महिलाएँ घरों में काम करती हैं। महिलाएँ दफ्तरों में भी काम करती हैं। महिलाएँ सड़क निर्माण भी करती हैं और सड़क बनाने में अपना योगदान भी देती हैं। इन सारे कामों के बाद महिलाएँ घर की रोटी भी बनाती हैं। साथ-साथ महिलाओं को घर भी सँभालना है और बच्चे भी। महिलाएँ डॉक्टर भी हैं, महिलाएँ पुलिस भी हैं। इन सब जिम्मेदारियों के अलावा महिलाएँ वो हर एक काम कर रही हैं जिसके लिए हम इनको कोरोना वॉरियर्स कह रहे हैं।
कोरोना वॉरियर्स के तौर पर फ्रंट लाइन में खड़ी महिलाओं की कुछ झलकियाँ इस प्रकार हैं। पहले बात आशा वर्कर्स की करते हैं। आज देश के कई राज्यों में आशा वर्कर्स अपनी जान को जोखिम में डाल कर राज्य सरकारों के साथ मिलकर कोरोना वायरस से बचने के लिए लोगों को जागरूक कर रही हैं। उन्हें मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग के फायदे समझा रही है। इसके अलावा वे कोरोना के कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग को भी बख़ूबी अंजाम दे रही हैं।
इस कड़ी में दूसरा नाम भारत की आँगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का है। ये महिला कार्यकर्ता न केवल कुपोषण के ख़िलाफ़ लड़ रही हैं, बल्कि देश में कोरोना के प्रकोप को कम करने में भी जुटी हुई हैं। इनका सामान्य कर्तव्य ग्रामीण भारत भर में महिलाओं और बच्चों के पोषण में सुधार करना है, परंतु इस वायरस के आने के बाद से वे अब डोर-टू-डोर जाकर लोगों की ट्रैवल हिस्ट्री पता कर रही हैं।
इस वायरस के लक्षणों एवं इससे बचाव के उपायों पर लोगों को जागरूक करने काम कर रही हैं। इसके कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और बाहर से आए लोगों को क्वॉरंटीन करने का भी काम कर रही हैं। आज के समय में आशा वर्कर्स और आँगनबाड़ी महिला कार्यकर्ता कोरोना के खिलाफ लड़ाई में प्रशासन की आँख-हाथ-पाँव बनी हुई हैं। संक्षेप में कहें तो, ये “कम्युनिटी सर्विलांस” का कार्य कर रही हैं।
ऐसे में जब इन महिला कोरोना वॉरियर्स का सम्मान होना चाहिए तो स्थितियाँ ठीक इसके विपरीत नजर आ रही हैं। फील्ड में ड्यूटी के दौरान इन्हें लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है। कई जगहों पर आशा वर्कर्स के साथ बदसलूकी के मामले सामने आ चुके हैं।
जरा सोचिए! ये महिलाएँ अपने पूरे परिवार की देखभाल का जिम्मा उठाए हुए हैं। बाहर निकल अपना और अपने पूरे परिवार के लोगों की जान जोख़िम में डाल लोगों की मदद कर रही हैं और बदले में उन्हें क्या मिल रहा है। इस मुद्दे पर आज हम सभी को सोचने की जरूरत है।
बात यहीं खत्म नहीं होती है। इतना महत्वपूर्ण योगदान देने के बात भी महिलाओं पर घरेलू हिंसा कम नहीं हो रहे हैं। महिलाओं की यह परंपरागत पीड़ा है। वह पीड़ा जिसे वो उस देश में सदियों से जूझती चली आ रही हैं इस महासंकट के दौरान एक अजीब आँकड़ा सामने आया है कि महिलाओं के ऊपर अत्याचार तेजी से बढ़ गए हैं।
महिलाओं की स्थिति पर चिंता प्रकट करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि विश्व में कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते हुए संक्रमण का महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ा है, और इस वजह से सामाजिक असमानता में वृद्धि हुई है। एंटोनियो गुटेरेस ने महिलाओं पर बढ़ रही हिंसा पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि लोगों को महिलाओं के महत्व को समझना होगा।
अब आप जरा सोचिए! कोरोना संक्रमण की इस वैश्विक त्रासदी में महिलाएँ जहाँ बाहर पुरुषों की तुलना में वायरस का अधिक शिकार बन रही है, वहीं घर में वो प्रताड़ना भी झेल रही है। महिलाएँ जहाँ एक तरफ कोरोना जैसी महामारी से बुरी तरीके से प्रभावित हैं तो वही दूसरी तरफ लॉकडाउन की वजह से पुरुषों द्वारा महिलाओं पर घरेलू अत्याचार भी तेजी से बढ़े हैं।
भारत में इस मुद्दे को संज्ञान में लेते हुए भारतीय महिला आयोग तथा भारतीय स्त्री शक्ति जैसी समाज सेवी संस्थाओं द्वारा कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। भारतीय महिला आयोग के पास घरेलू हिंसा से जुड़े कई मामले दर्ज हुए। हालाँकि ये बात भी है कि भारतीय महिला आयोग ने कड़ी कार्रवाई करते हुए इस पर रोक लगाने के कई प्रयास भी किए हैं।
लेकिन क्या ये प्रयास काफी हैं? क्या ये प्रयास बिना महिलाओं की सहभागिता के सफल हो सकते हैं? जरा ठहरिए और सोचिए कि जननी के साथ हम क्या कर रहे हैं। वो जननी जो न केवल प्रसव पीड़ा झेल आपको पैदा करती है बल्कि इस त्रासदी के दौर में आपको बचाने के लिए घर और बाहर, अपना सब कुछ न्योछावर भी कर रही है। यहाँ तक कि अपनी जान भी।
आज हमें यह समझने की जरूरत है कि कोरोना वायरस से लड़ने में महिलाओं की भूमिका बेहद अहम है। ये एक महत्वपूर्ण इकाई के रूप में कार्य करती हैं, और इस संकट घड़ी में परिवार से लेकर समाज तक सभी को सुरक्षित रखने में अपना सफल योगदान दे रही हैं।
वर्षों पहले राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त ने लिखा था, “अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी।” सोचिए जरा कि आँचल के दूध को पीकर बड़ा हुआ समाज क्या महिलाओं के साथ इस त्रासदी में भी न्याय कर पा रहा है?
समाज में महिलाओं की स्थिति सदैव प्रथम है, आदि शक्ति की पूजा सबसे पहले होती है। शिव भी सती के लिए ही तांडव करते हैं। अर्धनारीश्वर रूप चराचर जगत को थामे हुए है। जननी “सृष्टि का मूल” है। कम से कम जिस देश में वेदों, पुराणों में महिलाओं को पूज्य माना गया है उस देश में तो महिलाएँ सताई न जाएँ।
मनुस्मृति के अध्याय 3 में उद्धृत श्लोक संख्या 56 यहाँ प्रासंगिक है,
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः
अर्थात, जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नहीं होती है, उनका सम्मान नही होता है, वहाँ किए गए समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं। आपने कई बार इसे सुना और पढ़ा होगा। लेकिन इसे फिर पढ़िए और मनन करिए, साथ ही उस नारी के प्रति श्रद्धा रखिए जो आपके लिए सब कुछ न्यौछावर कर रही है।