्मू-कश्मीर से 5 अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 को हटाया गया था।
2- आखिरी विधानसभा चुनाव 2014 में 87 सीटों पर हुआ था, जिनमें 4 सीटें लद्दाख की थीं।
3- जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद सात विधानसभा सीटें बढ़ गई हैं।
4- 90 विधानसभा सीटों में से 74 सामान्य, 7 एससी और 9 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं।
5- जम्मू-कश्मीर सरकार का कार्यकाल पहले 6 साल होता था, अब 5 साल का होगा।
सवाल ये नहीं है कि कौन सी पार्टी किसके साथ गठबंधन करेगी। सवाल नीतियों का है। एक तरफ कॉन्ग्रेस देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी होने का दंभ भरती है, तो उसके नेता और कार्यकर्ता, उसके राजनीतिक सहयोगी देश में सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक स्तर पर तोड़फोड़ और अलगाववादी नीतियाँ अपनाते हैं। दक्षिण में कॉन्ग्रेस की सहयोगी द्रमुक की बात करें तो वो सनातन परंपरा को ही मिटाने का संकल्प लेती है, तो उत्तर में नेशनल कॉन्फ्रेंस भारत की शान जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता दिलाने, पाकिस्तान से बातचीत करने, आतंकवादियों को जेल से रिहा करने की बात करती है। ऐसी दो मुँही बातें कब तक चलेंगी मिस्टर युवराज?