Sunday, December 22, 2024
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वैश्विक महामारी के दौर में और मजबूती से सामने आया ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का भारतीय दर्शन

"कोई तब तक सुरक्षित नहीं होगा, जब तक कि हर कोई सुरक्षित नहीं।" - यह वसुधैव कुटुम्बकम के दर्शन का ही तो प्रतिबिंब है और भारत वही कर रहा है - गरीब और जरूरतमंद राष्ट्रों की माँग को पूरा करके।

करीब एक साल से अधिक समय से पूरा विश्व कोरोना वायरस जैसी भीषण महामारी से जूझ रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। कोरोना वायरस के प्रकोप के अलग-अलग लहरों ने अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरीकों से प्रभावित किया है। इस महामारी की दूसरी लहर ने भारत को पहली लहर की तुलना में बड़े पैमाने पर प्रभावित किया है। पहली लहर के दौरान भारत सफलतापूर्वक इस वायरस को अमेरिका, इटली, यूके जैसे विकसित देशों की तुलना में अत्यधिक प्रभावी तरीके से नियंत्रित करने में कामयाब रहा था।

पहली लहर के दौरान, भारत ने ना केवल उत्पन्न चुनौतियों का मजबूती से सामना किया, बल्कि 150 से भी अधिक देशों को चिकित्सा और अन्य सहायता भी प्रदान की। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और पैरासिटामोल के अलावा भारत ने दुनिया भर के लगभग 95 देशों को कोरोना वैक्सीन देकर इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में इन राष्ट्रों का सहयोग किया।

सहायता का यह भाव सच्ची मानवता और दूसरों की मदद के प्रति भारत के लोगों के इच्छाशक्ति को प्रदर्शित करता है। इससे यह साबित होता है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी भारत अपने हितों की रक्षा के साथ-साथ पूरी दुनिया की परवाह करता है। यही तो वसुधैव कुटुम्बकम का सार है, जिसमें सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार के रूप में देखा जाता है। यह दर्शन सदैव से भारतीय विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।

कोरोना की पहली लहर के दौरान भारत द्वारा जरूरतमंद राष्ट्रों की मदद के प्रति अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया काफी सकारात्मक एवं उत्साहवर्धक थी। कई देशों ने भारत द्वारा दवाओं की आपूर्ति के साथ-साथ कोरोना की वैक्सीन भेजने की काफी तारीफ की। अपनी एक बड़ी जनसंख्या के साथ-साथ पूरी दुनिया में जरूरतमंद राष्ट्रों को कोरोना की वैक्सीन भेजकर भारत ने अंतरराष्ट्रीय सहायता के क्षेत्र में एक अद्भुत उदाहरण स्थापित करने के साथ ही साथ अनेक राष्ट्रों को समग्र एवं सामूहिक सहायता हेतु प्रेरित भी किया।

कोविड महामारी की दूसरी लहर ने भारत को अप्रत्याशित रूप से प्रभावित किया है। इस दौरान न केवल चिकित्सा व्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई बल्कि संक्रमित व्यक्तियों की संख्या में भी अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई। चिकित्सा आवश्यकताओं की कमी से जूझ रहे भारत ने जिस तरीके से कम समय में इस कठिन परिस्थिति से उबरने का प्रयास किया, वह काबिले-तारीफ है। परंतु इस कठिन घड़ी में भी कुछ आलोचक भारतीय प्रयासों की आलोचना करने से पीछे नहीं हटे। इन्होंने यह भी नहीं सोचा कि जब कोरोना की पहली लहर आई थी तब अमेरिका सहित कई सम्पन्न राष्ट्र, जिनकी स्वास्थ्य व्यवस्था उत्तम स्तर की है, वह भी इस महामारी से बुरे तरीके से प्रभावित थे।

आलोचकों का यह भी कहना है कि वैक्सीन कूटनीति ने भारत के हितों को प्रभावित किया है। इन आलोचकों को यह समझने की जरूरत है कि आज जिस बड़ी संख्या में अनेकों राष्ट्र भारत की मदद के लिए आगे आए हैं, उसके पीछे भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी (वैक्सीन मैत्री) तथा अन्य चिकित्सा सहायता का महत्वपूर्ण योगदान है।

भारत जैसे ही दूसरी लहर से प्रभावित हुआ, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जर्मनी, सऊदी अरब, फ्रांस, यूके, कजाकिस्तान, सिंगापुर सहित कई अन्य देशों ने भारत को चिकित्सा सहायता भेजी। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि जब संयुक्त राज्य अमेरिका कोरोना से बुरी तरह प्रभावित था और कई परेशानियों का उन्हें सामना करना पड़ रहा था तब भारत के सहयोग के कारण उन्हें मदद मिली। और अब वो भी भारत को उसकी तरह जरूरत के समय में मदद करने के लिए दृढ़ एवं तैयार हैं।

वास्तव में, भारत की वैक्सीन कूटनीति इस बात को दर्शाती है कि कैसे भारत अपने नागरिकों की सुरक्षा के साथ-साथ मानवता की रक्षा के लिए सबसे पहले आगे आया। भारत ने GAVI गठबंधन (अंतरराष्ट्रीय वैक्सीन गठबंधन) के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पूरा किया। दवाओं, टीके और मेडिकल इक्विपमेंट्स को सस्ते दर से बनाकर देने की कोशिश की, जिससे दुनिया के गरीब देशों को भी राहत मिले।

विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने बिल्क़ुल ठीक ही कहा कि कोई तब तक सुरक्षित नहीं होगा, जब तक कि हर कोई सुरक्षित नहीं है। वैक्सीन कूटनीति का उद्देश्य गरीब और जरूरतमंद राष्ट्रों की माँग को मानवीय आधार पर पूरा करना है। यह वसुधैव कुटुम्बकम के दर्शन का ही तो प्रतिबिंब है।

भारत के वैक्सीन मैत्री ऑपरेशन ने एक परिवार के रूप में इस मुद्दे को सामूहिक रूप से संबोधित करने के लिए दुनिया के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। यही वजह है कि आज जरूरत पड़ने पर विश्व के अनेकों राष्ट्र भारत की सहायता हेतु आगे आए। यह झलक वसुधैव कुटुम्बकम के दर्शन को विश्वव्यापी मान्यता प्राप्त होने की ओर इंगित करता है।

इसमें कोई शक नहीं कि इस वैश्विक महामारी ने पूरी मानवता को ना केवल झकझोर के रख दिया है बल्कि कई सबक दिए हैं। आज के दौर में चुनौतियाँ अधिक कठिन होती जा रही हैं और केवल किसी एक देश के द्वारा इसका समाधान कर पाना संभव नहीं है। इन चुनौतियों के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है।

निस्संदेह, भारत ने दुनिया को करुणा का मार्ग दिखाया है और दुनिया को एक परिवार के रूप में खुले तौर पर गले लगाने के लिए प्रेरित किया है। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी को सामूहिक और समन्वित प्रयासों से ही पराजित किया जा सकता है और इसके लिए जरूरी है कि हर कोई वसुधैव कुटुम्बकम के दर्शन को आत्मसात करे।

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Avni Sablok
Avni Sablok
Senior Research Fellow at Public Policy Research Centre (PPRC), New Delhi

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