Sunday, November 17, 2024
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चीन को क्लीन चिट देने वाले रवीश कुमार बन चुके हैं राष्ट्रीय आपदा

रवीश कुमार को हिंदुस्तान की झूठी पत्रकारिता पर रोना तो आ रहा है किंतु वो चीन में वायरस रिपोर्ट करने वाले रिपोर्टर के ग़ायब होने पर चुप रह जाते हैं। आख़िर क्यों ये कामरेड रूपी पत्रकार ख़ुद को सेक्युलर और विश्व राजनीति का एक्स्पर्ट तो कहते हैं किंतु वो 'उईघर' की चिंता नहीं करते?

वैश्विक विपदा की इस घड़ी में जब टीवी के पास नए एपिसोड या घटनाक्रम नहीं हैं तो वो पुराने एपिसोड और डॉक्युमेंट्री दिखा रहे हैं। लोगों का घर में मन लगा रहे सो आजकल पुराने प्रचलित कार्यक्रम भी प्रसारित हो रहे हैं। न्यूज़ चैनल के पास भी अपनी समस्याएँ हैं। ऐसे में जो चैनल जितना अधिक प्रयास करता है वो उतना ही अधिक फूहड़ साबित हो रहा है। कई न्यूज़ ऐंकर तो बने रहने को ख़बरों की टोह में गुलाटियाँ भी मार रहे हैं आजकल। इन सबके बीच एक चैनल और उसके प्रसिद्ध ऐंकर न केवल दिनों दिन ख़ुद को फूहड़ साबित कर रहे हैं बल्कि वायरस सरीखे ख़तरनाक भी होते जा रहे हैं।

जी हाँ, रवीश कुमार अब एक राष्ट्रीय आपदा बनते जा रहे हैं। नि:संदेह एक बड़ा वर्ग इनका फ़ॉलोअर है लेकिन उस हुजूम को अब नियमित तौर पर सिर्फ़ ज़हर का प्रसाद बाँट रहे हैं रवीश। माना कि रवीश जी के पास पड़े संविधान की कॉपी में मीडिया द्वारा सरकार की खिंचाई मात्र अवश्यंभावी गुण लिखा होगा।

खिंचाई, आलोचना और सरकार की ख़ामियों को उजागर करना ही चौथे खम्भे का काम है, ये भी लिखा होगा उसमें। किंतु सरकार के ख़िलाफ़ भड़ास मात्र निकालना है, विपक्ष और अपने समर्थकों की टोली में ज़हर ही फैलाना है ये कहाँ लिखा है, मुझे नहीं पता।

समय के साथ साथ जोकर बनते जा रहे रवीश कुमार कहते हैं- झूठी मीडिया से बचिए। पता नहीं किस बात की आंतरिक ख़ुशी चेहरे पर लिए वो कहते हैं- सरकारें कोरोना के प्रति अपनी नाकामी छुपाने को नई कहानियाँ गढ़ती हैं। उनके ताज़े प्राइम टाइम की चर्चा चहुँओर है।

अपनी आदत के मुताबिक़ हमेशा नकारात्मक और विपरीत दिशा में बात करने वाले रवीश जी इस कार्यक्रम में चीन का स्तुति गान गा रहे हैं। जिस वायरस की बात पर आज सारा विश्व चीन पर उँगली उठा रहा है, उस वायरस पर रवीश जी चीन को क्लीन चिट भी दे रहे हैं और कुछ विजुअल्स भी दिखा रहे की देखिए सब कुछ सामान्य है यहाँ।

मासूम और दयनीय है चीन: प्राइम टाइम में खुलासा

मुझे नहीं पता यह किस लालच या विवशता में हुआ होगा किंतु वामपंथी भर होने के एवज़ में यह प्राइम टाइम न केवल चीन को मासूम और दयनीय हालत को झेलने वाला बता रहा है बल्कि उसे सबसे सक्षम महामानव भी बता रहे। रवीश जी के गैंग में से एक कथित वैश्विक एक्स्पर्ट न केवल वुहान से वायरस फैलने को सम्भावना कह रहे हैं बल्कि वुहान से 1100 किलोमीटर उत्तर में बसे बीजिंग की क्लिप दिखाकर वो स्थिति को सामान्य बता रहे। दुनिया को पता है कि चीन के अंदर वायरस का प्रकोप वुहान के अलावा और कहीं न के बराबर फैला। किंतु एक्स्पर्ट महोदय को इस पर कोई शंका नहीं हुई।

वायरस कहाँ से फैला, किसने फैलाया ये अभी तक जाँच का विषय है, इसके बग़ैर न तो किसी को क्लीन चिट दिया जाना ठीक है और न ही आरोप तय करना। अच्छा होता एक्स्पर्ट महोदय चीन द्वारा वायरस के प्रसार को रोकने में टेक्नॉलजी के इस्तेमाल पर कुछ कहते। अच्छा होता वो चीनी सरकार के ख़िलाफ़ उबल रहे ग़ुस्से पर बात करते। उन्होंने इस बात पर भी कोई बात नहीं कही की आख़िर क्यों WHO के द्वारा चीन में मरने वालों की संख्या अपडेट हुई? आख़िर क्यों चीन झूठे कन्जम्प्शन और प्रोडक्शन के डेटा दिखा रहा है दुनिया को?

मुझे समझ नहीं आता की आख़िर क्यों ये कामरेड रूपी पत्रकार ख़ुद को सेक्युलर और विश्व राजनीति का एक्स्पर्ट तो कहते हैं किंतु वो ‘उईघर’ की चिंता नहीं करते और न कभी ये कहते कि चीन में उइगरों को नमाज़ नहीं पढ़ने दिया जाता है। बल्कि चीन पर हो रहे इस बहस में भी इन लोगों को चिंता इस बात की होती रही कि यहाँ जमात के नाम पर क़ौम विशेष का नाम ख़राब किया जा रहा है।

कार्यक्रम में रवीश कुमार जी को हिंदुस्तान की झूठी पत्रकारिता पर रोना तो आ रहा है किंतु वो चीन में वायरस रिपोर्ट करने वाले रिपोर्टर के ग़ायब होने पर चुप रह जाते हैं। वो वहाँ होने वाले पत्रकारिता के नाटक पर कुछ नहीं कहते, जिसमें हर एक ख़बर सरकार के विशेष विभाग द्वारा फ़िल्टर होता है। भारत में पत्रकारिता की स्वघोषित मिसाल रवीश जी भारत में डॉक्टर पर हुए हमले पर अपने हिसाब की सही वजह ढूँढकर उसे जस्टिफ़ाय करने लगते हैं।

यहाँ तक कि साधुओं की हत्या पर भी वो एक लाइन कह कर हें हें हें करके निकल जाते हैं कि ये हत्या धोखे में हुई। पुलिस ने क्यों उन साधुओं को भीड़ के हवाले कर दिया ये सवाल भी वो सिर्फ़ इसलिए नहीं करते क्योंकि वहाँ भाजपा की सरकार नहीं है। बल्कि इस मामले में तो वो इसलिए ख़ुश हैं क्योंकि मामला अब तक मज़हबी साबित नहीं हुआ।

विषय पर वापस आते हुए हम चीन की बात करते हैं। जब किसी कार्यक्रम में हम चीन और कोरोना की बात करते हैं तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए की ताइवान ने WHO को 31 दिसम्बर को ईमेल के द्वारा चीन की त्रासदी के बारे में बताते हुए कुछ प्रश्न किए थे किंतु चीन के दवाब में उसका जवाब नहीं दिया गया। यदि चीन ख़ुद परेशान है तो फिर इस वैश्विक संकट में वो निष्पक्ष जाँच क्यों नहीं होने देता? एक्स्पर्ट और रविश जी को या तो विषय की जानकारी नहीं या फिर वो छुपा रहे हैं कि चीन ने अपने लैब में यह झूठ साबित किया है कि इटली और अमेरिका के वायरस की प्रजाति अलग और पुरानी है।

जो मोदी की तारीफ़ कर दे, वो सब रवीश कुमार की नज़र में बुरे

हालाँकि, ऐसा नहीं होगा क्योंकि अव्वल तो मैं उनकी महिमामंडन वाली मंडली का सदस्य नहीं हूँ, शक्ल से भी कामरेड नहीं लगता हूँ और फिर शाम के बाद नशे में डूब कर लम्बी लम्बी फेंकने का शौक़ भी नहीं है मुझे। रवीश कुमार जी ने इसी कार्यक्रम में एक लाइन में हिंदुस्तानी पत्रकारों के संक्रमण की बात भी की। उन्हें यह बात सिर्फ़ एक लाइन में इसलिए समाप्त करनी पड़ी क्योंकि ख़ुद वो पिछले लगभग एक महीने से घर से नहीं निकले हैं। क्योंकि, पत्रकार लॉबी अब उनसे जवाब माँगने लगी है कि अन्य निकायों में रोज़गार पर चिंता में दुबले होते रविश जी आख़िर क्यों अभी मीडिया में जाती नौकरी पर चुप हैं। आख़िर क्यों रवीश ख़ुद अपने चैनल में छोटे पत्रकारों की तनख़्वाह में देरी पर चुप हैं? क्या वो पत्रकारों के मामले में हैंडल करने का चीनी तरीक़ा अपना रहे हैं?

भड़ास निकालने की हद देखिए कि चूँकि ट्रम्प ने मोदी की तारीफ़ कर दी तो इसीलिए ट्रम्प की भी बुराई हो। कार्यक्रम में उपस्थित एक्स्पर्ट महोदय ट्रम्प पर अपनी ज़िम्मेवारी और असफलता से बचने को चीन पर आरोप लगाते हैं। आजकल बेरोज़गारी में अमेरिका की ख़बर अधिक दिखाने की होड़ में रविश जी अक्सर ये कहते हुए पाए गए की “न्यूयॉर्क के मेयर से सीखना चाहिए भारत के मुख्यमंत्रियों को, वो बहादुरी से रोज़ाना ट्रम्प से सवाल करते हैं। अपने यहाँ तो कोई प्रधानमंत्री को सवाल ही नहीं पूछता।”

भले मानस रवीश कुमार और उनके औंघाए विशेषज्ञ को थोड़ा पढ़ना चाहिए। ये लोग पत्रकारिता में 20 साल लगा आए लेकिन बस ऊपर-ऊपर या फिर अपने हित की बात करके निकल लेते हैं। अमेरिका की ख़बर को पढ़िए। वहाँ न्यूयॉर्क के मेयर को सबसे अधिक गाली पड़ रही है। और वो भी इस वजह से कि उसने राष्ट्रपति ट्रम्प के आदेश के बाद भी न्यूयॉर्क शहर में पाबंदियाँ लगाने में देरी की और उसी का परिणाम आज भुगत रहा है न्यूयॉर्क।

भाई, यदि कुछ विदेशी अख़बार पढ़कर आप लोग एक्स्पर्ट बन जाते हैं तो मैं आज से स्वयं को विदेश मामलों का पत्रकार घोषित करता हूँ। क्योंकि मैं अख़बार भी पढ़ता हूँ और इन जगहों के लोगों से कॉन्टैक्ट में भी हूँ। मैं वामपंथी नहीं हूँ और न ही कथित सेक्युलर ही, रवीश के महिमा मंडन में लम्बे आलेख भी नहीं लिख पाता हूँ और न ही क़ब्ज़ पीड़ित मुस्कान ला पाता हूँ चेहरे पर। किंतु दुष्कर देश चीन और पाकिस्तान के मित्र हैं सम्पर्क में, जो मुझे आपका झूठ पकड़ने में मदद कर जाते हैं। महोदय, आप अपने फ़ॉलोअर को बरगलाइए। वो उछल-उछल कर आपको वाह-वाह कहेंगे। बाकी, वो सब जो आपके छद्म अजेंडे को पहचान गए हैं वो आपकी खोल देंगे सर। और धनिया भी बो देंगे।

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Praveen Kumar
Praveen Kumarhttps://praveenjhaacharya.blogspot.com
बेलौन का मैथिल

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