राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की ज्यादातर तबकों में सराहना हो रही है। लेकिन, राष्ट्रीय राजनीति में हाशिए पर पहुॅंच चुके वामपंथियों को यह रास नहीं आ रहा है। माकपा पोलित ब्यूरो की दो दिवसीय बैठक में प्रस्ताव पास कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाया गया है। पोलित ब्यूरो का मानना है, ‘अयोध्या विवाद पर कोर्ट का फैसला आया है, न्याय नहीं।’
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक बैठक में अयोध्या और सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चर्चा हुई। बैठक के बाद जारी बयान में अयोध्या पर कहा गया है कि फैसला एक पक्ष की भावनाओं और विश्वासों को केंद्र में रखकर दिया गया है। इस मामले में निर्णय भले आ गया है, लेकिन न्याय नहीं हुआ है।
पत्रकारों से बात करते हुए सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि कोर्ट का फैसला स्पष्ट रूप से कहता है कि 1949 में बाबरी मस्जिद के अंदर असंवैधानिक रूप से मूर्तियों की स्थापना हुई, जो कि गंभीर रूप से कानून का उल्लंघन है। लेकिन फिर भी विवादित जमीन कानून का उल्लंघन करने वालों को दे दी गई। फैसला में स्पष्ट है कि एएसआई की रिपोर्ट में ऐसा कोई सबूत नहीं हैं, जिसमें बताया गया हो कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी।
सबरीमाला पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की पीठ बहुमत से इस मामले में 2018 के फैसले को बरकरार रखने में विफल रही। अब इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेजने से और पुनर्विचार याचिका को लंबित रखने से मामले में अस्पष्ट और अनिश्चित स्थिति पैदा हो गई है।
पोलित ब्यूरो की दो दिवसीय बैठक में अन्य कई मुद्दों पर भी प्रस्ताव पारित किए गए। इनमें अर्थव्यवस्था, राफेल और जम्मू-कश्मीर प्रमुख है। घटती आर्थिक विकास दर पर चिंता जताते हुए सरकार के कामकाज पर सवाल खड़े किए गए हैं। वहीं, राफेल सौदे की जॉंच संयुक्त संसदीय समिति से कराने की कॉन्ग्रेस की मॉंग का समर्थन किया गया है।
गौरतलब है कि दिल्ली में हुई पोलित ब्यूरो की बैठक में पार्टी की गुटबाजी भी उभरकर सामने आ गई थी। ब्यूरो के तीन वरिष्ठ सदस्यों ने केरल में पार्टी के दो युवा कार्यकर्ताओं पर यूएपीए लगाए जाने को लेकर मुख्यमंत्री पिनरई विजयन को जमकर सुनाया था।
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