केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जम्मू कश्मीर के ताज़ा हालातों का विश्लेषण करते हुए एक ब्लॉग लिखा है, जिसमें उन्होंने आर्टिकल 35-A पर निशाना साधा है। हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि कैसे यह आर्टिकल दलित विरोधी है और दलितों पर इसके कितने दुष्प्रभाव हुए हैं। हम जेटली के ब्लॉग में लिखी महत्वपूर्ण बातों को जानेंगे, लेकिन उस से पहले समझते हैं कि आर्टिकल 35A क्या है?
- दूसरे राज्य का कोई भी व्यक्ति जम्मू-कश्मीर का स्थाई निवासी नहीं बन सकता है।
- जम्मू-कश्मीर के बाहर का कोई भी व्यक्ति यहाँ पर अचल संपत्ति नहीं खरीद सकता।
- इस राज्य की लड़की अगर किसी बाहरी लड़के से शादी करती है, तो उसके सारे प्राप्त अधिकार समाप्त कर दिए जाएँगे।
- राज्य में रहते हुए जिनके पास स्थायी निवास प्रमाणपत्र नहीं हैं, वे लोकसभा चुनाव में मतदान कर सकते हैं लेकिन स्थानीय निकाय चुनाव में वोट नहीं कर सकते हैं।
- इस अनुच्छेद के तहत यहाँ का नागरिक सिर्फ़ वही माना जाता है जो 14 मई 1954 से पहले के 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो या फिर इस बीच में यहाँ उसकी पहले से कोई संपत्ति हो।
आर्टिकल 35A पर अरुण जेटली के विचार, उन्हीं के शब्दों में
अनुच्छेद 35A को 1954 में संविधान में राष्ट्रपति द्वारा एक अधिसूचना जारी कर शामिल किया गया था। यह न तो संविधान सभा द्वारा तैयार किए गए मूल संविधान का हिस्सा था और न ही संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संवैधानिक संशोधन के रूप में आया था, जिसमें दोनों सदनों के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। संसद के सदन पर यह राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचना के रूप में आया जो कि संविधान में एक छल से की हुई शासनात्मक प्रविष्टि है।
Nehruvian vision on Jammu & Kashmir was not correct. It’s time now that the journey from separate status to separatism be stopped. pic.twitter.com/n4AxetCa9A
— Chowkidar Arun Jaitley (@arunjaitley) March 28, 2019
यह आर्टिकल राज्य सरकार को राज्य में रह रहे नागरिकों के बीच स्थानीय बनाम बाहरी के रूप में भेदभाव करने का अधिकार देता है। यह राज्य के नागरिकों व भारत के अन्य राज्य के नागरिकों के बीच भेदभाव करता है। जम्मू और कश्मीर में लाखों भारतीय नागरिक लोकसभा चुनावों में वोट देते हैं लेकिन विधानसभा, नगरपालिका या पंचायत चुनावों में नहीं। उनके बच्चों को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती। उनके पास संपत्ति नहीं हो सकती और उनके बच्चे सरकारी संस्थानों में भर्ती नहीं हो सकते। यही बात उन लोगों पर भी लागू होती है, जो देश में अन्यत्र रहते हैं। राज्य के बाहर शादी करने वाली महिलाओं के उत्तराधिकारियों को संपत्ति या विरासत में मिली संपत्ति से वंचित कर दिया जाता है।
अनुच्छेद 35A संविधान में चुपके से जोड़ा गया था। इससे राज्य में निवेश और रोजगार सृजन रुक गया और इसका खामियाजा राज्य की जनता को भुगतना पड़ रहा है। pic.twitter.com/9k0ibP4yqS
— Chowkidar Arun Jaitley (@arunjaitley) March 28, 2019
आज की तारीख़ में राज्य (जम्मू कश्मीर) के पास पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं हैं। अधिक वित्तीय लाभ उठाने की इसकी क्षमता को अनुच्छेद 35A द्वारा अपंग कर दिया गया है। कोई भी निवेशक यहाँ पर उद्योग, होटल, निजी शिक्षण संस्थान या निजी अस्पताल स्थापित करने के लिए तैयार नहीं है क्योंकि वह राज्य में न तो ज़मीन या संपत्ति ख़रीद सकता है और न ही उसके अधिकारी ऐसा कर सकते हैं। उनके बच्चों को सरकारी नौकरियों या कॉलेजों में प्रवेश नहीं मिल सकता है। आज, ऐसी कोई बड़ी राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय होटल चेन नहीं है, जिसने पर्यटन केंद्रित राज्य में एक भी होटल स्थापित किया हो।
Article 35A surreptitiously inserted in the Constitution prevented investment & job creation in J&K and sufferers are people of the State. pic.twitter.com/61UU3ONqrj
— Chowkidar Arun Jaitley (@arunjaitley) March 28, 2019
यह समृद्धि, संसाधन निर्माण और रोज़गार सृजन को रोकता है। कॉलेज की पढ़ाई के लिए छात्रों को नेपाल और बांग्लादेश सहित सभी जगहों पर जाना पड़ता है। जम्मू में केंद्र सरकार द्वारा स्थापित सुपर-स्पेशियलिटी सुविधा सहित इंजीनियरिंग कॉलेज और अस्पताल या तो अंडर-यूज़ किए गए या प्रयोग करने लायक ही नहीं हैं क्योंकि बाहर से प्रोफेसर और डॉक्टर वहाँ जाने के लिए तैयार ही नहीं हैं। अनुच्छेद 35A ने निवेश को रोक दिया है और राज्य की अर्थव्यवस्था को नष्ट कर दिया है। इस आर्टिकल को कई लोग राजनीतिक हथियार रूप में भी प्रयोग कर रहे हैं।
जम्मू कश्मीर के सम्बंध में नेहरु के दृष्टिकोण उचित नहीं थे। अब समय आ गया है कि हम विशेष दर्जे से अलगाव तक की यात्रा को विराम दें। pic.twitter.com/456YTaDPQe
— Chowkidar Arun Jaitley (@arunjaitley) March 28, 2019
देश के बाकी हिस्सों पर लागू होने वाला क़ानून का शासन इस राज्य में लागू क्यों नहीं होना चाहिए? क्या हिंसा, अलगाववाद, व्यापक पैमाने पर पत्थरबाजी (Stone Pelting), ख़तरनाक विचारधारा इत्यादि को इस दलील पर अनुमति दी जानी चाहिए कि अगर हम इसकी जाँच करते हैं, तो इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यह गलत नीति है, जो विकास-विरोधी साबित हुई है। आज वर्तमान सरकार ने निर्णय लिया है कि कश्मीर घाटी के लोगों के हित में और भारत के हित में, क़ानून का शासन सबके लिए समान रूप से लागू होना चाहिए।
Lakhs of Indian citizens in J&K vote in Lok Sabha but not in the Assembly, Municipal or Panchayat polls. There are restrictions on State govt. jobs, owning property & getting admission in the govt. institutions. Similar conditions apply to those who live elsewhere in the country.
— Chowkidar Arun Jaitley (@arunjaitley) March 28, 2019
लद्दाख और कारगिल हिल डेवलपमेंट काउन्सिल को आज और प्रभावशाली बनाया गया है। लद्दाख डिवीज़न का अलग से गठन किया गया है। लद्दाख में एक नया विश्वविद्यालय भी बनाया गया है। अलगाववादियों और आतंकियों पर बुरी तरह से मार पड़ी है। मुख्यधारा की दो पार्टियाँ केवल टेलीविज़न बाइट्स दे रही हैं और उनकी गतिविधियाँ सोशल मीडिया तक ही सीमित हैं। राज्य के लोग केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए क़दमों का स्वागत कर रहे हैं। वे शांति चाहते थे। हिंसा और आतंक से मुक्ति चाहते थे। घाटी में क़ानून का शासन लागू किया जा रहा है और लोगों के लिए एक सुरक्षित और शांतिपूर्ण जीवन सुनिश्चित किया जा रहा है।
Why should rule of law that applies to the rest of country not apply to the State? Should violence, separatism, vicious ideological indoctrination be allowed that if we check it, it will have a negative effect. It is this Nehruvian policy that has proved to be counter-productive.
— Chowkidar Arun Jaitley (@arunjaitley) March 28, 2019
एनआईए ने टेरर फंडिंग पर शिकंजा कसा है। आयकर विभाग ने सत्रह वर्षों के बाद कार्रवाई की और देश के ख़िलाफ़ उपयोग होने वाले धन के स्रोतों के मामले में कड़ी कार्रवाई कर रही है। सीबीआई हाल के वर्षों में दिए गए 80,000 बंदूक लाइसेंस पर नज़र बनाए हुए है और इसकी जाँच कर रही है। पिछले कुछ महीनों में सबसे ज्यादा आतंकी मारे गए हैं। बेकार के प्रदर्शनों व पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी आई है। आतंकी संगठनों में भर्ती होने वाले युवाओं में कमी आई है।