हरियाणा के मेवात में दलितों के साथ अत्याचार का मामला सामने आने के बाद अब इस विषय की चहुँओर चर्चा है। सोशल मीडिया से लेकर कई मीडिया चैनलों पर इस मुद्दे पर डिबेट जारी है। हर जगह साक्ष्यों के साथ सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर हरियाणा जैसी पावन भूमि पर पाकिस्तान वाली स्थितियों को पैदा करने के लिए कौन जिम्मेदार है?
बावजूद इन सभी बातों के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों की प्रतिक्रिया अब भी हैरान करने वाली है, जो यह मानने को ही तैयार नहीं है कि समुदाय विशेष इस मामले में कहीं भी जिम्मेदार है।
बीते दिनों मेवात मामले के मद्देनजर न्यूज स्टेट पर दीपक चौरसिया ने एक डिबेट करवाई- “मेवात: वो जगह जहाँ जाकर पाकिस्तान वाली फीलिंग आती है!” इस डिबेट में विभिन्न क्षेत्रों के लोग आए। सबने अपनी अपनी बात रखी। मगर, इसी दौरान इस्लामिक स्कॉलर इलियास शरीफुद्दीन और राजनीतिक विश्लेषक के तौर पर पैनलिस्ट बने पत्रकार माजिद हैदरी ने मेवात पर ऐसी बातें बोलीं, जिन्हें सुनने के बाद साफ हो गया कि उन्हीं जैसी मानसिकता वाले लोगों के कारण मेवात के कट्टरपंथियों को शह मिली है और उन्हीं जैसों की आड़ में कट्टरपंथ अपने चरम पर पहुँचा है।
सबसे पहले तो इस्लामिक स्कॉलर शरीफुद्दीन की बात पर गौर करिए। शरीफुद्दीन, मेवात में तेजी से हो रहे धर्मांतरण को कोई गुनाह नहीं मानते हैं। बल्कि उनका तो कहना है कि वहाँ दलित हिंदू बच्चियाँ इस्लाम की उन्नति, शांति, एकता देखकर इस धर्म को स्वीकार कर रही हैं।
वहीं, दूसरे बुद्धिजीवी व राजनीतिक विश्लेषक माजिद हैदरी कहते हैं कि जबरन धर्म परिवर्तन कराने की इजाजत उनका दीन नहीं देता। अगर कोई ऐसा कर रहा है तो इसका मतलब है कि वह समुदाय का नहीं बल्कि वह संघ का एजेंट होगा।
माजिद हैदरी मेवात क्षेत्र में धर्मांतरण के मामले पर उठती आवाजों की मंशा पर भी सवाल करते हैं और प्रियंका चोपड़ा का उदाहरण देकर पूछते हैं कि जब वह किसी फिरंगी ईसाई से शादी करती हैं, तब किसी के पेट में दर्द नहीं होता। लेकिन मेवात पर सब सवाल उठा देते हैं।
गौरतलब हो कि यह दोनों इस्लामी बुद्धिजीवी इस प्रकार की टिप्पणी उस शो में करते हैं, जिसमें इस्लामिक बर्रबरता का शिकार हुई मीना की कहानी खुद उसका पति सुनाता है और बच्चे बताते हैं कि आखिर कैसे उनकी माँ का पहले अपहरण हुआ, गैंगरेप हुआ, फिर धर्मपरिवर्तन न करने पर किस तरह उनकी नसें काट-काटकर हत्या कर दी गई।
सोचने वाली बात है कि उलेमाओं के रूप में समुदाय विशेष कैसे लोगों को अपने प्रतिनिधि के तौर पर चुन रहा है। जिनके समक्ष आज सारी स्थिति शीशे की तरह साफ होने के बाद भी वह हकीकत को नहीं देखना चाहते और इस बात को मानने को तैयार नहीं है कि मेवात में दलितों पर अत्याचार हो रहा है या बहुल आबादी के कारण मेवात के कई गाँव हिंदूविहीन हो रहे हैं।
यदि वाकई शरीफुद्दीन जैसों का तर्क सही है कि इस्लाम की उन्नति देखकर वहाँ की दलित लड़कियाँ इस्लाम मजहब अपना रही हैं तो सवाल उठता कि आखिर मीना जैसी महिलाओं के साथ क्या हुआ? आखिर क्यों साल 2019 में मेवात की जमीन पर लव जिहाद का मुद्दा चर्चाओं में आया?
क्यों आकिल खान और राशिद खान ने एक लड़की को जादू टोने के बलबूते उसका धर्मांतरण करवाया था? क्यों वहाँ दलितों में बहन-बेटियों के अपहरण के मामले बढ़ते देख आक्रोश उमड़ा था? क्यों उन सबने इस घटना से खफा होकर हाइवे पर प्रदर्शन किया था?
बात सिर्फ बेटियों के साथ होते अपराध तक सीमित नहीं है। यह मामला दलितों के अस्तित्व को लेकर है, जिस पर मजहबी नेता या तथाकथित दलित नेता हमेशा अपनी राजनीति खेलते हैं। पर बात जब इनके लिए आवाज उठाने की आती है, तो सब मौन हो जाते हैं।
माजिद हैदरी वो शख्स हैं, जिन्होंने साल 2018 में कश्मीर में होती पत्थरबाजी के लिए भी RSS को वजह बता दिया था। वह एक बार फिर साल 2020 में मेवात में फैले कट्टरपंथ के बचाव में कहते हैं कि मेवात में होती घटना के लिए संघ के लोग जिम्मेदार हैं। लेकिन संघ के लोगों को 500 में से 103 गाँवों को हिन्दुविहीन कर देने से मिलेगा क्या? वह क्यों चाहेंगे कि ऐसी स्थिति पैदा हो, जिससे 84 गाँवों में सिर्फ 4-5 हिन्दू परिवार रह जाएँ?
पत्रकार माजिद हैदरी कह रहे हैं कि कश्मीर में पत्थर फेंकने वाले RSS के आदमी हैं
— Akash Choudhary (@akashjhajhria) May 10, 2018
ओके, सहमत…….
पकड़ के सीधे गोली मार दो उन पत्थर बाजो को विपक्ष भी खुश हम भी खुश।
सोचिए क्या वाकई ये बात कोई जिम्मेदार आदमी कह सकता है। वो भी तब जब उसे विश्लेषक की उपाधि मिल गई हो और उसके सामने ऐसे कई उदहारण हों, जो साबित करे कि मेवात की बहुल आबादी ने अल्पसंख्यकों पर अनेकों प्रकार से दबाव बनाया, उनकी दुर्गति की।
साल 2017 का एक मामला है। जब हरियाणा के मेवात मॉडल स्कूल पर आरोप लगे था कि यहाँ पर हिंदू छात्रों को धर्म परिवर्तन और नमाज पढ़ने के लिए दबाव बनाया जाता है और ऐसा करने से इंकार करने पर उन्हें मारा-पीटा तक जाता है।
2018 का एक केस है, जब मेवात के नगीना खंड गाँव मोहालका से दलित परिवार पर जानलेवा हमला हुआ था। इस हमले का कारण ही ये निकल कर आया था गाँव में रहने वाले किशन के परिवार पर इस्लाम नाम का युवक लंबे समय से धर्म परिवर्तन का दबाव डाल रहा था। लेकिन जब किशन के परिवार ने इससे इंकार किया तो इस्लाम, तौफीक, मोसिम, अतरु, असमीना ने उसके परिवार पर लाठी डंडों व सरिया से जानलेवा हमला कर दिया और जातिसूचक शब्दों से संबोधित कर उन्हें अपमानित भी किया।
इसके बाद, साल 2018 में ही एक नाबालिग से साथ दुष्कर्म की चौंकाने वाली घटना सामने आई थी। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो नूँह के भंडका में घटी इस घटना में पुलिस ने 14 वर्षीय लड़की के घर में घुसकर उसके साथ रेप करने के आरोप में असलम को गिरफ्तार किया था। जबकि बाकी दोनों उस समय तक पकड़ में नहीं आए थे।
मेवात में हुई इन धर्मांतरण, रेप, मारपीत जैसी घटनाओं के चुनिंदा उदाहरणों को पढ़िए, समझिए और बताइए, कहाँ आपको धर्मांतरण में हिंदुओं की मर्जी दिखी? कहाँ मारपीट में आपसी भाईचारा लगा? और कहा संघ नेताओं के नाम आए?
क्या जिन जगहों पर आपसी प्रेम होता है, वहाँ एक समुदाय का नाम धीरे धीरे मलीन होता जाता है? क्या उस जगह अल्पसंख्यक रोते-बिलखते दिखते हैं? क्या वहाँ की महिलाएँ असुरक्षित होती हैं? क्या वहाँ दलित बच्चों पर फब्तियाँ कसी जाती हैं? क्या स्कूलों में धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया जाता है? नहीं, ये सब अत्याचार आपसी प्रेम वाली जगहों पर नहीं होते, बल्कि उन जगहों पर देखने को मिलते हैं, जहाँ हिंदू अल्पसंख्यक हों, जैसे पाकिस्तान।
आज कई हिन्दू संगठनों का दावा है कि मेवात में हिंदुओं की हालत पाकिस्तान से बदतर है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने कुछ मामले ही उठाए हैं, अभी बहुत प्रकाश में आना बाकी है। अनेकों खबरें हैं, जो इस बात की ओर इशारा करती हैं कि आखिर क्यों मेवात को दलितों का कब्रिस्तान बताया गया। कई रोते बिलखते चेहरे वीडियो में कैद हैं, जो दिखाते हैं कि मीडिया में उठा मेवात का यह मुद्दा निराधार नहीं है।
मगर फिर भी देश में इस्लामोफोबिया का रोना रोने वाले यदि समुदाय विशेष के पढ़े लिखे लोग, यह मान चुके हैं कि मेवात में हो रही घटनाएँ सामान्य हैं और गंगा जमुना तहजीब को बढ़ावा दे रही है। तो विचार करिए कि वहाँ की अल्पसंख्यक आबादी की पीड़ाओं का अब कोई अंत कैसे होगा? मेवात का भूगोल बदलकर कट्टरपंथियों ने न केवल हिंदुओं की जमीनों को, धार्मिक स्थलों को, पहचान को अपनी मुट्ठी में किया है, बल्कि राजनीति व प्रशासन को भी कथित तौर पर अपनी कठपुतली बना लिया है।