Sunday, November 17, 2024
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प्राणघातक ‘पड़ोसी’, जानलेवा ‘पहचान’: प्रवीण हो या कन्हैया लाल या फिर उमेश कोल्हे… हर हिंदू की हत्या में कश्मीर वाला पैटर्न

अगर इसे समाज ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और इसके प्रति जागरूक नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं जब इसके गंभीर परिणाम देखने के मिल सकते हैं। इसमें सरकार की भूमिका तो महत्वपूर्ण है ही, इसके साथ ही उन उदारवादी मुस्लिमों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है जो आज भी भारत और भारतीयता से तन-मन-धन से जुड़े हैं और हृदय से प्यार करते हैं।

हाल के दिनों में हिंदुओं की हत्याओं में मृतक के दोस्तों, पड़ोसियों और सहकर्मियों के ही साजिश में शामिल होने के मामले सामने आए हैं। विश्वासघात की ये खबरें भारत की उस ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ की पोल खोल कर रख दी हैं, जिसे कई दशकों से भारत की आत्मा के तौर पर प्रचारित किया जाता रहा। इसे स्कूलों-कॉलेजों में खूब पढ़ाया और सिखाया गया।

इस तहजीब को देश के बहुसंख्यक वर्ग ने भाईचारा के रूप में लिया और अपनाया भी, लेकिन दूसरे वर्ग के कट्टरपंथियों ने इसे हमेशा एक अवसर के रूप में इस्तेमाल किया। आज इस भाईचारे और विश्वास का एक-एक तिनका बिखरता दिख रहा है, जो कभी था ही नहीं। साल 2017 में CSDS के सर्वे में खुलासा हुआ था कि देश में केवल 5 फीसदी मुस्लिम ही हिंदुओं को अपना करीबी दोस्त मानते हैं।

कर्नाटक के प्रवीण नेट्टारू की हत्या से लेकर कन्हैया लाल, उमेश कोल्हे, कश्मीर के राजस्व अधिकारी राहुल भट, बैंक मैनेजर विजय कुमार, स्कूल की प्रिंसिपल प्रिंसिपल सुपिन्दर कौर और शिक्षक दीपक चंद से लेकर 1990 के दशक के बालकृष्ण गंजू तक की हत्या में दोस्त, पड़ोसी और सहकर्मियों की संलिप्तता सामने आई है या फिर उन पर शक जाहिर किया गया है।

कर्नाटक में भाजपा युवा मोर्चा (BJYM) के नेता प्रवीण नेट्टारू की 28 जुलाई 2022 को हुई हत्या के सिलसिले में शफीक बेल्लारे और जाकिर सावानुरु को गिरफ्तार किया गया है। शफीक के अब्बू इब्राहिम मृतक प्रवीण की दुकान में काम कर चुके हैं और इनका एक-दूसरे के घर भी आना-जाना भी था।

कहा जा रहा है कि प्रवीण की इसलिए हत्या कर दी गई, क्योंकि उन्होंने राजस्थान के उदयपुर में कन्हैया लाल साहू की इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा दिन-दहाड़े गला रेतकर की गई हत्या की आलोचना की थी। प्रवीण ने अपने फेसबुक पोस्ट में कथित सेक्युलर लोगों को लताड़ लगाई थी।

प्रवीण ने लिखा था, “आज एक गरीब दर्जी को सरेआम काटकर वीडियो बना दिया गया है। ये कट्टरपंथी कह रहे हैं कि हमारा अगला टारगेट प्रधानमंत्री मोदी हैं। आप सब (सेक्युलर) कहाँ हैं… अब आपका वॉइस बॉक्स क्यों जल गया? उस राज्य में कॉन्ग्रेस की सरकार है। अब मुँह क्यों नहीं खोल रहे हैं? क्या तुम्हें गरीब की जिंदगी पर रहम नहीं आया?”

कन्हैया लाल की हत्या भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) के समर्थन में पोस्ट डालने पर की गई थी। कन्हैया लाल की हत्या में भी उसके जानने वालों का हाथ था। कन्हैया लाल जिन पड़ोसियों को अपना दोस्त और मददगार मानते थे, उसी में से एक नाजिम ने उनकी रेकी की थी।

इसी तरह नूपुर शर्मा का समर्थन करने वाले महाराष्ट्र के अमरावती के फर्मासिस्ट उमेश कोल्हे की हत्या में भी उनके दशकों पुराने दोस्त डॉक्टर यूसुफ शामिल था। यूसुफ ने हत्यारों को उकसाया था और खुद रेकी की थी। उमेश के परिवार ने कई बार यूसुफ के परिवार की मदद की थी, लेकिन इसका कोई लाभ नहीं हुआ।

इतना ही नहीं, जम्मू-कश्मीर में हाल ही हुए हिंदू टीचरों और एक राजस्व अधिकारी की हत्या में भी उनके ऑफिस के कुछ मुस्लिम सहकर्मियों पर शक जाहिर किया गया था। कहा गया था कि ऑफिस के कुछ सहकर्मियों ने ही आतंकियों को इनके बारे में सूचना दी थी। इसके बाद आतंकियों ने सबके बीच उनकी हत्या कर दी थी।

अगर खबरों का विश्लेषण करें तो पाएँगे कि लव जिहाद, डकैती, हत्या के देश में ऐसे कई मामले आए हैं, जिनमें पड़ोसी या पहचान वाला व्यक्ति शामिल है। अगर घटनाओं की वर्तमान श्रृंखला सामने नहीं आती तो उन्हें भी एक आम आपराधिक घटना मानकर छोड़ दिया जाता और पहले ऐसा ही माना भी गया। हालाँकि, गुजरात के किशन भराड़, कन्हैया लाल, उमेश कोल्हे, प्रवीण जैसों की हत्या के बाद यह सोचने पर मजबूर होना पड़ रहा है कि ये घटनाएँ भी बहुसंख्यकों के प्रति सुनियोजित ‘हेट क्राइम’ का ही हिस्सा हैं।

पाकिस्तान के जन्मदाता मुहम्मद अली जिन्ना की उस शादी को कौन नहीं जानता, जिसे उन्होंने अपने ही दोस्त सर दीन शॉ की नाबालिग बेटी के साथ अंजाम दिया था। यह भी तो विश्वासघात था। जिस घर में जिन्ना दोस्त और अंकल की हैसियत से आते-जाते थे, उसी घर की 16 साल की नाबालिग पारसी लड़की रति को बहला लिया और अपने से 24 साल छोटी लड़की से शादी कर ली और धर्मांतरण भी कराया।

मुख्य सवाल है कि आखिर हिंदुओं या कह लें गैर-मुस्लिमों से इस्लाम के मानने वाले लोगों में इतनी नफरत क्यों है, कि वे दोस्त और पड़ोसी तक को नहीं बख्श रहे हैं। इसका जवाब उनके मजहबी किताबों में मिलेगा। मुस्लिमों की धार्मिक किताब कुरान में लिखा है, “हे ‘ईमान’ लाने वालों! (मुसलमानों) उन ‘काफिरों’ से लड़ो जो तुम्हारे आसपास हैं, और चाहिए कि वे तुममें सख्ती पाएँ।” (११.९.१२३ पृ. ३९१)

किताब में आगे लिखा है, “हे ‘ईमान’ लाने वालों! ‘मुशरिक’ (मूर्तिपूजक) नापाक हैं।” (१०.९.२८ पृ. ३७१)। एक आयत में लिखा है, ”निःसंदेह ‘काफिर’ तुम्हारे खुले दुश्मन हैं।” (५.४.१०१. पृ. २३९)। ये वो छब्बीस आयतें हैं, जिनको लेकर कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी और कहा गया था कि ये दूसरे धर्म के प्रति नफरत फैलाते हैं।

उन्हीं छब्बीस आयतों में एक आयत यह भी है, “हे नबी! ‘ईमान वालों’ (मुसलमानों) को लड़ाई पर उभारो। यदि तुम में बीस जमे रहने वाले होंगे तो वे दो सौ पर प्रभुत्व प्राप्त करेंगे और यदि तुम में सौ हो तो एक हजार काफिरों पर भारी रहेंगे, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जो समझ-बूझ नहीं रखते।” (१०.८.६५ पृ. ३५८)

AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी के भाई अकबरूद्दीन 24 घंटे के लिए पुलिस हटाकर हिंदुओं को सबक सिखाने की बात भी इसी से प्रेरित है। यही नहीं, पटना के फुलवारी शरीफ में छापेमारी में मिला PFI का ‘मिशन 2047’ दस्तावेज भी इसी से प्रेरित है। दस्तावेज में कहा गया है कि अगर 5 फीसदी मुस्लिम साथ आ जाएँ तो भारत के काफिर घुटने पर आ जाएँगे।

मुगल काल के दौरान देश में जबरन धर्मांतरण के बावजूद भारत के लोग अपनी संस्कृति से जुड़े हुए थे। वे जानते थे कि उन्होंने मजबूरी में धर्मांतरण तो कर लिया है, लेकिन उनका हृदय और स्वभाव हिंदू ही रहा। कश्मीर और राजस्थान एवं यूपी के कई ऐसे गाँव हैं, जो मुस्लिम होने के बावजूद खुद को हिंदू मानते रहे। इनमें से एक हरियाणा और राजस्थान का क्षेत्र मेवात भी है।

मेवात के मुस्लिम कुछ दशक पहले तक खुद को हिंदू मूल के बताते रहे, लेकिन बरेली, सलफी जैसे कट्टरपंथी मुस्लिम विचारधारा के फैलाव और कुछ हद तक राजनीतिक तुष्टिकरण ने उन्हें कट्टर और हिंदुओं को ‘काफिर’ बना दिया। आज मेवात का क्षेत्र आतंकी एवं आपराधिक गतिविधियों के लिए कुख्यात हो चुका है। वहाँ पर आज वही मुस्लिम अपने पड़ोसी हिंदुओं को प्रताड़ित और जबरन धर्मांतरित कराने में लगे हैं, जिन्हें कुछ दशक पहले तक अपना मानते थे।

कट्टरपंथी मुल्ले-मौलवियों की तकरीरों में लोगों को और देश विरोधी गतिविधियों में शामिल कुछ मदरसों में बच्चों को यह बार-बार याद दिलाया जाता है कि उन्हें क्या करना है। परिणाम यह होता है कि दशकों की दोस्ती के बावजूद सिर्फ उस एक पोस्ट के लिए निर्मम हत्या कर दी जाती है, जिसमें वह उस महिला के पक्ष में खड़ा होता है, जो डिबेट में वही बात कहती है, जो हत्यारों के मजहबी किताब कहते हैं।

अगर इस हेट क्राइम को समाज ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और इसके प्रति जागरूक नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं जब इसके गंभीर परिणाम देखने के मिल सकते हैं। इसमें सरकार की भूमिका तो महत्वपूर्ण है ही, इसके साथ ही उन उदारवादी मुस्लिमों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है जो आज भी भारत और भारतीयता से तन-मन-धन से जुड़े हैं और हृदय से प्यार करते हैं।

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सुधीर गहलोत
सुधीर गहलोत
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