रणबीर कपूर अभिनीत ‘एनिमल’ बीते शुक्रवार (1 दिसंबर 2023) को रिलीज हुई। हालाँकि, इस फिल्म की रिलीज से पहले ही इसके ट्रेलर ने काफी चर्चा बटोरी थी। अगर अनुमानित आँकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर एक हफ्ते के अंदर ही दुनिया भर में 737 करोड़ रुपए की कमाई कर चुकी है, वहीं इसने भारतीय बॉक्स ऑफिस पर इसने 338 करोड़ रुपए की नेट कमाई कर ली है।
फिल्म का बजट 100 करोड़ रुपए का था। फिलहाल बॉक्स ऑफिस पर रणबीर कपूर का जलवा है, लेकिन इस सबके बीच एक सवाल उठता है कि संदीप रेड्डी वंगा के निर्देशन में बनी फिल्म ‘एनिमल’ में हिंसक और उत्तेजक दृश्यों की भरमार होने के बाद भी और इसकी अच्छी-खासी आलोचना होने के बावजूद भी इसके बॉक्स ऑफिस कलेक्शंस में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है।
बहुत हद तक किसी भी फिल्म की कमाई उसकी कामयाबी का पैमाना होती है। उस हिसाब से देखा जाए तो रणवीर कपूर, अनिल कपूर, बॉबी देओल, रश्मिका मंदाना, तृप्ति डिमरी के अभिनय से सजी ये फिल्म पूरी तरह से सफल कही जा सकती है। लेकिन जरूरी नहीं कि जो फिल्म हिट हो वो समाज के लिए मिसाल भी कायम करें। क्योंकि समाज का आईना कहा जाने वाला सिनेमा इस फिल्म के जरिए समाज को सही आईना नहीं दिखा पाया है। एक औरत, एक माँ, एक बहन और एक बाप-दादा के नजरिए से देखा जाए तो ये फिल्म पूरी तरह से नाकाम है।
शायद कोई भी परिवार ये स्वीकार नहीं कर पाएगा कि बाप के प्यार को तरसता उनके घर का बच्चा हिंसक या गैंगस्टर बने। थिएटर में फिल्म देखने जाने वाले कितने फीसदी लोग हैं जो इस बात को जायज ठहराएँगे कि बाप से प्यार करने वाला और उनके प्यार को तरसता बच्चा रणवीर सरीखा ‘एनिमल’ बनके बड़ा हो। शायद कोई इस बात को स्वीकार नहीं कर पाएगा।
बाप-बेटे के गहरे रिश्तों के इर्द-गिर्द बुनी गई ‘एनिमल’ फिल्म देखने के लिए थिएटर में घुसने से पहले भी आपके दिमाग में शायद यही रिश्ता चल रहा होता है। एक आम दर्शक की तरह जब साढ़े तीन घंटे की इस फिल्म का लुब्ब-ए-लुबाब समझ आता है, तब-तक आज की युवा पीढ़ी जो हर फिल्म को अपनी निजी जिंदगी से करीबी से जोड़ने की आदी हो, कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो फिर उनके दिलोदिमाग में दुनिया को तहस-नहस करने गैंगस्टर बन कर फतह हासिल करने की सोच के चरम तक पहुँचने से क्या इनकार किया जा सकता है।
फिल्म के मुख्य किरदार ‘रणविजय सिंह’ यानी रणबीर कपूर को ‘अल्फ़ा मेल’ बताया जा रहा है। ऐसा ‘अल्फा मेल’ जो पूरे वक्त अपने पिता यानी अनिल कपूर पर अपना असर छोड़ना चाहता है। इस सिलसिले में वो इस कदर अपनी ‘मर्दानगी’ दिखाने पर उतारू हो जाता है कि इश्क को साबित करने के लिए अपने से प्यार करने वाली महिला ‘जोया रियाज’ यानी तृप्ति डिमरी को अपने जूते चाटने को कहता है। पूरी फिल्म में रणवीर का ‘अल्फा मेल’ किरदार महिलाओं पर अपनी ‘मर्दानगी’ साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ता।
मेरे ख्याल से अल्फा मेल तो शायद ऐसा नहीं होता। वो तो प्लेबॉय बनने या महिलाओं के साथ फ़्लर्ट करने की सोचता तक नहीं। एक ‘अल्फ़ा मेल’ एक मजबूत शख्स होता है जो आजादी के साथ नेतृत्व करने में यकीन करता है। उसे बगैर शक-शुबहा खुद इस बात का साफ अंदाज़ा होता कि वह अपने जिंदगी से क्या चाहता है।
वो ‘एनिमल’ के रणबीर कपूर की तरह भटका और विध्वंसक प्रवृत्ति का तो नहीं ही होता है। उलटा फिल्म का किरदार बहन, परिवार की हिफाजत के नाम पर समाज के लिए सिरदर्दी बनने वाला तो कतई नहीं होता, क्योंकि ‘अल्फा मेल’ की तो मिसालें दी जाती हैं। ‘एनिमल’ में रणबीर कपूर के किरदार की तरह उसके सही रास्ते पर आने की दुआ नहीं माँगी जाती है और न ही पिता के प्यार को तरसता कोई बच्चा ‘अल्फा मेल’ की शक्ल में हैवानों सी हरकतें करने वाला जानवर बनता। पिता से प्रेम करने वाला बच्चा तो कतई इस कदर हिंसा को अंजाम देने वाला नहीं बन सकता है।
एक ऐसा ‘अल्फा मेल’ जो बहन की हिफाजत के लिए टीनएज में ही उसके कॉलेज में जाकर बंदूक तान दें और अपनी बीवी जो खुद उसकी बहन की तरह ही एक महिला है, उसके बचपन का प्यार है – उसे लेकर वो इतना संवेदनहीन हो जाए कि उसे गुस्से में ये तक कह डाले, “तुम एक महीने में चार पैड बदलती हो और उस पर नाटक करती हो, यहाँ मैं एक दिन में 50 पैड बदल रहा हूँ।”
यही नहीं, क्या आप पिता के प्यार को तरसते बच्चे का अपनी पत्नी के लिए इस तरह के रवैये को बर्दाश्त कर पाएँगे जो जन्म देने की प्रक्रिया या पूरे महिला समाज का ही मखौल उड़ाता दिखे। एक सीन में ‘रणविजय सिंह’ अपनी पत्नी ‘गीतांजलि’ यानी रश्मिका मंदाना से कहता है, “तुम्हारा पेडू बड़ा है, तुम सेहतमंद बच्चों को जन्म दोगी।”
इस फिल्म में ऐसा दिखाया गया है जैसे की पिता के प्यार को तरस कर बड़े हुए एक युवक को अपनी इस कमी को पूरा करने के लिए किसी के साथ भी हिंसा या वहशीपन करने का लाइसेंस मिल गया हो फिर भले ही वो उसकी पत्नी ही क्यों न हो। ‘एनिमल’ फिल्म का एक सीन इसी की बानगी है जिसमें रणबीर कपूर पत्नी रश्मिका को खुलेआम शारीरिक शोषण की धमकी ही नहीं देते बल्कि इसे सही ठहराते हुए कहते हैं, “मैं तुम्हें बहुत जोर से थप्पड़ मारूँगा। पहला चुंबन हुआ, पहला सेक्स हुआ, पहला थप्पड़ नहीं हुआ ना।”
इस फिल्म को वो सीन जिसमें रणवीर अपने पिता का किरदार निभा रहे अनिल कपूर से कहते हैं,”पापा लेट्स प्ले एक गेम, याद है आपको जब में 5th ग्रैड में था और बाम्बे में माइकल जैक्शन कंसर्ट हो रहा था जिनका मैं फैन था, मेरे सारे दोस्त गए थे, लेकिन मैं नहीं गया क्योंकि आपके बर्थडे था।” इस सीन में एक बेटा अपने बाप को याद दिला रहा है कि आपने मेरे साथ जैसा व्यवहार किया था अब उसे खुद पर भुगत कर देखो।
इस सीन के आधार पर अगर हर बच्चा अपने पैरेंट्स से कभी बचपन में गाहे-बगाहे, नजरअंदाज किए जाने, डाँटने, मारने का हिसाब बड़े होकर लेने लगे तो फिर शायद वो तो बच्चे पैदा करने से पहले 10 बार सोचे। शायद कोई भी पिता नहीं चाहेगा कि उसका बेटा रणबीर कपूर सा ‘एनिमल’ बने और हरिवंश राय बच्चन की इस कविता की तरह सवाल करें:
ज़िन्दगी और ज़माने की
कशमकश से घबराकर
मेरे बेटे मुझसे पूछते हैं कि
हमें पैदा क्यों किया था?
और मेरे पास इसके सिवाय
कोई जवाब नहीं है कि
मेरे बाप ने मुझसे बिना पूछे
मुझे क्यों पैदा किया था?
और मेरे बाप को उनके
बाप ने बिना पूछे उन्हें और
उनके बाबा को बिना पूछे उनके
बाप ने उन्हें क्यों पैदा किया था?
ज़िन्दगी और ज़माने की
कशमकश पहले भी थी,
आज भी है शायद ज्यादा…
कल भी होगी, शायद और ज्यादा…
तुम ही नई लीक रखना,
अपने बेटों से पूछकर
उन्हें पैदा करना।