Sunday, November 17, 2024
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वामपंथियों ने तिरंगे से बना ली दूरी, नेहरू तक सीमित रहे कॉन्ग्रेसी: जिस सरकार ने लोगों को दिए 1.26 करोड़ मकान, उस पर ‘घर वाला तंज’ क्यों?

एक राष्ट्रीय अखबार में लंबे समय से कार्टून बना रहे एक कार्टूनिस्ट ने तो अपने एक कार्टून के माध्यम से 'हर घर तिरंगा अभियान' का ही विरोध करने का प्रयास किया। उस कार्टून में लिखा था, "सर, इसे घर पर तिरंगा लगाना है और तिरंगा इसके पास है। घर माँग रहा है!"

एक तरफ पूरा राष्ट्र राष्ट्रीय गौरव व पूर्ण उत्साह से स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है, वहीं कुछ राष्ट्र विरोधी व तथाकथित बुद्धिजीवी इसका प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तरीकों से विरोध कर रहे हैं। उन्हें तिरंगा फहराने में भी तकलीफ होती है। स्वतंत्रता संग्राम में बलिदान हुए कई गुमनाम राष्ट्र नायकों के जीवन चरित्र को राष्ट्र के नागरिकों के सामने लाने पर भी उन्हें दिक्कतें हो रही है। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव में ‘हर घर तिरंगा’ अभियान को राष्ट्र की जनता ने बड़े ही उत्साह व गौरवमयी भाव से मनाया।

लेकिन, वहीं राष्ट्रीय पर्व के समय में भी कुछ लोग व तथाकथित बुद्धिजीवियों ने इसमें भी बेवजह विरोध किया व उनके द्वारा अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के नाम पर मीनमेख निकाला गया। एक राष्ट्रीय अखबार में लंबे समय से कार्टून बना रहे एक कार्टूनिस्ट ने तो अपने एक कार्टून के माध्यम से ‘हर घर तिरंगा अभियान’ का ही विरोध करने का प्रयास किया। उस कार्टून में लिखा था, “सर, इसे घर पर तिरंगा लगाना है और तिरंगा इसके पास है। घर माँग रहा है!”

वे अपने इस कार्टून में मकान की जगह घर लिख गए। उन्हें पता होना चाहिए था कि घर व मकान में बड़ा अंतर होता है। लेकिन, लगता है कि उन्होंने यह जानबूझकर लिखा। मकान को परिवार के सदस्य घर बनाते है, सरकारें व उनकी योजनाएँ नहीं। अब जब पश्चिमी संस्कृति का अनुसरण करके सोचोगे तो आपकी कला का यही पक्ष उभरकर सामने आएगा। तिरंगा अभियान पर इतना हल्का कार्टून बनाकर ये कार्टूनिस्ट क्या संदेश देना चाह रहे थे?

वैसे भी तिरंगा फहराने के लिए राष्ट्र प्रेम चाहिए, ना कि कोई स्थान विशेष। जो जहाँ है व जिस स्थान पर अपने जीवन का कर्तव्य निभा रहा है, वहीं पर सम्मान पूर्वक तिरंगा फहराया जा सकता है। उसके लिए ऐसे बचकाने बहाने बनाने की जरूरत नहीं है। वहीं उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के आँकड़ों के बारे में व इस योजना के द्वारा कितने ही गरीब व बगैर आवास के रह रहे लोगों को मिले आवास (मकान) के विषय में भी पहले तथ्यात्मक जानकारी प्राप्त करना चाहिए था।

लेकिन, लगता है अपनी कला के माध्यम से विरोध के लिए सिर्फ विरोध करना उनका उद्देश्य बन गया है। यदि देश के नागरिक के आवास (मकान) पर बात करना भी है तो पहले यह तथ्य देख लेना चाहिए कि प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत पिछले आठ वर्षों में लाखों भारतीयों को आवास दिया गया है। एक रिपोर्ट व खबर के अनुसार, “केंद्र सरकार द्वारा सबको आवास देने का लक्ष्य है, जिसके तहत प्रधानमंत्री आवास योजना की शुरुआत हुई। आँकड़ों के मुताबिक, अभी तक 1.26 करोड़ घर बनाए जा चुके हैं, जिसमें करीब सवा लाख रुपये तक की आर्थिक मदद दी जा रही है।”

शहरी क्षेत्र में इस योजना के अंतर्गत इससे भी ज्यादा मदद दी जाती है। यह सब धरातल पर जाकर आसानी से देखा जा सकता है व इसकी खबरें राष्ट्रीय मीडिया में आसानी से उपलब्ध है। राष्ट्रीय गौरव के इस पर्व पर इस तरह से विरोध करना किस तरह से सही व तर्कसम्मत है? राष्ट्रीय पर्व पर यही एक घटना नहीं हुई। कॉन्ग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल ने भी तिरंगा अभियान को सिर्फ नेहरू तक ही सीमित करने का प्रयास किया। उसने अपने सोशल मीडिया मंचों (हैंडलो) पर नेहरू के हाथ में तिरंगा वाला फोटो लगाकर ही इस गौरवमयी राष्ट्रीय अभियान को हल्का व सीमित करने का संदेश दिया।

वहीं इसी पार्टी ने अमृत महोत्सव के समय में काले वस्त्र पहनकर विरोध करने का नया तरीका अपनाया। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव को विपक्ष के कुछ नेताओं ने भाजपा की नाटक-नौटंकी तक बता दिया। भारत में वामपंथियों की कम्युनिस्ट पार्टी ने तो तिरंगा अभियान से पूर्ण रूप से दूरी बनाकर रखी। राष्ट्रीयता व राष्ट्रीय पर्व के मामलों में वामपंथियों का यह स्थायी चरित्र शुरू से देखने में आया है। वहीं इस अभियान के तहत देखा गया है कि भारत के कोने-कोने से तिरंगा फहराने की स्वीकार्यता उत्साह से आ रही थी व भारत के नागरिकों ने इसमें बढ़ चढ़कर भाग लिया।

इससे यही समझ आ रहा है कि विपक्ष भी टुकड़े टुकड़े गैंग का साथ देकर स्वयं टुकड़े टुकड़े हो गया है। राष्ट्र का नागरिक राष्ट्रीय एकता का महत्व समझ रहा है। इसलिए जनता अब टुकड़े-टुकड़े गैंग के बहकावे में नहीं आने वाली हैं। खैर, राष्ट्र के लिए प्रेम व समर्पण हृदय से होता है। सरकार व राजनीतिक दलों की किसी नीति या योजना के कारण नहीं। यह बात हमारे देश के वामपंथी जाने कब समझेंगे। इधर लंबे समय से देखने में आया है कि राष्ट्रीय पर्व व स्वाभिमान में भी देश के कलाकारों व लेखकों (खासकर वामपंथीयों) का एक धड़ा बेवजह विरोध का कोई न कोई मनगढ़ंत तरीका निकालता रहा है। यह उनकी 75 वर्ष से ना जाने वाली बीमारी हो गई है।

(लेखक भूपेंद्र भारतीय मध्य प्रदेश में अधिवक्ता हैं)

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