दंगल गर्ल जायरा वसीम द्वारा मजहब और करियर के बीच में लिया गया फैसला कल से मुझे भीतर तक बेचैन करता रहा। उन्होंने मजहब का हवाला देकर बॉलीवुड को अलविदा कहा। उनके द्वारा की गई घोषणा में बताया गया कि उनका एक्टिंग करियर उन्हें उनके मजहब से दूर कर रहा था, इसलिए उन्होंने ये कदम उठाया।
मालूम नहीं कि ये फैसला उनकी मर्जी से लिया गया है या उन्होंने किसी दबाव में आकर इसकी घोषणा की। लेकिन अगर वास्तविकता में जो वजह उन्होंने बताई, वही उनके फैसले का आधार है तो हम अंदाजा लगा सकते हैं कि यह स्थिति कितनी भयावह है। जहाँ इस्लामी मजहब में जन्मी दुनिया भर की लड़कियाँ अपने सपनों को पूरा करने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं, वहीं जायरा और उन जैसी लड़कियाँ आगे होते हुए भी खुद को पीछे की ओर ढकेल रही हैं।
मुझे दुख इस बात का नहीं है कि उन्होंने बॉलीवुड को छोड़ा, मुझे पीड़ा इस बात से है कि उन्होंने इसके पीछे मजहब को वजह बताया, दुख इस बात का है कि उन्होंने एक्टिंग को यह कह कर छोड़ा कि यह उनके मजहब के खिलाफ है। सोचिए, जिस मजहब को जायरा ने करियर छोड़ने के पीछे का कारण बताया है उसके चलते 2015 में महज 6 साल की फरहीन के सिर से दुपट्टा हटने के कारण उसके पिता जाफर हुसैन ने उसे जमीन पर पटककर मार डाला था। उसके कारण 2018 में हल्दवानी की रहने वाली शहनवाज की माँ की मौत के बाद उसकी पढ़ाई छुड़वा दी गई थी और इसी मजहब के कारण 2018 में एक पिता ने प्रोफेसर बनने का सपना देखने वाली लड़की को घर में कैद कर लिया था। कोई लंबा अरसा नहीं बीता जब खबर आई थी कि ईरान में सिर से दुपट्टा हटाने के कारण एक लड़की को आधिकारिक रूप से 2 साल कैद सुना दी गई। ये सभी घटनाएँ खबरों में सिर्फ़ इसलिए आई थीं क्योंकि मजहब इनके पीछे मुख्य वजह था। फिर भी जायरा ने ऐसा फैसला लिया… आखिर क्यों?
मजहब की दुहाई देने वाली ऐसी अनगिनत खबरों को हम आए दिन सोशल मीडिया से लेकर मीडिया के कॉर्नर में पढ़ते हैं, लेकिन फिर भी हम स्थिति को सुधारने से ज्यादा उसको बिगाड़ने का प्रयास करते हैं। मुझे हैरानी है इस बात से कि हर मौक़े पर लड़कियों के अधिकारों और उनकी आजादी का ‘झंडा’ लेकर चलने वाला लिबरल गिरोह यहाँ पर आकर जायरा का न केवल समर्थन कर रहा है बल्कि उनके मजहब में हस्तक्षेप करने से भी मना कर रहा है। ये वही लिबरल गिरोह है जो हिंदू-मुस्लिम की खबर में मुस्लिम के दोषी होने के बाद भी हिंदू को दोषी ठहराता है, ताकि उनका सेकुलरिज्म कायम रहे। लेकिन, जायरा का ऐसे तर्क देकर अपने सपनों को पीछे छोड़ना कितना भयानक है शायद अभी इसकी कल्पना न वह कर पा रही हैं और न ही इसका आभास लिबरल गिरोह को हो रहा है, जिन्हें आज तथाकथित सेकुलरिज्म साबित करने के लिए अपने ही अजेंडे के ख़िलाफ़ जाना पड़ रहा है।
आप एक बार खुद सोचिए, जायरा वसीम 2016 में दंगल फिल्म आने के बाद उन तमाम लड़कियों के लिए रोल मॉडल बनकर उभरी थीं, जिन्हें समाज की आलोचनाएँ और मजहब की रोक के कारण अपने सपनों को कुचलना पड़ता है। उन पर इस फैसले का क्या असर पड़ेगा, क्या मजहब के ठेकेदार, अपनी विचारधारा भुनाने के लिए दोबारा जायरा को उन लड़कियों के सामने उदाहरण बनाकर पेश नहीं करेंगे, जिनमें जायरा का दंगल लुक देखकर आगे बढ़ने का जोश आया था, जिन्होंने जायरा को देखकर सीखा था कि कैसे लीक से हटकर खुद की पहचान बनाई जा सकती है।
Why couldn’t Zaira Wasim quit Bollywood quietly? Why did she have to paint acting as a path of ignorance, sin & anti-religion? In her personal choice/decision & public self-righteousness, she stigmatized all actors. No different from Islamist extremists who call art ‘haraam’.
— Aarti Tikoo Singh (@AartiTikoo) July 1, 2019
दंगल फिल्म में उनकी एक्टिंग से न केवल उनके फिल्मी किरदार ने लोगों को उनका प्रशंसक बनाया था बल्कि उनके निजी जीवन के संघर्ष ने भी उन लड़कियों के मन में गहरी छाप छोड़ी थी, जो मजहब की बेड़ियों को तोड़कर आगे निकलना चाहती थीं, लेकिन मुमकिन नहीं हो पा रहा था। मैं मानती हूँ कि बहुत बड़े तबके पर जायरा द्वारा दिखाई गई इस हिम्मत का खासा असर नहीं पड़ा होगा, लेकिन जिन पर पड़ा होगा, उनका क्या? जिन्होंने जायरा के संघर्ष में खुद का भविष्य सोचा होगा, उनका क्या? वो जायरा जिसने अपने सपने के लिए उन तमाम आलोचनाओं को पछाड़ा था, जो उसके बढ़ते कदमों को रोकने के लिए की जा रही थी। जायरा द्वारा दंगल फिल्म में निभाए गए धाकड़ रोल में मजहब की उलाहनाएँ देकर उनके बालों की कटिंग से लेकर उनके पहनावे पर सवाल उठे थे, लेकिन उन्हें मिलती प्रशंसा ने इन सभी बातों को खारिज कर दिया था।
मैं और मेरे जैसे बहुत सारे लोग जायरा के फैसले के बाद अक्षम होंगे इस बात को समझने में कि आखिर एक्टिंग करना पाप कैसे हो सकता है? आखिर कैसे एक कलाकार होने के गुण आपको आपके खुदा से दूर ले जाते हैं, आखिर कैसे इतने बड़े प्लेटफॉर्म पर पहुँचने के बाद भी आप ऐसी मानसिकता में जकड़े रहते हैं, जो आपको आगे ले जाने की बजाय पीछे ढकेलती है। ये परवरिश होती है या फिर हमारा समुदाय हमें ऐसा करने के लिए प्रभावित करता है?
जायरा के इस फैसले पर लेखिका तस्लीमा नसरीन ने भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने तथाकथित लिबरलों और उन सभी मजहब के ठेकेदारों से सवाल किया है, जो यह कह रहे हैं कि जायरा के इस फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए। तस्लीमा कहती हैं कि महिलाओं का हमेशा से नारी-विरोधी और पितृसत्तात्मक समाज ने ब्रेनवॉश किया है ताकि वह अनपढ़, आश्रित, गुलाम, सेक्स की वस्तु और बच्चे पैदा करने की मशीन बनकर रह जाएँ। उनका कहना है महिलाओं के पास न आजादी है और न चुनने का विकल्प।
People are saying actress Zaira Wasim’s CHOICE to quit acting for religion shld be respected.Really?Women are brainwashed by misogynistic patriarchal society to be submissive,dependent,illiterate,slaves,sex objects,childbearing machines.Women hv no freedom or option to choose-
— taslima nasreen (@taslimanasreen) July 1, 2019
तस्लीमा के अलावा इस फैसले पर रवीना टंडन और पायल रोहतगी जैसे कलाकारों ने भी अपना विरोध दर्ज कराया है। रवीना टंडन ने अपने ट्वीट में लिखा, “कोई फर्क नहीं पड़ता अगर वो लोग जिन्होंने महज 2 फिल्मो में काम किया है, इस इंडस्ट्री के प्रति कृतज्ञता महसूस नहीं करते हैं कि उन्हें यहाँ क्या-क्या मिला है।” उन्होंने आगे कहा, “आशा करिए कि वो शांति के साथ यहाँ से निकल जाएँ और अपने उल्टे रास्तों पर चलने वाली सोच को खुद तक ही सीमित रखें।”
Doesn’t matter if two film olds are ungrateful to the industry that have given them all. Just wish they’d exit gracefully and keep their regressive views to themselves .
— Raveena Tandon (@TandonRaveena) June 30, 2019
जबकि पायल रोहतगी ने ट्वीट करके जायरा वसीम को एक अंधभक्त और कट्टर मुस्लिम बताया। उन्होंने इस फैसले के लिए कुरान के विचार का हवाला दिया है। उन्होंने कहा, “इससे लगता है कि इस्लाम ऐसा धर्म है जहाँ महिलाएँ पुरुषों के बराबर नहीं हैं। मुझे पढ़कर काफी खुशी हुई।”
#ZairaWasim is an AndhBhakt & a Kattar Muslim ? She has quoted from Quran means this #Regressive thought process is in Islam ? Islam is a regressive religion where women are NOT equal to men ? I am so glad to read this ?#JaiShriRam #PayalRohatgi pic.twitter.com/dGUznXcekW
— PAYAL ROHATGI & Team -BHAKTS of BHAGWAN RAM (@Payal_Rohatgi) July 1, 2019
जायरा वसीम का इस्लाम के सामने अपने एक्टिंग करियर को नकारना बताता है कि हम उसी परवरिश और समुदाय में जकड़े हुए हैं, जो जब चाहे हमारी सोच और सपनों पर हावी होकर उसे ध्वस्त कर सकता है। हम कितना ही आगे क्यों न बढ़ जाएँ, लेकिन बावजूद इसके हमारा वातावरण हमें अपने अनुसार फैसले लेने के लिए प्रभावित करता है। जायरा का फैसला उन सभी प्रोग्रेसिव लोगों के मुँह पर तमाचा है जो मानते हैं कि बॉलीवुड जैसी जगह पहुँचने के बाद धर्म या मजहब बहुत छोटी बातें रह जाती हैं, जबकि हकीकत यह है कि इनकी जकड़ इतनी मजबूत है कि यहाँ तक पहुँच कर, सफल होकर भी एक लड़की ‘माय लाइफ, माय रूल्ज’ जैसे तर्क देकर हिजाब में फँसे रहना चाहती है, एक लड़की पितृसत्तात्मक समाज से जन्मी बंदिशों को इज्जत और सम्मान का केंद्र कहती है और उससे उभरने की बजाए उस दलदल में फँसे रहने की गाँठें स्वयं बाँधती हैं। आज की हकीकत सिर्फ़ इतनी है कि एक लड़की, जिसके बढ़ते कदमों ने आशा की लौ को धधकाया था वो मजहब की हवा में बुझ गई है, और इस अंधेरे का एहसास उसे खुद नहीं है।
बस अब यह उम्मीद है कि हमारे समाज की वो लड़कियाँ जो आगे बढ़ने के सपने देखती हैं, जिन्हें खुद की शिक्षा और सुरक्षा धर्म-मजहब से ऊपर लगती है, वे जायरा में अपना आईडल न खोजें। वे तस्लीमा नसरीन जैसी लेखिकाओं और मसीह अलीनेज़ाद जैसी लड़कियों को अपना आदर्श मानें, जिन्होंने मजहब और अस्तित्व की लड़ाई में खुद के औचित्य को बचाना उचित समझा और सही मायने में लाखों महिलाओं के लिए आईडल हैं।