Thursday, November 14, 2024
Homeविचारराजनैतिक मुद्दे'The Print' को पीयूष गोयल से दिक्कत है क्योंकि वो जनता के लिए अफसरों...

‘The Print’ को पीयूष गोयल से दिक्कत है क्योंकि वो जनता के लिए अफसरों की नहीं सुनते

2017 की शुरुआत में सरकार ने कई सुस्त अधिकारियों को समय-पूर्व सेवानिवृत्ति दे कर साफ़-साफ़ सन्देश दे दिया कि अगर पद पर बने रहना है तो ऊर्जावान बन कर कार्य करना पड़ेगा।

‘द प्रिंट’ को केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल से दिक्कतें हैं। समाचार पोर्टल को गोयल से एक नहीं बल्कि कई दिक्कतें हैं। प्रिंट ने रूही तिवारी का लिखा एक लेख छापा है, जिसमे कहा गया है कि केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल का उनके मातहत अधिकारियों के प्रति रवैया सही नहीं है। इसके लिए कोयला मंत्रालय के पूर्व केंद्रीय सचिव अनिल स्वरूप की पुस्तक ‘Not Just A Civil Servant’ का हवाला दिया गया है। बकौल प्रिंट, इस पुस्तक में कहा गया है कि पीयूष गोयल का मंत्रालय के अधिकारियों के प्रति रवैया बेस्वादु है, वे अपने मंत्रालय के अधिकारियों पर चिल्लाते हैं।

‘द प्रिंट’ का जबरदस्ती किया गया हिटजॉब

इस लेख का शीर्षक दिया गया है कि आईएएस अधिकारी पीयूष गोयल के फैन नहीं हैं। यह अजीब है, क्योंकि कोई नेता मंत्रालय में अधिकारियों को फैन बनाने नहीं जाता बल्कि जनता के लिए कार्य करने जाता है। वह ‘पीयूष गोयल’ हैं, ‘यो यो हनी सिंह’ नहीं, जो रैप कर के बाबुओं को अपना फैन बनाएँ। मजे की बात तो यह कि इस पुस्तक में पीयूष गोयल का कहीं भी नाम नहीं लिया गया है लेकिन चूँकि अक्टूबर 2014 से नवंबर 2016 तक स्वरूप कोयला मंत्रालय में कार्यरत थे और उसी दौरान पीयूष गोयल ही कोयला मंत्रालय संभाल रहे थे, इसीलिए प्रिंट ने गोयल को निशाने पर रखा। अन्य अधिकारियों ने भी प्रिंट की इस ‘खोज’ की ‘तस्दीक़’ की। बकौल प्रिंट, स्वरूप ने अपनी पुस्तक में लिखा है:

“जब मैं कोयला मंत्रालय में था तब एक मंत्री अधिकारियों पर चिल्लाया करते थे। मैंने उनसे कहा कि ‘आप लोगों के सामने इस तरह मेरे संयुक्त सचिव पर नहीं चिल्ला सकते। अगर आपको उनको डाँटना ही है तो आप उन्हें अपने कक्ष में बुला कर ऐसा कर सकते हैं। अगर आप ऐसे ही अधिकारियों पर चिल्लाते रहे तो मैं प्रधानमंत्री के पास जाकर अपने तबादले के लिए निवेदन करूँगा।’ इसके बाद उन्होंने मेरे सामने अधिकारियों को डाँटना बंद कर दिया लेकिन अन्य जगहों पर वे ऐसा करते रहे।”

एक अधिकारी ने ‘द प्रिंट’ को बताया कि तीन महीने तक कार्यवाहक वित्त मंत्री का प्रभार सँभालने के दौरान भी उनके अधिकारियों के साथ झगड़े होते थे। गोयल ने अधिकारियों की आपत्ति को दरकिनार करते हुए जीएसटी दर को कम करने का प्रस्ताव किया। अधिकारियों ने जीएसटी रेट कम नहीं करने की सलाह दी, लेकिन फिर भी उन्होंने ऐसा किया। इसीलिए प्रिंट ने गोयल को अधिकारियों के साथ अशिष्ट व्यवहार करने वाला बताया है।

कैसे मोदी के आते ही ख़त्म हुआ बाबू कल्चर

जैसा कि किसी से छिपा नहीं है, जब नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने थे तब मंत्रालयों की स्थिति ऐसी थी कि वहाँ अधिकारीगण का ही राज चलता था। एक ताक़तवर प्रधानमंत्री वक़्त की ज़रूरत था, न सिर्फ़ जनता के लिए बल्कि सरकारी बाबुओं को नियंत्रित करने के लिए। ब्यूरोक्रेसी की तो हालत यह रही है कि ख़ुद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने कहा था कि अगर केंद्र सरकार किसी ग़रीब को 1 रुपया भेजती है तो उसके पास मात्र 15 पैसे ही पहुँच पाते हैं। डॉक्टर मनमोहन सिंह के कार्यकाल में उनके ही मंत्रियों पर उनका पूरा नियंत्रण नहीं रहता था, ऐसे में सरकारी बाबुओं व उच्चाधिकारियों का कहना ही क्या। मोदी के रूप में एक शक्तिशाली पीएम के आने के बाद यह कल्चर बदला।

मोदी के पीएम बनने के लगभग एक महीने बाद जून 2014 में हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि मंत्रालयों के अधिकारियों के वर्किंग कल्चर में प्रत्यक्ष बदलाव आया है। मोदी के आने के बाद उन पर काम करने का दबाव बढ़ा, पीएम की एनर्जी के आगे फीका पड़ने का डर बढ़ा और अधिकारी समय पर दफ्तर पहुँचने लगे। इस रिपोर्ट में पर्यावरण विभाग के एक अधिकारी ने बताया था कि वे अब सिर्फ़ समय पर ऑफिस ही नहीं आते बल्कि एक समय-सीमा के भीतर फाइलों का तुरंत निपटारा भी करते हैं। इसके लिए उन्हें देर तक बैठना पड़ता है।

मोदी के सत्ता सँभालने के बाद लम्बे और सुस्त लंच ब्रेक पर जाने वाले बाबू डेस्क पर ही जल्दी-जल्दी खाने लगे। नियमित बैठकों का दौर चल पड़ा और प्रत्येक योजनाओं पर अधिकारियों की राय ली जाने लगी। इसके बाद अधिकारियों के पास होम-वर्क कर के आने के सिवाय और कोई चारा ही नहीं बचा। अगर मुखिया सख़्त है तो सरकार भी सही से चलती है। ऐसे में मोदी के मंत्रियों ने भी ऐसे बाबुओं पर शिकंजा कसा और उन्हें जनहित के कार्य में लगाया, तो दिक्कत क्या है? उनके काम-काज के तरीके सही हुए हैं, इसमें भी बुराई खोजना कहाँ तक उचित है?

गोयल ने GST दर घटाने का प्रस्ताव अपने लिए लाया था क्या?

‘द प्रिंट’ ने कहा है कि पीयूष गोयल जीएसटी दर में कटौती के लिए अड़ गए और अधिकारियों की एक न सुनी। यह जनता के लिए खुश होने वाली बात है। जैसा कि उसी रिपोर्ट में बताया गया है, ऐसे किसी भी प्रस्ताव के लिए एक सप्ताह पहले सर्कुलर जारी करना होता है लेकिन गोयल ने बैठक में इसे तुरंत प्रस्तावित किया। यह सरकार, जनता व सिस्टम- तीनों के लिए ही अच्छे संकेत हैं। यह दिखता है कि मोदी कैबिनेट के मंत्री किस तरह से कार्य करते हैं। अगर जनहित से जुड़े मुद्दों पर सर्कुलर जारी करने, उस पर अमल करने और उसे ज़मीन पर उतारने में महीनों की बजाय कुछ मिनट्स ही लग रहे हैं, तो दिक्कत क्या है?

सरकार का सीधा सन्देश है कि अब बाबूगिरी नहीं चलेगी। अब फाइल इस मंत्रालय से उस मंत्रालय धूल नहीं फाकेंगे बल्कि उन पर तुरंत निर्णय होगा। वैसे भी, पीएम मोदी त्वरित कार्रवाई में विश्वास रखते हैं और अधिकारीगण भी अब समझ गए हैं कि जनता से जुड़े मुद्दों पर सरकार गंभीर है, सचेत है और त्वरित कार्रवाई में भरोसा रखती है। हमें ‘द प्रिंट’ को धन्यवाद करना चाहिए क्योंकि पीयूष गोयल को नकारात्मक दिखाने के चक्कर में उसने अनजाने में मोदी सरकार के एक अच्छे पहलू को उजागर कर दिया। सरकार ने अधिकारियों को अनुशासित करने के लिए एक बेंचमार्क सेट किया, उसके परिणाम अब दिख रहे हैं।

मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही आईएएस अधिकारियों को उनकी संपत्ति सार्वजनिक करने को कहा। पीएम मोदी ने सबसे पहले अपनी संपत्ति का ब्यौरा दे कर पीएमओ के अन्य अधिकारियों को भी इसके लिए प्रेरित किया। भ्रष्टाचार और आलस से पीड़ित ब्यूरोक्रेसी में अमूल-चूल बदलाव यूँ ही संभव नहीं हुआ है, इसके लिए पीएम ने स्वयं उदाहरण साबित किया है। मोदी सरकार ने बाबुओं का परफॉरमेंस ट्रैक करने से लेकर ‘अंडर-अचीवर’ अधिकारियों पर कार्रवाई करने तक- हर तरफ से अफसरशाही पर वार किया। 2017 की शुरुआत में सरकार ने कई सुस्त अधिकारियों को समय-पूर्व सेवानिवृत्ति दे कर साफ़-साफ़ सन्देश दे दिया कि अगर पद पर बने रहना है तो ऊर्जावान बन कर कार्य करना पड़ेगा।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

कश्मीर को बनाया विवाद का मुद्दा, पाकिस्तान से PoK भी नहीं लेना चाहते थे नेहरू: अमेरिकी दस्तावेजों से खुलासा, अब 370 की वापसी चाहता...

प्रधानमंत्री नेहरू पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद सुलझाने के लिए पाक अधिकृत कश्मीर सौंपने को तैयार थे, यह खुलासा अमेरिकी दस्तावेज से हुआ है।

‘छिछोरे’ कन्हैया कुमार की ढाल बनी कॉन्ग्रेस, कहा- उन्होंने किसी का अपमान नहीं किया: चुनावी सभा में देवेंद्र फडणवीस की पत्नी को लेकर की...

कन्हैया ने फडणवीस पर तंज कसते हुए कहा, "हम धर्म बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं और डेप्युटी सीएम की पत्नी इंस्टाग्राम पर रील बना रही हैं।"

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -