Sunday, November 17, 2024
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आपस में लड़ती I.N.D.I. गठबंधन की सरकारें, मोदी सरकार से लगा रहे गुहार – ‘सुलह करा दो’: जानें क्या है कावेरी नदी वाला विवाद, कर्नाटक- तमिलनाडु में रार

इससे पहले कर्नाटक सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। इस बैठक में तमिलनाडु को कावेरी नदी का पानी नहीं देने का निर्णय लिया गया था। उल्लेखनीय है कि तमिलनाडु ने कावेरी जल बँटवारे पर कर्नाटक के साथ बातचीत से इनकार कर दिया है।

मोदी सरकार के खिलाफ एकजुटता दिखाने के लिए विपक्ष ने I.N.D.I. गठबंधन तो बना लिया है, लेकिन गठबंधन की पार्टियों के बीच एकता नजर नहीं आ रही। ताजा मामला कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी जल विवाद का है। दोनों ही राज्यों में कॉन्ग्रेस सत्ता में है। लेकिन इसके बाद भी केंद्र से झगड़ा सुलझाने की अपील की जा रही है। जहाँ कर्नाटक में कॉन्ग्रेस अकेले बहुमत में है, वहीं तमिलनाडु में वो अपने I.N.D.I. गठबंधन की सहयोगी DMK के साथ सत्ता में साझीदार है।

कावेरी जल विवाद को विस्तार से समझने से पहले इतना जान लीजिए कि दोनों राज्यों के बीच कावेरी नदी के पानी के बँटवारे को लेकर विवाद मचा हुआ है। कर्नाटक में कॉन्ग्रेस सरकार है। वहीं तमिलनाडु में कॉन्ग्रेस-डीएमके गठबंधन सत्ता में है। कावेरी जल विवाद को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने शनिवार (16 सितंबर, 2023) को केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को एक पत्र लिखा है।

इस पत्र में स्टालिन ने कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार पर गलत जानकारी देने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि कर्नाटक सरकार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि कावेरी डेल्टा में पर्याप्त पानी है और तमिलनाडु में मानसून से पर्याप्त वर्षा होगी। इसलिए तमिलनाडु की माँग सही नहीं है, उसने अपना सिंचाई क्षेत्र बढ़ाया है। बकौल एमके स्टालिन, यह सब बातें पूरी आधारहीन हैं। कर्नाटक सरकार की रिपोर्ट ‘झूठी’ थी।

वहीं एक अन्य बयान में तमिलनाडु सीएम स्टालिन ने कहा कि जल विवाद को लेकर राज्य की सभी पार्टियों के सांसद केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को एक ज्ञापन सौंपेंगे। इसके लिए राज्य से एक प्रतिनिधिमंडल भेजा जाएगा। इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व तमिलनाडु के जल संसाधन मंत्री दुरईमुरुगन करेंगे।

उन्होंने आगे कहा कि इस ज्ञापन के जरिए केंद्र से आग्रह किया जाएगा कि वह कर्नाटक राज्य को तमिलनाडु के लिए कावेरी नदी का पानी छोड़ने की सलाह दें। स्टालिन ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी के पानी आनुपातिक बँटवारे को लेकर फैसला दिया था, लेकिन कर्नाटक उस फैसले का पालन नहीं कर रहा है। तमिलनाडु को 14 सितंबर तक कर्नाटक से 103.5 TMCFT पानी मिलना चाहिए था। स्टालिन का दावा है कि तमिलनाडु को केवल 38.4 TMCFT पानी मिला। इससे 65.1 TMCFT पानी की कमी हो गई है।

बता दें कि इससे पहले कर्नाटक सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। इस बैठक में तमिलनाडु को कावेरी नदी का पानी नहीं देने का निर्णय लिया गया था। उल्लेखनीय है कि तमिलनाडु ने कावेरी जल बँटवारे पर कर्नाटक के साथ बातचीत से इनकार कर दिया है। तमिलनाडु का कहना है कि कई बार बातचीत असफल होने के बाद ट्रिब्यूनल का गठन किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के सुझाव में मामूली सुधार के साथ अपना फैसला सुनाया था। इस फैसले के हिसाब से जहाँ एक तमिलनाडु चाहता है कि कर्नाटक उसे हर महीने पानी दे। वहीं कर्नाटक का कहना है कि वह अपने लोगों और किसानों की जरूरतों को पूरा करने के बाद ही पानी छोड़ सकता है। 

क्या है कावेरी जल विवाद?

कावेरी जल विवाद 140 साल से भी अधिक पुराना है। इसकी शुरुआत साल 1881 में तब हुई जब मैसूर राज्य ने कावेरी नदी पर बाँध बनाने का फैसला किया। इस फैसले के बारे में सुनते ही मद्रास प्रेसिडेंसी ने आपत्ति जाहिर की। तब अंग्रेजों ने इसमें दोनों पक्षों में समझौता करा दिया। इसके बाद साल 1924 में मामला फिर उठा। इस बार मैसूर और मद्रास के साथ ही केरल और पुदुचेरी ने भी कावेरी के पानी में अपना हिस्सा बताया। मामला कोर्ट में पहुँचा और अंग्रेजों ने फिर से सुलह करा दी।

देश की आजादी के बाद भी कावेरी के पानी का मुद्दा समय-समय पर उठता रहा। स्थितियाँ बिगड़ती देख केंद्र सरकार ने 2 जून, 1990 को ट्रिब्यूनल का गठन किया। साल 1991 में ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में कहा कि कर्नाटक कावेरी के पानी का एक हिस्सा तमिलनाडु को देगा। साथ ही हर महीने पानी देने को लेकर भी फैसला हुआ। लेकिन बात अंतिम नतीजे तक नहीं पहुँच पाई। ट्रिब्यूनल के इस फैसले के खिलाफ कर्नाटक में हिंसक झड़प भी हुई थी।

इसके बाद साल 2007 में मामला फिर अदालत में पहुँच गया। कोर्ट की दखल के बाद ट्रिब्यूनल ने साल 2007 में कावेरी नदी  के पानी का बँटवारा कर दिया। इसके हिसाब से कावेरी का पानी सभी दावेदारों को देने का फैसला हुआ। ट्रिब्यूनल ने यह माना था कि कावेरी में 740 TMC पानी है। इसमें से तमिलनाडु को 419, कर्नाटक को 270, केरल को 30 और पुदुचेरी को 7 TMC पानी दिया जाना था। यही नहीं, विवाद सुलझाने के लिए कावेरी प्रबंधन बोर्ड और कावेरी जल नियमन समिति भी बनाई गई थी। लेकिन कर्नाटक और तमिलनाडु के अड़ियल रवैये के चलते मामला सुलझ नहीं पाया।

साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए कर्नाटक से कहा कि वह तमिलनाडु को और पानी दे। लेकिन, इस फैसले के बाद कर्नाटक में हिंसक झड़प शुरू हो गईं। मामला किसी तरह शांत कराया गया। इसके बाद साल 2016 में कर्नाटक सरकार ने सर्वसम्मति से कावेरी का पानी तमिलनाडु को न देने को लेकर विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर दिया। तमिलनाडु ने इसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवमानना बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की।

इसके बाद कोर्ट ने कर्नाटक से फिर से तमिलनाडु को पानी देने के लिए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद फिर से हिंसक घटनाएँ हुईं। बसों और सार्वजनिक संपत्तियों में आग लगा दी गई। साल 2018 में एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक को तमिलनाडु के लिए पानी छोड़ने का आदेश दिया। इस फैसले के हिसाब से तमिलनाडु को 404.25 TMC फीट पानी मिलना तय हुआ था। वहीं कर्नाटक को 284.75 TMC पानी मिलना था। लेकिन तमिलनाडु का आरोप है कि कर्नाटक उसे पर्याप्त पानी नहीं दे रहा है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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