Thursday, September 12, 2024
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न 4 साल की बच्ची बची, न 63 साल की वृद्धा… योनि में ही नहीं सिमटी है एक महिला का अस्तित्व: केवल कानून से नहीं होगी नारी सुरक्षा, समाज को भी बदलना होगा

जिस समय पूरा देश एकजुट होकर रेप की घटनाओं के विरुद्ध रोष दिखा रहा है उस समय भी बलात्कार होने बंद नहीं हैं। कहीं छोटी बच्ची को निशाना बनाया जा रहा है तो कहीं बुजुर्ग महिला को नोचा जा रहा है। कहीं बाजार से आती लड़की को कोई दबोच रहा है तो कहीं स्कूल में उनका शोषण हो रहा है... और ये सारी घटनाएँ आए दिन मीडिया में रिपोर्ट भी हो रही है।

बीते दिनों बंगाल में महिला डॉक्टर के साथ हुए रेप-मर्डर मामले के कारण पूरे देश भर में आक्रोश है। लोग महिलाओं के अधिकारों से लेकर उनकी आजादी की बात कर रहे हैं, उस पर चिंता जता रहे हैं। कहीं कानून सख्त करने की माँग हो रही है तो कही दोषियों पर त्वरित कार्रवाई को कहा जा रहा है। बंगाल से लेकर दिल्ली तक में लोग सड़कों पर है। ऐसा लग रहा है मानो हर कोई लड़कियों को आजाद देखना चाहता है, उनके खिलाफ कुछ भी गलत होते देखना उन्हें बर्दाश्त नहीं है…। जाहिर है हर लड़की समाज को इसी तरह अपने साथ खड़े हुए देखना चाहती है लेकिन अजीब बात ये जो अभी रेप की घटनाओं के विरुद्ध रोष दिखा रहा है उस समाज में बलात्कार की घटनाएँ होना अब भी बंद नहीं हैं।

9 अगस्त 2024 को बंगाल से लेडी डॉक्टर से रेप और मर्डर का मामला उठा था और उसके बाद सोशल मीडिया पर हर जगह उनके लिए इंसाफ की गुहार लगी। घटना ने इंसानियत को ऐसे झकझोरा कि हर किसी को 2012 में निर्भया के साथ हुई वीभत्सता की याद आ गई। तुलना करते हुए कहा जाने लगा कि इतने साल बीत गए लेकिन समाज के हालात बिलकुल नहीं बदले हैं। आज भी जब बलात्कार का मुद्दा हर जगह गरमाया हुआ है उस समय भी किसी किसी जगह कहीं महिला को कोई हैवान अपना निशाना रहा है। न छोटी बच्ची को छोड़ा जा रहा है न ही बुजुर्ग महिला को। मौका मिलते ही लड़कियों को दबोचा जा रहा है और फिर वहशियत की हर हद पार हो रही है।

बहुत पीछे न जाएँ और ये सोचें कि 9 अगस्त की घटना के बाद तो जैसे विरोध हो रहा है उससे इन घटनाओं में कमी आई होगी तो ऐसा बिलकुल भी नहीं है। हर रोज दरिंदगी की नई सीमा तय होती है। बदलापुर से आज एक शर्मसार करने वाला मामला सामने आया है। चार साल की दो बच्चियों का यौन शोषण उनके ही स्कूल के सफाईकर्मी ने किया। बच्चियाँ उस सफाईकर्मी को ‘दादा’ कहती थीं, उन्हें अपना परिचित समझती थीं, लेकिन उस जानने वाले ने उनके साथ क्या किया। मौका मिलते ही कपड़े उतारकर उनके निजी अंगों को छूने का काम किया, उनका शोषण किया। इस घटना से कुछ दिन पहले 16 अगस्त 2024 राजस्थान के सिरोही जिले के आबूरोड रीको थाना क्षेत्र में एक 63 वर्षीय महिला का घर में घुसकर सामूहिक रेप किया गया था। रिपोर्ट्स में बताया गया था कि आरोपित घर में घुसे तो लूटपाट के लिहाज से थे लेकिन महिला को देख उन्होंने उसके साथ बारी-बारी रेप कर लिया।

एक बार इन घटनाओं को सोचकर देखिए… एक मामले में छोटी बच्चियाँ पीड़िता हैं और दूसरे में बुजुर्ग महिला। आम इंसान के मन में इन दोनों ही वर्ग के लिए अलग-अलग भाव होते हैं। बच्चियों को देख दुलार आता है और बुजुर्ग को देख सम्मान का… लेकिन वहीं एक बलात्कारी को इनमें न छोटी बच्ची दिखती है न बुजुर्ग अवस्था, उन्हें सिर्फ योनि दिखाई देती है। वो लड़कियों को निशाना चलती सड़क पर भी बना सकता है और बंद कमरे में भी रेप के बाद उन्हें मार भी सकता है। ऐसे में हमारे द्वारा सिर्फ ये अपेक्षा किया जाना कि कानून सख्त होने से चीजें बेहतर होंगी सरासर हमारी भूल है।

आपको याद होगा 2012 में निर्भया के साथ हुई वीभत्सता को देख कानून सख्त करने का काम हुआ था, लेकिन नतीजा क्या हुआ… घटनाएँ खत्म हो गई? बलात्कारी इंसान बन गए? महिलाएँ सुरक्षित हो गईं? नहीं… इनमें से कुछ नहीं हुआ। आज भी कोई भी अखबार उठाकर पढ़ना शुरू करिए बलात्कार की खबरें फ्रंट पेज से मिलना शुरू हो जाएँगी….। न ये सब 2012 के बाद बंद हुआ है और न ही आने वाले समय में होगा। स्थिति में सुधार तब तक नहीं हो सकता जब तक दूषित मानसिकता पर प्रहार नहीं किया जाएगा और सक्रियता से ऐसे मामलों में पकड़े गए अपराधियों को सजा नहीं मिलेगी।

अभी के हाल ऐसे हैं कि अपराधी अपराध करने के बाद ही निश्चिंत हो जाता है कि वो या तो केस को गुमराह कर देगा और नहीं कर पाया तो उसपर 10-20 साल का समय तो रहेगा ही…सबसे ताजा मामला अजमेर सेक्स स्कैंडल का लेते हैं। 90 के दशक में इस स्कैंडल के कारण कितनी लड़कियों की जिंदगी बर्बाद हुई ये किसी से छिपा नहीं है। बावजूद इसके इस मामले में निर्णय आने में 32 साल से ज्यादा लग गए...। इसी तरह निर्भया मामला। दोषियों को 8 साल बाद फाँसी हुई थी

दुखद बात ये है कि वो मामले हैं जिन्हें मीडिया ने खूब तूल देकर गौर करवाया गया तब जाकर पीड़िताओं को इंसाफ मिलने में इतना समय लग गया, तो सोचकर देखिए उन पीड़िताओं को क्या इंसाफ मिलता होगा जिनके केस को गुमराह कर दिया जाता है, जिनके चरित्र पर सवाल खड़े कर दिए जाते हैं, जिनकी शिकायत कार्रवाई की जगह उनपर ही लांछन लगा दिया जाता है और मुँह बंद करने की बात कहकर उन्हें वापस उसी अंधकार भरे समाज में रहने को छोड़ दिया जाता है।

आज सोशल मीडिया पर उठती आधी आवाजें सिर्फ ट्रेंड के दबाव में हैं। उन्हें न अपराध से मतलब है, न अपराध का असर समाज पर क्या होता है इससे, न पीड़िता के दर्द से… चूँकि अगर ऐसा होता तो बीते सालों में घटनाओं का ग्राफ बढ़ने की बजाय नीचे जरूर आता है। इनके लिए बंगाल रेप जैसी घटनाएँ सिर्फ ट्रेंड का मसला है जो आज चल रहा है इसलिए बोल रहे हैं कल को कोई और मामला होगा तो इसे भूलकर उसपर बोलने लगेंगे।

शर्म की बात है कि हम उस समाज का हिस्सा हैं जहाँ न छोटी बच्ची सुरक्षित है, न स्कूल-कॉलेज जाती लड़किाँ और न घर में अकेले रहने वाली बुजुर्ग… महिलाओं पर यौन दुराचार के मामले पहले भी बढ़ रहे थे और आगे भी बढ़ेंगे… कारण हमारी ऐसे मामलों को हैंडल करने की अप्रोच है, ढीला रवैया है और घृणित मानिकता है।

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