नागरिकता विधयेक को लेकर विरोध जुटाने में असफ़ल हो रहे वामपंथियों के गिरोह अब लोगों के साथ ज़ोर-ज़बर्दस्ती कर उनका इस बिल के समर्थन को दबाने में जुटे हैं। ऐसा ही एक वामपंथी गिरोह आईआईटी बॉम्बे में सक्रिय है, जो छात्रों के बीच इस विधेयक के बढ़ते समर्थन को दबाने के लिए छल-प्रपंच से लेकर दबी-छुपी और खुली धमकियों तक हर हथकण्डा आजमाने से बाज नहीं आ रहा है।
अधिकांश छात्र पक्ष में
नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 (जिस पर फ़िलहाल राज्य सभा में बहस जारी है) के पक्ष में सामान्य, राजनीतिक छात्र संगठनों से असंबद्ध छात्र खुल कर उतर आए हैं। ऑपइंडिया के संवाददाता से बात करते हुए मुंबई में स्थित IIT बॉम्बे के छात्रों ने बताया कि हालाँकि कैम्पस के अधिकांश छात्र राजनीति में अधिक रुचि नहीं रखते, लेकिन इस मुद्दे को छात्रों के एक बड़े तबके का समर्थन हासिल है। चूँकि इन छात्रों की राजनीतिक गतिविधियाँ नगण्य होतीं हैं, इसलिए उनका समर्थन आम तौर पर अपने फेसबुक स्टेटस, वॉट्सऍप स्टोरी आदि में ही समर्थन दिखाने तक ही सीमित है, लेकिन इससे इस विषय पर कैम्पस के आम तौर पर माहौल और रुख का अंदाज़ा आराम से लगाया जा सकता है।
वामपंथी फैकल्टी का डर
लेकिन अधिकांश शिक्षक-वर्ग (फैकल्टी) के वामपंथी होने के चलते राजनीतिक रुख का नुकसान मार्कशीट पर दिखने का डर भी छात्रों को सताने की बात हमें पता चली है। छात्रों के बहुत मुखर न होने का एक कारण यह भी बताजा जा रहा है।
देश को कैम्पस के रुख के बारे में बरगलाने की कोशिश
इसके अलावा वामपंथी छात्र और उनके संगठन कैम्पस का माहौल बिगाड़ने, और अपने असल में हाशिये पर पड़े विचार को कैंपस की विचारधारा दिखाने की कोशिश हो रही है। इसी कड़ी में वामपंथियों ने एक ऐसा ‘आंदोलन’ परिसर में करने की कोशिश की, जिससे परिसर और संस्थान का माहौल बिगड़ना पक्का था। इसी ‘समझदारी’ में इस प्रदर्शन के पोस्टरों में इसका आयोजन करने वालों का नाम नहीं दिया गया था।
इसके अलावा आईआईटी बॉम्बे में कम्प्यूटर साइंस के एक शोधार्थी छात्र ने हमारे संवाददाता को बताया कि इस समय खाली कैम्पस देख कर वामपंथी अपने रुख को कैम्पस का रुख दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। चूँकि अधिकांश छात्र (जिनमें बहुतायत विधेयक के समर्थकों की है) उपस्थित नहीं हैं, इसलिए विधेयक के मुट्ठी-भर विरोधी इकट्ठे होकर ऐसा जताने की कोशिश कर रहे हैं कि वे ही समूचे कैम्पस के प्रतिनिधि हैं। इस षड्यंत्र में उनके साथ कुछ वामपंथी समाचार पत्र भी शामिल हैं, जो इस भ्रामक आशय को फ़ैलाने वाली खबरें प्रकाशित कर रहे हैं।