सदियों के इन्तजार और संघर्ष के बाद आखिरकार अगस्त 05, 2020 का दिन हिन्दुओं की आस्था और उनके सांस्कृतिक गौरव के लिए ऐतिहासिक दिन है। मुझे बचपन से ही याद है जब दादाजी दूरदर्शन पर समाचार देखते हुए हमें बताते थे कि अयोध्या में कुछ हो रहा है, आडवाणी जी रथयात्रा कर रहे हैं।
तब हम बस यही सवाल पूछा करते थे कि भारत में श्रीराम जन्मभूमि पर उनके मंदिर के लिए जनजागरण की आवश्यकता क्या है? यहाँ तो हर किसी की आत्मप्रेरणा को यही कहना चाहिए कि वहाँ श्रीराम मंदिर बने, जहाँ भारतीय हिन्दू राम मंदिर बनाना चाहते हैं।
समय के साथ समझ बढ़ती गई तो यह भी देखने को मिला कि 2002 में श्रद्धालुओं से भरी साबरमती ट्रेन को कुछ कट्टरपंथियों ने जला दिया और इसे मुस्लिमों पर हुआ अत्याचार साबित कर दिया गया।
हम संचार और मीडिया की भाषा में उलझते हुए फिर भी सद्भाव प्रकट करते गए कि मुस्लिमों के साथ कुछ हुआ है, जो नहीं होना चाहिए था। धीरे-धीरे यह भाषा भारत का भविष्य बनते चली गई और देखते ही देखते हिन्दुओं को अपने ही देश में दोयम दर्जे का नागरिक साबित कर दिया गया।
हिन्दुओं को जब-जब पीड़ित किया गया, उनके साथ संवेदनाओं की कमी देखी गई। उनके प्रतीकों को लज्जित किया जाता रहा और उनकी संस्कृति का अपमान किया गया। यह कभी योग तो कभी आयुर्वेद, कभी गाय और कभी श्रीराम को अपमानित कर खूब होता रहा।
अब सवाल यह था कि यदि भारत का हिन्दू अपने ही देश में दोयम दर्जे का नागरिक है, तो फिर वह अपने लिए किस देश जाकर न्याय माँगे? उसके संविधान में धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता का जिक्र तो कर दिया गया था, लेकिन उसे सार्वजानिक जगहों पर तिलक लगाने के कारण उपहास का पात्र बनना पड़ा। उसके यज्ञोपवित पर भद्दे चुटकुले उसे उसी के देश में रहते टीवी से लेकर सड़कों तक पर सुनाई देने लगे।
इसमें सबसे बुरा दौर तब आया जब धूर्त कम्युनिस्टों ने कॉन्ग्रेस की शरण में मुस्लिम कट्टरपंथियों के सहारे युवाओं की एक नई पौध तैयार की, जो अपने सहपाठियों और सहकर्मियों को इस बात के लिए लज्जित करते कि वह ‘रिग्रेसिव’ है क्योंकि वह हिन्दू है और उसके माथे पर तिलक लगा है।
हालाँकि, हिन्दुओं का उपहास करने वाले यही लोग मुस्लिमों को उनके ईद और अन्य त्योहारों पर उन्हें जमकर बधाई और मुबारकबाद देते। कहते कि आज उन्होंने अपने मुस्लिम मित्र के घर सेवईंयाँ खाई।
फिर सोशल मीडिया पर नव-विचारकों का उद्भव हुआ और यह बातें कुछ ‘उदारवादी’ नजर आने वाले ‘स्तम्भकार’ जमकर लिखने लगे। वो दीपावली के दिन रंगीन लिबास में अपनी तस्वीरें तो शेयर करते देखे गए लेकिन किसी को पूरा मुँह खोलकर बधाई नहीं देते थे।
यह उदारवादी जन ईद और मुस्लिमों के हर पर्व पर रात के 12 बजने का इन्तजार करते और सहिष्णुता में डूबे हुए भाई-चारे वाले लेख लिखते। MNC और कॉरपोरेट ऑफिस में यह बहुत लोकप्रिय चलन देखा जाता है।
हम अपने मुस्लिम दोस्तों को उनके हर त्यौहार की बधाई देते लेकिन वो हमारे हर त्यौहार पर किसी रूठी हुई महबूबा की तरह खामोश नजर आए। तब हमें यह यकीन होना शुरू हुआ कि श्रीराम ‘भारत’ के विचार में तो हैं, लेकिन यह जनमानस की मूलभावना का हिस्सा अभी तक भी नहीं हैं।
हिन्दुओं ने खुद को हर बार अपने ही देश में रहकर उपेक्षित महसूस किया है और उन्हें ऐसा महसूस करने के लिए मजबूर भी किया जाता रहा। भारत के मन को समझने में भारत के नागरिकों ने बड़ी भूल की। खासकर उन लोगों ने, जो मुस्लिमों के त्योहारों पर खूब उत्साहित नजर आते रहे, उनके साथ बीफ पार्टी में उनके सहयोगी बने और आज जब सदियों से विवादित बताए गए हिन्दुओं की आस्था के सबसे बड़े प्रतीक के जश्न का दिन आया है, तब इस उदारवादी बिरादरी में मातम का माहौल है।
भारत के सेक्युलरिज्म के मुखौटे को नंगा करने के लिए यही तथ्य काफी है कि एकमात्र श्रीराम मंदिर के भूमिपूजन पर उच्चतम न्यायलय के फैसले के बावजूद मुस्लिम लॉ बोर्ड, और मुस्लिमों के तथाकथित नायक ओवैसी बंधुओं ने इस फैसले को ही मानने से मना करते हुए कहा है कि यह बाबरी मस्जिद ही था, है और रहेगा।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तो भूमिपूजन के ठीक पहले यह धमकी तक दे डाली है कि परिस्थितियाँ हमेशा यही नहीं रहेंगी। यह वही जुबान है, जिसे लेकर गजनवी भारत आया था, यह वही जुबान है, जिन मुस्लिम आक्रान्ताओं ने हिन्दुओं के मंदिरों को तहस-नहस कर, उन्हें लूटकर खुद को बुतशिकन की उपाधि देने वालों ने इस्तेमाल की थी।
इस संदेश का सिर्फ एक ही अर्थ है; इस देश में मुस्लिम सिर्फ तभी तक सेक्युलर हैं, जब तक उनके हितों का समर्थन कॉन्ग्रेस जैसी सत्ताओं के संरक्षण में होता रहे। और जिस दिन भारत का हिन्दू अपने अधिकारों की माँग करेगा, उस दिन मुस्लिम उन्हें याद दिलाएगा कि इतिहास में बाबर और औरंगजेब ने क्या किया था।
जिसे आप सेक्युलर कहते रहे, वहाँ 7वीं सदी से लेकर आज तक कुछ भी नहीं बदला है। जबकि हिन्दू हर बात पर उदार रहने के बावजूद भी कट्टर और ‘हेट मोंगर’ कहलाए। इतिहास गवाह है कि मुस्लिम हमेशा सिर्फ एक मुस्लिम रहा है, उसके शब्दकोश में कट्टर शब्द ही नहीं है क्योंकि मुस्लिम मजहबी कट्टरता का ही पर्याय है। जबकि, एक हिन्दू, हिन्दू होने के अलावा सब कुछ रहा।
वह सेक्युलर रहा, वह नास्तिक रहा, वह लज्जित हिन्दू रहा, उपेक्षित हिन्दू रहा और अब वह सेक्युलरिज्म का धोखा खाया हुआ हिन्दू है। आज हमारे उत्सव का समय है, इसे जाने नहीं दिया जाना चाहिए। आज खुद को श्रीराम से अलग बताने का समय नहीं है। आज आत्मविश्लेषण करते हुए यह सवाल खुद से पूछने का समय है कि आज आपकी ख़ुशी के इस अवसर में आपके कितने मुस्लिम और सेक्युलर मित्र आपके साथ खुश हैं?