अपनी पार्टी की अक्षमता को पहचानते हुए कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता एके एंटनी ने बयान दिया है, कि भाजपा को हराने के लिए कॉन्ग्रेस को किसी विपक्षी पार्टी का हाथ थामना ही पड़ेगा। उनका मानना है कि भाजपा को लोकसभा चुनावों में हराना कॉन्ग्रेस के वश की बात नहीं है।
केरल प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी की बैठक में शुक्रवार को पूर्व रक्षा मंत्री ने बताया है कि कॉन्ग्रेस को ये एहसास हो चुका है कि वो बीजेपी को अकेले चुनावों में हराने में समर्थ नहीं हैं। उन्होंने अपनी बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने के लिए महागठबंधन की ज़रूरत पर जोर दिया।
तिरुवनंतपुरम में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए एके एंटोनी ने कहा कि कॉन्ग्रेस अकेले नरेंद्र मोदी को सत्ता से नहीं हटा सकती है। लेकिन फिर भी मोदी को सत्ता से बाहर करने के लिए चलाए जा रहे अभियानों में कॉन्ग्रेस बेहद महत्वपूर्ण ताक़त है। इसलिए बीजेपी को हराने के लिए कॉन्ग्रेस को गठबंधन की तरफ रुख़ करना पड़ेगा।
उनके अनुसार कॉन्ग्रेस ही एक ऐसी राजनैतिक ताकत है, जो मोदी शासन के ख़िलाफ़ लड़ाई को लड़ सकती है। आने वाले समय में कॉन्ग्रेस को अलग-अलग राज्यों में उन सभी पार्टियों के साथ गठबंधन की पहल करनी चाहिए जो उनके इस कदम में उनका साथ देना चाहें।
एके एंटनी जो कि कॉन्ग्रेस कार्य कमेटी के अध्यक्ष भी हैं, उनका ऐसा मानना है कि राहुल गाँधी ही ऐसे व्यक्ति हैं, जिनसे नरेंद्र मोदी को लोकसभा के चुनावों में डर है। उन्होंने अपनी पुरानी बात को दोहराते हुए कहा कि सोनिया गाँधी के 48 साल के बेटे राहुल गाँधी, अब उस उम्र में आ चुके हैं कि वो कॉन्ग्रेस का नेतृत्व कर सकें। उनका कहना है कि राहुल गाँधी एक सशक्त नेता के रूप में उभर कर आए हैं, जो अब नरेंद्र मोदी से लड़ने के लिए बिल्कुल तैयार हैं।
लोकसभा चुनावों को कुरूक्षेत्र की लड़ाई बताते हुए कॉन्ग्रेस लीडर ने कहा कि देश को बचाने के लिए साम्प्रदायिक ताक़तों को सत्ता से हटाना बेहद ज़रूरी है। उन्होंने आगामी आम चुनावों के लिए टिकट वितरण में देरी के ख़िलाफ़ राज्य के कॉन्ग्रेस नेताओं को आगाह किया। उन्होंने कहा- “निर्णय को ज़िला कमेटी द्वारा आना चाहिए, टिकट के चुनावों को लोकतांत्रिक तरह से किया जाना चाहिए, न कि कुछ लोगों द्वारा इसका फ़ैसला किया जाना चाहिए।”
एक तरफ़ जहाँ कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता दूसरी पार्टियों से हाथ मिलाना चाहते हैं, वहीं पर ऐसा लगता है जैसे दूसरी पार्टियाँ कॉन्ग्रेस से जुड़ने में असमंजस की स्थिति में हैं। अभी हाल ही में हमना देखा है कि किस तरह भाजपा को हराने के लिए उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा ने कॉन्ग्रेस को सरासर नज़रअंदाज़ करते हुए गठबंधन किया । इस तरह उपेक्षित होने पर कॉन्ग्रेस ने अकेले लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश की 80 सीटों पर लड़ने का निर्णय किया है।
अब देखना ये है कि कौन-सा गठबंधन मोदी को सत्ता से हटाने में सफल हो पाता है। क्योंकि, राजनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक शख़्स को हराने के लिए पूरा विपक्ष एक दूसरे से हाथ मिलाने को तैयार हो। साथ ही, इससे ज़्यादा कन्फ़्यूज़्ड गठबंधन कभी दिखा भी नहीं।