हाल ही में पॉक्सो अधिनियम को लेकर दो समाचार सामने आए। ये दोनों ही विश्लेषण की माँग करते हैं। पहला समाचार यह आया कि जनवरी 2023 तक फास्ट ट्रैक न्यायालयों में 2.43 लाख से अधिक पॉक्सो के मामले लंबित हैं। यदि कोई और नया मामला सामने नहीं आता है तो इन्हें निपटाने में ही 9 वर्ष से अधिक का समय लग जाएगा।
यह बहुत ही हैरान करने वाला और चौंकाने वाला आँकड़ा है। यह कल्पना से ही परे है कि भारत जैसे देश में पॉक्सो अर्थात यौन शोषण से बच्चों के संरक्षण को लेकर यह आँकड़े हो सकते हैं। कहते हैं कि आँकड़े झूठ नहीं बोलते। भारत के संदर्भ में ऐसे आँकड़े चौंकाते भी हैं… तो फिर क्या है सच? क्या आँकड़ों के पीछे कुछ और राज है?
23 नवम्बर 2023 को एक निर्णय आता है। इसमें माननीय उच्च न्यायालय ने अपनी एक टिप्पणी से चौंकाया है। टिप्पणी नहीं बल्कि निर्णय! पॉक्सो अधिनियम के दुरूपयोग को लेकर निर्णय। यह निर्णय विशेष है। यह विशेष इसलिए नहीं है क्योंकि यह पहला ऐसा निर्णय नहीं है, जिसमें किसी न्यायालय ने यह निर्णय दिया हो। यह निर्णय हाल का है, इसलिए अधिक महत्वपूर्ण है।
यह मामला है दिल्ली का। अदालत ने पॉक्सो अधिनियम के मामले में सुनवाई करते हुए एक महिला को झूठी शिकायत दर्ज कराने का दोषी ठहराते हुए एक लाख रुपए का जुर्माना भरने का निर्देश दिया। दरअसल यह सारा विवाद संपत्ति को लेकर था। इस विवाद में अपने विरोधी को फँसाने के लिए एक महिला ने अपनी 5 वर्ष की बेटी के साथ बलात्कार का आरोप लगाया था और पॉक्सो अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कराया था।
अदालत में उस महिला का झूठ नहीं चल सका। न्यायाधीश ने लड़की की माँ के खिलाफ ही यह निर्णय सुना दिया। न्यायाधीश ने कहा कि यह स्पष्ट है कि उसने गुस्से में आकर और खुद को रोज-रोज के झगड़ों से बचाने के लिए झूठी शिकायत की।
न्यायाशीश ने यह भी कहा कि जैसा कार्य इस महिला ने किया है, वैसे कार्य कई लोग कर रहे हैं। भूमि विवाद, विवाह विवाद, व्यक्तिगत द्वेष, राजनीतिक उद्देश्यों या व्यक्तिगत लाभ के लिए आरोपितों को लम्बे समय तक अपमानित करते रहने के लिए फर्जी मामले दर्ज कराए जा रहे हैं। यह कानून का घोर दुरुपयोग है और इस प्रकार के कृत्य कानून के उद्देश्य को कमजोर करते हैं।
जहाँ इस प्रकार के मामले कानून के उद्देश्य को कमजोर करते हैं, वहीं एक और बड़ा खतरा पैदा करते हैं। यह खतरा है, देश की और हमारे पुरुषों की और समाज की छवि को खराब करने का। जरा कल्पना करें कि इस खबर से कि पॉक्सो अधिनियम के इतने मामले लंबित हैं कि नौ साल लगेंगे सुनवाई करने में, किस प्रकार की छवि बनेगी? किस प्रकार की छवि हमारे देश के प्रति बनेगी?
समय-समय पर ऐसे निर्णयों का आना यह बताता है कि इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है और आँकड़ों का विश्लेषण बहुत गहराई से होना चाहिए। क्योंकि आँकड़े ही हैं, जो विमर्श पैदा करते हैं, विमर्श बनाते हैं। अगस्त 2023 में भी ऐसा ही एक निर्णय आया था, जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पॉक्सो अधिनियम के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की थी।
सबसे बड़ी चिंता यह भी है कि बच्चों को यौन शोषण से बचाने वाला एक अच्छा कानून स्वार्थों का शिकार न बन जाए, बच्चों का कानूनी सुरक्षा कवच उतना सुरक्षात्मक न रह जाए।