2011 का साल था। राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस की सरकार चल रही थी। अचानक से भंवरी देवी नाम ने प्रदेश में सियासी तूफान खड़ा कर दिया। इस प्रकरण ने महिपाल मदेरणा की राजनीति पर ग्रहण लगा दिया। इन्हीं महिपाल मदेरणा की बेटी हैं दिव्या जो इस विधानसभा चुनाव में ओसियाँ के मैदान में परास्त हुईं हैं।
चुनाव प्रचार के दौरान समर्थक दिव्या को भविष्य का मुख्यमंत्री बता रहे थे। उनकी गिनती प्रदेश में कॉन्ग्रेस के बड़े युवा चेहरों में हो रही थी। इसके कारण ओसियाँ राजस्थान की सबसे चर्चित सीटों में से एक बनी हुई थी। लेकिन बीजेपी के भैरा राम चौधरी ने उन्हें हराकर पुराना हिसाब चुकता कर लिया है।
भाजपा के भैरा राम चौधरी को 1,03,746 वोट मिले हैं, जबकि दिव्या 1,00,939 वोट पा सकी हैं। वह 2018 में भैरा राम को हराकर ही पहली बार विधायक बनीं थी।
दिव्या ने अपनी राजनीतिक पारी 2010 में चालू की थी, जब वह जोधपुर जिला परिषद सदस्य चुनी गईं थी। उनकी माँ भी जिला परिषद की सदस्य और अध्यक्ष भी रही हैं। दिव्या पुणे और इंग्लैंड में पढ़ चुकी हैं।
दिव्या मदेरणा राजस्थान के सबसे ताकतवर राजनीतिक परिवारों में से एक मदेरणा परिवार से आती हैं। उनके पिता महिपाल मदेरणा भंवरी देवी कांड में फँसने से पहले तत्कालीन अशोक गहलोत की सरकार में कैबिनेट मंत्री हुआ करते थे। महिपाल मदेरणा की 2021 में मौत हुई थी। उससे पहले ही वे अपनी राजनीतिक विरासत बेटी दिव्या को सौंप चुके थे। दिव्या के दादा परसराम मदेरणा भी अपने जमाने में राजस्थान कॉन्ग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार थे।
भंवरी देवी केस
भंवरी देवी का मामला अगस्त 2011 का है। उस समय एएनएम भंवरी देवी के अचानक गायब होने पर उनके पति अमरचंद ने प्रदेश के तत्कालीन मंत्री महिपाल मदेरणा पर पत्नी को गायब कराने का आरोप लगाया था। कुछ समय बाद मामला परत दर परत खुला और एक के बाद एक कर कई लोग इस पूरी कहानी में जुड़ते गए, लेकिन भंवरी का कहीं पता नहीं लग पाया। बाद में सीबीआई मामले की जाँच में जुटी और तभी भंवरी देवी और महिपाल मदेरणा की एक सीडी वायरल हो गई।
मदेरणा इस मामले में जेल भी गए थे। बाद में उन्हें और मलखान सिंह को जमानत पर रिहा किया गया था। 2021 में जब महिपाल मदेरणा की कैंसर से मौत हुई वे जेल से बाहर ही थे।
दिव्या ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को पाँच साल तक आगे बढ़ाया, लेकिन इस हार के बाद अब उन्हें नए सिरे से अपनी जमीन तैयार करनी होंगी। दिव्या को पार्टी में भी मुखर नेता माना जाता रहा है, लेकिन कॉन्ग्रेस की आंतरिक लड़ाई के कारण गहलोत सरकार के अंतिम दिनों में वह साइडलाइन हो गईं थी।