बेगूसराय में पति अपनी पत्नी को रील बनाने से मना करता था, पत्नी नहीं मानी तो उसने तंग आकर उसकी बेरहमी से हत्या कर दी।
अलवर में एक महिला रील्स बनाती थी, लेकिन सोशल मीडिया यूजर्स उस पर भद्दे कमेंट करते थे, पति को अच्छा नहीं लगा तो उसने खुद आत्महत्या कर ली।
बिलासपुर में 22 साल का लड़का रील बनाने के लिए छज्जे पर चढ़ा, रील तो बन गई, लेकिन इसकी कीमत उस लड़के को जान गँवा कर चुकानी पड़ी।
गाजीपुर में एक लड़का रील बनाने के लिए रेलवे स्टेशन पर गया और किनारे खड़े होकर अपनी रील बनाने लगा। मनचाही रील तो उसके कैमरे में रिकॉर्ड नहीं हो सकी लेकिन ट्रेन से भिड़ने के कारण मौके पर उसकी मौत जरूर हो गई।
तकनीक के साथ बढ़ती दुनिया में आज रील्स का खुमार फैलता जा रहा है। लोगों के दिमाग में इसका बुखार इस कदर चढ़ा हुआ है कि वो भूल गए हैं कि ये प्लेटफॉर्म लोगों के मनोरंजन के लिए अस्तित्व में आया था। आज इस पर वीडियो बनाने के लिए लोग कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं।
ऊपर जो उदाहरण दिए गए हैं वो केवल चंद हैं। आप आए दिन मीडिया में ऐसी खबरें पढ़ सकते हैं जब रील के चक्कर में लोगों ने अपनी जान गँवाई या किसी ने अपना घर तोड़ लिया या किसी ने अपनों को छोड़ दिया… धीरे-धीरे ये हालात और बद्तर हो रहे हैं।
टिकटॉक का असर
कुछ लोगों को लगता होगा कि शायद ऐसा इंस्टाग्राम द्वारा लाए गए रील्स सेक्शन के कारण शुरू हुआ, लेकिन हकीकत यह है वीडियो कंटेंट के नाम पर आसक्त होने का चलन 2015-16 के बाद से शुरू हो गया था, जब एक चीनी एप्लीकेशन ने भारतीय बाजार में अपनी जगह बनाई। नाम था- म्यूजिकली। बाद में इस एप्लीकेशन का नाम आगे चलकर टिकटॉक हुआ।
2020 में LAC पर हुए चीन के साथ विवाद के बाद इस एप्लीकेशन को बैन कर दिया गया मगर तब तक इसका असर शहर के छोटे बच्चों से लेकर गाँव में रहने वाली महिलाओं पर हो चुका था। हर वर्ग के लोग इस पर अलग-अलग तरीके की वीडियो बनाते थे। मकसद सिर्फ फेमस होना था। शुरू में ये सब फिल्मों के डायलॉग या गानों पर लिप सिंक करने से शुरू हुआ मगर लोगों को जैसे जैसे इन प्लैटफॉर्म में संभावनाएँ दिखीं वो कंटेंट में अपनी विविधता लाते गए।
कुछ लोगों ने इन एप्लीकेशन का प्रयोग अपने टैलेंट को दुनिया के बीच पहुँचाने के लिए प्रयोग किया और नए मुकाम तक पहुँचे। वहीं कुछ लोग इस ऐप्लीकेशन का इस्तेमाल सिर्फ फॉलोवर बढ़ाकर फेमस होना समझ बैठे। अब इन फॉलोवर्स को बढ़ाने के लिए चाहे कुछ भी करना पड़े… यूजर्स ने सब शुरू करना किया। नतीजतन, ऐसी अश्लील सामग्रियों की संख्या अचानक से इन प्लेटफॉर्म पर बढ़ी जिसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था।
संस्कृति को तारतार होते देख कई लोगों ने समय-समय पर इसकी शिकायतें हुई, लेकिन इसका हल कुछ नहीं निकला उलटा इसका प्रभाव इतना व्यापक होता गया कि बाकी सोशल मीडिया ऐप्लीकेशन को अपने आप का अस्तित्व बचाने के लिए ऐसी तकनीक लानी पड़ी।
टिकटॉक बैन होने पर डिप्रेशन और आत्महत्या
खबरें पढ़ें तो पता चलेगा 2020 में जब चीनी एप्लीकेशन पर भारत सरकार ने बैन लगाया तो वीडियो बनाने वाले वर्ग में इतनी हताशा हुई कि कई जगह से सुसाइड और डिप्रेशन में जाने तक की खबरें आईं।
उस समय इंस्टाग्राम ने अपनी टारगेट ऑडियंस की जरूरत को समझा और अगस्त 2020 में मौका देखते हुए उस प्लैटफॉर्म को वीडियो प्लैटफॉर्म में कन्वर्ट कर दिया जिसे लोग 2020 से पहले पहले सिर्फ फोटो के लिए इस्तेमाल करते थे। टिकटॉक के बैन होने से जो वर्ग सोच में था कि वो अब क्या करेगा, वो फौरन इंस्टाग्राम पर शिफ्ट हो गया। उन्होंने अपनी टिकटॉक वाले कंटेंट को यहाँ पोस्ट करना शुरू किया।
इसके बाद यूट्यूब को भी समझ आ गया कि शॉर्ट वीडियो अपने प्लेटफॉर्म पर लाए बिना वो एक निश्चित वर्ग को अपनी ओर नहीं खींच सकते। नतीजतन वह बिन देरी किए सिंतबर 2020 तक अपना यूट्यूब शॉर्ट्स का सेक्शन मार्केट में ले आए। फिर, फेसबुक को भी नए यूजर्स की जरूरत देखते हुए मार्च 2021 तक फेसबुक रील का सेक्शन बाजार में लाना पड़ा और लोगों को विकल्प पर विकल्प मिलता गया।
दूसरों के जीवन से प्रभावित हो रहे लोग
इन प्लेटफॉर्मों पर फेमस होने वाले लोगों को आज के समय में इन्फ्लुएंसर कहा जाता है। इन्फ्लुएंसर यानी जो दूसरे व्यक्ति को अपने जीवन जीने के ढंग से प्रभावित करें, लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या सच में सोशल मीडिया के ये इन्फ्लुएंसर सामान्य लोगों पर सकारात्मक असर छोड़ रहे हैं या लोगों को नए तरह से बीमार बना रहे हैं?
जिन लोगों के जीवन जीने की क्वालिटी सोशल मीडिया के कारण सुधरी, उन्होंने अपना प्रचार इतने जोर शोर से किया कि लोग उस जिंदगी की ओर आकर्षित हो गए। उनके दिमाग में घर कर गया कि इन प्लेटफॉर्म पर कैसे भी फेमस होने पर पैसा मिलता है… इस सोच का असर क्या हुआ, नतीजा सामने है। आज लोग प्राइवेट मोमेंट्स को कंटेंट बनाकर परोस रहे हैं। उनके लिए छोटे कपड़े पहनना आधुनिकता हो गई है और पूजा पाठ करने की जगह उन कपड़ों को पहनकर शूटिंग करवाने की लोकेशन।
शुरू में इस पर विवाद कम हुआ क्योंकि लोगों को जानकारी ही नहीं खी कि आखिर लोग इस तरह की हरकत क्यों करते हैं, लेकिन धीरे-धीरे धार्मिक स्थल ऐसी हरकतों के खिलाफ सख्त हो रहे हैं। हाल का मामला है महाकाल मंदिर में लड़कियाँ रील बनाने पहुँच गईं, जब वहाँ मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने ऐसा करने से मना किया तो उन लड़कियों ने उन्हीं सुरक्षाकर्मियों की पिटाई कर दी।
मामले में FIR हो गई है। शायद कार्रवाई भी जल्द हो लड़कियों पर, लेकिन हमारे लिए चिंता की बात ये नहीं हैं कि इन लड़कियाँ ने ऐसा कैसे कर दिया, हमारे लिए चिंता का विषय यह है कि ऐसी तकनीकें हमारे अपने मानसिक संतुलन को किस हद तक बिगाड़ रही हैं कि हम न अपनों पर चिल्लाने से गुरेज कर रहे हैं न सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों पर हाथ उठाने से। हमारे लिए आसपास मौजूद लोगों से ज्यादा जरूरी रील पर आने वाले लाइक, कमेंट हो गए हैं। सबसे अलग दिखने की चाह में वो हरकत कर रहे हैं जो जानलेवा साबित हो सकती है। उन लोगों से इन्फ्लुेंस हो रहे हैं जिनके जीवन शैली और हमारे जीवन शैली में जमीन आसमान का फर्क हैं।
टिकटॉक ने बनाया मानसिक गुलाम
टिकटॉक भले ही अब भारत से जा चुका है, लेकिन इसने बाजार को चुनौती देने के साथ भारतीय समाज, यहाँ की संस्कृति के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है जिससे उभरना नमुमकिन सा लगता है। सरकार से लेकर बड़ी बड़ी कंपनियाँ जान चुकी हैं अगर सामान्य वर्ग तक अपनी पहुँच बनानी हैं तो माध्यम यही सबसे ज्यादा काम आएगा। यही वजह है कि प्रचार के तरीके बदल गए हैं। लोग अखबार या टेलीविजन पर आने वाले विज्ञापनों से इतना प्रभावित नहीं होते जितना एक रील उनपर अपनी छाप छोड़ती है। कोई न्यूज, न्यूज चैनल के माध्यम से इतनी नहीं वायरल होती जितनी मीम कंटेंट से लोगों तक पहुँच जाती है इसलिए ये तो जाहिर है कि इन प्लेटफॉर्म पर बंदिश लगाना लोगों को वर्चुअली गुलाम बनने का कोई ठोस उपाय नहीं है।
अगर तकनीक के साथ लोगों को बढ़ते हुए देखना है तो उनमें ऐसे प्लेटफॉर्म के प्रति जागरूकता लानी होगी। उन इन्फ्लुएंसर को ये बीड़ा उठाना होगा जिनके पास इतने फॉलोवर हैं कि वो अपनी बात दूर तक पहुँचा सकें। अपने कपड़ों, गाड़ियों को दिखाने से ज्यादा उन्हें समय-समय पर आम यूजर्स को समझाना होगा कि जितना इस रील सेक्शन का फायदा है उसे गलत ढंग से लेने पर नुकसान भी है। लोगों को खुद भी यह समझना होगा कि ये सब तकनीक का मायाजाल है- जो आज हैं, कल नहीं। इनपर आश्रित होकर जीवन में सब छोड़ देना हमें गर्त में ले जाएगा। जैसे टिकटॉक बैन हुआ अगर वैसे ही इन ऐप्लीकेशन पर कोई कसनी होती है तो सोचा है हम निजी जिंदगी में खुद के पास कितने लोगों को पाएँगे?