दिल्ली के एलजी अनिल बैजल द्वारा समर्थित वकीलों के पैनल को खारिज करने का निर्णय दिल्ली कैबिनेट की बैठक में लिया गया। इस बैठक की अध्यक्षता मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने स्वयं की।
कई अदालतों ने दिल्ली दंगों की जाँच की ‘निष्पक्षता’ पर ‘गंभीर सवाल’ उठाए हैं – यह तर्क देते हुए आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली पुलिस द्वारा प्रस्तावित पैनल को खारिज कर दिया। केजरीवाल सरकार ने कहा, “कैबिनेट ने पाया कि ऐसी स्थिति में इन मामलों की स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई दिल्ली पुलिस द्वारा चुने गए वकीलों के पैनल द्वारा संभव नहीं होगी।”
दिल्ली सरकार की कैबिनेट ने इस मीटिंग में गृह विभाग को निर्देश दिया कि अदालत में दिल्ली दंगों से संबंधित कानूनी लड़ाई और न्याय के लिए ‘देश के सर्वश्रेष्ठ वकीलों का निष्पक्ष पैनल’ गठित किया जाए।
दिलचस्प यह है कि केजरीवाल सरकार की यह मीटिंग एलजी अनिल बैजल के निर्देश के बाद ही की गई। एलजी अनिल बैजल ने 16 जुलाई को मुख्यमंत्री केजरीवाल को एक पत्र लिखा था। उस पत्र के अनुसार दिल्ली सरकार को एक सप्ताह का समय दिया था कि वह उन वकीलों के पैनल पर फैसला करे, जिन्हें वे दिल्ली दंगों की कानूनी लड़ाई के लिए नियुक्त करना चाहते हैं।
केजरीवाल सरकार और एलजी बैजल के बीच इस मुद्दे को लेकर पिछले कुछ महीनों से संघर्ष चल रहा था। अब दिल्ली कैबिनेट का कहना है कि ट्रायल को निष्पक्ष रखने के लिए ये ज़रूरी है कि सरकारी वकीलों को पुलिस से स्वतंत्र रखा जाए। इसी कारण को गिनाते हुए दिल्ली कैबिनेट ने पुलिस द्वारा सुझाए गए वकीलों के पैनल को नकार देने की माँग की। दिल्ली पुलिस इस मामले में 6 वकीलों का एक पैनल गठित करना चाहती है।
सीएए हिंसा की घटनाओं और सांप्रदायिक हिंसा के मामलों को मिला दें तो इस मामले में कुल 85 केस बनते हैं, जिसके लिए दिल्ली पुलिस द्वारा सुझाए गए वकीलों के पैनल में तुषार मेहता और अमन लेखी जैसे बड़े वकीलों के नाम शामिल हैं। ये सभी दिल्ली हाईकोर्ट में प्रॉसिक्यूशन की तरफ से पेश होने वाले हैं। बता दें कि दिल्ली में प्रशासनिक व्यवस्था ऐसी है कि पुलिस तो एलजी के अंतर्गत आती है लेकिन प्रॉसिक्यूशन सरकार के अंतर्गत आता है।
Kejriwal’s govt rejects L-G-approved lawyers to represent Delhi Police in riots cases https://t.co/GbncbBXfLo
— Republic (@republic) July 29, 2020
अस्वस्थ सत्येंद्र जैन की तरफ से गृह मंत्रालय संभाल रहे दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने पहले ही कह दिया था कि वो केंद्र सरकार द्वारा गठित किए गए वकीलों के पैनल को नहीं चाहते क्योंकि राहुल मेहरा के नेतृत्व वाली वकीलों की टीम इस मामले को संभालने में पूरी तरह सक्षम है। हालाँकि, एलजी ने इस फैसले से नाराज़गी जताते हुए केजरीवाल सरकार को 1 सप्ताह के भीतर फैसला लेने को कहा था।
अगर एलजी और दिल्ली सरकार में सहमति नहीं बनती है तो वो इस मामले को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। इससे पहले मई में भी इस तरह का टकराव सामने आया था जब दिल्ली पुलिस ने अपने वकीलों की 11 सदस्यीय टीम को हाईकोर्ट में प्रतिनिधित्व के लिए नियुक्त किया था। दिल्ली सरकार ने इसे जब दूसरी बार नकारा था तो मामला राष्ट्रपति के पास पहुँचा था। एलजी ने पुलिस को ट्रायल कोर्ट्स में इस टीम के साथ काम करने की अनुमति दे दी थी।
AAP नेताओं पर दंगे करने और दंगाइयों के बचाव का आरोप
आपको बता दें कि दिल्ली पुलिस ने मंगलवार (जून 2, 2020) को बड़ी कार्रवाई करते हुए फ़रवरी के अंतिम सप्ताह में दिल्ली में हुए हिन्दू-विरोधी दंगों के मामले में 2 चार्जशीट दायर की है। इसमें आम आदमी पार्टी के (अब निलंबित) पार्षद ताहिर हुसैन को मुख्य आरोपित बनाया गया है।
दिल्ली हिंसा मामले में पार्षद ताहिर हुसैन को जाँच पूरी होने तक 27 फरवरी 2020 को आम आदमी पार्टी से निलंबित कर दिया गया। लेकिन थोड़ी देर बाद ही पार्टी के ‘अज़ीज़’ नेता ताहिर के बचाव में उतर आए और उसे निर्दोष घोषित करने लगे। AAP विधायक अमानतुल्लाह खान ने अपनी पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट आने के करीब 16 मिनट बाद यानी 10: 21 पर ही अपने अकाउंट से ट्वीट किया। अमानतुल्लाह ने ताहिर खान को बेकसूर घोषित कर दिया। साथ ही भाजपा पर आरोप लगाया कि अपने नेताओं को बचाने के लिए और आम आदमी पार्टी को बदनाम करने के लिए ताहिर हुसैन को झूठे केस में फँसा रही है।