Tuesday, November 19, 2024
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समझिए भारत में क्यों नहीं आ सकती बांग्लादेश जैसी स्थिति: कभी ‘हैप्पीनेस इंडेक्स’ पर चिढ़ाने वाला गिरोह आज देख रहा देश में अराजकता के ख्वाब, अंतर समझो और पीट लो माथा

एक भारतीय खुद को समय एवं स्थान के हिसाब से अनुकूलित करने की क्षमता रखता है, वो समझौता कर के भी रह सकता है। क्योंकि, उसे पता है कि कठिन समय लंबे नहीं चलते। यही कारण है कि भारत में क्रूर शासकों को हमेशा सत्ता से बेदखल होना पड़ा, या उनका प्रभाव घट गया। हालाँकि, कभी लाख-करोड़ लोग एक साथ अराजक नहीं हुए।

बांग्लादेश में अराजकता का माहौल है। प्रधानमंत्री शेख हसीना को मुल्क छोड़ना पड़ा। उनका विमान भारत के गाजियाबाद स्थित हिंडन एयरपोर्ट पर लैंड हुआ। उन्होंने अपना इस्तीफा भी दे दिया है। अब बांग्लादेश में फौज ये तय कर रही है कि आगे क्या होगा। बांग्लादेश के सेनाध्यक्ष वकार-उज-जमान का कहना है कि वो विपक्षी पार्टियों से बात कर के नई अंतरिम सरकार के गठन के लिए पहल करेंगे। दो-तिहाई बहुमत से हाल ही में सत्ता में लौटी शेख हसीना की ‘आवामी लीग’ को इन चर्चाओं से पूरी तरह अलग रखा जाएगा।

बांग्लादेश में कोटा का मुद्दा, भारत में आरक्षण पर राजनीति

आगे बढ़ने से पहले जान लेते हैं कि बांग्लादेश में ऐसी स्थिति आई ही क्यों है। असल में ये पूरा का पूरा मामला आरक्षण से जुड़ा है। बड़ा ही जाना-पहचाना शब्द लग रहा है न? 1990 के दशक की शुरुआत में प्रधानमंत्री रहे VP सिंह OBC समाज के लिए 27% आरक्षण का फैसला लेकर आए थे, तभी से भारत में भी आरक्षण को लेकर लेकर हिंसा होती रही है। इसके पक्ष-विपक्ष में सोशल मीडिया में दलीलें दी जाती रही हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST समाज में उपवर्गीकरण का आदेश दिया है, ताकि जो पिछड़ गए हैं उन्हें भी फायदा मिले। इसके खिलाफ कुछ जातियों ने ‘भारत बंद’ बुला रखा है।

कॉन्ग्रेस पार्टी की तो आजकल की पूरी की पूरी राजनीति ही आरक्षण और जाति के इर्दगिर्द घूमती है। राहुल गाँधी संसद में हर सवाल के जवाब में जातिगत जनगणना कराने की बातें करते हैं। ये बिहार में हो चुका है, लेकिन कोई नहीं बता रहा कि इससे फायदा क्या हुआ। राम मंदिर को लेकर एक हुए हिन्दुओं को जातियों में बाँटने के लिए ‘मंडल पॉलिटिक्स’ फिर शुरू है। बांग्लादेश में जिस आरक्षण को लेकर विवाद हुआ, वो जाति वाला नहीं बल्कि मुल्क की आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले परिवारों से जुड़ा हुआ था। साथ ही इसके तहत पाकिस्तान द्वारा प्रताड़ित की गई महिलाओं, कुछ क्षेत्रों और कुछ जनजातियों को प्राथमिकता दी गई थी। ये फैसला खुद बंग-बंधु शेख मुजीबुर रहमान का था

बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों को ‘मुक्ति योद्धा’ कहा जाता है। तर्क ये था कि ये ‘मुक्ति योद्धा’ जब युवा थे जब उन्हें आरक्षण देने का तुक बनता था क्योंकि तब वो नौकरी खोज रहे थे। हालाँकि, बाद में ये आरक्षण उनके बेटे-बेटियों और फिर पोते-पोती-नाती-नातिन तक पहुँच गया। फिर आरोप लगा कि ‘आवामी लीग’ के कार्यकर्ता इसका फायदा उठा रहे हैं। 2018 में भी इसके खिलाफ प्रदर्शन हुआ था, तब हाईकोर्ट ने आरक्षण खत्म करने की माँग ठुकरा दी थी। फिर शेख हसीना ने सारा आरक्षण खत्म करने का निर्णय किया, इसका भी विरोध हुआ क्योंकि छात्र इसे खत्म करने की जगह सुधार की माँग कर रहे थे।

सरकारी नौकरियों में ‘मुक्ति योद्धाओं’ और उनके वंशजों के लिए 30% आरक्षण की व्यवस्था थी। ‘मुक्ति योद्धाओं’ के परिजन सुप्रीम कोर्ट पहुँचे और सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की व्यवस्था फिर से बहाल कर दी। इससे 56% सरकारी नौकरियाँ आरक्षित हो गईं। सुप्रीम कोर्ट ने 93-7 की व्यवस्था दी थी, यानी 93% नौकरियाँ मेरिट के आधार पर और 7% आरक्षण के आधार पर। इसके बाद छात्रों ने सरकार के साथ असहयोग का आंदोलन चलाया। शेख हसीना ने प्रदर्शनकारियों को ‘रज़ाकार’ (पाकिस्तानी अत्याचारी) कह कर संबोधित किया और उनके दमन का प्रयास किया।

बांग्लादेश का ‘हैप्पीनेस इंडेक्स’ बताने वाले कहाँ गए?

खैर, ये था पूरा मामला। अब शेख हसीना जैसे ही बांग्लादेश छोड़ कर भारत आई हैं, उनके इस्तीफे के बाद भारत के एक वामपंथी गिरोह की बाँछें खिल गई हैं। कोई इसे ‘युवा शक्ति की जीत’ बता रहा तो कोई ‘लोकतंत्र की विजय’ करार दे रहा। इसमें विनोद कापड़ी और अभिनव पांडेय जैसे पत्रकार शामिल हैं। RJ सायमा और अरफ़ा खानम शेरवानी जैसी सोशल मीडिया में प्रभाव रखने वाली मुस्लिम महिलाएँ भी जश्न मना रहीं। इनकी शह पर कुछ सोशल मीडिया हैंडल लिख रहे कि PM नरेंद्र मोदी के साथ ऐसा होगा तो वो किस देश में लैंड करेंगे?

ये अलग बात है कि कुछ दिनों पहले तक यही गिरोह बांग्लादेश का ‘हैप्पीनेस इंडेक्स’ दिखा कर मोदी सरकार के समर्थकों को चिढ़ा रहा था। YouTuber ध्रुव राठी भाजपा समर्थकों को ‘अंधभक्त’ कहते हुए ऐसे समझा रहे थे जैसे कि बांग्लादेश ही दुनिया की नई महाशक्ति बन गया हो। वो कह रहे थे कि वास्तविक विकास कैसे होता है, इसमें बांग्लादेश अपने पड़ोसी देशों के लिए उदाहरण सेट कर रहा है। वहीं ‘वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट’ में भी बांग्लादेश को 125वीं रैंक दी गई थी, जबकि भारत को 140वें स्थान पर रखा गया था। इसे लेकर भारत को यहीं के वामपंथियों ने खूब चिढ़ाया था और जैसा कि वो करते रहे हैं, ‘विश्वगुरु’ वाला तंज कसा था।

अब देखिए, जो गिरोह कल तक बांग्लादेश की तारीफ़ में कसीदे पढ़ रहा था अब वही गिरोह बांग्लादेश की अराजकता को ‘तानाशाही का अंत’ बता रहा है। स्थिति ऐसी है कि सरकारी इमारतें जलाई जा रही हैं, ISKCON के मंदिर और माँ काली के मंदिर जलाए जा रहे हैं। हिन्दू नेताओं और पत्रकारों की हत्याएँ हुई हैं। भीड़ PM आवास में घुस गई। वहाँ से महिलाओं के प्राइवेट कपड़ों को लूट कर लहराया जा रहा है। जो हिन्दू पहले से ही डरे हुए थे, उनके लिए मोदी सरकार से हस्तक्षेप की माँग की जा रही है। 2021 के दशहरा में कुरान के अपमान की अफवाह फैला कर कई मंदिरों और पूजा पंडालों को जलाया गया था।

इन सबको नज़रअंदाज़ कर भारत का वामपंथी गिरोह बांग्लादेश की अराजक भीड़ का महिमामंडन कर रहा है। शायद इन्हें पता नहीं है कि भारत में ऐसी स्थिति नहीं चलती। जहाँ तक तानाशाही की बात है, 1975 में इंदिरा गाँधी ने यहाँ ‘आपातकाल’ लगा कर विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार करवाया था और उनके बेटे संजय गाँधी ने कइयों की जबरन नसबंदी कराई थी। आखिरकार उन्हें चुनाव कराना पड़ा और उसमें उनकी बुरी हार हुई। जन-आंदोलन से निकली ‘जनता पार्टी’ जब ठीक से शासन नहीं कर पाई तो 1980 में उसकी भी बुरी हार हुई।

मजबूत है भारत का लोकतंत्र, यहाँ चुनाव मतलब उत्सव

जो लोग ये दिवास्वप्न देख रहे हैं कि भारत में बांग्लादेश जैसी स्थिति आ जाएगी, उन्हें ये देखना चाहिए कि यहाँ जनता सामूहिक नाराज़गी का जवाब चुनावों में देती है। भले ही लोकसभा चुनावों के लिए 5 साल इंतज़ार करना पड़े, लेकिन बीच में अलग-अलग राज्यों के चुनाव आते हैं और जनता के पास जवाब देने के कई मौके होते हैं। सत्ताधारी पार्टी राज्यों के चुनाव में हारती है तो वो जनता की भावनाओं को समझ कर उस अनुरूप काम करती है। नहीं करेगी, तो सत्ता किसी और को मिल जाएगी। भाजपा भले केंद्र में 10 वर्षों से सत्ता में है, बीच में उसने बिहार और हिमाचल प्रदेश से लेकर कई चुनाव हारे।

दूसरी बात, भारत में विकास कार्य काफी तेज़ी से हो रहा है। कोरोना के दौरान 100 से अधिक देशों को भारत ने वैश्विक महामारी से निपटने के लिए वैक्सीन भेजी। देश सड़कों के निर्माण के मामले में रिकॉर्ड बना रहा है, यहाँ रेल नेटवर्क को दुरुस्त किया जा रहा है, अब महिलाएँ मिट्टी के चूल्हे पर भोजन नहीं पकातीं क्यों ‘उज्ज्वला’ के तहत उन्हें गैस सिलिंडर मिलता है, शत-प्रतिशत गाँवों में बिजली पहुँची है, हर घर नल से स्वच्छ जल पहुँच रहा है, करोड़ों घर बन रहे हैं ग़रीबों के, व्यवसाय करने के लिए ऋण दिए जा रहे हैं, यहाँ कई शैक्षिक संस्थान हैं अव्वल दर्जे के, जिनसे निकले युवा बड़ी नौकरियाँ पाते हैं।

बांग्लादेश में ये सब नहीं था। दूसरा बड़ा कारण है, भारत की अर्थव्यवस्था बड़ी विविधता वाली है। कृषि पर आधी से अधिक जनसंख्या निर्भर है, लेकिन यहाँ की उपजाऊ भूमि और किसानों को मिलने वाली सरकारी सहूलियतों ने कृषकों का जीवन आसान किया है। IT सेक्टर में भारत एक हब है। यहाँ NCR, पुणे, हैदराबाद और चेन्नई जैसे कई शहर सॉफ्टवेयर कंपनियों की पसंद बन रहे हैं। बांग्लादेश में IT सेक्टर फल-फूल रहा था लेकिन सस्ते वर्कफोर्स के कारण। बांग्लादेश टेक्सटाइल-गारमेंट्स उद्योग पर निर्भर है, कोरोना के दौरान इस इंडस्ट्री को भी मार पड़ी।

बांग्लादेश और भारत के लोगों में भी फर्क है। बांग्लादेश एक इस्लामी मुल्क है, भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहाँ हिन्दू बहुलता में हैं लेकिन हर धर्म-पंथ-मजहब के लोग यहाँ खुल कर जीते हैं, अपनी परंपराओं का पालन करते हैं। भारत कई भाषाओं वाला देश है। हमने विविधता को आत्मसात किया है। हम इसके साथ ही जीते हैं। ऐसे में एक भारतीय खुद को समय एवं स्थान के हिसाब से अनुकूलित करने की क्षमता रखता है, वो समझौता कर के भी रह सकता है। क्योंकि, उसे पता है कि कठिन समय लंबे नहीं चलते। यही कारण है कि भारत में क्रूर शासकों को हमेशा सत्ता से बेदखल होना पड़ा, या उनका प्रभाव घट गया। हालाँकि, कभी लाख-करोड़ लोग एक साथ अराजक नहीं हुए।

भारत की लोकतांत्रिक संस्थाएँ स्वायत्त हैं। सबसे पहले यहाँ की न्यायपालिका की बात कर लीजिए, कई फैसले आपको सरकार के खिलाफ जाते हुए दिखेंगे। यहाँ की बहुमत वाली आबादी को भी अपने आराध्य देवता के जन्मस्थान पर मंदिर के लिए 500 वर्ष संघर्ष करना पड़ा। ED, CBI और IT जैसी संस्थाओं पर पक्षपात के आरोप ज़रूर लगते हैं लेकिन ये कोरी राजनीति का हिस्सा होते हैं और अंतिम फैसला अदालत में ही होना होता है। यहाँ की सेना एक पदक्रम वाले अनुशासन का पालन करती है, उनका प्रशिक्षण ऐसा होता है कि वो देशहित में कार्य करते हैं, तख्तापलट जैसी चीजें यहाँ की विचारधारा में ही नहीं है।

भारत में चुनाव निष्पक्ष होते हैं, इसके लिए चुनाव आयोग जैसी संस्था है। यहाँ गाँवों में वार्ड से लेकर राजधानी में राष्ट्रपति तक के चुनाव बड़े ही पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया के तहत होते हैं। चुनाव भारत में एक उत्सव है, भले ही ये पंचायत का हो या प्रधानमंत्री का। हर कोई हिस्सा लेता है। बांग्लादेश में चुनावी प्रक्रिया ही सवालों के घेरे में थी, लोगों में वोट डालने का उत्साह भी नहीं था। स्थानीय चुनावों में तो वहाँ 35% मतदाता भी नहीं निकले। भारत में सहकारी संस्थाओं से लेकर वकील संघों तक में, हर जगह चुनाव होते हैं। भारत लोकतंत्र को जीता है। बांग्लादेश जैसे मुल्कों में ये नहीं होता।

नहीं, भारत नहीं बन सकता पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका या म्यांमार

भारत की संसद में किसी भी मुद्दे पर लंबी बहस होती है और जनता इसका लाइव प्रसारण देखती है। संसद में दो सदन हैं, ऐसे में हर बिल को पारित कराना एक बड़ी चुनौती होती है। पूरी की पूरी स्क्रूटनी से सब कुछ गुजरता है। मीडिया की वजह से जनता की नज़र हर एक चीज पर होती है। यहाँ प्रमुख सोशल मीडिया मंच प्रतिबंधित नहीं हैं, हर कोई अपनी राय रखता है। बांग्लादेश में समय-समय पर फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म्स बैन किए जाते रहे हैं। भारत में समाचारपत्रों के कॉलमों से लेकर टीवी की बहस और सोशल मीडिया के ट्वीट्स तक, पक्ष-विपक्ष में रोज लाखों लोग अपनी राय रखते हैं।

1991 हो या फिर 2008, ऐसा नहीं है कि भारत पर वैश्विक आर्थिक तंगी का प्रभाव नहीं पड़ा लेकिन कभी उदारीकरण तो कभी वित्तीय पैकेजों के माध्यम से हमेशा इसे नियंत्रित किया गया। यहाँ हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की अलग-अलग अर्थव्यवस्था है, अलग-अलग भौगोलिक परिस्थितियाँ हैं, अलग-अलग उद्योग-धंधे हैं और यहाँ तक कि खेती की मिट्टी भी अलग-अलग है। इस कारण कोई एक समस्या पूरे देश को बुरी तरह प्रभावित नहीं करती। 1980 के दशक में पंजाब में खालिस्तानी आतंकद हो या फिर जम्मू कश्मीर में इस्लामी आतंकवाद, हमारे सुरक्षा बल उससे निपटने में सक्षम होते हैं

हम श्रीलंका की तरह कर्ज में डूबे हुए नहीं हैं, न ही पाकिस्तान की तरह महँगाई हमें मार रही है और हमें कटोरा लेकर भीख के लिए घूमना पड़ रहा है। म्यांमार की तरह यहाँ सेना चुनी हुई सरकार को अपदस्थ नहीं करती। बांग्लादेश के हालात आप देख ही रहे हैं। हाँ, भारत में ‘किसान आंदोलन’ हुए, अब जातियों के जरिए लड़ाई की साजिश रची जा रही है, लेकिन हमेशा भारत की राजनीति और यहाँ की सुरक्षा एजेंसियों के पास इन सबसे निपटने के तरीके होते हैं। भारत, बांग्लादेश नहीं है। ये पाकिस्तान नहीं है, अरब नहीं है, म्यांमार नहीं है, पाकिस्तान नहीं है।

हाँ, पाकिस्तान और बांग्लादेश ज़रूर कभी भारत हुआ करते थे। भारत में हजारों वर्ष पूर्व भी गुरुकुलों में अनुशासन सिखाया जाता था, राजा-महाराजा भी ऋषि-मुनियों के सामने अपना मुकुट उतार कर सिर झुकाते थे। पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों ने उस संस्कृति को छोड़ कर बाहरी इस्लामी संस्कृति को आत्मसात किया, इस कारण वो अनुशासन भूल गए। हर देश में सत्ताधीश मलाई चाटते हैं, लेकिन पाकिस्तान-बांग्लादेश जैसे देशों में जनता को लूट कर यूरोप में संपत्ति जुटाने का चलन है। भारत की महान संस्कृति के अंश यहाँ की मिट्टी में रचे-बसे हैं, वो हमेशा हमें सही राह दिखाते हैं।

जहाँ तक गिरोह विशेष की बात है, जब 2011 में ‘अरब स्प्रिंग’ आया था तब भी वो भारत में अराजकता के सपने देख रहे थे। आज क्या स्थिति है? सीरिया ISIS का गढ़ बन गया, यमन में हूती और सरकार लड़ रहे, ट्यूनीशिया में PM को बरख़ास्त कर के संसद भंग कर दी गई, मिस्र में राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी को फ़ौज ने भगा दिया, बहरीन में अल-खलीफा परिवार के खिलाफ बोलना अपराध है और लीबिया में कई इस्लामी गुट आपस में लड़ रहे हैं। अराजकता से ये कैसा प्रेम है इस गिरोह को? वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ हिंसा भड़काने में ये कई दिनों से लगे हुए हैं।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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