उत्तर प्रदेश में कॉन्ग्रेस पार्टी की अल्पसंख्यक इकाई ने आगामी विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के संकल्प पत्र से अल्पसंख्यकों के हित वाले सोलह बिंदुओं को प्रदेश की 8432 मस्जिदों में शुक्रवार के दिन नमाज़ के बाद मुसलमानों के बीच बँटवाने का फैसला किया है। कॉन्ग्रेस पार्टी के राजनीतिक आदर्शों के अनुसार यह धर्मनिरपेक्षता है लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने ट्वीट करके पूछा है कि कहीं ‘पार्टी के संकल्प पत्र पर समुदाय विशेष का पहला हक़ है’ जैसा कुछ तो नहीं है?
भारतीय जनता पार्टी की ओर से आए ट्वीट ने डॉक्टर मनमोहन सिंह के उस वक्तव्य की याद दिला दी जिसके अनुसार देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यक समुदाय का है। यह बात और है कि 2G और CoalG जैसे संसाधनों वाले स्कैम में अल्पसंख्यकों का पहला तो क्या दूसरा और तीसरा अधिकार भी दिखाई नहीं दिया था।
राम मंदिर के विरोध से लेकर आतंकियों के लिए आंसू बहाने तक कांग्रेस हमेशा तुष्टिकरण की राजनीति करती रही। अब कांग्रेस यूपी में अपना संकल्प पत्र मस्जिदों के बाहर बांटने के मिशन पर निकली है। @priyankagandhi को यह बताना चाहिए कि उनके चुनावी संकल्प पत्र के वादों पर ‘पहला हक़’ किसका है? pic.twitter.com/FBqXemYKsV
— BJP Uttar Pradesh (@BJP4UP) September 26, 2021
उत्तर प्रदेश में कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा मस्जिदों के सामने बाँटे जा रहे इस 16 सूत्री संकल्प पत्र में अल्पसंख्यकों के साथ किए जाने वाले वादे हैं। वैसे तो चुनाव के अवसर पर वादे वगैरह लोकतांत्रिक राजनीति का अभिन्न अंग हैं पर इस कॉन्ग्रेसी संकल्प पत्र की एक विशेषता यह है कि मुसलमानों के साथ किए जा रहे ये वादे समाजवादी पार्टी के खिलाफ प्रतीत हो रहे हैं।
पार्टी द्वारा अल्पसंख्यकों से किए जाने वाले वादे अखिलेश यादव सरकार की नीतियों और प्रशासनिक क़दमों के विरुद्ध हैं। जैसे पार्टी द्वारा किए जाने वाले एक वादे के अनुसार; पार्टी एक कमीशन का गठन करेगी जो अखिलेश यादव सरकार के समय होने वाले दंगों की जाँच करेगा। एक अन्य वादे के अनुसार; उन टैनरी को फिर से खुलवाएगी जो अखिलेश सरकार के प्रशासनिक क़दमों की वजह से बंद हो गई थी।
ऐसा नहीं कि पार्टी ने वर्तमान योगी सरकार द्वारा उठाए गए प्रशासनिक क़दमों को पलटने का वादा नहीं किया है पर पार्टी केवल अखिलेश यादव के शासनकाल में होने वाले दंगों की जाँच करवाने का वादा करके कहीं न कहीं यह संदेश दे रही कि; योगी आदित्यनाथ की वर्तमान सरकार के कार्यकाल में दंगे नहीं हुए या हुए तो उन्हें लेकर उचित कार्रवाई की गई।
कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा अपने संकल्प पत्र में अखिलेश यादव या उनकी पार्टी को घेरने की कोशिश से अल्पसंख्यकों के बीच कैसा संदेश जा रहा है? मजे की बात यह है कि लगभग यही काम ओवैसी कर रहे हैं जब वे सार्वजनिक मंचों पर अतीक अहमद की पत्नी से उनका ही लिखा पत्र पढ़वा रहे हैं जिसमें लिखा है कि उनकी गिरफ्तारी के लिए अखिलेश यादव जिम्मेदार हैं।
कॉन्ग्रेस और ओवैसी द्वारा केवल मुस्लिम समुदाय के लोगों को समाजवादी पार्टी के प्रति भड़काने की रणनीति यह बताती है कि ओवैसी को न सही पर क्या कॉन्ग्रेस पार्टी को भी बहुसंख्यक वोट मिलने की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही? यह प्रश्न इसलिए क्योंकि कुछ रिपोर्ट के अनुसार प्रियंका वाड्रा उत्तर प्रदेश कई दिनों का प्रोग्राम बना कर आती हैं पर कार्यकर्ताओं, समर्थकों और अपने वोटर की अपेक्षित संख्या न होने की वजह से कार्यक्रम पूरा किए बिना ही लौट जाती हैं।
सूत्रों की मानें तो ऐसा एक से अधिक बार हो चुका है। कॉन्ग्रेस, सपा और बसपा ने ब्राह्मणों का समर्थन लेने की जो मुहिम शुरू की थी वह भी अब ठंडी पड़ती दिखाई दे रही है। क्या इन दलों को अपने नेताओं द्वारा पूजा पाठ और मंदिर यात्राओं के सहारे बहुसंख्यकों का वोट पाने की कोशिशों के अपेक्षित परिणाम आने की उम्मीद नहीं रही? यह ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर आने वाले समय में शायद मिले।
कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यकों को फिर से अपना वोटर बनाने की कवायद पार्टी के मौलवी मीटिंग अभियान के साथ ही शुरू हो गया था। अब मस्जिदों के सामने संकल्प पत्र बाँटने की इस रणनीति से पार्टी के प्रयास और गंभीर दिखने लगे हैं।
ऐसा करने के साथ यही पार्टी भारतीय जनता पार्टी पर यह आरोप लगाने की भी तैयारी कर रही होगी कि भाजपा चुनाव के मौके पर सांप्रदायिक राजनीति करती है। प्रश्न यह है कि कॉन्ग्रेस पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए उसकी यह रणनीति काफी होगी? क्या पार्टी खुलकर प्रियंका वाड्रा को कम से कम उत्तर प्रदेश में पार्टी की बागडोर देने के लिए तैयार है यह सोचकर अपने कदम पीछे खींच लेगी कि; बंद मुट्ठी लाख की, खुल गई तो ख़ाक की?