राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा है कि अगले 20-30 वर्षों तक देश की राजनीति भाजपा के ही इर्दगिर्द घूमेगी, या तो आप पार्टी के साथ हैं या फिर विरोध में। प्रशांत किशोर ने इस दौरान अपने जीवन को लेकर भी बात की और कहा कि वो ‘सफल’ होना चाहते हैं। उनके अनुसार, सफलता की परिभाषा ये है कि आप कितने ज्यादा से ज्यादा लोगों के जीवन को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। उन्होंने उदाहरण दिया कि एक ब्यूटी कंटेस्ट में प्रतिभागी बदलाव लाने की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन उनका लक्ष्य अभिनय या मॉडलिंग में करियर बनाना ही होता है।
प्रशांत किशोर ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ द्वार आयोजित ‘E. Adda’ में कहा कि भाजपा चुनावी रूप से काफी मजबूत पार्टी हो गई है और भारत में एक बार आप 30% वोट सुरक्षित कर लेते हैं तो आप कई दशकों तक टिकते हैं। उन्होंने कहा कि ‘जो ऊपर जाता है, उसे नीचे आना ही है’ वाली कहावत मीडियम का लॉन्ग रन में सही हो सकती है, लेकिन जैसे आज़ादी के बाद 40-50 वर्षों तक राजनीति कॉन्ग्रेस के इर्दगिर्द घूमती रही, वैसे ही अगले 20-30 सालों तक भाजपा के साथ होगा।
उन्होंने इतिहास की बात करते हुए कहा कि आज़ादी के बाद के कुछ दशकों में 1977 के अलावा कोई भी पैन इंडिया पार्टी कॉन्ग्रेस को टक्कर नहीं दे पाई। उन्होंने कहा कि विपक्ष की एकजुटता की प्रक्रिया काफी लंबी चलती है। उन्होंने कहा कि सही चीजें नहीं हुईं तो कोई विपक्षी पार्टी या गठबंधन अगले कई वर्षों तक पैन-इंडिया पहुँच के साथ नहीं आ पाएगी। उन्होंने कहा कि 1984 के बाद से कॉन्ग्रेस कभी अपने दम पर सत्ता नहीं जीत पाई, यूपीए भी गठबंधन सरकार थी।
उन्होंने गिनाया कि कॉन्ग्रेस की चुनावी गिरावट तभी से चालू हो गई थी। उन्होंने कहा कि भारत में 60 करोड़ लोग रोज 100 रुपए से भी कम कमाते हैं, वहाँ विपक्ष को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि विपक्षी एकजुटता या गठबंधन मजबूत हो जाएगा। उन्होंने शाहीन बाग़ और किसान आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा कि चेहरा न होने के बावजूद आप नैरेटिव सही कर के चीजों को ठीक कर सकते हैं, एक मुद्दा चुन कर एकाध साल के लिए उस पर अड़े रह सकते हैं।
उन्होंने कहा कि क्या आपने कभी विपक्ष को पिछले कुछ वर्षों में आम लोगों या कोविड पीड़ितों की आवाज़ उठाते हुए देखा? साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि केवल प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से काम नहीं चलता। उन्होंने कहा कि चुनाव जीतने के लिए सही मैसेज होना चाहिए, जिसे एक सही मैसेंजर (चेहरे) द्वारा जनता को पहुँचाया जाए, इसके बाद पार्टी मिशनरी को इसे अभियान में बदलना होता है। इस दौरान उन्होंने अपनी अगली योजना की भी बात की।
प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार में बदलाव के लिए वो जनता के बीच जाकर यात्रा करेंगे और जानेंगे कि क्या-क्या किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि राजद के काल में सामाजिक न्याय की बात कही जाती है, उसके बाद नीतीश कुमार के काल में आर्थिक विकास की बात कही जाती है – इन 30 वर्षों के बाद भी बिहार देश का सबसे गरीब और पिछड़ा राज्य है। उन्होंने कहा कि विकास के मानकों पर बिहार सबसे नीचे हैं, लेकिन लालू-नीतीश काल से आगे अग्रणी आने के लिए नई सोच और नए प्रयास की जरूरत है।
हालाँकि, उन्होंने माना कि ये किसी एक व्यक्ति के बाद की बात नहीं। उन्होंने कहा कि बिहार में कई लोग ऐसे हैं जो बदलाव के लिए क्या करना चाहिए, ये जानते हैं। उन्होंने कहा कि अगर लोग साथ आकर राजनीतिक पार्टी के गठन की बात करते हैं तो वो भी होगा, लेकिन ये प्रशांत किशोर का दल नहीं होगा बल्कि जो इसके संस्थापक साथ आएँगे – उनका होगा। उन्होंने खुद को कैटेलिस्ट बताते हुए कहा कि वो बस बदलाव लाने वालों को साथ लाना चाहते हैं, उन्हें नहीं पता कि नेता वो होंगे या कोई और।
उन्होंने बताया कि कहीं उन्होंने अपना चेहरा तक नहीं लगाया है, बल्कि महात्मा गाँधी को रखा है। उन्होंने बताया कि बिहार के 17-18 हजार लोगों तक वो पहुँचे हैं, जिनमें कई शिक्षक, पूर्व अधिकारी और समाजसेवी जैसे लोग हैं। उन्होंने कहा कि सह-संस्थापक के रूप में कितने लोगों को साथ लाया जा सकता है, ये वो सबसे मिल कर तय करेंगे। उन्होंने कहा कि 1000-1200 लोग साथ आकर पार्टी बनाएँगे। उन्होंने ये भी कहा कि राजनीतिक दल या पार्टी गाँधी का प्रयोग सही से नहीं कर रहे हैं।