दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना ने कश्मीर को भारत से अलग बताने वाली लेखिका अरुंधति रॉय के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है। इसके बाद पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और कथित पत्रकार आरफा खानुम शेरवानी जैसे लोग अरुंधती रॉय के पक्ष में खड़े हो गए हैं।
महबूबा मुफ्ती ने एक्स पर अपने पोस्ट में लिखा, “अरुंधति रॉय विश्व प्रसिद्ध लेखिका और एक बहादुर महिला हैं, जो फासीवाद के खिलाफ एक शक्तिशाली आवाज के रूप में उभरी हैं। उन पर कठोर UAPA के तहत मामला दर्ज किया गया है। भारत सरकार मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हुए अपनी क्रूरता जारी रखे हुए है। कश्मीर के एक पूर्व लॉ प्रोफेसर पर मामला दर्ज करना भी हताशा का काम है।”
Shocking that Arundhati Roy world renowned author & a brave woman who has emerged as a powerful voice against fascism has been booked under the draconian UAPA. GOI continues its rampage violating fundamental rights with impunity. Booking a former law professor from Kashmir is… https://t.co/OuINMT8ySD
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) June 14, 2024
वहीं, तृणमूल कॉन्ग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने अपने पोस्ट में लिखा, “अगर अरुंधति रॉय पर UAPA के तहत मुकदमा चलाकर बीजेपी यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि वे वापस आ गए हैं तो ऐसा नहीं है। वे कभी भी उस तरह वापस नहीं आएँगे जैसे वे पहले थे। इस तरह के फासीवाद के खिलाफ भारतीयों ने वोट दिया है।”
If by prosecuting Arundhati Roy under UAPA BJP trying to prove they’re back, well they’re not. And they’ll never be back the same way they were. This kind of fascism is exactly what Indians have voted against.
— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) June 14, 2024
कॉन्ग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद ने एक्स पर लिखा, “मैं अरुंधति रॉय पर मुकदमा चलाने के लिए एलजी की मंजूरी की कड़ी निंदा करता हूँ। वह एक शानदार, अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रसिद्ध लेखिका और एक अग्रणी बुद्धिजीवी हैं। बुद्धिजीवियों, कलाकारों, लेखकों, कवियों और कार्यकर्ताओं की असहमति को कुचलने पर फासीवाद पनपता है। बीजेपी असहमति जताने वालों को विचलित करने और अपनी विफलताओं से ध्यान हटाने के लिए प्रतिदिन उनके लिए संकट पैदा करती है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर यह हमला अस्वीकार्य है।”
I strongly condemn the LG's sanction to prosecute Arundhati Roy who is a brilliant mind, an internationally renowned writer, and a leading intellectual.
— Hariprasad.B.K. (@HariprasadBK2) June 15, 2024
Fascism thrives on crushing dissent, particularly from intellectuals, artists, writers, poets & activists. @BJP4India…
वहीं, इस्लामी कट्टरपंथ पर चुप्पी साधने वाली कथित पत्रकार आरफा खानुम शेरवानी ने भी अरुंधती रॉय का पक्ष लिया है। उन्होंने अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “हमारी सबसे बेहतरीन सोच रखने वाली, हमारी सबसे बहादुर आवाज़ों में से एक, अरुंधति रॉय के साथ एकजुटता में! फासीवादी सबसे बुरे एवं कायर हैं।”
In solidarity with Arundhati Roy, one of our finest minds, one of our bravest voices !
— Arfa Khanum Sherwani (@khanumarfa) June 14, 2024
The fascists are the worst cowards.
दरअसल, अरुंधती रॉय पर UAPA को मामला लगाया गया है, वह मामला साल 2010 से जुड़ा है। अरुधंति रॉय और डॉक्टर शेख शौकत हुसैन ने 21 अक्टूबर 2010 को एलटीजी ऑडिटोरियम, कॉपरनिकस मार्ग, नई दिल्ली में ‘आजादी– द ओनली वे’ के बैनर तले आयोजित एक सम्मेलन में उत्तेजक भाषण दिए थे।
सम्मेलन में जिन मुद्दों पर चर्चा की गई और बात कही गई, उनमें ‘कश्मीर को भारत से अलग करने’ का प्रचार किया गया था। सम्मेलन में भाषण देने वालों में सैयद अली शाह गिलानी, एसएआर गिलानी (सम्मेलन के एंकर और संसद हमले मामले के मुख्य आरोपित), अरुंधति रॉय, डॉ. शेख शौकत हुसैन और अर्बन नक्सल वरवरा राव शामिल थे।
आरोप है कि गिलानी और अरुंधति रॉय ने इस बात का मजबूती से प्रचार किया था कि कश्मीर कभी भी भारत का हिस्सा नहीं रहा और उस पर भारत के सशस्त्र बलों ने जबरन कब्जा किया है। उन्होंने कहा था कि जम्मू-कश्मीर राज्य को भारत से आजादी दिलाने का हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिए। इस सम्मेलन की शिकायतकर्ता की ओर से रिकॉर्डिंग की गई थी, जोकि उपलब्ध करवायी गई।
इस मामले की शिकायत कश्मीरी कार्यकर्ता सुशील पंडित की ओर से कोर्ट में 28 अक्टूबर 2010 को गई थी। इसके बाद कोर्ट ने 27 नवंबर 2010 को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे। शिकायत के एक माह बाद 29 नवंबर 2010 को सुशील पंडित की शिकायत पर मामला दर्ज हुआ था।