Wednesday, November 13, 2024
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दिल्ली में ‘जय बलराम’ करते जुटे 50000 किसान, कहा – राकेश टिकैत हमारा नेता नहीं, उनके आंदोलन को थी राजनीतिक फंडिंग

किसानों ने कहा कि हम अपना कार्य अहिंसक पद्धति से निकालने आए हैं और तीनों 'कृषि कानून' में त्रुटियाँ दूर होने के बाद वो उनका स्वागत करते। ये किसान 'भारत माता की जय' और 'जय बलराम' के नारे भी लगा रहे थे।

दिल्ली के रामलीला मैदान में सोमवार (19 दिसंबर, 2022) को लगभग 50,000 की संख्या में किसानों का जुटान हुआ। ‘भारतीय किसान संघ’ के बैनर तले इन किसानों ने केंद्र सरकार के समक्ष अपनी विभिन्न माँगें रखी और फिर शाम होते-होते लौट गए। इस रैली में देश भी के किसान जुटे। मंच पर भारत माता और भगवान बलराम की तस्वीर लगी थी। आंदोलन एकदम शांतिपूर्ण रहा और दिल्ली पुलिस के अलावा पैरा-मिलिट्री बलों की भी अच्छी-खासी तैनाती रही।

इस दौरान हमने आंदोलन में शामिल कई किसानों से बातचीत की और उनकी माँगों को समझा। आखिर क्या कारण है कि दिल्ली की सीमाओं को एक साल तक घेर कर रखने वाले तथाकथित किसानों के आंदोलन में जम कर हिंसा हुई थी, जबकि ये आंदोलन शांतिपूर्ण है? इस सवाल के जवाब में मध्य प्रदेश के सीहोर से आए सूरज सिंह ठाकुर कहते हैं कि हमारे आंदोलन को किसी राजनीतिक पार्टी की फंडिंग नहीं है, शायद इसीलिए।

उन्होंने सीधा आरोप लगाया कि तीनों कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली में उत्पात मचाने वाे तथाकथित किसानों को राजनीतिक फंडिंग थी। किसानों ने कहा कि हम अपना अधिकारी माँगने आए हैं, जबकि वो लोग किसानों को बदनाम करने के लिए आए थे। उनका ये भी कहना है कि हमलोग अपने अधिकार माँगने आए हैं, कोई भीख नहीं। इन किसानों ने ये भी बताया कि वो पिछले वाले ‘किसान आंदोलन’ का हिस्सा नहीं थे। वहीं कुछ का कहना है कि सिर्फ शुरुआत में ही वो उस आंदोलन के साथ थे।

‘किसान गर्जना रैली’ में जुटे किसानों का स्पष्ट कहना था कि वो लोग किसी को भी परेशान नहीं करना चाहते, लेकिन अपना काम करवाना चाहते हैं। उनकी केंद्र सरकार से मुख्य तीन माँगें हैं, जो इस रैली का आधार है। मध्य प्रदेश के जिन किसानों से हमारी बात हुई, उनका कहना है कि प्रत्येक वर्ष मिलने वाली ‘किसान सम्मान निधि’ को 6000 रुपए से बढ़ा कर 20,000 रुपए किया जाए। वहीं कृषि यंत्रों पर लगने वाली GST को भी खत्म किया जाना उनकी माँग है।

उनकी सबसे बड़ी माँग ये है कि लागत के आधार पर फसल को बेचने का मूल्य तय किया जाए। किसानों ने तंज कसते हुए कहा कि जिन नेताओं को ये तक पता नहीं है कि आलू जमीन के अंदर उगता है या बाहर, वो हमारे लिए मूल्य तय करने बैठे हुए हैं। प्राइवेट कंपनियों से उन्हें कोई दिक्कत है? इसके जवाब में किसानों ने कहा कि कृषि कानूनों के वो समर्थन में हैं, बस कुछ त्रुटियों को सुधार दिया जाए। इन किसानों का कहना है कि वो राष्ट्रवादी हैं और तीनों कृषि कानूनों (अब रद्द) से उन्हें कोई दिक्कत नहीं है।

किसानों ने कहा कि हम अपना कार्य अहिंसक पद्धति से निकालने आए हैं और तीनों ‘कृषि कानून’ में त्रुटियाँ दूर होने के बाद वो उनका स्वागत करते। ये किसान ‘भारत माता की जय’ और ‘जय बलराम’ के नारे भी लगा रहे थे। इन किसानों का कहना है कि वो सड़क जाम करने की बजाए वोट की ताकत में विश्वास रखते हैं। इन किसानों ने स्पष्ट कहा कि राकेश टिकैत उनके नेता नहीं हैं। उन्होंने कहा कि राकेश टिकैत जैसे लोग किसानों को फुसला रहे हैं।

‘किसान गर्जना रैली’ में माहौल काफी सांस्कृतिक था। स्थानीय नाच-गान और संगीत के माध्यम से किसान विरोध प्रदर्शन करते नज़र आए। ढोल और झाल बजाते हुए किसान भी वहाँ मौजूद थे। शाम होने के बाद कई किसान वापस रेलवे स्टेशन के लिए निकलते नज़र आए, क्योंकि अभी गेहूँ का मौसम है और और उन्हें खेतों में काम भी रहता है। सबसे बड़ी बात ये कि ‘किसान गर्जना रैली’ में महिलाओं की एक बड़ी उपस्थिति दिखी।

कई ऐसे किसान थे जो अपना सामान लेकर यहाँ आए थे और समूह में पहुँचे थे। ऐसे में यहाँ भोजन-पानी कर के वो अपने सामान की सुरक्षा भी करते दिख और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के बाद वापस लौट गए। हमारी मुलाकात ओडिशा के कुछ किसानों से हुई। इनमें से एक प्रदीप महंता ने लाभकारी मूल्य, कृषि उपकरणों से GST हटाने और ‘किसान सम्मान निधि’ को बढ़ाने को अपनी प्रमुख माँग बताया। उनका कहना है कि कम से कम 5000 रुपए के तीन किश्त हर साल मिलनी चाहिए।

इन किसानों ने भी स्पष्ट किया कि कृषि कानूनों के विरोध में हुए ‘किसान आंदोलन’ में वो सिर्फ शुरुआत में ही शामिल रहे, उसके बाद हट गए। राकेश टिकैत आपलोगों के नेता हैं या नहीं? इसके जवाब में किसानों ने एक सुर में कहा – नहीं, हर एक किसान हमारा नेता है। ओडिशा के किसानों ने भी लाल किले पर हुई हिंसा की याद दिलाने पर कहा कि हम शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन में यकीन रखते हैं। उनका कहना है कि वो सरकार के विरोधी नहीं है, बस अपना हक़ माँगने आए हैं।

ओडिशा के इन किसानों ने बताया कि कृषि कानूनों में कुछ संशोधन हो जाता तो हम उसका स्वागत करने के लिए तैयार थे। ओडिशा के किसानों ने एक और खास बात बताई कि भगवान बलराम को भगवान जगन्नाथ का बड़ा भाई माना जाता है, इसीलिए वहाँ के किसानों की आस्था उनमें बहुत है। वहाँ भगवान बलराम के कई मंदिर भी हैं। इसीलिए, ‘किसान गर्जना रैली’ में ‘जय बलराम’ का नारा खूब गूँजा। इस दौरान ‘जो हमसे टकराएगा, हमसे ही मिल जाएगा’ जैसे नारे भी लगे।

‘पिएँगे क्या – रस, खाएँगे क्या – रसगुल्ले’ – एक रोचक नारा ये भी लगा। “देश के हम भंडार भरेंगे लेकिन कीमत पूरी लेंगे।” – ये ‘भारतीय किसान संघ’ का मुख्य नारा रहा है। ‘किसान गर्जना रैली’ में खाद्यान की सुरक्षा के अलावा किसानों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने की माँग भी की गई। कृषि आदानों से GST को खत्म करवाना इनका लक्ष्य है। किसानों ने बताया कि GST से पहले भी इन पर टैक्स लगता आ रहा है, ये समस्याएँ काफी पहले से हैं और किसानों की हालत जस की तस है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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