भारत के न्यायालय में इन दिनों मैरिटल रेप अर्थात वैवाहिक बलात्कार को लेकर सुनवाई चल रही है। इसको लेकर अब सरकार ने भी सर्वोच्च न्यायालय में अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में नहीं लाया जाना चाहिए, क्योंकि महिलाओं की रक्षा के लिए कई कानून पहले से हैं।
केंद्र सरकार ने न्यायालय से कहा कि वैवाहिक बलात्कार का मामला कानूनी विषय के स्थान पर सामाजिक मुद्दा है और इसका समाज पर सीधा असर पड़ेगा। केंद्र सरकार का यह भी कहना था कि जब तक सभी हितधारकों के साथ विचार नहीं किया जाएगा, तब तक इस पर कोई भी निर्णय नहीं लिया जा सकता है।
पुरुष आयोग की अध्यक्ष होने के नाते मैंने अर्थात बरखा त्रेहन ने भी सर्वोच्च न्यायालय में यह याचिका दायर की है कि वैवाहिक संबंधों में बलात्कार को लेकर कोई भी निर्णय न लिया जाए। अपनी संस्था के माध्यम से मैं लगातार देखती रहती हूँ कि कैसे पुरुषों को किसी न किसी झूठे मामले में फँसाने की साजिश चलती रहती है।
आए दिन ऐसे मामले सामने आते रहते हैं, जिनमें पुरुषों को घरेलू मामलों में झूठा फँसाया जाता है। इस कारण से पुरुषों में आत्महत्या की दर भी बहुत अधिक बढ़ गई है। जब पुरुषों के खिलाफ इस सीमा तक पहले से ही दुराग्रह है तो ऐसे में वैवाहिक बलात्कार तो उसके खिलाफ एक बहुत बड़ा हथियार बन जाएगा।
आप ही बताएँ कि कैसे और कब कोई यह तय कर सकेगा कि बेडरूम में आखिर क्या हुआ था और इसकी सीमा में क्या-क्या आएगा? एक पति और पत्नी के बीच पचास तरह की लड़ाई होती है। ऐसे में यह कैसे तय हो पाएगा कि कब बलात्कार हुआ और कब आपसी सहमति से दोनों के बीच संबंध बने?
मैंने अपनी याचिका में भी कहा है कि यदि ऐसा ही रहेगा तो आज के युवा शादी करने से बचते फिरेंगे। वे शादी ही नहीं करेंगे, क्योंकि उन्हें इस बात का भय हमेशा रहेगा कि कब उन पर बलात्कारी होने का ठप्पा लग जाएगा? वैसे ही भारत के युवक अब शादी करने से बच रहे हैं। ऐसे में यह कानून इस समस्या को और बढ़ा देगा।
याचिका से हटकर भी यदि मैं कहूँ तो यह बहुत ही बेसिक सवाल है कि इस बात का निर्धारण कैसे होगा कि कब आपसी सहमति से संबंध हैं और कब नहीं? बलात्कार कोई ऐसा छोटा शब्द नहीं है, जिसे असहमति के दायरे में लाकर निर्धारित कर दिया जाए। एक पुरुष जो एक क्षण पहले तक पति रहा हो और दूसरे ही क्षण बलात्कारी हो जाएगा।
इतना ही नहीं, इस आरोप के बाद उसके बच्चों पर भी इसका गंभीर परिणाम पड़ेगा, क्योंकि इस बात का निर्धारण करने का कोई भी तरीका नहीं है कि कब संबंध असहमति से बने और फिर एक पवित्र संबंध के बच्चे बलात्कारी और पीड़िता के बच्चों में तुरंत ही बदल जाएँगे।
इससे बच्चों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह भी नहीं सोचा गया है। क्या बच्चे जीवन भर स्वयं के अस्तित्व से घृणा नहीं करने लगेंगे? मैरिटल रेप कहना बहुत सरल है, मगर इसके दुष्परिणाम अत्यंत व्यापक हैं। यह पूरी की पूरी सभ्यता को बलात्कारी घोषित करने का माध्यम है। यह पति-पत्नी के परस्पर संबंधों की हत्या का माध्यम है।