देश के 2 अलग-अलग इलाकों में लोग बिलख रहे हैं, कारण – उनके कई अपने 2 हादसों में चले गए। दिल्ली की एक महिला कहती हैं कि उन्हें सबसे अधिक अफ़सोस इस बात का है कि वो वहाँ पर क्यों नहीं थी, हो सकता था कि वो अपनी जान पर खेल कर अपने नवजात बेटे को बचा पाती। वहीं राजकोट में अपने बेटे को खोने वाला पिता कहता है कि उसे कोई आर्थिक सहायता नहीं चाहिए, बस दोषियों को सज़ा मिले। उनका कहना है कि अगर एक भी व्यक्ति जमानत पर बाहर आया तो वो उसे मार डालेंगे।
दिल्ली की एक माँ और गुजरात के एक पिता के आक्रोश का आखिर कारण क्या है? कारण है – आग लगना। लेकिन, असली कारण ये भी नहीं है। वास्तविक कारण है बड़े लोगों द्वारा नियमों की अनदेखी और प्रशासन द्वारा उनका साथ देना। जो लोग अस्पताल, मॉल या गेमिंग सेंटर जैसी चीजें चलाते हैं, जाहिर है वो छोटे-मोटे लोग तो होंगे नहीं। अतः, व्यवस्था के साथ उनका तालमेल नियमों के पालन के लिए नहीं बल्कि अनदेखी के लिए होता है।
व्यवस्था को ठेंगा दिखाना भारत में एक शौक
भारत में व्यवस्था को ठेंगा दिखाना एक शौक बन चुका है, ये एक आदत सी हो गई है, ये आम जनजीवन का हिस्सा बन गया है। अब सड़क पर पान खाकर थूकने से किसी की मौत नहीं होती है, लेकिन अगर आपने अपनी इमारत में अग्निशमन नियमावली का पालन नहीं किया है तो इससे कई लोगों की जान जा सकती है। अगर ये इमारत अस्पताल या शैक्षिक संस्थान है, तो सैकड़ों जान खतरे में है। इसीलिए, व्यवस्था को ठेंगा दिखाने के भी अलग-अलग स्तर हैं – किसी में नुकसान कम होता है, किसी में बहुत अधिक।
हाल के दिनों में दिल्ली और राजकोट में 2 ऐसी घटनाएँ हुईं, जिसके बाद आग लगने की समस्या पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है। एक घटना दिल्ली के शिशु अस्पताल में हुई तो दूसरी घटना राजकोट के एक गेमिंग जोन की। दिल्ली के कृष्णा नगर और मुखर्जी नगर में भी आग लगने की घटनाएँ सामने आईं। हाल ही में उत्तराखंड के सैकड़ों हेक्टेयर जंगल आग लगने के कारण नष्ट हो गए। मई 2019 में सूरत में एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में आग लगने के कारण 22 जानें चली गई थीं।
इसी तरह दिल्ली के बेबी केयर सेंटर और राजकोट के कोचिंग इंस्टिट्यूट में आग लगने के कारण 34 मौतें हुई हैं। अब फिर से चर्चा छिड़ गई है कि कैसे इन हादसों से बचा जा सकता है, इन सबके लिए जो नियमावली है उसका पालन क्यों नहीं किया जाता है। नियमावली का पालन ठीक से हो रहा है या नहीं, इसके लिए जिम्मेदार संस्थाएँ क्यों ढीली पड़ गई हैं? दिल्ली के जिस अस्पताल में ये घटना हुई है, वहाँ पहले फ्लोर पर सिलिंडर रिफिलिंग का काम चल रहा था। बताइए, इतने संवेदनशील जगह पर ये सब?
वहीं राजकोट में बिजली के शॉर्ट सर्किट के कारण ये घटना हुई। ये एक 3 मंजिला इंडोर गेमिंग फैसिलिटी था, जिसमें स्टील के शेड बने हुए थे। ये 50 मीटर चौड़ा और इसकी लंबाई 60 मीटर थी। इसमें 27 लोगों की मौत हो गई। नियम के विरुद्ध एंट्री और एग्जिट के लिए एक ही दरवाजा था। इस घटना में 27 लोगों की मौत हो गई। ऐसा नहीं है कि भारत में इन चीजों के लिए कोई नियम-कानून नहीं है, बहुत है। जैसे, BIS (न्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स) ने पूरी की पूरी NBC (नेशनल बिल्डिंग कोड) प्रकाशित कर रखी है।
नियम-कानून सब प्रकाशित, फिर भी होती है अनदेखी
इसे 1970 में प्रकाशित किया गया था और 2017 में इसमें सुधार किया गया। इमारतों के निर्माण, प्रबंधन और फायर सेफ्टी प्रोटोकॉल्स के दिशानिर्देश इसमें रहते हैं। हालाँकि, अग्निशमन के नियम-कानूनों का जिम्मा राज्य सरकारों के अंतर्गत आता है और इसे नगरपालिका के अधिकार क्षेत्र में छोड़ दिया जाता है। अवसान एवं शहरी मामलों के केंद्रीय मंत्रालय ने 2016 में ‘मॉडल बिल्डिंग Bylaws’ भी जारी किए। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने भी अस्पतालों जैसी इमारतों के लिए दिशानिर्देश जारी कर रखे हैं।
जैसे, सुरक्षा के लिए खुली जगह हो, हादसे की स्थिति में सबके सुरक्षित निकलने की प्रक्रिया तय हो, इसके लिए सीढियाँ हों और ड्रिल भी आयोजित किए जाएँ। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि प्लानिंग की कमी और नियमों का ठीक से पालन न किए जाने के कारण ऐसे हादसे होते हैं। खासकर ऐसी बस्तियाँ जहाँ इमारतें आपस में सटी हुई हों और घनत्व बहुत अधिक हो, वहाँ खतरा ज़्यादा रहता है। झुग्गी-झोपड़ियों को भी बिना अग्निशमन नियमों ने अनौपचारिक रूप से बसाया जाता है।
कोई भी नियम-कानून ये गारंटी नहीं दे सकता कि आग नहीं लगेगी उनका पालन करने से, लेकिन इतना तो तय है कि इससे नुकसान कम से कम होगा। आवासीय सोसाइटी, शैक्षिक संस्थानों या अस्पतालों को ‘फायर जोन 1’ में रखा जाता है, ताकि औद्योगिक संरचनाओं से इनके टकराव को रोका जा सके। मकान के निर्माण में ऐसी चीजों का इस्तेमाल होना चाहिए, जिनसे आग लगने का खतरा न हो। बिजली के तारों और केबलों को सील करने के लिए भी ऐसे पदार्थ के इस्तेमाल की चेतावनी दी गई है, जिनसे आग न लगे।
अगर हम राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों की बात करें तो पिछले 2 साल में देश भर में आग लगने की 3375 घटनाएँ हुई हैं। अकेले 2019 में कर्मशियल इमारतों में आग के कारण 330 जानें गईं। वहीं आवासीय इमारतों में आग के कारण 6329 लोगों की मौत हुई। 2016-20 के बीच प्रतिदिन औसतन 35 मौतें आग लगने की घटनाओं के कारण हुई। 2016 में 16,900 और 2020 में 9110 मौतें आग लगने के कारण हुईं।
इनमें से 30% घटनाएँ सामान्यतः गुजरात और महाराष्ट्र में होती हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है कि हमने पहले हुई ऐसी घटनाओं से कुछ सीखा नहीं। जून 1997 में दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित ‘उपहार सिनेमा’ में आग लगने के कारण 59 मौतें हुई थीं, वहीं 2004 में तमिलनाडु के तंजावुर स्थित कुंभकोणम में एक स्कूल में आग लगने से 94 बच्चे मर गए थे। 2014-18 के बीच की बात करें तो इस अवधि में देश में आग लगने की 83,872 घटनाएँ हुई हैं।
राजकोट वाली घटना में गेमिंग फैसिलिटी चलाने वाले के पास कर्मचारियों की ही कमी थी। संरचना के निर्माण में भी नियमों का पालन नहीं किया गया। टायर और लकड़ी का इस्तेमाल किया गया, जिस कारण आग तेज़ी से फैली। साथ ही स्थानीय प्रशासन ऐसे मामलों में न कोई कार्रवाई करता है, न नियमों का पालन सुनिश्चित करता है। इस कारण ऐसी घटनाएँ बार-बार होती हैं। लाइसेंस और परमिट को रिन्यू करने के दौरान ठीक से जाँच तक नहीं की जाती।
व्यवस्था पर हँसता गेमिंग सेंटर का संचालक
राजकोट मामले में 3 गिरफ्तारियाँ हुई हैं, लेकिन इसकी संभावना बहुत कम है कि जो इसके लिए जिम्मेदार हैं उन्हें सज़ा मिल पाएगी। ये लोग जाँच में भी सहयोग नहीं कर रहे हैं। उनका कहना है कि सारे दस्तावेज आग में जल गए हैं। आरोपित युवराज हरि सिंह सोलंकी तो हँसते हुए कोर्ट में ये कहते भी सुना गया कि ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं। जबकि अदालत में सुनवाई के दौरान वो खुद को दुःखी दिखा रहा था। वो ‘Raceway Enterprises’ चलाता है, जिसके अंतर्गत ‘TRP गेम जोन’ चलाया जा रहा था।
वो सिर्फ इस घटना पर नहीं, बल्कि पूरी की पूरी व्यवस्था पर हँस रहा था। उसे पता है कि कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा, क्योंकि इन चीजों के लिए अधिक सज़ा का प्रावधान भी नहीं है और जमानत पर वो बाहर आ ही जाएगा। कलक्टर, DCP और SP से लेकर नगर निगम के कमिश्नर तक इस गेमिंग जोन में मौजूदगी दर्ज कराते रहे हैं। अधिकारियों से नज़दीकी का यही रसूख था कि नियमों का उल्लंघन होता रहा। आग लगने समय वहाँ जनरेटर के लिए डीजल और कार रेसिंग के लिए पेट्रोल हजारों लिटर की मात्रा में जमा था।
Police investigation reveals lapses at New Born Baby Care Hospital in Vivek Vihar after fire kills six newborns. Hospital operated with expired license, unqualified doctors, lack of fire safety measures.
— The Times Of India (@timesofindia) May 27, 2024
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गेमिंग जोन में आने-जाने के लिएमात्र 6-7 फ़ीट का ही रास्ता था। उधर दिल्ली वाले मामले में पुलिस ने अस्पताल के संचालक डॉक्टर नवीन खिची को गिरफ्तार कर लिया है, उसके एक नहीं बल्कि कई बेबी केयर सेंटर चलते हैं। एक जगह ऐसी व्यवस्था है कि उसके बाकी संस्थानों की तो सोच ही लीजिए। ये भी पता चला है कि उसके अस्पताल में डॉक्टर ही योग्य नहीं थे। फायर डिपार्टमेंट से उसके पास NOC नहीं था, अवैध रूप से ऑक्सीजन सिलिंडर भरे जा रहे थे।