2016 में 3 सीट हासिल करने वाली बीजेपी ने इस बार पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में 77 सीटों पर सफलता हासिल की है। नंदीग्राम में उसके प्रत्याशी रहे शुभेंदु अधिकारी ने तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ही पटखनी दे दी। 10 मई 2021 को बीजेपी ने अधिकारी को पार्टी विधायक दल का नेता चुना। इसके बाद इंडियन एक्सप्रेस के लिए लिखे गए एक लेख में अधिकारी ने भविष्य की रणनीतियों का खाका पेश किया है।
लेख में उन्होंने राज्य में चुनाव के बाद हुई हिंसा के लिए तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) को जिम्मेदार ठहराते हुए इसे जनादेश का अपमान करार दिया है। कहा है कि राज्य ने हाल ही में रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती मनाई है, जिन्होंने कहा था, ‘चित्त जहाँ भयशून्य, उच्च मस्तक नित रहता’, लेकिन आज के बंगाल में लोगों का मन स्वतंत्र नहीं है और वर्तमान स्थिति को देखते हुए सिर भी शर्म से झुका हुआ है।
उन्होंने चुनावी जीत के बाद टीएमसी कार्यकर्ताओं द्वारा बीजेपी समर्थकों को निशान बनाकर की गई हिंसा की आलोचना करते हुए लिखा, “एक वर्तमान केंद्रीय मंत्री पर उन गुंडों द्वारा हमला किया गया जिनका संबंध सत्ताधारी पार्टी से था। ये अकेली ऐसी घटना नहीं थी। पूरे राज्य में हिंसा अबाध गति से जारी रही।”
‘टीएमसी ने की विपक्ष को भयभीत करने की कोशिश’
शुभेंदु ने लिखा है कि टीएमसी ने जनादेश का अपमान करते हुए राज्य भर में आंतक फैलाया और लोकतंत्र की संस्कृति को नष्ट करने का हरसंभव प्रयास किया गया। उन्होंने कहा, “बंगाल के लोगों ने टीएमसी को शासन करने के लिए स्पष्ट जनादेश दिया था, न कि राज्य भर में आतंक फैलाने के लिए नहीं। सरकार के स्तर पर बहुत कुछ किया जाना है। कोविड को नियंत्रण में लाना है। लेकिन शीर्ष नेतृत्व समर्थित टीएमसी कैडर राज्य में लोकतंत्र की संस्कृति को नष्ट करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। अपनी रैलियों में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री इतनी व्यस्त थीं कि उन्हें प्रधानमंत्री द्वारा हाल ही में आयोजित कोविड की बैठकों में शामिल होना समझदारी नहीं लगी।”
शुभेंदु ने कहा कि 2 मई को नतीजे आने के बाद टीएमसी कैडरों को बंगाल में राजनीतिक विरोधियों को भयभीत करने के स्पष्ट निर्देश मिले थे। उन्होंने इस निर्देश का अक्षरश: पालन किया। उन्होंने लिखा है, “हमारी पार्टी (बीजेपी) के दर्जनों कार्यकर्ता मारे गए हैं, हजारों अपने घरों से भागने को मजबूर हुए। किसी को भी नहीं बख्शा गया। महिलाएँ, बच्चे, किसान, गरीब या युवा। टीएमसी ने हमारे संविधान के हर सिद्धांत का उल्लंघन किया है।” शुभेंदु ने लिखा है कि टीएमसी कैडरों ने उस कॉन्ग्रेस और लेफ्ट के ऑफिसों को भी नहीं बख्शा, जिसने बीजेपी को हराने के लिए टीएमसी की मदद करने का हरसंभव प्रयास किया था, भले ही इसके चक्कर में उनका खुद का आँकड़ा शून्य पर पहुँच गया।
शुभेंदुने लिखा कि नंदीग्राम ने टीएमसी को इतना प्यार दिया। अगर नंदीग्राम आंदोलन न होता तो 2011 में टीएमसी की जीत कभी नहीं होती। लेकिन जब नंदीग्राम ने इस बार टीएमसी को नकार दिया तो पार्टी के कार्यकर्ता यहाँ के लोगों से बदला ले रहे हैं। चुने हुए प्रतिनिधियों पर हमले किए जा रहे हैं।
‘बीजेपी की हार पर जश्न मनाने वाले टीएमसी की हिंसा पर चुप’
शुभेंदु ने टीएमसी प्रायोजित हिंसा पर चुप्पी साधने वालों से भी सवाल किया। उन्होंने लिखा है, “बीजेपी के साथ वैचारिक मतभेद रखने वाले कुछ लोग पश्चिम बंगाल के परिणामों से खुश थे। लेकिन टीएमसी प्रायोजित हिंसा पर उन्होंने चुप्पी साध रखी है। टीएमसी कैडरों की आक्रामकता की आलोचना करने के लिए एक भी शब्द नहीं। मौतों पर एक शब्द नहीं। महिलाओं पर हुए हमलों पर एक शब्द नहीं। वे अपने ‘भारत के विचार’ के बारे में बात करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते हैं, लेकिन जब उदार लोकतांत्रिक भारत के इस विचार को पश्चिम बंगाल में दूषित किया जा रहा है तो वे आसानी से अपनी आँखें और कान बंद कर लेते हैं।”
‘संयमित रही बीजेपी, टीएमसी मर्यादा भूली’
शुभेंदु ने जीत के नशे में मर्यादा भूलने वाली तृणमूल कॉन्ग्रेस को असम और पुदुचेरी में एनडीए की जीत का उदाहरण दिया, जहाँ बीजेपी की जीत के बावजूद ऐसी कोई हिंसा नहीं हुई। उन्होंने कहा, “जब टीएमसी चुनाव में हार जाती है, तो वे ईवीएम को दोष देने का कोई मौका नहीं छोड़ती है। क्या हमने सुना कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने ईवीएम को दोष दिया है?”
दौरान बार-बार चुनाव आयोग और केंद्रीय सुरक्षा बलों पर निशाना साधने के लिए भी ममता बनर्जी की पार्टी को लताड़ लगाते हुए लिखा है, “इस बार टीएमसी ने चुनाव आयोग और केंद्रीय बलों के खिलाफ एक आक्रामक अभियान चलाया। लेकिन, अगर मुझे ठीक से याद है, तो टीएमसी ही हमेशा चरणबद्ध चुनाव चाहती थी ताकि लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को प्रकट किया जा सके। टीएमसी हमेशा वोट डालने से पहले मतदाताओं के लिए उचित सुरक्षा चाहती थी। अब क्या बदल गया है? उत्तर स्पष्ट है।”
उन्होंने कहा है कि बीजेपी 3 से 77 सीटों तक पहुँची है और उनकी पार्टी बंगाल में लंबे समय तक टिकेगी और राज्य का गौरव वापस लाने के लिए संघर्ष करती रहेगी। टीएमसी की सत्ता और पैसे की ताकत का विरोध जारी रहेगी। साथ है कहा है कि अगर टीएमसी ऐसे ही हरकतें जारी रखती है तो उसकी दुर्गति भी लेफ्ट जैसी होगी।