मीडिया में एक फोटो काफ़ी वायरल हो रही है। कहा जा रहा है कि यह फोटो सांप्रदायिक सौहाद्रता की नई परिभाषा तय करेगी। इस ‘ऐतिहासिक’ चित्र में ईसाईयों के सबसे बड़े पादरी पोप फ्रांसिस और इस्लाम के सर्वोच्च मौलवियों में से एक इमाम शेख अहमद अल-तैयब एक-दूसरे को चुम्मी लेते हुए दिख रहे हैं। इस्लाम की जन्म-धरती यानी कि अरबी प्रायद्वीप का पहली बार दौरा कर रहे पोप फ्रांसिस और वहाँ के इमाम ने एक दस्तावेज पर भी हस्ताक्षर किए। बता दें कि इमाम शेख अहमद को इस्लामिक जगत में बड़े सम्मान से देखा जाता है। वह सुन्नी इस्लाम के प्रतिष्ठित मदरसे अल-अजहर के इमाम हैं।
ऐतिहासिक इस्लाम-ईसाई गठजोड़ की नई परिभाषा रचने की कोशिश कर रहे शीर्ष मौलवी और पादरी के इस क़दम की पड़ताल करने से पहले जरूरी है कि उनके द्वारा हस्ताक्षरित दस्तावेजों में कही गई बातों पर एक नज़र दौड़ाई जाए। इस दस्तावेज में कहा गया है कि वेटिकन और अल-बसर साथ-साथ ‘कट्टरवाद (Extremism)’ से लड़ेंगे। उन्होंने युद्ध, अत्याचार एवं अन्याय से पीड़ित व्यक्तियों के नाम पर शपथ लिया और ‘खण्डशः लड़े जा रहे तृतीय विश्व युद्ध’ को लेकर भी चेतावनी जारी की।
उस दस्तावेज में कहा गया है:
“हम पूरी तरह से घोषणा करते हैं कि धर्मों को कभी भी युद्ध, घृणास्पद रवैये, शत्रुता और अतिवाद को नहीं उकसाना चाहिए, न ही उन्हें हिंसा या खून बहाना चाहिए।”
चर्च-पीड़ितों के नाम पर भी शपथ ले लेते पोप
2 वर्ष पहले से शुरुआत करते हैं। बात नवंबर 2016 की है। एक स्वीडिश पत्रकार ने जब पोप से महिलाओं को पादरी बनाने के बारे में पूछा, तब पोप ने टका सा जवाब देते हुए कहा कि एक महिला कभी भी रोमन कैथोलिक चर्च में पादरी के रूप में कार्य नहीं कर सकती। यही नहीं, उन्होंने महिलाओं पर लगे इस प्रतिबन्ध को चिरकालिक बताया और कहा कि इसमें बदलाव की कोई संभावना नहीं है। जिस धर्म के सर्वोच्च अधिकारियों और धर्मगुरुओं की महिलाओं के प्रति ऐसी राय हो, वहाँ निचले स्तर पर क्या होता होगा, इस बारे में सोचा जा सकता है।
दुनियाभर के अनगिनत चर्च स्कैंडलों से जूझ रहे ईसाईयत की साख को बचाने की कोशिश में लगे पोप ने अगर इस्लाम से हाथ मिलाने की बजाय चर्च व्यवस्था और अनुक्रम पर ध्यान दिया होता, तो शायद आज चर्च पीड़ित महिलाओं ने राहत की साँस ली होती। बिशप फ्रांको मुलक्कल के ख़िलाफ़ आवाज उठाने वाली ननों के साथ क्या किया गया, यह जगज़ाहिर है। बलात्कार के आरोप में गिरफ़्तार होकर ज़मानत पर बाहर आए उस बिशप का जिस तरह से स्वागत किया गया, इसकी ख़बर पोप तक जरूर पहुँची होगी।
धारणा है कि दुनियाभर के चर्च में बिना वेटिकन की इजाज़त के एक पत्ता भी नहीं हिलता। हर एक ख़बर वेटिकन तक पहुँचती रहती है, वेटिकन के दिशानिर्देश आते रहते हैं- जिनका पालन कर चर्च प्रशासन अपना कार्य करता है। ऐसे में, भारतीय नन के साथ बलात्कार के आरोपों पर बिशप के ख़िलाफ़ एक शब्द भी नहीं बोलना- यह वेटिकन के अंदर पल रही असुरक्षा की भावना को दिखाता है। चर्च ने पीड़ित नन और उसका साथ देने वाली अन्य ननों को जिस तरह से प्रताड़ित किया, उन पर केस वापस लेने के लिए दबाव बनाया गया, उनका स्थानांतरण कर दिया गया, डराया-धमकाया गया।
ऐसा नहीं है कि ये ख़बरें सिर्फ़ चर्च या गाँव-शहर तक सिमट कर रह गईं। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी इस ख़बर को चलाया। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में तो यहाँ तक कहा गया कि वेटिकन को एशिया में ननों के यौन शोषण के बारे में पूरी जानकारी है, लेकिन वो कोई कार्रवाई करना मुनासिब नहीं समझते। ऐसी एक-दो घटनाएँ नहीं हैं। बहुत सारी हैं। अव्वल तो यह कि चर्च दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करना तो दूर, उलटा उन्हें बचाने के लिए हरसंभव तिकड़म आजमाता है।
Neither the Vatican has removed Franco Mulakkal, an accused of raping nuns , from Bishop nor Kerala police has arrested him . This exposes the attitude of both Pope and @vijayanpinarayi towards women and sexual crime .
— Prof Rakesh Sinha (@RakeshSinha01) September 14, 2018
पोप ने युद्ध, अत्याचार और अन्याय के पीड़ितों के नाम पर शपथ लिया और उनके लिए दुःख जताया, ऐसे में उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या पादरियों के व्यभिचार, चर्च प्रशासन के अत्याचार और वेटिकन के अन्याय से पीड़ित ननों के लिए उनके मन में किसी प्रकार का दुःख है भी या नहीं? अपने-आप को मॉडर्निटी का वाहक और आधुनिकता का झंडाबरदार मानने वाले समुदाय में इस तरह की घटनाओं का होना और उसे जानबूझ कर नज़रअंदाज़ किया जान- इसके क्या मायने हो सकते हैं?
कौन सा धर्म घृणा को उकसा रहा है?
दस्तावेज में अतिवाद या कट्टरवाद के ख़िलाफ़ बात करते हुए दोनों धार्मिक नेताओं ने कहा कि धर्म को इस तरह की घृणा को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। धर्म द्वारा घृणा फैलाए जाने की बात करते समय अगर पोप शायद अमेरिका में हिन्दू मंदिरों में तोड़-फोड़ किए जाने को लेकर भी कुछ कह देते, तो शायद लगता कि वो सचमुच इस मामले में गंभीर हैं। ज्ञात हो कि लुईविले स्थित स्वामीनारायण मंदिर में एक ईसाई कट्टरवादी व्यक्ति ने तोड़-फोड़ किया और मूर्ति को भी क्षति पहुँचाई।
उसने हिन्दू मंदिर के दीवारों पर ईसाई धर्म से जुड़ी लाइन लिखी और भगवान स्वामीनारायण की मूर्ति को क्षति पहुँचाई। मूर्ति की आँखों को काले रंग से पोत दिया गया। पुलिस के अनुसार, दीवारों पर ‘एक ही गॉड- जीसस’ जैसे वाक्य लिखे पाए गए। पुलिस का कहना है कि यह हेट क्राइम है। वैसे, यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका में किसी हिन्दू मंदिर को क्षति पहुँचाई गई हो। इस से पहले 2015 में 5 हिन्दू मंदिरों में तोड़-फोड़ की गई थी और ‘बाहर निकलो’ जैसे नारों से दीवार भर दिए गए थे।
दुनिया को सौहार्द सिखाने चले पोप को सबसे पहले अपना घर दुरुस्त करना चाहिए। जिस तरह से आधुनिक देशों में भी धर्म प्रेरित हिंसा की आदतें बढ़ रही हैं, उस से पता चलता है कि ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए क्या किया जा रहा है। अतिवाद या कट्टरवाद या एक्सट्रिमिज्म से लड़ने की बात करने वाले पोप को हिन्दू मंदिरों पर लगातार हो रहे हमले की निंदा करनी चाहिए। अगर वो ऐसा नहीं करते हैं, तो मंच पर चुम्मा-चाटी करने से शायद ही कोई परिणाम निकले।
क्या चुम्मा-बंधन से कट्टरवाद का अंत हो जाएगा?
अगर हम इस्लामिक कट्टरवाद के उदाहरण देने लग जाएँ, तो शायद एक दशक का समय भी कम पड़ जाए। लेकिन इसे एक विडम्बना कहें या संयोग, या फिर चुम्मा गैंग को आइना- जब मौलवी साहब पोप की चुम्मी ले रहे थे, उसी दौरान एक ऐसी ख़बर आई, जो उनके दस्तावेज, समझौते और बड़ी-बड़ी बातों की पोल खोल दे। इमाम शेख अहमद जिस सुन्नी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, उसी समुदाय बहुल देश पकिस्तान के सिंध प्रांत में एक मंदिर में आग लगा दी गई।
सिंध के खैरपुर जिला स्थित श्याम सुन्दर सेवा मण्डली मंदिर में कट्टरवादियों (आतंकी कहें तो बेहतर रहेगा) ने रविवार (फरवरी 3, 2019) को आग लगा दी। उस दिन शाम को आतंकी मंदिर में घुसे और उन्होंने मूर्तियों के साथ-साथ भगवद्गीता और गुरु ग्रन्थ साहिब जैसी पवित्र पुस्तकों को जला डाला। इस घटना के बाद वहाँ का हिन्दू समुदाय भय एवं निराशा के माहौल में जी रहा है। इस्लामिक कट्टरवाद से पीड़ित विश्व के कई देश आज खून-ख़राबे से पीड़ित हैं। स्थिति में सुधार लाने के लिए चुम्मा-चाटी नहीं, निचले स्तर पर जाकर गंभीरता से शांति का सन्देश फैलाने की ज़रूरत है। रविवार को यह घटना हुई, और सोमवार को इमाम साहब ने पूजा स्थलों की सुरक्षा का प्रण लिया।
ज़मीन से जानबूझ कर अनजान हैं पोप और इमाम
पोप और इमाम ने अपने समझौते में ‘धार्मिक स्थलों की सुरक्षा’, ‘सहिष्णुता की संस्कृति का प्रचार’ और ‘आस्था की स्वतन्त्रता’ की बात कही है जबकि ज़मीनी स्तर पर दोनों ही धर्मों से ये तीनो ही चीजें गायब होती चली जा रही हैं। फतवों के इस दौर में हर एक प्रक्रिया, कार्य और कार्यक्रम को लेकर अजीबोगरीब नियम बने हुए हैं या फिर बना दिए जाते हैं, जो आधुनिकता ही नहीं बल्कि संबंधित धर्म का भी मखौल उड़ाते हैं। क्या इमाम अल-तैयब इस बात की गारंटी लेंगे कि इस्लाम में चुम्मा-चाटी पर कोई फतवा नहीं है? इस्लाम में समलैंगिकता के लिए कोई जगह है या नहीं?
अगर इन सब सवालों का ऊपर से जवाब नहीं मिलता है, तो नीचे बैठे मौलवियों की दुकान चलती रहेगी। जब तक पोप पाँच सितारा मंचों की जगह अनुयायियों के बीच उतर कर उन्हें सहिष्णुता का पाठ नहीं पढ़ाएँगे, तक तक हिन्दू मंदिरों पर हमले जारी रहेंगे। लेकिन पोप भला सहिष्णुता का पाठ क्यों पढ़ाने निकले, जिस धार्मिक न्याय-व्यवस्था में ईश्वर की सेवा करने वाली ननों के लिए ही न्याय की कोई जगह नहीं है, वहाँ कुछ और उम्मीद पालना बेमानी है।