Sunday, November 17, 2024
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जहाँ सब हैं भोले के भक्त, बोल बम की सेवा जहाँ सबका धर्म… वहाँ अस्पृश्यता की राजनीति मत ठूँसिए नकवी साब!

अब तो बाकायदा काँवड़ यात्रा को हिंदुत्व और राजनीति से जोड़कर काँवड़ियों को राजनीतिक निशाना बनाया जाने लगा है, लेकिन ऐसा करने से बचने की जरूरत है।

सावन का पवित्र महीना शुरू होने को है। काँवड़िए अपनी पवित्र यात्रा पर निकलने को तैयार हैं। शायद दुनिया की सबसे अनोखी यात्रा पर, जिसमें शामिल होने की एक मात्र शर्त होती है ‘काँवड़िया’, ‘भोला’, ‘बम’ होना। इस काँवड़ यात्रा के दौरान होने वाली गड़बड़ियों को रोकने के लिए यूपी के मुजफ्फरनगर की पुलिस ने एक आदेश जारी किया, जिसमें सभी दुकानदारों को अपनी असली पहचान के साथ दुकानें, ढाबे, फलों की रेहड़ियों को लगाने के लिए कहा गया।

मुजफ्फरनगर पुलिस के आदेश के सामने आते ही तमाम सेकुलर रुदालियाँ उठनी शुरू हो गईं। असदुद्दीन ओवैसी उसे नाजीवाद से जोड़ने लगे, तो अखिलेश यादव किसी और चीज से। मोहम्मद जुबैर जैसे वामपंथी-कॉन्ग्रेसी इकोसिस्टम के झूठ फैलाने वाले कथित ‘फैक्ट चेकर’ इस आदेश को ‘धार्मिक भेदभाव’ कह कर लोगों को भड़काने की कोशिश में जुट गए। इसी बीच, आवाज आई पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी की, जिन्होंने इसे अस्पृश्यता से ही जोड़ दिया।

मुख्तार अब्बास नकवी ने एक्स पर लिखा, “कुछ अति-उत्साही अधिकारियों के आदेश हड़बड़ी में गडबड़ी वाली ..अस्पृश्यता की बीमारी को बढ़ावा दे सकते हैं…आस्था का सम्मान होना ही चाहिए,पर अस्पृश्यता का संरक्षण नहीं होना चाहिए….”जनम जात मत पूछिए, का जात अरु पात। रैदास पूत सब प्रभु के,कोए नहिं जात कुजात।।”

अब नकवी साहब ने बात तो कह दी, लेकिन वो शायद भूल गए कि वो काँवड़ यात्रा पर सवाल उठा रहे हैं, और आस्था को अस्पृश्यता से जोड़ रहे हैं। पुलिसिया फैसले पर सवाल उठाते-उठाते उन्होंने ऐसी नाजुक डोर को छोड़ दिया, जिसका काँवड़ यात्रा से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं।

दरअसल, सावन का महीना नजदीक आते ही शिव भक्त तैयारी में लग जाते हैं। शिव भक्त उस यात्रा की तैयारी में लगते हैं, जिसमें उन्हें कई कई दिन तक पैदल चलना पड़ता है। इस यात्रा को ‘काँवड़ यात्रा’ कहा जाता है। उत्तर भारत में खासकर यूपी, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्यों में शिव भक्त काँवड़ यात्रा पर निकलते हैं। वो पवित्र जलाशयों से जल लाते हैं और अपने आराध्य भगवान शिव को जल समर्पित करते हैं। काँवड़ यात्रा के दौरान काँवड़िए तमाम कठिनाईयों का सामना करते हैं। पैरों में छाले पड़ जाते हैं। शरीर में भयंकर दर्द होता रहता है। बुखार-जुकाम से शरीर तपने लगता है। एक-एक कदम आगे बढ़ाना दूभर होने लगता है।

हालाँकि इन्हीं रास्तों पर इन शिवभक्तों की खूब आव-भगत भी होती है। जगह-जगह कैंप लगे होते हैं। भंडारे चल रहे होते हैं। काँवड़ियों के जख्मों पर मरहम लगाया जाता रहता है। पैरों को दबाया जाता है। भोजन-पानी-आराम-दवा सबकी व्यवस्था लोग करते हैं, जिसमें एक ही भाव होता है-‘बम यानी शिव भक्तों की सेवा’। ये सेवा उन्हें महादेव से जोड़ती है और जो माध्यम बनते हैं काँवड़िए- वो माँझी भी होते हैं, पासवान भी, सिंह भी होते हैं, गहलोत भी, ब्राह्मण भी, क्षत्रिय भी, इनमें गुर्जर भी होते हैं, जाट भी, इनमें एससी वर्ग के लोग होते हैं, तो ओबीसी भी होते हैं, जनरल भी होते हैं, तो कुछ शौकिया मुस्लिम, सिख, क्रिश्चियन भी, लेकिन इनकी सेवा कर रहे लोग इनसे न तो इनकी जाति पूछते हैं और न ही उनकी इसमें कोई दिलचस्पी होती है।

काँवड़ यात्रा यूँ तो देश के अनेक हिस्सों में विराजते ज्योतिर्लिंगों तक निकलती ही है, लेकिन हरिद्वार से दिल्ली-एनसीआर, बिहार-झारखंड में सुल्तानपुर-देवघर की, वाराणसी में बाबा विश्वनाथ की काँवड़ यात्रा खास मानी जाती है। इस दौरान प्रशासन भी इनकी सेवा में लगा होता है। यूपी, उत्तराखंड जैसे राज्यों में काँवड़ियों का अब स्वागत होने लगा है। सरकार उनके ऊपर पुष्पवर्षा भी करती है। वर्ना एक समय होता था, जब काँवड़ियों को हरिद्वार से दिल्ली और फिर हरियाणा पहुँचने में तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। अब तो खैर जन दबाव में ही सही, काँवड़ियों के लिए कॉरिडोर तक बनाया जाने लगा है, वर्ना वो दिन बहुत पीछे नहीं छूटे, जब आए दिन काँवड़ियों पर हमले या फिर उनके पलटवार की खबरें अखबारों के पन्नों में होती थी। इन सबके बावजूद कभी काँवड़ियों के उमंग और उत्साह में कोई कमीं नहीं आई।

ये अलग बात है कि उनपर सवाल उठाने वालों की कोई कमीं कभी नहीं रही। अब तो बाकायदा काँवड़ यात्रा को हिंदुत्व और राजनीति से जोड़कर काँवड़ियों को राजनीतिक निशाना बनाया जाने लगा है। यकीन नहीं आ रहा हो, तो तथाकथित ‘सेकुलर’ नेताओं की टाइमलाइन ही देख लीजिए। पर इन सब बातों को ध्यान दिलाते हुए सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा कि भोले के भक्तों को राजनीतिक और सामाजिक अस्पृश्यता से मत जोड़िए, क्योंकि काँवड़ यात्रा में न तो कोई अगड़ा होता है, न कोई पिछड़ा होता है, न कोई स्वधर्मी होता है, न कोई विधर्मी होता है। अगर कोई हर तरफ दिखता है, तो वो सिर्फ भोले का भक्त होता है। ‘बम’ होता है। खुद ‘भोला’ होता है।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
Shravan Kumar Shukla (ePatrakaar) is a multimedia journalist with a strong affinity for digital media. With active involvement in journalism since 2010, Shravan Kumar Shukla has worked across various mediums including agencies, news channels, and print publications. Additionally, he also possesses knowledge of social media, which further enhances his ability to navigate the digital landscape. Ground reporting holds a special place in his heart, making it a preferred mode of work.

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