भारत में इन दिनों ‘लव जिहाद’ के खिलाफ कानून बनाने की चर्चा काफी हो रही है। मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने अगले सत्र में कानून को लेकर बिल लाने की बात भी कही। वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार भी इसके खिलाफ सख्त कदम उठाने की दिशा में आगे बढ़ रही है। इस बीच AIMIM के राष्ट्रीय अध्यक्ष और लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवौसी ने इसे संविधान की भावना के खिलाफ बताया है।
ओवैसी ने कहा, “इस तरह का कानून संविधान की धारा 14 और 21 के खिलाफ है। स्पेशल मैरिज एक्ट को तब खत्म कर दें। कानून की बात करने से पहले उन्हें संविधान को पढ़ना चाहिए।” साथ ही उन्होंने कहा कि बीजेपी युवाओं का ध्यान बेरोजगारी से हटाने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रही है।
It’ll be gross violation of Articles 14 & 21, scrap Special Marriage Act then. They should study Constitution. Such propagation of hatred won’t work. BJP doing drama to distract youth who fell victim to unemployment: Asaduddin Owaisi, AIMIM on anti-‘Love Jihad’ law by some states pic.twitter.com/lDnwrWPbA4
— ANI (@ANI) November 22, 2020
‘लव जिहाद’ को संविधान की भावना के खिलाफ बताने वाले ओवैसी लेकिन खुद तीन तलाक पर संविधान संशोधन क्यों नहीं पढ़ते? कानूनों को लेकर समाज में बेचैनी का या तो इन्हें अंदाजा नहीं है या जानबूझकर अपनी आँखें बंद किए हुए हैं। अपने वादे के मुताबिक मोदी सरकार ने समाज में सैकड़ों साल से चली आ रही ट्रिपल तलाक जैसी गलत प्रथा को रोकने के लिए एक सख्त कानून का विधेयक संसद के दोनों सदनों में पारित करा दिया, लेकिन इसका विरोध करने वालों ने इसे मजहब विशेष को परेशान करने वाला कानून बताया।
ट्रिपल तलाक का दंश झेल चुकी महिलाएँ इस कानून को लेकर बेहद खुश हुईं। उनकी खुशी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता था कि राज्यसभा में विधेयक पारित होने के बाद बड़ी संख्या में मजहबी महिलाओं ने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के घर जाकर उन्हें बधाई दी। समाज में महिलाओं का एक बड़ा तबका कानूनों में सुधार चाहता था, लेकिन मज़हबी रहनुमा और मजहबी नेता इसके हक़ में नहीं थे।
30 जुलाई 2019 का दिन इतिहास में दर्ज हो गया। तीन तलाक विधेयक को राज्य सभा ने अपनी मंजूरी दे दी। लोक सभा से इस बिल को पहले ही मंजूरी मिल गई थी। लगभग 34 साल के अंतराल के बाद मोदी सरकार ने समुदाय की महिलाओं को उनका हक दिला दिया। सचमुच, यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में उठाया गया एक अभूतपूर्व कदम था। तुष्टीकरण के चलते जो न्याय पिछली सरकारें शाहबानो जैसी महिलाओं को नहीं दे पाईं थीं, वह चिर प्रतीक्षित न्याय वर्तमान सरकार ने शाहबानो के हवाले से समुदाय की महिलाओं को दिलाया।
विधेयक पेश किए जाने का तब विरोध करते हुए एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया था कि यह विधेयक संविधान की अवहेलना करता है और कानूनी रूपरेखा में उचित नहीं बैठता। उन्होंने कहा था कि समुदाय की महिलाओं के साथ अन्याय के मामलों से निपटने के लिए घरेलू हिंसा कानून और आईपीसी के तहत अन्य पर्याप्त प्रावधान हैं और इस तरह के नए कानून की जरूरत नहीं है। ओवैसी ने कहा कि यह विधेयक पारित होने और कानून बनने के बाद महिलाओं को छोड़ने की घटनाएँ और अधिक बढ़ जाएँगी।
ओवैसी साहब जो राजनीति कर रहे हैं, उससे अब तक मजहब विशेष के भारतीयों को कितना लाभ पहुँचा? इस प्रश्न का उत्तर जरा हैदराबाद के समुदाय विशेष से माँगिए। लगभग तीन दशकों से अधिक समय से एआईएमआईएम पार्टी हैदराबाद में म्युनिसिपल एवं राज्य स्तर पर सत्ता में है। शैक्षणिक और वित्तीय स्तर पर वहाँ के समुदाय के लोगों का कितना भला हुआ, आज तक ऐसा कोई डेटा आया नहीं।
हाँ, यह जरूर सुनते हैं कि ओवैसी खानदान के वक्फ फल-फूल रहे हैं। पुराना हैदराबाद एआईएमआईएम की म्युनिसिपल सत्ता के बावजूद वैसे ही गंदा रहता है, जैसे दूसरे शहरों की मजहबी बस्तियाँ गंदी रहती हैं। फिर, ओवैसी साहब जिस डंके की चोट पर ‘समुदाय के हित’ की बात करते हैं, हम ‘समुदाय के नेतृत्व’ पर पिछले तीन दशकों के अधिक समय से उसी ऊँचे स्वर में मजहबी मुद्दों की बात सुनते आए हैं।
असदुद्दीन ओवैसी साहब जिस ‘सीधे समुदाय के हित की बात’ की जज्बाती रणनीति पर चल रहे हैं, वह मजहबी नेतृत्व की दशकों पुरानी रणनीति है। हाँ, इस जज्बाती सीधी बात की रणनीति से कुछ मुल्ला-मौलवियों और कुछ मजहबी नेताओं के हित तो जरूर चमके लेकिन समुदाय विशेष भारत में दूसरे दर्जे की नागरिकता के कगार पर पहुँच गया।
समुदाय विशेष को जज्बाती ‘सीधी बात’ की राजनीति से सावधान रहने और सद्बुद्धि से अपनी क्षति नहीं बल्कि अपने हित की राजनीति का रास्ता ढूँढना चाहिए।