भारत और फ्रांस के बीच हुए राफेल सौदे पर शीर्ष अदालत ने अपना फैसला देते हुए कहा है कि इस करार में नियमों का उल्लंघन नहीं हुआ है और इस मामले में अदालत द्वारा किसी भी प्रकार की छानबीन की जरूरत नहीं। इस मामले में मोदी सरकार को क्लीन चिट मिलते ही राजनितिक दलों और नेताओं की बयानबाज़ी भी तेज हो गई है। आइये सबसे पहले संक्षिप्त में जानते हैं कि राफेल सौदा है क्या और इसपर विवाद क्यों हुआ।
अप्रैल 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पेरिस दौरे के दौरान फ्रांस से 36 राफेल जेट खरीदने की घोषणा की। इस सौदे के पीछे भारतीय वायु सेना की ऑपरेशनल जरूरतों का हवाला दिया गया। इस योजना पर अंतिम निर्णय 2016 में लिया गया जब लगभग 59000 करोड़ रुपये की इस डील के लिए दस्तखत किये गए। इसी साल अनिल अम्बानी की रिलायंस डिफेंस और दसौल्ट ने आधिकारिक रूप से एक दूसरे के साथ संयुक्त परियोजना पर काम करने की घोषणा भी की। इसके बाद आरोपों का दौर शुरू हुआ जब कांग्रेस ने ये दावा किया कि यूपीए सरकार ने 126 फाइटर जेट का डील किया था और वो भी तुलनात्मक रूप से कम लगत में। साथ ही कई बयानों में सरकार पर कम्पनी विशेष को फायदा पहुंचाने का आरोप भी लगाया गया।
वहीं शीर्ष अदालत ने राफेल में हुई कथित अनियमितताओं को लेकर दायर की गई याचिकाओं पर आज फैसला देते हुए कहा कि इस सौदे को लेकर और विमान खरीद प्रक्रिया पर उन्हें कोई शक नहीं है और अदालत इस मामले में अब कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहती है। अदालत के इस निर्णय को जहाँ भाजपा द्वारा सरकार को क्लीन चिट के तौर पर देखा गया वहीं संसद में भी इस मामले को लेकर हंगामा हुआ जिसके कारण संसद की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने प्रेस कांफ्रेंस करते हुए कहा:
“राफेल सौदे के संबध में आये सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हम स्वागत करते हैं। आज सत्य की जीत हुई है। देश की आज़ादी के बाद से एक कोरे झूठ के आधार पर देश की जनता को गुमराह करने का इससे बड़ा प्रयास कभी नहीं हुआ और ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह प्रयास देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष के द्वारा किया गया। कांग्रेस अध्यक्ष ने अपने और अपनी पार्टी के तत्काल फायदे के लिए झूठ का सहारा लेकर चलने की एक नई राजनीति की शुरुआत की और सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने आज सिद्ध कर दिया है कि झूठ के पैर नहीं होते और अंत में जीत सत्य की ही होती है।”
अमित शाह ने राफेल खरीद के सम्बन्ध में देश की जनता को गुमराह करने और सेना के बीच में सन्देश पैदा करने के लिए राहुल गांधी को देश की जनता से मांफी मांगने की भी सलाह दी। उन्होंने आगे कहा:
“कांग्रेस पार्टी एक काल्पनिक जगत बनाकर बैठी हुई है जिसमें सच और न्याय की कोई जगह नहीं है। सवाल भी कांग्रेस पार्टी खड़े करती है, वकील भी वही हैं और न्यायाधीश भी वहीं है। आज कांग्रेस पार्टी देश के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर सवाल खड़ा कर रही है।”
उधर कांग्रेस कि तरफ से बयान देते हुए रणदीप सिंह सुरजेवाला ने दावा किया कि उनकी पार्टी शुरू से ही इस मामले की जाँच जेपीसी से कराने के पक्ष में है और वो आज भी इस मांग पर अड़े हैं। उन्होंने कहा:
“हमने पहले ही कहा था कि सुप्रीम कोर्ट राफेल के भ्रष्टाचार की जांच नहीं कर सकता क्योंकि नियमों के तहत उसका दायरा सीमित है. इसलिए हमने न्यायालय का रुख नहीं किया था.’ कांग्रेस नेता ने कहा, ‘इस मामले में भ्रष्टाचार की कई परते हैं. इसकी छानबीन सिर्फ जेपीसी जांच से हो सकती है. इसमें तथ्य और साक्ष्य दोनों की छानबीन होनी है।”
साथ ही सुरजेवाला ने ये भी दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी जेपीसी द्वारा जाँच कराने से डर रहे हैं। ज्ञात हो कि जेपीसी का अर्थ होता है ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमेटी। यह संसद की वह समिति होती है जिसमें सभी दलों की समान भागीदारी हो। जेपीसी को यह अधिकार है कि वह किसी भी व्यक्ति, संस्था या किसी भी उस पक्ष को बुला सकती है जिसको लेकर जेपीसी का गठन हुआ है।
वहीं राफेल मामले में सरकार के खिलाफ याचिका दायर करने वाले आप के निष्काषित नेता और वकील प्रशांत भूषण ने तो शीर्ष अदालत के निर्णय को ही गलत बताते हुए कहा कि मेरा मानना है कि राफेल लड़ाकू विमान सौदे मामले पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय पूरी तरह गलत है। उन्होंने कहा कि सौदे को लेकर शुरू किया अभियान सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद भी नहीं रोका जाएगा. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद हम पुर्नविचार याचिका दायर करने की संभावनाओं पर जल्द ही निर्णय ले सकते हैं।