लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं राहुल गाँधी में बेचैनी बढ़ती ही जा रही हैं। वो जनता को तरह-तरह के वादे करके लुभाने की पुरज़ोर कोशिशें कर रहें हैं। कभी ग़रीब को ढ़ाल बनाने वाले राहुल न्यूनतम आय का वादा करते दिखाई पड़ते हैं तो कभी किसानों के नाम पर कर्ज़माफ़ी के मुद्दे को बार-बार दोहराते दिखाई पड़ते हैं।
चुनावों के समय में इतनी सक्रियता दिखाने वाले राहुल गाँधी भूल जाते हैं कि जिन ग़रीबों को न्यूनतम आय का सपना दिखाकर, उनकी सहानुभूति और वोट पाने की आस लगाएँ बैठे हैं, उन्हीं गरीबों के जीवन से ग़रीबी हटाने का वादा एक बार उनकी दादी ‘इंदिरा’ भी कर चुकी है।
1971 में इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा भुनाया गया था। लेकिन, आज 49 साल बाद भी देश में ग़रीबी हट नहीं पाई है। इसका दोष अगर कॉन्ग्रेस को न दिया जाए तो और किसे दिया जाए। परिवार द्वारा चलाई रीत को आगे बढ़ाते हुए, अब राहुल इसी ग़रीबी से राहत दिलाने का सपना दिखाकर देश के लोगों को न्यूनतम आय का और कर्ज़माफी का लॉलीपॉप दे रहे हैं। ताकि चुनाव के परिणामों तक उसके रस में जनता डूबी रहे।
कुछ दिन पहले राहुल गाँधी ने ग़रीबों के लिए न्यूनतम आय की घोषणा की और पी चिदंबरम ने उस पूरी घोषणा में लगने वाला बजट ₹5 लाख करोड़ का खेल बताया। लेकिन केंद्र सरकार ने इस लागत को खारिज़ करते हुए साफ किया कि इस योजना 5 नहीं बल्कि 7 लाख करोड़ का ख़र्चा आएगा। समझने वाला अगर कोई शख्स समझे तो समझ आएगा कि सत्ता में आने के लिए झूठ बोलना तो यहीं से शुरू हो गया है। आगे वो क्या ठाने बैठे उसकी वो ही जानें?
अभी न्यूनतम आय की घोषणा को ढ़ंग से एक हफ़्ता भी पूरा नहीं हुआ है और राहुल किसानों के लिए भी वादे करने लगे। राहुल ने कहा है कि अगर वो सत्ता में आते हैं तो किसानों की कर्ज़माफी भी करेंगे और साथ ही खाद्य उद्योग को बढ़ावा भी देंगे।
आज राहुल हर कार्य को करने का आश्वासन देने से पहले यह जरूर कहते हैं कि ‘सत्ता में आते ही’ , ‘अगर सत्ता मे आए तो’ । यह सब देखकर लगता है कि आज कॉन्ग्रेस सरकार के भीतर की इंसानियत देश के प्रति इसलिए जग गई क्योंकि सत्ता हाथ में नहीं रही है।
अगर यह देशहित भावना और फिक्र कॉन्ग्रेस सरकार नागरिकों और उनके हालात पर पहले दिखाती तो शायद केंद्र सरकार तो दूर की बात है, राज्यों में भी कॉन्ग्रेस कभी सीट नहीं हारती। आखिर, आजादी से पहले अपनी भूमिका को कायम करने वाली कॉन्ग्रेस एकमात्र पार्टी है, यह कम बात थोड़ी है, जनता में विश्वास बनाने के लिए। लेकिन, कॉन्ग्रेस से वो भी नहीं हो पाया। घोटालों और भ्रष्टाचार से ओत-प्रोत कॉन्ग्रेस अब खोया यकीन दोबारा पाना चाहती है। उसके लिए साम-दाम-दंड-भेद का कोई भी रास्ता अपनाना पड़े।
आज राहुल को समझने की ज़रूरत है कि हमारे देश की जनता इतनी समझदार है कि उन्हें मालूम है उनके हित में कौन काम कर रहा है और कौन उनकी जरूरतों को मज़ाक बनाकर छलनी कर रहा है। अभी हाल ही में मायावती ने न्यूनतम आय की घोषणा को मज़ाक बताते हुए, राहुल को सलाह दी थी कि वो पहले उन राज्यों पर गौर करें जहाँ पर उनकी सरकार है, ताकि देश में लोग उनपर विश्वास दिखा सके।
एक तरफ जहाँ राहुल सत्ता में आने के बाद कर्ज़माफी करने की बात कर रहे हैं वहीं पर मध्यप्रदेश में जहाँ इस समय कॉन्ग्रेस की सरकार है वहाँ के किसान परेशान होकर सामूहिक आत्महत्या की धमकी दे रहे हैं।
आपको याद दिला दें कि राज्यों में चुनाव जीतने से पहले राहुल रैलियों में यह वादा करते दिखाई पड़ते थे कि अगर वो चुनाव जीतते हैं तो 10 दिन के भीतर किसानों का कर्ज माफ़ कराएँगे। लेकिन चुनाव के तुरंत बाद मीडिया को दिए इंटरव्यू में राहुल जनता को समझाते नज़र आए कि यह इतना आसान काम नहीं हैं।
अपनी ही बातों से लगातार पलटने वाले और किसानों से दस दिन माँगकर महीना गुज़ार देने वाले राहुल अब फिर से वही सब करके जनता के साथ खेल खेलने का प्रयास कर रहे हैं।