जो जाग चुके हैं, TV या अख़बारों के ख़बरों को घोंट-घोंट के पी चुके हैं… उन्हें शुरू के तीन पैराग्राफ़ के बाद ख़बर पढ़नी है बस। सब समझ में आ जाएगा। जो पाठक अभी-अभी इंटरनेट कनेक्ट कर नींद तोड़ रहे हैं, उनके लिए ख़बर शुरू होती है कुछ ऐसे।
पश्चिम बंगाल (जो भारत में ही है, कोई अज्ञात टापू नहीं) की राजधानी कोलकाता में पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ के लिए CBI की टीम पहुँचती है। मामला होता है पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार का शारदा चिट फंड घोटाले में गड़बड़ी करने का। लेकिन वहाँ की मुख्यमंत्री (जो ‘लोकतंत्र’ की रक्षा के लिए धरना पर बैठ गईं) को यह बात अच्छी नहीं लगी और अपनी पुलिस से सीबीआई ऑफिसरों को ही अरेस्ट करवा दिया।
सीबीआई को इससे धक्का लगा और वो आज मतलब 4 फरवरी 2019 को पहुँच गई सुप्रीम कोर्ट। चीफ जस्टिस ने सुनवाई के लिए कल यानी 5 फरवरी की तारीख़ दे दी है। लेकिन सीबीआई को सबूत लाने की बात कह कर पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी भी दे दी है, अगर उन्होंने चिट फंड मामले में कुछ गलत किया होगा तो।
कल से लेकर आज तक यह था शारदा चिट फंड घोटाला-सह-CBI-सह-केंद्र सरकार-सह-राजनीति की मोटा-मोटी ख़बर। अब ख़बरें वो, जिसे ममता बनर्जी अपने चश्मे के बावजूद देख नहीं पा रही हैं। खबरें वो जिनका जिन्न आज नहीं तो कल उनका राजनीतिक करियर खत्म करे न करे, ब्रेक ज़रूर लगा देगी।
- शारदा चिट फंड घोटाला
- रोज़ वैली घोटाला
- नारद स्टिंग ऑपरेशन
शारदा चिट फंड घोटाला
शारदा चिटफंड घोटाला एक बड़ा आर्थिक घोटाला है। बड़ा मतलब – NDTV के अनुसार 4000 करोड़ रुपए, फ़र्स्ट पोस्ट के अनुसार 10,000 करोड़ रुपए और अमर उजाला के अनुसार 40,000 करोड़ रुपए की हेर-फेर। मतबल कोई निश्चित आँकड़ा नहीं। निश्चित आँकड़ा इसलिए नहीं क्योंकि इस घोटाले के तार न सिर्फ पश्चिम बंगाल बल्कि निकटवर्ती राज्य ओडिशा, असम, झारखंड और त्रिपुरा तक से जुड़े हैं।
इस घोटाले में TMC सहित कई बड़े नेताओं, उनकी बीवियों और ऑफिसरों के नाम भी जुड़े हैं। तृणमूल सांसद कुणाल घोष और श्रीजॉय बोस, पश्चिम बंगाल के पूर्व पुलिस महानिदेशक रजत मजूमदार, पूर्व खेल और परिवहन मंत्री मदन मित्रा और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की पत्नी नलिनी – ये कुछ हाई प्रोफ़ाइल नाम हैं। और यह कोरी-कल्पना नहीं है। शारदा समूह के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक सुदीप्त सेन ने 23 अप्रैल, 2013 को अपनी गिरफ्तारी के बाद इन लोगों की संलिप्तता कबूल की थी।
मसला इतना बड़ा और इतने लोगों के खून-पसीने की कमाई से जुड़ा कि साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को जाँच के आदेश दिए। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम पुलिस को मामले से जुड़ी जाँच में सहयोग करने का आदेश भी दिया था।
मजे़दार बात यह है कि शारदा घोटाला मामले में ही जो कॉन्ग्रेस और कॉन्ग्रेस के युवराज आज ममता बनर्जी के साथ खड़े हैं और CBI तथा केंद्र सरकार के विरोध में लप्पो-चप्पो कर रहे हैं, वही 2014 में ममता के ख़िलाफ़ ज़हर उगल चुके हैं। इंटरनेट के इतिहास में सब कुछ दर्ज़ है।
20 Lakh people lost their money in Chit fund scam in West Bengal : #RahulGandhi
— Congress (@INCIndia) May 8, 2014
रोज़ वैली घोटाला
यह शारदा चिट फंड घोटाले से भी बड़ा है। फ़र्स्ट पोस्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल, असम और बिहार के लोगों से ठगी कर लगभग 15,000 करोड़ रुपए जमा किए गए थे। BBC की रिपोर्ट मानें तो रोज़ वैली ने आम जनता से 17,000 करोड़ रुपए इकट्ठा किए। वहीं ऑल इंडिया स्मॉल डिपॉजिटर्स असोसिएशन का मानना है कि यह घोटाला 40,000 करोड़ रुपए का है।
रोज़ वैली के मालिक गौतम कुंडू हैं। शारदा घोटाले की ही तरह, इसमें भी गरीबों ने ही निवेश किया, या यूं कहें कि गरीबों को ही टारगेट किया गया। पैसों के कलेक्शन के लिए रोज़ वैली ने फ़र्ज़ी तौर पर कुल 27 कंपनियाँ खड़ी कर ली थीं। पैसे लौटाने की बात तो दूर, कुंडू पर आरोप है कि उसने तृणमूल के कुछ नेताओं की मदद से इकट्ठा किए हुए पैसे का एक हिस्सा देश के बाहर भी भेजा। बदले में कुंडू उन लोगों को गाड़ियाँ, फ़्लैट और महंगे गिफ़्ट देता था।
तृणमूल सांसद और बीते जमाने में बांग्ला फ़िल्मों के सुपर स्टार तापस पाल रोज़ वैली के निदेशक भी थे। उन्हें सीबीआई ने गिरफ़्तार किया था। हालाँकि गिरफ़्तारी से पहले ही तापस पाल ने निदेशक के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। इनके अलावा TMC सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय को भी इस मामले में CBI गिरफ़्तार कर चुकी है। ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) ने मार्च 2015 में गौतम कुंडू को गिरफ़्तार किया था।
नारद स्टिंग ऑपरेशन
एक फ़र्ज़ी कंपनी से लाखों रुपए घूस के बदले उसे बिजनेस में मदद का आश्वासन देना – यही इस स्टिंग ऑपरेशन का मूल था। इस स्टिंग ऑपरेशन में TMC के सात सांसद, तीन मंत्री और कोलकाता नगर निगम के मेयर शोभन चटर्जी उस फ़र्ज़ी कंपनी का काम कराने के बदले में पैसे लेते नज़र आ रहे थे।
स्टिंग में नज़र आए बड़े चेहरों की बात करें तो मुकुल राय, सुब्रत मुखर्जी, सुल्तान अहमद, शुभेंदु अधिकारी, काकोली घोष दस्तीदार, प्रसून बनर्जी, शोभन चटर्जी, मदन मित्र, इक़बाल अहमद और फिरहाद हकीम शामिल थे।
इस पूरे मामले को ममता बनर्जी ने राजनीतिक साज़िश बताया था। मुख्यमंत्री की अपनी सीमा से पार जाते हुए ममता ने इस मामले पर कोलकाता हाईकोर्ट के फैसले को पक्षपातपूर्ण तक बता डाला था। ममता के तीख़े तेवर कब कम हुए थे जब इस मामले में सीबीआई जाँच के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगाई थी।
There is a Syndicate Raj in West Bengal.
— Congress (@INCIndia) April 23, 2016
A Mafia Raj. pic.twitter.com/wugd9mkEZ6
राजनीति में परमानेंट कुछ भी नहीं – न दोस्त, न दुश्मन
सत्ता में बने रहने के लिए ममता बनर्जी राहुल या अन्य विपक्षी पार्टियों का साथ चाह रही हैं जबकि राहुल या अन्य विपक्षी पार्टियाँ सत्ता में आने के लिए। ऐसे में चुनाव बाद समीकरण किसके पक्ष में होगा, कौन किसको आँखें दिखाएगा – कहना मुश्किल है। क्योंकि मूल में कुर्सी है। नाम लोकतंत्र का लिया जा रहा है। ऊपर-नीचे का ट्वीट पाठकों (ज्यादा उपयुक्त वोटरों के लिए) को याद रखना चाहिए। क्योंकि लोकतंत्र नेताओं और महागठबंधन से नहीं, बल्कि मतदाताओं से सशक्त होता है।
Mamata ji said that she would stop corruption. But, instead of taking action, she’s protecting those looting Bengal pic.twitter.com/1Osxhnaayb
— Congress (@INCIndia) April 19, 2016