मोतिहारी लोकसभा सीट से इस बार मुक़ाबला काफ़ी दिलचस्प होने वाला है। यहाँ से केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। स्थानीय स्तर पर भाजपा एवं आरएसएस संगठन में लम्बे समय से सक्रिय अनुभवी राधामोहन के सामने इस बार युवा आकाश सिंह चुनौती पेश कर रहे हैं। आकाश पूर्व केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री अखिलेश प्रसाद सिंह के पुत्र हैं। एक तरह से देखा जाए तो यह मुक़ाबला दो ऐसे दिग्गजों के बीच है जिनमें से एक वर्तमान में केंद्रीय मंत्री हैं तो एक केंद्रीय राज्यमंत्री रह चुके हैं। इसे संयोग कहें या कुछ और लेकिन दोनों ही नेताओं के पास कृषि मंत्रालय की ही ज़िम्मेदारी थी या है। दोनों ही नेता अपनी-अपनी पार्टी के संगठन में अहम पद संभाल चुके हैं। जहाँ राधामोहन बिहार भाजपा के अध्यक्ष रह चुके हैं तो वहीं अखिलेश राज्य में कॉन्ग्रेस प्रचार समिति के अध्यक्ष हैं।
राधामोहन सिंह ने हाल ही में 9वीं बार मोतिहारी लोकसभा सीट से नामांकन दाखिल किया। पुराने परिसीमन में इस सीट को पूर्वी चम्पारण के नाम से जाना जाता था। 9 बार में से उन्हें 5 बार जीत मिली है। वे 1989, 1996, 1999, 2009 और 2014 के चुनावों में जीत चुके हैं। जब राधामोहन सिंह नामांकन दाखिल करने निकले थे, तब उनके साथ गाड़ी में शिवहर सांसद रमा देवी भी थीं। दोनों ने साथ में ही नामांकन दाखिल किया। मज़े की बात तो यह कि 1998 में इन्हीं रमा देवी ने राजद के टिकट पर लड़ते हुए राधामोहन सिंह को मात दी थी। चम्पारण की राजनीति ऐसी है कि 2015 में पूरे बिहार में जदयू-राजद का कब्ज़ा हुआ तब भी यहाँ से भगवा ही लहराया। फलस्वरूप वर्तमान भाजपा-जदयू गठबंधन सरकार में ज़िले को 2 मंत्री मिले।
ताज़ा समीकरण से पहले जरा इतिहास की बात कर लेते हैं। अनुभवी राधामोहन सिंह के सामने आकाश सिंह हैं जो इस क्षेत्र के लिए तो नए नहीं हैं लेकिन उनके लिए ये क्षेत्र नया ज़रूर है। आकाश सिंह पहले यहाँ सक्रिय नहीं रहे हैं। कहा जाता है कि राधामोहन और आकाश के पिता अखिलेश में ईगो का टकराव चलता है। लालू यादव के विश्वस्त सिपाहसलारों में से एक माने जाने वाले अखिलेश ने जब राजद छोड़ी थी, तब उन्हें भाजपा में शामिल होने का ऑफर दिया गया था लेकिन राधामोहन के साथ ईगो क्लैश के कारण उन्होंने कॉन्ग्रेस की डूबती नैया को पार लगाने की ज़िम्मेदारी ली। मज़े की बात तो यह कि अखिलेश ख़ुद कॉन्ग्रेस में अहम पद संभाल रहे हैं और राज्यसभा सांसद भी हैं लेकिन उनके बेटे रालोसपा से चुनाव लड़ रहे हैं।
इसके पीछे भी गणित है। जदयू नेता नागमणि की माने तो पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की छवि अब एक ‘टिकट बेचवा’ की हो गई है। उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा हाल तक केंद्र में सत्ता की भागीदार थी लेकिन चुनाव से पहले कुशवाहा ने राजग छोड़कर बिहार महागठगबंधन का दामन थाम लिया। नागमणि कहते हैं कि प्रदीप मिश्रा से पार्टी मद में 15 करोड़ रुपए ख़र्च कराने के बावजूद उन्हें टिकट नहीं दिया गया। इसके बाद माधव आनंद ने पार्टी मद में 9 करोड़ रुपए दिए लेकिन उन्हें भी टिकट से नदारद रखा गया। प्रदीप मिश्रा ने ख़ुद इस बात को स्वीकार किया कि उनसे रुपए ले लिए गए लेकिन टिकट नहीं दिया गया। पार्टी के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष नागमणि और पूर्व महासचिव प्रदीप, दोनों ही रालोसपा छोड़ चुके हैं। सीतामढ़ी से रालोसपा के टिकट पर सांसद बने रामकुमार शर्मा ने भी उपेंद्र कुशवाहा पर मोतिहारी की टिकट बेचने का आरोप मढ़ा है।
जहाँ बिहार में जात-पात की राजनीति सर चढ़कर बोलती है। मोतिहारी में अखिलेश सिंह का भूमिहार जाति के बीच अच्छा प्रभाव माना जाता है लेकिन 2014 मोदी फैक्टर के कारण जातीय समीकरण के बहुत हद तक टूट जाने से इस बार सवर्ण मत विभाजित नज़र आ रहा है। क्षेत्र के एक और स्थानीय युवा अनिकेत पांडेय भी निर्दलीय ताल ठोक रहे हैं और मेहनती छवि व कृषक परिवार से होने के कारण उनके पक्ष में भी युवाओं की एक विशेष लामबंदी दिख रही है। जहाँ अनिकेत अपनी स्थानीय किसान वाली छवि के साथ चुनाव लड़ रहे हैं वहीं आकाश 2004-09 के बीच अपने पिता द्वारा किए गए कार्यों को लेकर मैदान में उतरे हैं। लेकिन, मोतिहारी चुनाव का मुख्य मुद्दा कुछ और ही है।
चीनी मिल है मोतिहारी का प्रमुख मुद्दा
मोतिहारी में प्रमुख चुनावी मुद्दा है- चीनी मिल। कभी गन्ना उत्पादन का हब रहा क्षेत्र आज एक अदद चीनी मिल को तरस रहा है। 2 साल हुए जब अप्रैल 2017 में दो किसानों ने ख़ुद को जलाकर आत्महत्या कर ली थी। चीनी मिल चालू कराने व बकाए के भुगतान को लेकर केंद्रीय कृषि मंत्री के क्षेत्र में इस तरह की घटना से क्षेत्र में रोष पैदा हुआ। 2014 चुनाव के दौरान हुई एक रैली में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि जब वो अगली बार यहाँ आएँगे तो चीनी मिल में बनी चीनी की चाय पिएँगे लेकिन अभी तक इस मामले में कोई प्रोग्रेस नहीं हुआ है। जब पत्रकारों ने कृषि मंत्री से इस बाबत सवाल किया तो वह झेंप गए। अब भाजपा के लिए ये मुद्दा उसकी किरकिरी कारण बनता जा रहा है लेकिन अनुभवी राधामोहन ने बड़ी चालाकी से राष्ट्रीय मुद्दों को उछाल दिया है।
जून 2017 में मृत किसानों की विधवाओं सहित कई अन्य कृषकों ने भी जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया था। लेकिन, मोतिहारी में लम्बे समय से सक्रिय राधामोहन सिंह को क्षेत्र की ख़ूबी-ख़ामियों का बख़ूबी पता है क्योंकि वो छात्र जीवन से ही संघ और बाद में जनसंघ का झंडा उठाकर चलते रहे हैं। भाजपा की तरफ़ से 1989 में पहली बार जीतने वाले राधामोहन सिंह ने नरेंद्र मोदी के गीत ‘मैं देश नहीं झुकने दूँगा’ को अपने प्रचार अभियान का थीम बना दिया है क्योंकि उन्हें भरोसा है कि जनता मोदी के चेहरे के कारण उन्हें वोट करेगी। राधामोहन सिंह साइलेंट प्रचार अभियान के लिए जाने जाते हैं लेकिन उनके केंद्रीय मंत्री होने के कारण क्षेत्र को ज़्यादा की अपेक्षा थी। ऊपर से 19 वर्षों का कार्यकाल होने के कारण Anti-Incumbency तो है लेकिन अभी भी अनुभव भारी पड़ रहा है।
क्या है स्थानीय युवाओं की राय
शहर के पुराने राजनीतिक खानदान से आने वाले युवा रॉय राघव शर्मा कहते हैं कि इस चुनाव में प्रत्येक दलों व उनके समर्थकों द्वारा खुलेआम ख़र्च किया जा रहा है, ऐसा प्रतीत होता है। हालाँकि, उन्होंने यह भी कहा कि पुराना अनुभव और विपक्ष में मज़बूत प्रत्याशी न होने के कारण राधामोहन सिंह की जीत मतगणना के दिन 12 बजे तक ही सुनिश्चित हो जाएगी। राघव का परिवार पुराने समय से ही जनसंघ से जुड़ा रहा है लेकिन मेडिकल की पढ़ाई कर रहे जागरूक राघव अभी ख़ासकर वोट करने के लिए महाराष्ट्र से बिहार आए हैं। वहीं ख़ुद को निष्पक्ष बताते हुए एक अन्य युवा प्रणय राज कहते हैं कि चूँकि राधामोहन सिंह ने कुछ ख़ास कार्य नहीं किया है, इसीलिए उन्हें वोट नहीं करेंगे। विकल्प क्या है, पूछने पर राजनीतिक विश्लेषक प्रणय कहते हैं कि वे निर्दलीय अनिकेत को ही वोट कर देंगे।
#Bihar: बीजेपी सांसद @ManojTiwariMP ने राधा मोहन सिंह के लिए मांगा वोट. pic.twitter.com/u0heATAzXt
— Zee Bihar Jharkhand (@ZeeBiharNews) April 21, 2019
2015 विधानसभा चुनावों में कोलकाता से बिहार पहुँचकर वोट करने वाले स्थानीय युवा आनंद कुमार कहते हैं कि पार्टी और प्रधानमंत्री के नाम पर क्षेत्र में राधामोहन ही एक विकल्प है। हालाँकि वामपंथियों के ख़िलाफ़ क्षेत्र और सोशल मीडिया में मुखर रहे आनंद मेहनती अनिकेत के प्रति भी सहानुभूति जताते हैं लेकिन उन्हें जिताऊ नहीं मानते। वहीं एक अन्य युवा शुभम ठाकुर अखिलेश के प्रशंसक हैं और आकाश को जिताऊ उम्मीदवार मानते हैं लेकिन राधामोहन सिंह के बारे में पूछने पर कहते हैं की टक्कर बराबरी का है। स्थानीय युवाओं की राय देखें तो कुछ जाति के कारण आकाश के पक्ष में लामबंद हैं, कुछ स्थानीय उम्मीदवार होने के कारण अनिकेत की तरफ़ हैं लेकिन युवाओं की भारी तादाद अभी भी भाजपा और मोदी को लेकर आश्वस्त है।
क्या कहता है पिछ्ला समीकरण?
अगर पिछले समीकरणों की बात करें तो राधामोहन सिंह को 4 लाख के क़रीब मत प्राप्त हुए थे। उनके प्रतिद्वंदी विनोद कुमार श्रीवास्तव को 2 लाख के क़रीब मत मिले थे और तीसरे नंबर पर रहे स्थानीय दिग्गज अवनीश कुमार सिंह को सवा 1 लाख मत प्राप्त हुए थे। अगर दूसरे और तीसरे नंबर पर रहे प्रत्याशियों के मत मिला भी दें तो राधामोहन सिंह 75,000 के लगभग वोटों से भारी पड़ते हैं। हाल ही में राजद से टिकट न मिलने पर विनोद श्रीवास्तव रो पड़े थे। 2009 में उन्होंने अखिलेश सिंह को हराया था। अब राधामोहन ज़ोर-शोर से हैट्रिक की तैयारी में लगे हैं लेकिन उनके सामने चुनौती पेश कर रहे युवा उम्मीदवार भी दमदार हैं। नामांकन के दिन राधामोहन जब युवा आकाश से टकरा गए तो उन्होंने आकाश को आशीर्वाद भी दिया था। आकाश ने फेसबुक के माध्यम से बताया कि उन्हें ‘राधामोहन चाचा’ की तरफ से विजयी भव का आशीर्वाद मिला है।
कहा जा रहा है कि विनोद कुमार श्रीवास्तव का टिकट कटने और उनका रोते हुए वीडियो वायरल होने से कायस्थ समाज भी राजद ने नाराज़ चल रहा है और उनका वोट श्याद ही महागठबंधन को जाए। लालू यादव के जेल में होने से यादव मतदाता राजद के लिए कितना लामबंद है, इस पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है। भाजपा ने भूमिहारों को विधान परिषद व अन्य पद देने का वादा कर इस जाति को साधने की कोशिश की है। सीपी ठाकुर को आनन-फानन में दिल्ली बुलाकर मनाया गया है। महाचंद्र प्रसाद सिंह को बीच चुनाव में भाजपा में शामिल किया गया। सवाल यह है कि मोतिहारी में अगर मोदी या नीतीश की रैली होती है, उसके बाद क्या माहौल बनता है? हाल ही में वहाँ पहुँचे मनोज तिवारी भी राधामोहन के लिए प्रचार में दिखे थे।